1 अगस्त की काली रात में होशंगाबा-हरदा जिले में हरित क्रांति लाने वाली तवा नदी से जलजला आया और इसके तट पर 200 वर्षों से अधिक वक्त से बसे पाहनवर्री गांव की उपजाऊ ज़मीन को हमेशा के लिए बंजर बनाकर चला गया। कृषि प्रधान इस गांव के करीब 500 एकड़ भूमि में अब रेगिस्तान सा नज़ारा है। कहीं 5 फीट तो कहीं 3 फीट रेत की चादर इस सोना उगलने वाली भूमि पर चढ़ी है। करीब 100 एकड़ ज़मीन को तो तवा नदी अपने में समाहित कर लिया है। ये वो तारीख है जो पाहनवर्री के निवासी कभी नहीं भूलेंगे। ‘नवदुनिया’ टीम जब पाहनवर्री गांव की ज़मीनी हकीक़त देखने पहुंची तो दिल दहल गया। ऐसा तबाही का मंजर पहली बार देखने को मिला। टीम नवदुनिया को ग्रामीणों ने बताया कि चार दशक में तवा बांध से कितनी ही बार पानी तवा नदी में छोड़ा गया होगा, लेकिन कभी नदी ने गांव की ओर रूख नहीं किया। यह पहला मौका था, जब तवा नदी अपना निर्धारित मार्ग छोड़ गांव में प्रवेश की। बिन बुलाए मेहमान की तरह तवा नदी आई और यहां आठ घंटे तक तबाही का ऐसा तांडब कर वापस लौटी कि अब तक यहां श्मशान सा सन्न्टा पसरा है और दिल से चित्कार निकल रही है। इस तबाही को हुए एक सप्ताह का वक्त गुज़र गया है, लेकिन यहां के लोगों के चेहरों पर उस रात का भय और भविष्य को लेकर चिंता की लकीरें स्पष्ट देखी जा सकती है।
इटारसी से 22 किलोमीटर दूर तवा तट पर वर्षों से बसा पाहनवर्री गांव मूलत: कृषि प्रधान गांव है। यहां प्रत्येक परिवार खेती करता है। बरसात में धान और ठंड में गेहूं व चना की खेती की जाती है। वहीं यहां करीब 100 एकड़ भूमि में सब्जी का उत्पादन होता है। गांव की कुल जनसंख्या 3 हजार होगी। जिसमें कुशवाहा समाज की बाहुलता है। इसके अलावा कहार व यादव समाज के अलावा अन्य समाज के नागरिक भी रहते हैं।
आज पाहनवर्री की उपजाऊ भूमि पूरी तरह बंजर दिख रही है। यहां करीब चार सौ एकड़ में धान की फसल लगाई गई थी। आज धान की फसल पूरी तरह रेत के टीलों में दफन हो गई है। करीब 100 एकड़ में लगी सब्जी भी बर्बाद हो गई है। तवा किनारे नदी से गांव की तरफ डेढ़ किलोमीटर के हिस्से में बर्बादी की कहानी किसी से सुनने की जरूरत नहीं है, सिर्फ वहां जाकर खड़े होने से ही बर्बादी साफ नजर आने लगती है।
तवा नदी तट पर मौजूद खेत अब तवा नदी का हिस्सा बन गए हैं। ये हिस्सा करीब 100 एकड़ का होगा। तवा नदी ने जिस स्थान से अपना रूख गांव की ओर किया वहां पर 200 मीटर तक के खेत अब नदी का हिस्सा बन गए हैं। खेतों में मौजूद ट्यूबवेल, कुए अब नदी के बीच सबूत के तौर पर दिखाई दे रहे हैं कि कभी यहां पर खेत भी हुआ करते थे। तबाही के बाद अब भी गांव में कई खेतों में पानी भरा है। गांव के अंदर ही एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाने के लिए इस भरे पानी से होकर गुजरना पड़ रहा है। खेतों में बने कुओं में भी रेत भर गई है।
बाढ़ से आई तबाही के कारण गांव के 100 से अधिक मकान क्षतिग्रस्त हो गए हैं। कई घरों की स्थिति ये है कि वे पूरी तरह टूट गई हैं। लोगों के घरों में अन्न का एक दाना भी नहीं बचा है। तो कई लोगों को घर से बाहर शिविर लगाकर रहना पड़ रहा है। ग्रामीणों का कहना है कि स्थिति इतनी दयनीय होने के बावजूद भी अब प्रशासन की ओर से कोई सहायता नहीं मिली है।
