मृदा संरक्षण

जल एवं मृदा संरक्षण


इसके अलावा बारिश के पानी के साथ बहने वाली खेत की उपजाऊ मिट्टी भी रेवा सागर में जमा होगी। जिसे बारिश के बाद निकालकर खेत में डाला जा सकेगा। इससे मृदा संरक्षण के साथ खेतों में फसल को प्राकृतिक खाद भी मिल सकेगी। जिससे की उर्वरा शक्ति बढ़ने के साथ ही उत्पादन में वृद्धि होगी एवं नदी नालों के हो रहे समतलीकरण की समस्या से भी निजात मिलेगी।

जैव विविधता : पशु पक्षी एवं पर्यावरण संरक्षण


सतही जल संरचनाओं के अभाव में पिछले कुछ वर्षों से जिले में पशुओं के निस्तार की समस्या उत्पन्न होने के साथ अप्रवासी पक्षी भी जिले में नहीं पहुंच रहे थे साथ ही स्थानीय पक्षियों की प्रजातियाँ भी विलुप्त/पलायन कर रही थी, जिससे पर्यावरणीय संतुलन गड़बड़ा रहा था। रेवासागर के रूप में निर्मित 1500 सतही जल संरचनाओं के कारण इस वर्षा ऋतु में ही जल मुर्गी, बत्तख आदि पक्षी तालाब के किनारे देखे जाने लगे हैं। इन सतही जल संरचनाओं में मई जून माह तक भी पानी भरा रहेगा तो ठंडे देशों से आने वाले अप्रवासी पक्षी जिले में पहुंचने लगेंगे इससे पर्यावरणीय संतुलन पैदा होगा।

इल्लियों के प्रकोप में कमी


किसानों के अनुसार रेवासागर निर्मित होने के बाद बड़ी संख्या में बगुले लौटने लगे हैं सर्दियों में तालाब के किनारे सैकड़ों बगुलों, चिड़ियाओं की उपस्थिति आनंदपूर्ण माहौल तो पैदा करती ही है साथ ही इन खेतों में फसल में इल्लियों का प्रकोप भी कम हुआ है।

कृषि कीट मित्रों की संख्या में वृद्धि


रेवासागर के कारण बड़ी संख्या में कृषि कीट मित्र जैसे मेंढक, केचुआ, चिड़िया खेतों में दिखाई पड़ने लगे हैं।
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