31 दिसम्बर, 1841 को कोलकाता के ‘इंग्लिश मैन’ नाम के अखबार में अल्मोड़ा के इलाके में एक खूबसूरत झील होने की सूचना पहली बार प्रकाशित हुई। अखबार के सम्पादक को यह जानकारी इसी साल नवम्बर में यहाँ आए बैरन तथा उसके दो अन्य साथियों में से किसी एक से हुई बातचीत के आधार पर किसी अन्य व्यक्ति ने दी थी। इस विवरण के आधार पर उस सज्जन ने नैनीताल के बारे में कोलकाता के ‘इंग्लिश मैन’ अखबार में लेख लिख डाला। सुनी-सुनाई बातों के आधार पर नैनीताल के बारे में अखबार में प्रकाशित नोटिस में अनेक तथ्यात्मक त्रुटियाँ थीं। इस लेख में नैनीताल के तालाब और ऊँचाई आदि के बारे में कई गलत एवं भ्रामक जानकारियाँ दी गई थीं। इन गलतियों को सुधारने के लिए पीटर बैरन को आगरा अखबार और ‘इंग्लिश मैन’ में नैनीताल के बारे में विस्तृत विवरण/ लेख लिखने पड़े। इन विवरणों में नैनीताल का सटीक ब्यौरा दिया गया था। एक ही स्थान के बारे में दो अलग-अलग जानकारियों वाली खबरों से नैनीताल जैसी किसी जगह के अस्तित्व की सच्चाई पर गम्भीर सवाल उठने लगे।
पीटर बैरन ने अपनी बात को सही साबित करने के लिए ‘आगरा अखबार’ के माध्यम से पाठकों को नैनीताल के नजरिया नक्शे का ब्योरा भेजा, जिसका भावार्थ था कि- ‘गागर नाम की पहाड़ी में एक तालाब है, जो मैदान में लटका सा प्रतीत होता है। यह तालाब अल्मोड़ा से करीब 35 मील दूर अवस्थित है। तालाब की लम्बाई सवा या डेढ़ मील है। चौड़ाई पौन मील है। तालाब का पानी पारदर्शी एवं साफ-सुथरा है। तालाब में एक छोटी सी खूबसूरत जलधारा पहाड़ों के बीच से रुक-रुक कर गिरती है। तालाब की बिल्कुल उल्टी तरफ से एक जलधारा बाहर निकलती है। तालाब के पास एक बहुत बड़ा घास का सपाट एवं खुला मैदान है। इस मैदान के बीच-बीच में कुछ सुन्दर वृक्ष हैं। तालाब के किनारे लगे पहाड़ों में घने पेड़ हैं, जो तालाब तक पहुँचे हैं। पूरे नैनीताल और उसके आस-पास मौजूद दृश्यों को देखने में एक महीना लग सकता है।’
बैरन आगे लिखते हैं कि- यहाँ लकड़ी बहुत है, पानी साफ-सुथरा और सबसे अच्छा है। सपाट ग्राउण्ड है। चलने और वाहनों के लिए अच्छी सड़कें बन सकती हैं। भवन बनाने के लिए आवश्यक सभी सामग्री उपलब्ध है। झील में नावें चल सकती हैं, इसका उपयोग सेलिंग के लिए भी किया जा सकता है। यहाँ नगर के विकास की अपार सम्भावनाएँ हैं। यहाँ बहुत सुन्दर नगर बसाया जा सकता है। दक्षिण की तरफ एक पहाड़ी है। जिसका नाम अयारपाटा है। दक्षिण पश्चिम में एक विशाल चोटी है-देवपाटा। पश्चिम में चैनूर। उत्तर में एक पहाड़ी है-शेर-का-डांडा। अयारपाटा और शेर-का-डांडा पहाड़ी के मिलन बिन्दु में तालाब के पानी का प्राकृतिक निकास बना है। शेर-का-डांडा के ऊपरी इलाके में 20 भवन साइड्स हैं। यहाँ से हिमालय की विस्तृत एवं खूबसूरत बर्फीली पहाड़ियों का दृश्य दिखता है। पर यहाँ पानी की परेशानी है। यहाँ निचले इलाकों में मौजूद जल स्रोतों से पानी लाना पड़ेगा। लेकिन मसूरी और लंढौर के सबसे अच्छे स्थानों के मुकाबले यह मेहनत कुछ भी नहीं है।
तालाब के पश्चिम दिशा में एक सौ या इससे भी दोगुने मकान बनाए जा सकते हैं। सवाल जमीन के स्वीकृत होने का है। अयारपाटा रेंज की चोटी के नीचे मकान बनाने के लिए बहुत अधिक जगह है। अयारपाटा में समुद्र सतह से सात हजार फीट ऊँचाई पर पानी के झरने हैं। जाँच से पता चला है कि यह पानी लंदन के लिए भी पर्याप्त है। एक नगर बसाने के लिए जितने संसाधनों की आवश्यकता है, उससे कहीं ज्यादा संसाधन यहाँ उपलब्ध हैं। भवन बनाने के लिए स्थान है, पानी आस-पास है। पानी की आपूर्ति कम पड़ने की कोई सम्भावना नहीं है। भवन बनाने तथा जलाने के लिए लकड़ी का ऐसा भण्डार है, जो कभी खत्म नहीं हो सकता है। अन्य आवश्यक संसाधन असीमित मात्रा में उपलब्ध हैं। साईप्रस के इतने अधिक सूखे और अर्ध सूखे पेड़ उपलब्ध हैं कि अगले छह सालों तक मकान बनाने के लिए हरे पेड़ों को काटने की जरुरत नहीं पड़ेगी। इन हरे वृक्षों को गहनों की तरह सुरक्षित रखा जा सकता है। सूखे पेड़ काटने से यहाँ की भू-दृश्यावली और भी खूबसूरत हो जाएगी। साइप्रस के पेड़ भवन निर्माण में इस्तेमाल किए जाए तो कई सदियों तक चलेंगे।
तालाब के आस-पास पहाड़ी बाँज के विशाल पेड़ हैं। मैंने हिमालय के पूरे सफर में बाँज के इतने बड़े पेड़ नहीं देखे। बाँस भी बहुतायत में उपलब्ध है। बुरांश समेत कई प्रजाति के रंग-बिरंगे जंगली फूल हैं। वनस्पति की जो विविधता यहाँ है, ऐसी विविधता मैंने मध्य हिमालय में और कहीं नहीं देखी। प्रकृति ने इस जगह स्वयं दोनों हाथों से सुन्दरता लुटाई है। यहाँ का भौतिक पर्यावरण प्रकृति प्रदत्त इन उपहारों का लुफ्त उठाने के लिए सर्वथा अनुकूल है।
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