मुम्बई में प्रदूषण कल, आज और कल


मुम्बई में ध्वनि और वायु प्रदूषण का प्रारम्भ मोटर वाहनों, कोयला से चलने वाले बिजली घरों और कपड़ा मिलों के आगाज के साथ शुरू हो गया। प्रारम्भ में प्रगति और रोजगार के नाम पर सब कुछ सहन होता रहा। धीरे-धीरे स्वयंसेवी संगठनों ने इस मुद्दे से लोगों को अवगत कराया।

अतीत में मुम्बई ही नहीं बल्कि हिन्दुस्तान में प्रदूषण न तो कोई मुद्दा था न तो कोई समस्या। राजा से लेकर रंक सभी पर्यावरण स्नेही और प्रकृति के प्रेमी थे। जंगल में बने आश्रम और झोपड़ों से होते हुए गाँव और नगर महल तक गाजे-बाजे के साथ उत्सव-पर्व मनाए जाते थे। पेड़ कटते थे। लकड़ी ही रसोई में भोजन बनाने का माध्यम थी। तब कोई नहीं कहता था कि वायु प्रदूषण बढ़ रहा है और न ही ध्वनि प्रदूषण की शिकायत होती थी। कुदरत के साथ समन्वय कर मानव समुदाय जीवनयापन करता था। आवासीय परिसर के पेड़-पौधों सहित वन क्षेत्र को संरक्षण और संवर्धन के लिये परम्परागत संस्कार एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में खुद-ब-खुद आ जाता था।

कालान्तर में विदेशों में नए-नए आविष्कार हुए। मशीन युग का सूत्रपात हुआ। इसमें कुदरती दौलत कोयला, लोहा, पेट्रोलियम पदार्थ व अन्य खनिज के साथ वन सम्पदा का दोहन बर्बरता के साथ शुरू हो गया। विदेशों में होने वाले आविष्कारों का प्रयोग और उपयोग हिन्दुस्तान के शहरी इलाकों में भी होने लगा। इसे समय के साथ चलने की जरूरत बताया गया। मुम्बई शहर भी इससे अछूता नहीं रहा। जो लोग इसके विरोध में जाते उसे पुरातन पंथी कहकर उपहास उड़ाया जाता। नए-पुराने के संघर्ष में नए-नए आविष्कार लोकप्रिय होने लगे। यहीं से पर्यावरण और प्रदूषण की कहानी शुरू हो जाती है। आधुनिक बनने की जल्दबाजी में न तो सरकारों ने और न ही जननायकों ने आविष्कारों के अभिशाप के बारे में विचार कर बचाव के ठोस उपाय किये। नतीजा यह है कि मुम्बई में वायु और ध्वनि प्रदूषण की चादर जानलेवा बनती जा रही है और हर उपाय, विफल लग रहे हैं। तरह-तरह की बीमारियों से लोग परेशान हैं। दवाखानों में ऐसे लोगों की कतार लग रही है।

मुम्बई में ध्वनि और वायु प्रदूषण का प्रारम्भ मोटर वाहनों, कोयला से चलने वाले बिजली घरों और कपड़ा मिलों के आगाज के साथ शुरू हो गया। प्रारम्भ में प्रगति और रोजगार के नाम पर सब कुछ सहन होता रहा। धीरे-धीरे स्वयंसेवी संगठनों ने इस मुद्दे से लोगों को अवगत कराया। हालांकि प्रारम्भ में इस मुद्दे को लेग बेवजह बताकर आलोचना भी करते थे। जागरुकता बढ़ी तो सरकार भी सतर्क हुई और उद्योग-धन्धों का वर्गीकरण यह तय कर दिया कि मुम्बई में किस तरह के कल कारखाने लग सकते हैं। इस नियम के चलते अनेक कारखाने यहाँ से बाहर चले गए, फिर भी मुम्बई में प्रदूषण फैलाने वाले अनेक कारक मौजूद हैं। सरकार के प्रयास इस मामले में आंशिक रूप से ही सफल दिख रहे हैं। जानकारों का कहना है कि मुम्बई में प्रदूषण फैलाने वाले कारकों को समाप्त करने के उपाय सतही हैं और प्रदूषण के मूल पर प्रहार नहीं हो पा रहा है।

अनेक लोग प्रदूषण के खिलाफ सरकार को पक्षकार बनाकर अदालत का सहारा ले रहे हैं। हाल ही में एक मामले में अदालत ने सरकार और उसके अधिकारियों को फटकार लगाई है। यह भी रोचक पहलू है कि मुम्बई में आयोजित होने वाले उत्सव-पर्वों में गाजे-बाजे और देर रात तक होने वाले कार्यक्रमों के खिलाफ भी याचिकाएँ आये दिन दाखिल होती रही हैं। लोकल ट्रेन, हवाईजहाज, मोटर वाहनों और अन्य केन्द्रों से होने वाले शोर-गुल के खिलाफ याचिकाएँ हाल के वर्षों में नजर नहीं आई है। धार्मिक, सामाजिक और निजी समारोह पर होने वाले शोर को ही निशाना बनाने का फैशन सा चल पड़ा है। ऐसा लगता है कि कथित चिन्तक नहीं चाहते कि पर्व धूम-धाम से मनाया जाये। उनकी चले तो हर पर्व को मातम के माहौल में मनाया जाये।

हाल ही में मुम्बई हाईकोर्ट में दाखिल एक याचिका की सुनवाई के दौरान दो जजों की खंडपीठ ने प्रशासन को निर्देश दिया है कि हिन्दू ही नहीं बल्कि सभी धर्मों के त्योहारों और उत्सवों पर यह ध्यान रखें कि प्रदूषण न फैले। माननीय जजों ने पुलिस अधिकारियों की कार्यशैली पर सवाल किया और जानना चाहा था कि मुम्बई में ध्वनि प्रदूषण फैलाने के आरोप में अब तक एक भी मामला क्यों नहीं दर्ज हुआ? जज जानना चाहते थे कि क्या शहर में ध्वनि मापक यंत्र नहीं है? यदि है तो उनका प्रयोग क्यों नहीं हो रहा है? मुम्बई में होली, गणेशोत्सव, नवरात्रि, विजयादशमी, दीपावली, दही-हांडी, ईद-बकरीद आदि पर्व बताकर सड़क पर भी उतर सकती है। हालांकि अदालत का फैसला ही सर्वोपरि है। उसका सम्मान करना भी आवश्यक है।

मुम्बई में प्रदूषण की रोकथाम महत्त्वपूर्ण ज़िम्मेदारी है। यह नई चुनौतियों के साथ अनेक बहानों से सामने आ रही है। विज्ञान का नया दौर टेक्नोलॉजी युग है। सब कुछ डिजिटल से जोड़ा जा रहा है। भविष्य में ई-कचरा और ई-प्रदूषण भयावह दैत्य बनकर प्रकट हो सकता है।

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