मुरार नदी की सफाई योजना का सच

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यह विचारणीय पहलू है कि नदी की चौड़ाई 50 फीट से बढ़ाकर 250 फीट करने पर नदी में सालों भर स्वच्छ पानी कहाँ से आएगा। प्रदूषण-मुक्त करने के लिए उन्होंने अंडरग्राउंड सीवर लाइन डालने का सुझाव दिया है। प्राय: मुरार क्षेत्र में वर्षात का पानी नालों से होकर मुरार नदी में पहुँचता था। अब नालों पर अतिक्रमण होने से वर्षात पानी का निकास सीवर लाइनों से जोड़ दिया गया है

11 अक्टूबर का दिन। कार्यक्रम था नदियों के परिभ्रमण का। ग्वालियर में आयोजित मीडिया चौपाल के प्रतिभागी के रूप में भाग लेने का अवसर मिला। साथ में थे इंडिया वाटर पोर्टल के केसर सिंह और मीडिया चौपाल के प्रतिभागी के साथ-साथ विभिन्न विश्वविद्यालयों के पत्रकारिता के छात्र-छात्राएँ। जीवाजी विश्वविद्यालय परिसर से हमलोग बस से मुरार नदी के तट पर पहुँचे। कभी यहाँ नदी बहती थी, अब तो शहर का कचरा और गंदा पानी गिरता है। नदियों के तट लोगों द्वारा अति​क्रमित कर लिए गए हैं।

हरिशंकर समाधिया इस नदी को लेकर लगातार संघर्षरत हैं। इस नदी की सफाई और सौन्दीर्यीकरण के लिए उन्होंने जनहित याचिका से लेकर ग्रीन ट्रिब्यूनल में मामला दायर किया था। स्थानीय लोग बताते हैं कि नगर निगम के अधिकारियों ने इस जनकल्याणकारी योजना को निजी स्वार्थों के खातिर 332 करोड़ की योजना को लूटो खाओ और तोड़ फोड़ की योजना में तब्दील कर दिया। प्रोजेक्ट बनाने के नाम पर नगर निगम के खजाने से करोड़ों रुपये खर्च हुए। सफाई तो दूर पिछले तीन वर्षों में लगातार गंदगी बढ़ी है। सफाई के लिए जनहित याचिका दायर किया गया था, लेकिन वह तोड़-फोड़ योजना में तब्दील हो गयी। आज मुरार नदी मात्र एक नाला बनकर रह गयी है। मुरार क्षेत्र का समस्त गंदा पानी नदी में प्रवाहित हो रहा है, क्षेत्र का गंदा कचरा फेंका जा रहा है।

इस प्रोजेक्ट को सही साबित करने के लिए नगरनिगम के कुछ अधिकारियों ने अपनी गलतियों पर पर्दा डालने के लिए नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल को हर स्तर पर गलत जानकारी देकर गुमराह कर रहा है और यह सिलसिला निरन्तर जारी है। हर लोग यह कहते हैं कि इसके पुराने वैभव को लौटाया जाए।

1940 के पुराने भू-अभिलेखों में मुरार नदी की चौड़ाई 5 मीटर से लेकर 15 मीटर तक है। पुराने नक्शे के हिसाब से इस नदी का गहरीकरण और सौन्दर्यीकरण का काम करना था, लेकिन वह नहीं हुआ। बताया जाता है कि इस प्रोजेक्ट को नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल में प्रस्तुत करने से पूर्व इसकी स्वीकृति एमआईसी एवं निगम परिषद से नहीं ली गयी। मध्य प्रदेश नगर निगम विधान के अनुसार 10 करोड़ से अधिक के प्रोजेक्ट एमआईसी के माध्यम से नगरनिगम परिषद में प्रस्तुत किए जाएँगे तथा निगम परिषद से स्वीकृति के बाद ही राज्य सरकार को भेजे जाएँगे। मुरार नदी का प्रोजेक्ट 332 करोड़ का था, उसे तत्कालीन निगम आयुक्त ने​ बिना एम.आई.सी एवं नगर निगम परिषद के राज्य सरकार को भेज दिया। नगर निगम नियम के विपरीत होने के कारण यह निष्प्रभावी है।