प्रशासन किस तरह काम करता है आज उसका जीता जागता उदाहरण देखने को मिला। कलेक्टर के पास ज्ञापन सौंपने के बाद उसका असर ये हुआ कि एसडीएम आईएएस अधिकारी षणमुख प्रिया मिश्रा, नायब तहसीलदार विष्णु श्रीवास्तव के साथ गांव का दौरा करने पहुंची थीं। गांव के बाहर ही वे एक किसान से मिलीं, एक खेत देखा और वापस लौट गईं। ग्रामीणों का कहना था कि जब ऐसा ही दिखावा करना था तो फिर वे आईं ही क्यों? सवाल यही उठता है कि इस ग्रामीणों की इस दुख की घड़ी में इनके साथ इस तरह का मज़ाक आखिर क्यों किया गया।
500 एकड़ भूमि के खेतों में रेत बिछ गई है। तवा नदी में हुई अवैध रेत खनन का ये नतीजा है कि नदी ने पहली बार गांव की ओर रूख किया। स्थिति अब ये है कि गांव हम ग्रामीण गांव के विस्थापन की मांग प्रशासन से करने वाले हैं। क्योंकि हमें नहीं लगता कि यहां इस तरह रह पाएंगे।
अशोक कुमार कुशवाहा, सरपंच, पाहनवर्री
गांव में करीब 100 से अधिक मकान क्षतिग्रस्त हो गए हैं। खेतों में रेत की चादर चढ़ गई है। तवा नदी ने कई एकड़ खेतों को अपने में समाहित कर लिया है। तट भी उथला हो गया है। अब समझ नहीं आ रहा है कि क्या करें। रेत को कैसे खेतों से हटाएं और हटा भी लें तो आने वाले साल में क्या होगा इसकी चिंता भी है।
मथुराप्रसाद कुशवाहा, पाहनवर्री
घर में एक भी अन्न का दाना सुरक्षित नहीं बचा है। हमारे घर के जैसी स्थिति पूरे गांव की है। गेहूं, चावल व अन्य अनाज गीले हो गई हैं। उन्हें सूखाकर ठीक करने की कोशिश कर रहे हैं। प्रशासन ने अब तक हमारी सुध नहीं ली है। आज एसडीएम आई थीं, वे गांव के बाहर से ही लौट गईं, आती तो समस्या बताते।
सुमन बाई, पाहनवर्री
मेरा पूरा मकान टूट गया है, परिवार में 16 सदस्य हैं। अब घर के बाहर ही तंबू बनाकर रह रहे हैं। ईंट का चुल्हा बनाया है उसी पर भोजन पक रहा है। हमें मुआवजा चाहिए तभी हम जी पाएंगे। पता चला था कि आज एसडीएम आई थी, हमसें मिली नहीं, यदि मिलती तो गांव घुमकर उन्हें तबाही दिखाते।
नंदा हरीराम, पाहनवर्री
5 एकड़ खेत में धान बोयी थी, अब यहां रेत ही रेत हो गई है। खेत में सवा लाख रुपए से ट्यूबवेल लगाया था व 60 हजार से कुंआ भी खुदाया था। अब वे सभी खत्म हो गए हैं। हमें शासन प्रशासन से आस है कि वे कुछ हमारे लिए करेंगे। रेत को खेत से कैसे हटाएँगे इसका इंतज़ाम भी प्रशासन ही करें।
सकुन बाई, पाहनवर्री
1. 500 एकड़ खेत में तवा नदी की रेत
2. 3 से 5 फीट तक खेतों में बिछी रेत की चादर
3. तवा नदी का पाट 200 मीटर तक बढ़ा
4. 100 एकड़ कृषि भूमि तवा नदी में हुई समाहित
5. 100 से अधिक घर हुए क्षतिग्रस्त
6. तवा डैम बनने के बाद पहली बार आई विभीषिका
7. सैकड़ों फलदार वृक्ष बहा ले गई बाढ़
8. ग्रामीण कर रहे विस्थापन की मांग
9. करीब डेढ़ करोड़ रुपए का हुआ नुकसान
कृषि प्रधान गांव
इटारसी से 22 किलोमीटर दूर तवा तट पर वर्षों से बसा पाहनवर्री गांव मूलत: कृषि प्रधान गांव है। यहां प्रत्येक परिवार खेती करता है। बरसात में धान और ठंड में गेहूं व चना की खेती की जाती है। वहीं यहां करीब 100 एकड़ भूमि में सब्जी का उत्पादन होता है। गांव की कुल जनसंख्या 3 हजार होगी। जिसमें कुशवाहा समाज की बाहुलता है। इसके अलावा कहार व यादव समाज के अलावा अन्य समाज के नागरिक भी रहते हैं।
फसलें पूरी तरह बर्बाद
