परमाणु उद्योगों ने लोगों के सामने दुर्घटना के नतीजे को बखूबी न्यूनतम बना दिया, विकिरण धुएं के सामान्य कश की तरह हो गया, जो साफ हवा की पैरवी करने वालों की नजर में खतरनाक हो सकता है। वह ऐसी कोई चीज नहीं है जो टेलीविजन सीरियल से हमारा ध्यान बंटा सके, अधिक बिजली से हमें और सीरियल देखने को मिलेंगे। अधिकतर भारतीय जैतापुर में परमाणु संयंत्र की संभावना, या तथ्य से उदासीन थे कि पिछले सुनामी के दौरान चेन्नई के पास कलपक्कम में समुद्री पानी घुस गया। हिरोशिमा को इंसानी फितरत और फुकुशिमा को कुदरत से जोड़ना मजाक है, इनमें प्रकृति बंदूक नहीं, बल्कि बंदूक का घोड़ा थी, परमाणु ऊर्जा इंसान ने तैयार की है, यह युद्ध के समय की खोज थी। मैनहटन प्रोजेक्ट का नतीजा, जिसमें संघर्ष की घड़ी में जनसंहार का सबसे कारगर हथियार तैयार करने के लिए ब्रिटेन और अमेरिकी वैज्ञानिकों ने सहयोग किया था, संघर्ष पहले ही नीचला और मारकाट के अप्रत्याशित स्तर पर पहुंच चुका था।
परमाणु ऊर्जा फ्रांस, जापान या जैतापुर के विद्युतीकरण के लिए तैयार नहीं की गई थी, इसे हत्या करने के लिए डिजाइन किया गया था और यह रह-रहकर निर्ममता से ऐसा ही करती है, हमने जिस दैत्य को तैयार किया, उसी से हमें प्यार हो गया, हमेशा ऐसे लुंजपुंज बहाना बनाया जाता है: डॉ. फ्रैंकन्सटीन हमेशा अपने दैत्य, जब तक वह अपने सृजनहार को तबाह करके अपनी नियति को प्राप्त नहीं होता, का प्रचार ऐसे रोबो के रूप में करता है जो शांति के समय में बच्चों की देखभाल करेगा।
शांति के समय के वरदान के रूप में परमाणु ऊर्जा की छवि चमकाने के लिए कई काल्पनिक कथाओं की जरूरत थी, इसकी वजह यह भी कि इसकी असली क्षमता विध्वंस है। मशरूम क्लाउड (परमाणु विस्फोट के समय उठने वाला कुकुरमुत्ते जैसा गुबार) दहशत का प्रतीक था और है, परमाणु उद्योग की प्रचार मशीन के सामने एक जाना-पहचाना काम है-इस धारणा को गले उतारना कि इस आदमखोर बाघ को साधा जा सकता है।
इस छल में पैसा था, क्योंकि इसी अवसर से एक उद्योग खड़ा किया जाने वाला था। दरियादिली के साथ तैयार किया बजट लेकर बड़े-बड़े पेश हुए। मुनाफे को अनैतिक मानते हैं, हद तब हो जाती है जब मुनाफे का कोई तुक नहीं रह जाता, अगर खतरे में कोई मुनाफा होता है तो हम खतरे का दोहन करने लगते हैं लेकिन कानून ठीक से लागू किया जाता है क्योंकि मुनाफ़ा कमाने वालों को शायद ही पता चल पाता है कि उन्हें कमाई कब रोक देनी चाहिए। हितकारी ऊर्जा बताकर परमाणु संयंत्र बेचना सबसे बड़ा धोखा था जबकि एटमी स्रोत के पास कहर बरपाने की बुनियादी ताकत थी। इस उद्योग की छवि बाघ की नहीं बल्कि पिंजरे के ब्यौरों के जरिए बयान की गई।