नगर निगम द्वारा नियुक्त अनुभवहीन कंसल्टेंट द्वारा योजना गया था, जहाँ से योजना के बंद होने का हवाला देकर इस प्रोजेक्ट को स्वीकृत करने से इंकार कर दिया गया। बावजूूद इसके प्रोजेक्ट बनानेवाले कंसल्टेंट को भुगतान किया गया। यह जाँच का विषय है। नगर निगम द्वारा मुरार नदी के लिए बनाये गये प्रोजेक्ट में से केन्द्र एवं राज्य सरकार का 40 फीसदी हिस्सा था, जिसे राज्य सरकार एवं केन्द्र सरकार द्वारा स्वीकृत नहीं किया गया तथा आजतक इस नदी का सीमांकन नहीं कराया गया। 13 जनवरी 2014 को नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल की सुनवाई में नगर निगम ने 25 हेक्टेयर भूमि को मुुरार नदी के विस्थापितों के पुर्नवास हेतु चयन करने की प्रक्रिया को चालू बताते हुए कहा था कि 25 हेक्टेयर की कॉलोनी विस्थापितों केे पुनर्वास के लिए पर्याप्त होगी। सवाल यह उठता है कि यदि इसे चयनिय किया गया था तो बताना चाहिए कि वह भूमि कहाँ है? जाहिर है कि अधिकारी ट्रिब्यूनल को भी गुमराह कर रहे हैं। इसी सवाल को लेकर ट्रिब्यूनल ने 29 जनवरी 2013 को अपने आदेश में इन कॉलोनियों के सन्दर्भ में सूचनाएँ समाचार माध्यमों में प्रकाशित कराने का आदेश दिया था।

मुरार नदी संघर्ष समिति के मुन्ना लाल गोयल का कहना है कि जनहित में 332 करोड़ के फर्जी प्रोजेक्ट को निरस्त करके नदी की सफाई एवं सौन्दर्यीकरण के लिए जमीनी स्तर पर नया प्रोजेक्ट बनाया जाना चाहिए। पुराने नक्शे में मुरार नदी की चौड़ाई 5 मीटर से 15 मीटर तक है। इस आधार पर नदी का सीमांकन करके गहरीकरण एवं सफाई कार्य करने के लिए नया प्रोजेक्ट बनाने की आवश्यकता है। इसके तहत सर्वप्रथम जल-स्रोतों का विस्तृत सर्वेक्षण कराया जाए कि मुरार नदी में स्वच्छ जल कहाँ से आएगा। इसके कैचमेंट एरिया में रमौआ एवं अलापुर बांध थे, वहाँ आवासीय कॉलोनी विकसित होने से पानी की उपलब्धता नहीं है तथा पिछले 20-25 वर्षों से दोनो बाँध खाली है।

यह विचारणीय पहलू है कि नदी की चौड़ाई 50 फीट से बढ़ाकर 250 फीट करने पर नदी में सालों भर स्वच्छ पानी कहाँ से आएगा। प्रदूषण-मुक्त करने के लिए उन्होंने अंडरग्राउंड सीवर लाइन डालने का सुझाव दिया है। प्राय: मुरार क्षेत्र में वर्षात का पानी नालों से होकर मुरार नदी में पहुँचता था। अब नालों पर अतिक्रमण होने से वर्षात पानी का निकास सीवर लाइनों से जोड़ दिया गया है, इससे सीवर लाइनें चेक होगी। इसके लिए वर्षात का पानी के लिए पृथक ड्रेनेज मुरार नदी तक डालने का सुझाव दिया है, ताकि बरसात पानी सीधे नदी में पहुँच सके। उन्होंने कहा ​कि हुरावली से काल्पी ब्रिज तक तीन किलोमीटर क्षेत्र में मुरार नदी की गहरीकरण एवं सफाई के बाद दोनों ओर तीस-तीस फीट का सड़क बनाया जाए और सघन वृक्षारोपन किया जाय। साथ ही अंदर जानेवाली सीवर लाइनों के पानी को साफ करने के लिए सीवर ट्रीटमेंट प्लांट भी लगाया जाना चाहिए।

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