मार्बल स्लरी : पर्यावरण समस्या एवं उपलब्ध समाधान

मार्बल स्लरी
मार्बल स्लरी

चमकीले पत्थर " मार्बल" से निर्मित विश्वप्रसिद्ध ताजमहल, विक्टोरिया मेमोरियल महल, दिलवाड़ा मंदिर एवं बिरला मंदिर जैसी अनेकों इमारतों, मकबरों एवं मंदिरों ने सब का मन मोहा है। भू-गर्भ के अत्यधिक ताप एवं दाब उपरांत कायांतरित चट्टानों में रूपांतरित अवसादी एवं आग्नेय चट्टान का ही एक नाम मार्बल है जिसकी राजस्थान के कुल 33 जिलों में से 16 जिलों में खुदाई की जा रही है एवं प्रसंस्करण भी किया जा रहा है। राजस्थान के मुख्यत: पांच क्षेत्रों (उदयपुर, राजसमंद- चित्तौड़गढ़- मकराना- किशनगढ़- बांसवाड़ा, डूंगरपुर- जयपुर- अलवर तथा जैसलमेर) में कुल 1100 मिलियन न मार्बल की खुदाई एवं प्रसंस्करण हेतु 4000 खदानें तथा 1100 प्रसंस्करण इकाइयाँ क्रियाशील हैं।मार्बल खुदाई क्षेत्रों के आधार पर प्रचलित भैसलाना ब्लैक, मकराना अलबेटा, मकराना कुमारी, मकराना डुंगरी, आँधी इंडो, ग्रीन बिदासर केसरियाजी ग्रीन, जैसलमेर यलो आदि अपनी रासायनिक संरचना के कारण अलग-अलग बनावटों में पाये जाते हैं। मार्बल का सफेद, लाल, पीला एवं हरा रंग क्रमश: केल्साइट, हेमाटाइट, लिमोनाइट तथा सरपेंटाइन स्वरूप के कारण होता है।

मार्बल को खुदाई उपरांत प्रसंस्करण हेतु गैंगसा इकाइयों पर आवश्यक मोटाई में काटा जाता है। इस प्रक्रिया में 30-35% मार्बल अपशिष्ट निकलता है जिसमें 70-75% पानी होता है। इस प्रकार कुल 1100 प्रसंस्करण इकाइयों से प्रति वर्ष 5-6 मिलियन टन मार्बल अपशिष्ट का उत्पादन हो रहा है जिसको संबंधित मार्बल एशोसिएशन द्वारा टैंकरों की मदद से निस्तारित किया जा रहा है। मार्बल पाउडर के <75 माइक्रोमीटर से भी बारीक कण पर्यावरण, जल, वायु प्रदूषण को बढ़ा रहे हैं। भविष्य में ये बारीक कण हवा में फैल कर अस्थमा, आंखों में जलन एवं त्वचा जैसे स्वास्थ्य संबंधी रोगों को बढ़ा सकते हैं। पौधों के श्वास छिद्रों के बंद होने से उनके बढ़ने की क्षमता कम होना तथा इन बारीक कणों के जमीन पर जमाव से मिट्टी की उर्वरक क्षमता में गिरावट आना स्वाभाविक है।

मार्बल में पाए जाने वाले मैग्नीशियम ऑक्साइड (mgO) की प्रतिशतता (4-22%) के कारण सीमेंट उद्योग इसे उपयोग में नहीं ला पा रहे हैं। केल्साइट मार्बल में पाई जाने वाली इसकी कम मात्रा को एसीसी सीमेंट, जे के सीमेंट एवं बिरला सीमेंट उद्योग व्हाइट सीमेंट बनाने में काम में ले रहे हैं। मार्बल अपशिष्ट में पाये जाने वाले कैल्सियम ऑक्साइड को रासायनिक प्रक्रिया द्वारा जिप्सम में रूपांतरित करके इसे सीमेंट उद्योगों में प्रयोग में लाया जा सकता है।

केन्द्रीय सड़क अनुसंधान संस्थान, नई दिल्ली के अनुसार 20-25% मार्बल पाउडर को सड़क निर्माण में फिलर के रूप में काम में लाया जा सकता है जोकि एक किलोमीटर सड़क निर्माण में 75.000/- रुपये एवं 1000 टन मिट्टी की बचत के रूप में फलीभूत हो सकता है।

स्रोत:- हिंदी पर्यावरण पत्रिका, पर्यावरण वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय 

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Post By: Shivendra
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