फिर भी एक दुर्घटना की समस्या थी। अमेरिका में थ्री माइल आइलैंड का सबूत और सोवियत संघ में चेरनोबिल ने उस भय को दोहरा दिया। दुर्घटनाओं को यह बताकर खारिज कर दिया गया कि वे इतनी कम होती हैं कि उनकी चिंता की जरूरत नहीं और जिन्होंने इसका विरोध किया उनकी छवि पिछड़े एजेंडे वाले वामपंथियों या छद्म अकादमिक या शाश्वत समस्यामूलक की बना दी गई। ब्यौरे के जाल में खतरनाक तथ्यों को छिपा दिया गया, यह ऐसी विशेषता है जिसमें कंपनियों को महारत हासिल है।
जापान की बिजली कम्पनियों ने अपने ही लोगों के साथ छल किया। जापान चार टेक्टोननिक जोन में फला है और सुनामी जापानी शब्द है, रिएक्टर समुद्र तटों पर बनाए गए है, ताकि उन्हें ठंडा करने के लिए समुद्री पानी का इस्तेमाल किया जा सके। विशेषज्ञों ने चेताया था कि जापान के परमाणु संयंत्र उबल उठने का इंताजर कर रहे कामीकाजी आतंकी की तरह है, यहां तक कि हिरोशिमा और नागासाकी की सियाह यादें भी जापान की बिजली कंपनियों को आत्मघाती जोखिम लेने से रोक सकी।
यह सही है कि किसी भी उपक्रम में जोखिम होता है, कोई दुर्घटना नहीं होने देना चाहता, परमाणु संयंत्रों के मालिक तो कतई ऐसा नहीं होने देना चाहते, लेकिन किसी गलती का अंदाजा लगाना जरूरी होता है। कोई बांध जोखिम भरा हो सकता है, लेकिन इसके टूटने से एक हद तक ही नुकसान हो सकता है। परमाणु संकट को समझने के लिए हमें दूसरे शब्दकोश को देखना होता है। राष्ट्रों को बहुत पहले से पता है कि परमाणु युद्ध से विजेता और पराजित दोनों तबाह हो जाएंगे और दुनिया भी जहरीली हो जाएगी। इसी वजह से विध्वंस की आशंका के चलते अमेरिका और सोवियत संघ के बीच शत्रुतापूर्ण शांति की विडंबना बनी रही और इसकी वजह से हमें एक खास शब्द मैड (म्युचुअली एश्योर्ड डैस्ट्रक्शन) मिला, परमाणु उद्योग एक चमत्कारी जोड़तोड़ कर ‘शांतिपूर्ण परमाणु ऊर्जा’ को ऐसी शै के रूप में बेचने में सफल हो गया जो हथियारों की ऊर्जा से अलग है, यह वही ऊर्जा है, जिसका अलग-अलग इस्तेमाल किया जा रहा है, हिरोशिमा की बजाए फुकुशिमा से आया विकिरण किसी तरह से कम विध्वंसकारी नहीं है।
परमाणु उद्योगों ने लोगों के सामने दुर्घटना के नतीजे को बखूबी न्यूनतम बना दिया, विकिरण धुएं के सामान्य कश की तरह हो गया, जो साफ हवा की पैरवी करने वालों की नजर में खतरनाक हो सकता है। वह ऐसी कोई चीज नहीं है जो टेलीविजन सीरियल से हमारा ध्यान बंटा सके, अधिक बिजली से हमें और सीरियल देखने को मिलेंगे। अधिकतर भारतीय जैतापुर में परमाणु संयंत्र की संभावना, या तथ्य से उदासीन थे कि पिछले सुनामी के दौरान चेन्नई के पास कलपक्कम में समुद्री पानी घुस गया।
क्या 2011 में जापान के हादसे से ही हमारी तंद्रा टूटेगी? जापान में विस्फोटकों के चेन रिएक्शन से पर्यटन, उड्डयन, कृषि...पहले ही खतरे में पड़ गई है, आप तबाह व्यवसायों की सूची बनाकर इस स्तम्भ के अंत तक पहुंच सकते हैं। मुझे संदेह नहीं है कि जब जापान में कारपोरेट दिग्गजों और सरकार में उनके साथियों ने परमाणु संयंत्र बनाने का फैसला किया तब उन्होंने इसे सबसे सस्ता, सुरक्षित हल बताया था। कोई भी अपनी प्रचार सामग्री में भूकंप का जिक्र नहीं करता, भले ही हाल में जैतापुर में भूकंप आया हो।
