मुझे गंगा की जीत पर यकीन है


यमुना की जंग जीतकर हम दुनिया में संकट में पड़ी नदियों को जीवन दे सकते हैं। मगर इसके लिये सबसे पहले अपनी आत्मा के पास जाना होगा। यमुना की जीत इस बात से दर्ज होगी कि आपने दिल्ली में नालों का गिरना रोक दिया है। कुछ लोग कहते हैं कि यह असम्भव है, लेकिन अहमदाबाद ने ऐसा कर दिखाया। मल-जल संयोजन कैसे करना है, वहाँ जाकर देख लीजिये। अपना कचरा नदियों में डाल दो? नई दिल्ली। गंगा की गठरी उठाये घूम रहा हूँ। बार-बार पराजित होता हूँ और पीठ की धूल झाड़कर जख्म सहलाता खड़ा होने की कोशिश करता हूँ... और फिर ललचाई निगाहों से आपकी ओर देखता हूँ। गंगा मिट्टी बदलती है और समय की मिट्टी भी वही बदलेगी। गंगा जीतेगी और यमुना भी...।

नदियों को बचाने निकल पड़े एक कवि का यह यकीन केवल कविताओं तक सीमित नहीं है। उसने नदियों को नजदीक से देखा है और अब तो नदियों का किनारा ही उसका बसेरा है। उसने नदियों के लिये माया नगरी छोड़ी और घर भी।

निलय उपाध्याय का नदियों के लिये यह समर्पित प्रेम अनूठा है, औरों को प्रेरणा देता है। गंगा को नजदीक से जानने के लिये उन्होंने गंगोत्री से गंगा सागर तक साइकिल से यात्रा की। नदियों से नाता इस कदर जुड़ा कि उनके किनारे ही अपना निलय (आवास) बना लेते हैं।

गंगोत्री से गंगा सागर तक, पॉपकॉर्न विद परसाई, यमुना का हत्यारा कौन, मुम्बई की लोकल और पहाड़ जैसी प्रसिद्ध पुस्तकों के लेखक निलय अब नदियों के साथ रहते हैं। इलाहाबाद में संगम तट और दिल्ली में यमुना किनारे भी रुके। दिल्ली में यमुना की दुर्दशा देखी, उसकी सिसकियाँ सुनीं। इस समय पटना में हैं और नाला रोको पानी छोड़ो, जल-चक्र से नाता जोड़ो अभियान छेड़ रखा है।

अहमदाबाद से सीखें

मूल रूप से बक्सर, बिहार के दुलहापुर निवासी निलय कहते हैं कि यमुना की जंग जीवन की जंग है, सभ्यता की जंग है और हम जीत सकते है। जल संकट मुँह बाए पूरी दुनिया में खड़ा है। यमुना की जंग जीतकर हम दुनिया में संकट में पड़ी नदियों को जीवन दे सकते हैं। मगर इसके लिये सबसे पहले अपनी आत्मा के पास जाना होगा।

यमुना की जीत इस बात से दर्ज होगी कि आपने दिल्ली में नालों का गिरना रोक दिया है। कुछ लोग कहते हैं कि यह असम्भव है, लेकिन अहमदाबाद ने ऐसा कर दिखाया। मल-जल संयोजन कैसे करना है, वहाँ जाकर देख लीजिये। अपना कचरा नदियों में डाल दो? ऐसा आखिर किसलिये? नदी को अपनी यात्रा पूरी करने दो, यह उसका हक है। यमुना को अपनी बहन गंगा से मिलना है। किसी नदी से आप उतना ही जल ले सकते हैं, जितना आदमी के शरीर से रक्त।

संवेदना का समय है

कवि निलय उपाध्याय कहते है कि, दिल्ली रहने लायक नहीं है तो मेरा गाँव भी रहने लायक नहीं है। सबसे बड़ी सत्ता जल की ही होती है। वह समय के अनुरूप अपने को ढाल लेता है। इसलिये हमें जल-चक्र को सुधारना होगा। समय अब संवेदना का है। सत्य और संवेदना जब साथ मिलेगे तभी नदियों की दशा बदलेगी। हमें कालयात्री बनना होगा। प्रकृति कैसे बचे, इसके समाधान के लिये पीछे मुड़कर देखना होगा। काल विशेष का अध्ययन करना होगा। मुझे गंगा की जीत पर यकीन है।

मनुष्य नहीं आज प्रकृति संकट में है

निलय कहते हैं कि अब नदियों को साफ करने का सवाल नहीं है, अब सवाल है नदियों को बचाने का। नदियाँ बचेंगी तो देश बचेगा। आज मनुष्य नहीं, प्रकृति संकट में है।

गंगा, यमुना, रामगंगा आदि नदियाँ बिहार में आर्सेनिक की चट्टानें खड़ी कर रही हैं। इस पर अंकुश नही लगा तो अगले पचास साल में तो बिहार बचेगा ही नहीं।

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Post By: RuralWater
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