मुंबई में पीना होगा समुद्र का पानी

मुंबई में जलग्रहण क्षेत्रों में पानी काफी कम है और पीने के पानी की समस्या हल करने का सीडिंग प्रयास भी विफल रहा। अब मुंबई वृहन्मुंबई पालिका ने समुद्र के पानी को इस्तेमाल करने लायक बनाने के लिए अंतरराष्ट्रीय स्तर की कंपनियों से टेंडर मंगाए हैं।

पानी की कमी से जूझ रहे मुंबई में अब समुद्र से साफ पानी लेने की कवायद शुरू की जा रही है। खारे पानी को साफ पानी बनाने के प्रोजेक्ट्स के लिए टेंडर बुलाए गए हैं। बीएमसी के हाइड्रोलिक डिपार्टमेंट की योजना है कि 10 मिलियन लीटर पानी प्रतिदिन साफ करने वाला प्लांट लगाया जाए ताकि पानी की कमी से निपटा जा सके।

एक वरिष्ठ अफसर के अनुसार जो फर्म इसमें रुचि लेंगी उन्हें पहले संबंधित समुद्री क्षेत्र में पानी का खारापन और उसके साफ किए जाने की संभावना देखना होगी और उसके बाद इसका ठेका दिया जाएगा। यदि इमें बड़ी कंपनियां रुचि लेती हैं तो 4200 मिलियन लीटर पानी की जरूरत में से दस मिलियन लीटर पानी की व्यवस्था हो जाएगी। जिन फर्मों का सिलेक्शन किया जाएगा उन्हें बजट के अनुरूप टेक्नोलॉजी लाने से लेकर उसे पहुंचाने तक की व्यवस्था संभालने तक को कहा जा सकता है।

अभी समुद्र के पानी को साफ करने के लिए बेसिक थर्मल तकनीक से लेकर मेंब्रेन डिसेलिनेशन तकनीक तक कई विधियां उपयोग में लाई जाती हैं। बेसिक थर्मल तकनीक में जहां समुद्र के पानी को गरम किया जाता है और भाप के माध्यम से साफ पानी लिया जाता है वहीं सोफिस्टिकेटेड रिवर्स ओस्मोसिस या मेंब्रेन तकनीक में खारे पानी को फिल्टर से साफ किया जाता है। (1)
 

कोशिशें जारी हैं


ऐसा नहीं है कि इससे पहले सागर से पीने का पानी बनाने की बात नहीं सोची गयी पर उस पर खर्च इतना आता था कि उसका वहन सब के बस का नहीं था। और तब ना ही इतना प्रदुषण था ना ही बोतलबंद पानी का इतना चलन। अब जब पानी दूध से भी मंहगा होता जा रहा है, तो कोई उपाय तो खोजना ही था। फिलहाल लक्षद्वीप के कावारती द्वीप के रहने वालों को सबसे पहले इसका स्वाद चखने को मिल गया है। और यह संभव हो पाया है 'राष्ट्रीय समुद्र प्रौद्योगिकी संस्थान' के अथक प्रयासों के कारण। आशा है साल के खत्म होते-होते तीन संयत्र काम करना शुरु कर देंगे। एक लाख लीटर रोज की क्षमता वाले एक संयत्र ने तो 2005 से ही काम करना शुरु कर दिया है।

शुरु-शुरु में समुद्र तटीय इलाकों में इस पानी को पहुंचाने की योजना है। समुद्री पानी को पेयजल में बदलने के लिये निम्न ताप वाली 'तापीय विलवणीकरण प्रणाली (L.T.T.D.) का उपयोग किया जाता है। यह प्रणाली सस्ती तथा पर्यावरण के अनुकूल है। इस योजना के सफल होने पर सरकार बड़े पैमाने पर बड़े संयत्रों को स्थापित करने की योजना बना रही है। अभी एक करोड़ लीटर रोज की क्षमता वाले संयत्र की रुपरेखा पर काम चल रहा है। सारे काम सुचारू रूप से चलते रहे तो दुनिया में कम से कम पानी की समस्या का तो स्थायी हल निकल आयेगा। (2)

 

 

केन्द्र भी ऐसा ही सोचता है


12 अगस्त को केन्द्र ने सुप्रीम कोर्ट को सूचित किया था कि वह देश में भयंकर जल संकट से निपटने के लिए एक विकल्प के रूप में समुद्र के पानी के इस्तेमाल की संभावना तलाश कर रहा है। केन्द्र ने कहा कि कम तापमान वाले तापीय विलवणीकरण, रिवर्स ओस्मोसिस आदि का इस्तेमाल कर कृषि और पेयजल जैसे उद्देश्यों के लिए समुद्र के पानी के इस्तेमाल की संभावना तलाश किए जाने की जरूरत है। केन्द्र ने विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग के जरिए हलफनामा दायर कर यह बात कही थी।

सुप्रीम कोर्ट की पीठ की अध्यक्षता कर रहे न्यायमूर्ति मार्कडेय काटजू ने कहा था कि यदि आप जल मुहैया नहीं करा सकते तो आपको सरकार में रहने का कोई अधिकार नहीं है।

केन्द्र के अनुसार हालांकि समुद्री जल के खारेपन से निपटने की जरूरत पड़ेगी। लेकिन ऎसा लगता है कि जल संकट से समाधान के लिए समुद्र के पानी का प्रयोग तार्किक विधियों में से एक है। केन्द्र ने कहा कि यह तर्कसम्मत लगता है कि तटीय इलाकों में प्रचुर स्त्रोत के रूप में सागरीय जल की आपूर्ति की जाए।

 

 

 

 

 

 

 

 

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