मुआवजे ने खींच दी गाँवों के बीच विभाजन की लकीर


मोहड़ ग्राउंड जीरो एक तरफ देश के ज्यादातर हिस्सों में पानी को लेकर हाहाकार मचा है तो दूसरी तरफ छत्तीसगढ़ के बालोद और राजनांदगाँव जिलों की सीमा के कुछ गाँवों में पानी दूसरे मायनों में बड़ा सवाल बन के उभर रहा है। यहाँ भिलाई के एनएसपीसीएल पावर प्लाण्ट को पानी देने मोहड़ जलाशय परियोजना पर काम चल रहा है लेकिन मुआवजा और विस्थापन जैसा सवाल अब गाँव-गाँव में दरार पैदा कर रहा है। यह अपने आप में बेचैनी पैदा करने वाला मामला है, जिसमें कुछ गाँव में तो नए कानून के मुताबिक 8-10 लाख रुपए प्रति एकड़ के हिसाब से मुआवजा मिल चुका है तो उससे लगे दूसरे गाँवों को पुराने कानून के मुताबिक महज 1 से 1.5 लाख प्रति एकड़ की दर से मुआवजा दिया जा रहा है। सूचना का अधिकार इस्तेमाल करने के बाद एक ही सरकारी परियोजना में दो अलग-अलग मुआवजे का अजूबा देख कर ग्रामीण खुद को ठगा सा महसूस कर रहे हैं।

प्रशासनिक कार्यवाही की बात करें तो बालोद जिले के अन्तर्गत 6 गाँव की धारा 6 की कार्रवाई पूरी हो चुकी है। 2 गाँव में यह प्रक्रिया होनी है एवं 2 गाँव में धारा 9 की सुनवाई प्रक्रियाधीन है। राजनांदगाँव जिले के अंतर्गत 4 गाँव का अवार्ड पारित कर भुगतान भी किया जा चुका है।

ग्रामीणों ने बताया कि राजनांदगाँव जिले के प्रभावित गाँव मोहड़, सिरलगढ़ और बूटाकसा गाँवों में 8-10 लाख रुपए एकड़ के हिसाब से मुआवजा बँट चुका है और दूसरी तरफ इनसे लगे बालोद जिले के प्रभावित गाँवों हुच्चेटोला, कुदारी, दल्ली, मरसकोला, भर्रीटोला, मंगचुआ, डूमाटोला, करतुटोला और कर्रेगाँव में मुआवजा सबसे बड़ा सवाल बन कर उभर रहा है। इन गाँवों में अधिकतम 2 लाख रूपए तक का मुआवजा तय किया गया है जिसे लेने से ग्रामीण इनकार कर रहे हैं। असमान मुआवजे का असर इन गाँवों में साफ दिख रहा है। एक तरफ राजनांदगाँव जिले के प्रभावित गाँवों में अब समृद्धि की बयार है। यहाँ लोग बढ़ी हुई दर पर मुआवजा ले चुके हैं, जिन ग्रामीणों ने अपनी जमीन और अपने खेत इस परियोजना के लिये दे दिए हैं, उनके यहाँ अब ईंट भट्टों की फसल लहलहा रही है। समृद्धि का एक रूप यह भी है।

प्रभावित गाँव हुच्चेटोलादूसरी तरफ बालोद जिले के 9 गाँवों में लोग उद्वेलित हैं। हुच्चेटोला के ग्राम पटेल ठेमनलाल देशमुख सवाल उठाते हैं- आखिर असमान और असम्मानजनक मुआवजा हम कैसे ले सकते हैं? प्रशासन इसका हल निकाल नहीं रहा है, इसलिए ग्रामीणों में गुस्सा बढ़ रहा है। ग्रामीण राज्य शासन से लेकर न्यायालय तक में गुहार लगा चुके हैं, अब ग्रामीणों को इंतजार है रायपुर और बिलासपुर से होने वाली पहल का। पूरी तरह डूबान में आने वाले गाँव कुदारी दल्ली के पटेल ज्ञान सिंह साहू कहते हैं- घालमेल तो पूरी परियोजना में है। डुबान में आने वाले गाँव के लोगों को पावर प्लाण्ट की औद्योगिक परियोजना में नौकरी को लेकर शासन की नीति स्पष्ट नहीं है। अगर परियोजना औद्योगिक घोषित की जाती तो प्रभावित ग्रामीणों को एनएसपीसीएल में नौकरी देनी पड़ती। साथ ही दूसरे कई नियमों का पालन करना पड़ता। इसलिए इन सब से निजात पाने प्रशासन ने चालाकी से परियोजना का स्वरूप लघु सिंचाई परियोजना कर दिया। जिससे ग्रामीण ठगे गए हैं।

औद्योगिक परियोजना घोषित करने की मांग उठ रही
ग्रामीण पूरी परियोजना को औद्योगिक घोषित करने की मांग कर रहे हैं। वहीं मुआवजा एक बड़ा सवाल बना ही हुआ है। 3 मार्च 16 को सूचना के अधिकार में खुलासा हुआ है कि हुच्चेटोला के किसानों को 32 हेक्टेयर जमीन के एवज में 77 लाख रुपए मुआवजा तय किया गया है। इसमेें से 40 लाख रुपए बाँट भी दिए गए हैं। साफ है किसानों में मुआवजे को लेकर फूट भी है। अब मुआवजा नहीं लेने वाले किसान एक एकड़ जमीन के एवज में 25 लाख रुपए की मांग करने लगे है। वहीं दबी जुबान विभागीय अधिकारियों का कहना है कि हमसे पहले पदस्थ अधिकारी वर्ग इस दिशा में सार्थक प्रयास करते तो ऐसी नौबत ही नहीं आती। किसान रामदयाल, पल्टन सिंह, रामचरण का कहना है कि मोहड़ जलाशय का पानी एनएसपीसीएल के पुरैना स्थित पावर प्लाण्ट को दिया जाएगा, इसलिए मोहड़ जलाशय को औद्योगिक परियोजना के अंतर्गत लिया जाए। चिमनसिंह, सेवाराम कहते हैं कि प्रभावित 12 गाँवों के युवाओं को नौकरी दी जाए। किसानों को भी स्थाई रोजगार दिया जाए।