चीन ने सुरक्षा मानकों पर पुनर्विचार करने तक सभी नए परमाणु संयंत्रों की मंजूरी रोक दी है। शायद यह उद्योग इतना बड़ा है कि इसका दम नहीं घोंटा जा सकता और न इसे स्वास्थ्य लाभ के लिए अस्पताल ही भेजा जा सकता है, हमने 1945 में जापान से कुछ नहीं सीखा, हम शायद 2011 में भी कुछ नहीं सीखेंगे।
परमाणु ऊर्जा फ्रांस, जापान या जैतापुर के विद्युतीकरण के लिए तैयार नहीं की गई थी, इसे हत्या करने के लिए डिजाइन किया गया था और यह रह-रहकर निर्ममता से ऐसा ही करती है, हमने जिस दैत्य को तैयार किया, उसी से हमें प्यार हो गया, हमेशा ऐसे लुंजपुंज बहाना बनाया जाता है: डॉ. फ्रैंकन्सटीन हमेशा अपने दैत्य, जब तक वह अपने सृजनहार को तबाह करके अपनी नियति को प्राप्त नहीं होता, का प्रचार ऐसे रोबो के रूप में करता है जो शांति के समय में बच्चों की देखभाल करेगा।
शांति के समय के वरदान के रूप में परमाणु ऊर्जा की छवि चमकाने के लिए कई काल्पनिक कथाओं की जरूरत थी, इसकी वजह यह भी कि इसकी असली क्षमता विध्वंस है। मशरूम क्लाउड (परमाणु विस्फोट के समय उठने वाला कुकुरमुत्ते जैसा गुबार) दहशत का प्रतीक था और है, परमाणु उद्योग की प्रचार मशीन के सामने एक जाना-पहचाना काम है-इस धारणा को गले उतारना कि इस आदमखोर बाघ को साधा जा सकता है।
इस छल में पैसा था, क्योंकि इसी अवसर से एक उद्योग खड़ा किया जाने वाला था। दरियादिली के साथ तैयार किया बजट लेकर बड़े-बड़े पेश हुए। मुनाफे को अनैतिक मानते हैं, हद तब हो जाती है जब मुनाफे का कोई तुक नहीं रह जाता, अगर खतरे में कोई मुनाफा होता है तो हम खतरे का दोहन करने लगते हैं लेकिन कानून ठीक से लागू किया जाता है क्योंकि मुनाफ़ा कमाने वालों को शायद ही पता चल पाता है कि उन्हें कमाई कब रोक देनी चाहिए। हितकारी ऊर्जा बताकर परमाणु संयंत्र बेचना सबसे बड़ा धोखा था जबकि एटमी स्रोत के पास कहर बरपाने की बुनियादी ताकत थी। इस उद्योग की छवि बाघ की नहीं बल्कि पिंजरे के ब्यौरों के जरिए बयान की गई।
फिर भी एक दुर्घटना की समस्या थी। अमेरिका में थ्री माइल आइलैंड का सबूत और सोवियत संघ में चेरनोबिल ने उस भय को दोहरा दिया। दुर्घटनाओं को यह बताकर खारिज कर दिया गया कि वे इतनी कम होती हैं कि उनकी चिंता की जरूरत नहीं और जिन्होंने इसका विरोध किया उनकी छवि पिछड़े एजेंडे वाले वामपंथियों या छद्म अकादमिक या शाश्वत समस्यामूलक की बना दी गई। ब्यौरे के जाल में खतरनाक तथ्यों को छिपा दिया गया, यह ऐसी विशेषता है जिसमें कंपनियों को महारत हासिल है।
