मृदा सौरीकरण


सूर्य की किरणों का कुछ हिस्सा पारदर्शी पॉलिथीन से प्रेषित होकर मृदा की सतह पर अवशोषित हो जाता है और संरक्षित तापमान में परावर्तित हो जाता है। प्लास्टिक तरंगों के विकिरण एवं पानी के वाष्पीकरण को मृदा से वातावरण में जाने से रोकता है जिससे ग्रीनहाउस प्रभाव को देखा जा सकता है, जो जल की वाष्प पॉलीथिन परत की अंतःसतह पर एकत्रित होती है वह फिर से ग्रीनहाउस प्रभाव को बढ़ाती है।

मृदाजनित रोगजनकों और खरपतवार कीट के लिये प्रभावी नियंत्रण किसानों के लिये एक गम्भीर चुनौती है। मृदा में रसायनों का एक सीमा से अधिक प्रयोग करना भी स्वीकार्य नहीं है क्योंकि इसका दुष्प्रभाव मानव और पशुओं पर काफी पाया गया है। मृदा सौरीकरण के अंतर्गत पतले, पारदर्शी प्लास्टिक चादर का उपयोग किया जाता है जिससे भूमि के तापमान में बढ़ोत्तरी होती है और यह तापमान रोगजनक कीटों को नष्ट करने में प्रभावी होता है। यह एक बहुत ही सरल एवं प्रभावी विधि है साथ ही यह खरपतवारों को नष्ट करने, मृदा स्वास्थ्य को अच्छा करने और पादपों को जरूरी खनिज तत्व उपलब्ध कराने में भी मददगार है।

भारत में जहाँ मई-जून में बहुत तेज गर्मी पड़ती है। इन महीनों के तापक्रम का लाभ उठाते हुए किसान मृदा सौरीकरण की तकनीक अपना सकते हैं। इस विधि में सूर्य के तापक्रम द्वारा कीटों के अण्डारोगाणुओं और खरपतवारों के बीजों को नष्ट किया जाता है। यह विधि काफी सस्ती और प्रभावी है।

सूर्य की किरणों का कुछ हिस्सा पारदर्शी पॉलिथीन से प्रेषित होकर मृदा की सतह पर अवशोषित हो जाता है और संरक्षित तापमान में परावर्तित हो जाता है। प्लास्टिक तरंगों के विकिरण एवं पानी के वाष्पीकरण को मृदा से वातावरण में जाने से रोकता है जिससे ग्रीनहाउस प्रभाव को देखा जा सकता है, जो जल की वाष्प पॉलीथिन परत की अंतःसतह पर एकत्रित होती है वह फिर से ग्रीनहाउस प्रभाव को बढ़ाती है। यह भूमि के तापमान में वृद्धि करते हैं। काले-रंग की पॉलिथीन परत ज्यादातर सौरविकिरण को अवशोषित कर लेती है और तापमान की बढ़ोत्तरी करती है। मृदा सौरीकरण में प्रयुक्त मिट्टी, ढीली, भंगुर, जिसमें बड़े ढेले एवं मलबा-कचरा आदि न हों, तो अच्छी रहती है। लम्बे, अधिक तापमान, नमी एवं सौर जनित दिन रोगकारकों और खरपतवार के प्रति अधिक प्रभावी होते हैं।

इसके लिये 4-6 हफ्तों के लिये मृदा को प्लास्टिक चादर से ढक दिया जाता है। इसे और अधिक प्रभावी करने हेतु मृदा में हरे पादप जैसे सरसों प्रजाति के पौधे साथ ही कार्बनिक खाद आदि मिला दिये जाते हैं। मृदा सौरीकरण के दौरान मृदा का तापमान 35 से 60 डिग्री सेल्सियस तक पहुँच जाता है। यह मृदा प्रकार, मृदा गहराई, ऋतु, स्थान एवं अन्य कई कारकों पर निर्भर करता है। यह मृदा के अस्थिर यौगिकों में परिवर्तन करता है। मृदा सौरीकरण कई मुख्य रोगकारक कवकों (गलन), फ्यूजेरिम, जीवाणुओं आदि को नष्ट करने में काफी कारगार पाई गई है। यह बहुत से निमेटोड के प्रति भी काफी प्रभावकारी पाई गई है। सौरीकरण की प्रक्रिया के आरम्भ में उपयोगी सूक्ष्मजीवों की संख्या में कमी आती है परन्तु काफी तेजी से इनकी संख्या में बढ़ोत्तरी होने लगती है। पादप पोषक तत्वों में बढ़ोत्तरी होने के साथ-साथ लाभदायक जीवाणु जैसे- बेसिलस प्रजाति आदि में भी बढ़ोत्तरी होती है।

सम्पर्क
सुश्री प्रगति प्रमाणिक एवं सुश्री निमिषा शर्मा, फल एवं बागवानी सम्भाग भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, नई दिल्ली 110012

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