नैनीताल के शिल्पी मोतीराम शाह

नैनीताल के शिल्पी मोतीराम शाह
नैनीताल के शिल्पी मोतीराम शाह

विविध प्रजाति के वन्य जीवों की आश्रय स्थली एक वीरान जंगल को सुव्यवस्थित नगर के रूप में बसाना और संवारना अंग्रेजों के लिए बड़ी चुनौती थी। अंग्रेज भारी निवेश के बगैर स्थानीय स्तर से ही सभी आवश्यक संसाधन और ऊर्जा जुटा कर नैनीताल को एक आदर्श नगर के रूप में बसाना चाहते थे। उन्होंने ऐसा ही किया भी। अंग्रेजों को एक ऐसे स्थानीय साहूकार की तालश थी जो कि नैनीताल में उनके शुरुआती बंगलों का निर्माण कर सके। बैरन ने इस बारे में नैनीताल के अपने पूर्व दौरों के साथी रह कुमाऊँ के तत्कालीन वरिष्ठ सहायक कमिश्नर जे.एच.बैटन और जिला इंजीनियर कैप्टन वेलर से बात की। ये दोनों अल्मोड़ा में तैनात थे, वे अल्मोड़ा के एक ऐसे सज्जन को जानते थे, जो वास्तुशिल्पी, ठेकेदार और साहूकार के साथ बेहद आर्थिक एवं सामाजिक व्यक्ति थे। इनका नाम था-मोतीराम शाह। धार्मिक तथा सामाजिक गतिविधियों में सक्रिय रहने के कारण मोतीराम शाह अल्मोड़ा के ख्याति प्राप्त लोगों में शामिल थे।
 
पीटर बैरन ने अपने मित्रों जे.एच.बैटन और कैप्टन वेलर के माध्यम से मोतीराम शाह से सम्पर्क साधा और उन्हें नैनीताल में शुरुआती कुछ बंगले बनाने में सहयोग करने के लिए राजी कर लिए। नैनीताल में बंगले बनाने में सहयोग करने के लिए पीटर बैरन को मोतीराम शाह के रूप में ठेकेदार, वास्तुशिल्पी और साहूकार तीनों एक साथ मिल गए थे।
 
मोतीराम शाह धार्मिक प्रवृत्ति के इंसान थे। कहा जाता है कि जब मोतीराम शाह नैनीताल पहुँचने तो उनकी पहली मुलाकात परमहंस महाराज से हुई। उन दिनों परमहंस महाराज वर्तमान बोट हाउस क्लब के समीप तालाब के किनारे स्थित अपनी कुटिया में माँ नयना देवी की अराधना में लीन थे। मोतीराम शाह ने परमहंस महाराज को अपने नैनीताल आने का मंतव्य बताया। इस पर परमहंस महाराज ने उन्हें सुझाव दिया कि वे नैनीताल में अपना लक्षित कार्य प्रारम्भ करने से पूर्व मन्दिर का निर्माण कर उसमें माता नया देवी की मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा करें तो भविष्य सुरक्षित एवं सुखमय होगा।
 
परमहंस महाराज के इस सुझाव को माँ नयना देवी का आदेश समझकर मोतीराम शहर ने ऐसा ही किया। उन्होंने नैनीताल में अंग्रेजों के लिए बंगले बनाने का काम प्रारम्भ करने से पूर्व मौजूदा बोट हाउस क्लब के निकट 1842 में मन्दिर का निर्माण कराया। मन्दिर में माँ नयना देवी की मूर्ति को प्रतिष्ठित किया। बाद में उन्होंने पीटर बैरन के बंगले पिलग्रिम लॉज सहित नैनीताल के शुरुआती दौर के करीब एक दर्जन बंगलों का निर्माण कार्य कराया। मोतीराम शाह नैनीताल में बसने वाले सम्भवतः पहले हिन्दुस्तानी थे। नैनीताल में अंग्रेजों ने शुरुआती एक दर्जन बंगले मौजूदा नैनीताल क्लब के आस-पास मल्लीताल में बनवाए। 1842 में अयारपाटा में कब्रिस्तान बना। यह नैनीताल का पहला और सबसे पुराना कब्रिस्तान है, 1892 में इसे बन्द कर दिया गया था।

 

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Post By: Shivendra
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