जापान की बिजली कम्पनियों ने अपने ही लोगों के साथ छल किया। जापान चार टेक्टोननिक जोन में फला है और सुनामी जापानी शब्द है, रिएक्टर समुद्र तटों पर बनाए गए है, ताकि उन्हें ठंडा करने के लिए समुद्री पानी का इस्तेमाल किया जा सके। विशेषज्ञों ने चेताया था कि जापान के परमाणु संयंत्र उबल उठने का इंताजर कर रहे कामीकाजी आतंकी की तरह है, यहां तक कि हिरोशिमा और नागासाकी की सियाह यादें भी जापान की बिजली कंपनियों को आत्मघाती जोखिम लेने से रोक सकी।
यह सही है कि किसी भी उपक्रम में जोखिम होता है, कोई दुर्घटना नहीं होने देना चाहता, परमाणु संयंत्रों के मालिक तो कतई ऐसा नहीं होने देना चाहते, लेकिन किसी गलती का अंदाजा लगाना जरूरी होता है। कोई बांध जोखिम भरा हो सकता है, लेकिन इसके टूटने से एक हद तक ही नुकसान हो सकता है। परमाणु संकट को समझने के लिए हमें दूसरे शब्दकोश को देखना होता है। राष्ट्रों को बहुत पहले से पता है कि परमाणु युद्ध से विजेता और पराजित दोनों तबाह हो जाएंगे और दुनिया भी जहरीली हो जाएगी। इसी वजह से विध्वंस की आशंका के चलते अमेरिका और सोवियत संघ के बीच शत्रुतापूर्ण शांति की विडंबना बनी रही और इसकी वजह से हमें एक खास शब्द मैड (म्युचुअली एश्योर्ड डैस्ट्रक्शन) मिला, परमाणु उद्योग एक चमत्कारी जोड़तोड़ कर ‘शांतिपूर्ण परमाणु ऊर्जा’ को ऐसी शै के रूप में बेचने में सफल हो गया जो हथियारों की ऊर्जा से अलग है, यह वही ऊर्जा है, जिसका अलग-अलग इस्तेमाल किया जा रहा है, हिरोशिमा की बजाए फुकुशिमा से आया विकिरण किसी तरह से कम विध्वंसकारी नहीं है।
परमाणु उद्योगों ने लोगों के सामने दुर्घटना के नतीजे को बखूबी न्यूनतम बना दिया, विकिरण धुएं के सामान्य कश की तरह हो गया, जो साफ हवा की पैरवी करने वालों की नजर में खतरनाक हो सकता है। वह ऐसी कोई चीज नहीं है जो टेलीविजन सीरियल से हमारा ध्यान बंटा सके, अधिक बिजली से हमें और सीरियल देखने को मिलेंगे। अधिकतर भारतीय जैतापुर में परमाणु संयंत्र की संभावना, या तथ्य से उदासीन थे कि पिछले सुनामी के दौरान चेन्नई के पास कलपक्कम में समुद्री पानी घुस गया।
क्या 2011 में जापान के हादसे से ही हमारी तंद्रा टूटेगी? जापान में विस्फोटकों के चेन रिएक्शन से पर्यटन, उड्डयन, कृषि...पहले ही खतरे में पड़ गई है, आप तबाह व्यवसायों की सूची बनाकर इस स्तम्भ के अंत तक पहुंच सकते हैं। मुझे संदेह नहीं है कि जब जापान में कारपोरेट दिग्गजों और सरकार में उनके साथियों ने परमाणु संयंत्र बनाने का फैसला किया तब उन्होंने इसे सबसे सस्ता, सुरक्षित हल बताया था। कोई भी अपनी प्रचार सामग्री में भूकंप का जिक्र नहीं करता, भले ही हाल में जैतापुर में भूकंप आया हो।
चीन ने सुरक्षा मानकों पर पुनर्विचार करने तक सभी नए परमाणु संयंत्रों की मंजूरी रोक दी है। शायद यह उद्योग इतना बड़ा है कि इसका दम नहीं घोंटा जा सकता और न इसे स्वास्थ्य लाभ के लिए अस्पताल ही भेजा जा सकता है, हमने 1945 में जापान से कुछ नहीं सीखा, हम शायद 2011 में भी कुछ नहीं सीखेंगे।
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