मुंबई हेरिटेज कंजर्वेशन कमेटी (एमएचसीसी) के द्वारा संजय गांधी राष्ट्रीय उद्यान में 1860 में सुनसान जंगल में बना एक बंगला (जिसे आधिकारिक तौर पर भूत बांग्ला के रूप में भी जाना जाता है) और वर्ष 1879 में निर्मित तुलसी झील में जल उपचार संयंत्र को पुनर्स्थापित करने के आदेश दिए है।
तुलसी झील विहार झील के बाद मुंबई की दूसरी सबसे बड़ी झील के रूप में जाने जाती है। इस झील को ताजे पानी की झील भी कहते है। यह झील मुंबई शहर के पीने योग्य पानी के तकरीबन एक हिस्से की आपूर्ति करने का कार्य करती है।
तुलसी झील अंग्रेजों द्वारा विकसित दूसरा जलाशय था। इसका मालाबार पहाड़ी क्षेत्र से सीधा संबंध था और पानी के पाइप सेनापति बापट रोड (तब तुलसी पाइप रोड कहा जाता था) से होकर गुजरते थे। बीएमसी आयुक्त रहते हुए प्रवीण परदेशी ने इन दोनों साइटों को पुनर्स्थापित करने की योजना बनाई थी और इस पर काम भी शुरू किया था।
बीएमसी के हेरिटेज कंजर्वेशन सेल के साथ काम करने वाले संजय आधव का कहना ने कि , 'हमें एमएचसीसी और हमारे एडिशनल कमिश्नर से औपचारिक सहमति मिल गई है। अंतिम निर्णय के लिए हम जल्द ही वन विभाग के अधिकारियों से मिलेंगे।'' उन्होंने कहा कि बंगले को पहले जैसा करने में लगभग एक करोड़ रुपये से अधिक का खर्च आ सकता है। वर्तमान में, इसकी केवल कुछ दीवारें हैं। हम छत, दरवाजे और खिड़कियां लगाएंगे और सोलर पैनल को भी इंस्टाल करेंगे ।'
बंगले का निर्माण आर वाल्टन नामक एक ब्रिटिश इंजीनियर के द्वारा किया गया था जिसमें एक चिमनी और घोड़ों को पालने की जगह बनाए गई थी । एमएचसीसी की संरक्षित विरासत सूची मे इस बंगले और जल संयंत्र को भी शामिल किया गया है
संजय आधव के अनुसार, तुलसी झील पर बांध बनने से यहां एक गांव हुआ करता था जिसका नाम तुलसी था और इसे अंग्रेजों ने स्थानांतरित कर दिया था। बंगले से तुलसी,विहार और पवई की तीनों झीलें दिखाई देती हैं। उन्होंने कहा फिल्ट्रेशन प्लांट के जीर्णोद्धार पर लगभग 15 करोड़ रुपये खर्च किये जाएंगे और बीएमसी की योजना फिल्ट्रेशन प्लांट के अंदर एक छोटा संग्रहालय बनाने की भी है।
वन विभाग के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि बंगले की मरम्मत की अनुमति दी जा सकती है, लेकिन हम किसी भी पर्यटको को यहाँ आने की अनुमति नहीं दें सकते क्योंकि यह एसजीएनपी के मुख्य क्षेत्र में है, जो तेंदुए, मगरमच्छ, हिरण, सांभर और कई अन्य लोगों के घर है।
वही कहा जाता है कि वर्ष 1991 तक पर्यटकों को दिन के समय इस जगह के कोर जोन तक आने की अनुमति थी लेकिन यहां लूटपाट, बलात्कार और हत्या जैसे अपराध बढ़ गए जिससे वन्य जीवन भी कुछ हद तक असहज महसूस करने लगा था ऐसे में बॉम्बे नेचुरल हिस्ट्री सोसाइटी (बीएनएचएस) और कुछ प्रमुख पर्यावरणविदों ने तत्कालीन केंद्रीय पर्यावरण राज्य मंत्री मेनका गांधी को पत्र लिखा और इसे एक गंभीर समस्या बताकर अपनी चिंता व्यक्त की। जिसके बाद 1991 में वन विभाग द्वारा कोर जोन तक पहुंच पर प्रतिबंध लगा दिया गया । इसके बाद यहाँ पर्यटकों की संख्या धीरे- धीरे कम होती चले गई।
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