सबसे ज्यादा जमीन हम दे रहे और फायदा वो उठाएंगे..?
प्रभावित गाँव हुच्चेटोला के उद्वेलित ग्रामीणहुच्चेटोला निवासी परमेश्वर नेताम, देवजी राम नेताम व केजूराम नेताम और कुदारी दल्ली निवासी अजीत कचलामे और रज्जाक खान बताते हैं पूरी परियोजना को लेकर हर मामले में बालोद जिले के साथ भेद-भाव न सिर्फ अभी हो रहा है बल्कि भविष्य में भी होने के आसार हैं। ग्रामीणों का कहना है कि बाँध से पूर्णत: प्रभावित बालोद जिला है। भविष्य में बाँध को दाईं तट से 23 कि.मी. फीडर नहर बना कर खरखरा बाँध से जोड़ दिया जाएगा, जिससे मोहड़, बहोरन, भेड़ी, आतरगाँव, गोर्राटोला, छछानपहरी एवं माहुद-कचांदुर गाँव में 800 हेक्टेयर में सिंचाई प्रस्तावित है। ये सभी गाँव राजनांदगाँव जिले में चौकी ब्लॉक के हैं। इसके बाद 80 फीसदी पानी दुर्ग जिले में पुरैना पावर प्लाण्ट को चले जाएगा। ग्रामीणों का कहना है कि सर्वाधिक जमीन बालोद जिले के ग्रामीण दे रहे हैं, इसके बावजूद मुआवजा, सिंचाई और पानी के बँटवारे में सर्वाधिक फायदा राजनांदगाँव और दुर्ग जिले को मिल रहा है।

इस विसंगति पर शासन भी मौन है। सुग्रीव राम, मनीराम, प्रीतराम, सावतराम ने कहा कि डूबान क्षेत्र में आने वाले किसी भी ग्राम के व्यक्तिगत किसान की भूमि यदि 75 प्रतिशत डूबान में आता है, उसे पुनर्वास के अंतर्गत लिया जाना चाहिए। पेड़ पौधों का मुआवजा वन विभाग द्वारा निर्धारित दर से दोगुना के हिसाब से मिलना चाहिए और बाँध से प्रभावित प्रत्येक भूमिहीन परिवार को पुनर्वास नीति के तहत व्यवस्थापन किया जाना चाहिए। जगदीश राम और संतुराम बताते हैं व्यवसाय करने के लिये चाही गई स्थान पर निःशुल्क जमीन देकर दुकान प्रशिक्षण तथा राशि उपलब्ध कराने की मांग जिला मुख्यालय से लेकर राज्य शासन से की गई है। वहीं सभी प्रकार के कृषि जमीन भर्री, धनहा, बाड़ी, सिंचित, असिंचित का एक समान मुआवजा देने की मांग की गई है।

 

मोहड़ जलाशय परियोजना की खास बातें

प्रशासकीय स्वीकृति

1 दिसम्बर 2009

तकनीकी स्वीकृति

12,503.93 लाख की

स्वीकृत लम्बाई

2007 मीटर और अधिकतम ऊँचाई 19.40 मीटर

फीडर नहर की लम्बाई

23.01 किमी एवं बाईं तट नहर की लम्बाई 8.67 किमी

 

यह फीडर नहर सीधे खरखरा जलाशय से जुड़ेगी और इससे पानी तांदुला जाएगा।
आपात स्थिति में मोहड़ जलाशय का उपयोग दुर्ग-भिलाई शहर के पेयजल के लिये भी।

 

बालोद जिले के प्रभावित गाँव और रकबा हेक्टेयर में

हुच्चेटोला

33.14 हेक्टेयर

कुदारी

57.56 हेक्टेयर

मरसकोला

236.11 हेक्टेयर

करतुटोला

4.99 हेक्टेयर

दिल्ली

184.20 हेक्टेयर

मंगचुवा

37.59 हेक्टेयर

डुमरटोला

1.47 हेक्टेयर

 

 

क्या कहते हैं कलेक्टर


''मुआवजे पर कुछ गाँव वाले मान गए हैं। यह विसंगति इसलिए लग रही है क्योंकि बालोद जिले के प्रभावित गाँवों का मुआवजा भू-अर्जन अधिनियम 1894 के अंतर्गत तय हुआ था। वहीं राजनांदगाँव जिले का मुआवजा तय हुआ तो तब तक भू-अर्जन अधिनियम 2014 लागू हो चुका था। इसलिए वहाँ बढ़ी हुई दर पर मुआवजा मिला है। अब नए सिरे से मुआवजा तय करना जिला प्रशासन के लिये सम्भव नहीं है। परियोजना का स्वरूप लघु सिंचाई या औद्योगिक हो, इस बारे में फैसला शासन के स्तर का है। अगर ग्रामीणों की कोई आपत्ति है तो उसका जरूर निराकरण किया जाएगा।'' - राजेश सिंह राणा, कलेक्टर बालोद

 

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