नैनीताल झील के पारिस्थितिकीय संतुलन में जलीय पौधों की भूमिका (Role of aquatic plants in the ecological balance of Nainital lake)


उत्तराखंड राज्य 9 नवम्बर, 2000 को भारतीय गणतन्त्र का 27वां राज्य बना जिसका नाम उत्तरांचल रखा गया था। मध्य हिमालय में 28047’ से 31020’ उत्तर एवं 77035’ से 80055’ पूर्व देशान्तर तक फैला तथा 198 से 7,116 मी. समुद्रतलीय ऊँचाई वाला यह राज्य 53,483 वर्ग कि.मी. के क्षेत्रफल में फैला हुआ है। 01 जनवरी, 2007 को इसका नाम उत्तराखंड हो गया, जिसके दो प्रमुख भाग हैं- गढ़वाल व कुमाऊँ।

नैनीताल जिला भी कुमाऊँ का ही एक भाग है जहाँ पर कई ताजे शीत जल की बड़ी छोटी झीलें हैं। भौगोलिक दृष्टि से नैनीताल जिला 29023’09’ उत्तर एवं 79027’35’’ पूर्व तक समुद्र तल से 1937 मी. की अत्यधिक ऊँचाई पर स्थित है। 48 हेक्टेयर क्षेत्र में फैली तथा तीन तरफ पर्वतों से घिरी नैनीताल झील की अधिक से अधिक लम्बाई 1.4 किमी. और चौड़ाई 0.45 किमी. है जबकि गहराई 16.5 मी. से 27.3 मी. तक है। यहाँ की औसत वर्षा लगभग 2030 मिली. है। गत दो वर्षों में 2004-2006 में नैनीताल झील के जल व तलछट में भारी धातुओं का परीक्षण किया गया। झील से जल व तलछट के नमूने प्रत्येक मौसम गर्मी, वर्षा एवं शरद ऋतु में झील के सतही (उथले) व तली के पानी (छिछले) से विभिन्न 8 स्थानों से लिये गए। जल व तलछट के भौतिक, रसायनिक कारकों व भारी धातुओं के विश्लेषण हेतु मल्लीताल, तल्लीताल व मध्यम क्षेत्र से नमूनों को एकत्र किया गया।

विभिन्न कारकों के लिये जल में पी.एच. 7.4-8.4, विद्युत चालकता 0.588-0.670 माइक्रो साइमन प्रति सेमी., घुलित ऑक्सीजन 3.0-9.55 मिग्रा. प्रति ली., जैव-रासायनिक ऑक्सीजन मांग 0.54-3.12 मिग्रा. प्रति ली., क्लोराइड 13.0-18.6 मिग्रा. प्रति ली., सल्फेट 15.2-30.3 मिग्रा. प्रति ली., सोडियम 15.0-22.5 मिग्रा. प्रति ली., पोटेशियम 3.0-4.2 मिग्रा. प्रति ली., कठोरता 138.4-234.5 मिग्रा. प्रति ली. क्षारकता 170-235 मिग्रा. प्रति ली. पाये गये। जल में पायी गयी भारी धातुओं में क्रोमियम, मैग्नीज, निकिल, कॉपर, जिंक, कैडमियम एवं लैड की मात्रा क्रमश: 0.35-2.54, 351-1311, 1.2-5.4, 4.8-11.2, 13.2-157.4, 0.9-3.2 एवं 4.0-26.1 माइक्रोग्रा. पायी गई जबकि तलछट में 15.1-20.7, 91.2-187.2, 4828-5878, 18.2-51.5, 12.9-31.0, 42.0-152.1, 12.1-13.6 एवं 84.2-148.4 माइक्रोग्रा. पायी गई।

हाल के ही दिनों में जलीय पादपों द्वारा प्रदूषित जल से धातुओं व खनिज लवणों को पृथक करने एवं जल की गुणवत्ता सुधारने की विधि पर काफी जोर दिया जा रहा है। उपरोक्त तथ्यों को ध्यान में रखते हुए निम्न चार जलीय पापदों को चुना गया जिनमें लेम्ना, पिस्टिया, सिरेटोफिल्लम व वैलिसनेरिया नामक पौधों द्वारा जल की गुणवत्ता सुधारने पर भी प्रयोग किये गये। इन शोध आंकड़ों के आधार पर, झीलों में आने वाले प्रदूषित जल को 'फाइटोरेमिडियेशन' विधि द्वारा उपचार करने के पश्चात ही मुख्य झील में प्रवाहित होना चाहिए। इस प्रकार जलीय पौधे मुख्य प्रदूषण कारकों को अवशोषित कर झील के पारिस्थितिकी संतुलन में विशेष योगदान दे सकते हैं।

लेखक परिचय
देवेन्द्र सिंह मलिक, रश्मि यादव एवं पवन कुमार भारती

जन्तु एवं पर्यावरण विज्ञान विभाग, गुरुकुल कांगड़ी विश्वविद्यालय, हरिद्वार (उत्तराखंड) – 249404

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