आज पाहनवर्री की उपजाऊ भूमि पूरी तरह बंजर दिख रही है। यहां करीब चार सौ एकड़ में धान की फसल लगाई गई थी। आज धान की फसल पूरी तरह रेत के टीलों में दफन हो गई है। करीब 100 एकड़ में लगी सब्जी भी बर्बाद हो गई है। तवा किनारे नदी से गांव की तरफ डेढ़ किलोमीटर के हिस्से में बर्बादी की कहानी किसी से सुनने की जरूरत नहीं है, सिर्फ वहां जाकर खड़े होने से ही बर्बादी साफ नजर आने लगती है।
खेत बन गए नदी का हिस्सा
तवा नदी तट पर मौजूद खेत अब तवा नदी का हिस्सा बन गए हैं। ये हिस्सा करीब 100 एकड़ का होगा। तवा नदी ने जिस स्थान से अपना रूख गांव की ओर किया वहां पर 200 मीटर तक के खेत अब नदी का हिस्सा बन गए हैं। खेतों में मौजूद ट्यूबवेल, कुए अब नदी के बीच सबूत के तौर पर दिखाई दे रहे हैं कि कभी यहां पर खेत भी हुआ करते थे। तबाही के बाद अब भी गांव में कई खेतों में पानी भरा है। गांव के अंदर ही एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाने के लिए इस भरे पानी से होकर गुजरना पड़ रहा है। खेतों में बने कुओं में भी रेत भर गई है।
100 से अधिक मकान क्षतिग्रस्त
बाढ़ से आई तबाही के कारण गांव के 100 से अधिक मकान क्षतिग्रस्त हो गए हैं। कई घरों की स्थिति ये है कि वे पूरी तरह टूट गई हैं। लोगों के घरों में अन्न का एक दाना भी नहीं बचा है। तो कई लोगों को घर से बाहर शिविर लगाकर रहना पड़ रहा है। ग्रामीणों का कहना है कि स्थिति इतनी दयनीय होने के बावजूद भी अब प्रशासन की ओर से कोई सहायता नहीं मिली है।
एक किसान से मिलीं और वापस लौट आई एसडीएम
प्रशासन किस तरह काम करता है आज उसका जीता जागता उदाहरण देखने को मिला। कलेक्टर के पास ज्ञापन सौंपने के बाद उसका असर ये हुआ कि एसडीएम आईएएस अधिकारी षणमुख प्रिया मिश्रा, नायब तहसीलदार विष्णु श्रीवास्तव के साथ गांव का दौरा करने पहुंची थीं। गांव के बाहर ही वे एक किसान से मिलीं, एक खेत देखा और वापस लौट गईं। ग्रामीणों का कहना था कि जब ऐसा ही दिखावा करना था तो फिर वे आईं ही क्यों? सवाल यही उठता है कि इस ग्रामीणों की इस दुख की घड़ी में इनके साथ इस तरह का मज़ाक आखिर क्यों किया गया।
इनका कहना है
500 एकड़ भूमि के खेतों में रेत बिछ गई है। तवा नदी में हुई अवैध रेत खनन का ये नतीजा है कि नदी ने पहली बार गांव की ओर रूख किया। स्थिति अब ये है कि गांव हम ग्रामीण गांव के विस्थापन की मांग प्रशासन से करने वाले हैं। क्योंकि हमें नहीं लगता कि यहां इस तरह रह पाएंगे।
अशोक कुमार कुशवाहा, सरपंच, पाहनवर्री
गांव में करीब 100 से अधिक मकान क्षतिग्रस्त हो गए हैं। खेतों में रेत की चादर चढ़ गई है। तवा नदी ने कई एकड़ खेतों को अपने में समाहित कर लिया है। तट भी उथला हो गया है। अब समझ नहीं आ रहा है कि क्या करें। रेत को कैसे खेतों से हटाएं और हटा भी लें तो आने वाले साल में क्या होगा इसकी चिंता भी है।
मथुराप्रसाद कुशवाहा, पाहनवर्री
घर में एक भी अन्न का दाना सुरक्षित नहीं बचा है। हमारे घर के जैसी स्थिति पूरे गांव की है। गेहूं, चावल व अन्य अनाज गीले हो गई हैं। उन्हें सूखाकर ठीक करने की कोशिश कर रहे हैं। प्रशासन ने अब तक हमारी सुध नहीं ली है। आज एसडीएम आई थीं, वे गांव के बाहर से ही लौट गईं, आती तो समस्या बताते।
सुमन बाई, पाहनवर्री
मेरा पूरा मकान टूट गया है, परिवार में 16 सदस्य हैं। अब घर के बाहर ही तंबू बनाकर रह रहे हैं। ईंट का चुल्हा बनाया है उसी पर भोजन पक रहा है। हमें मुआवजा चाहिए तभी हम जी पाएंगे। पता चला था कि आज एसडीएम आई थी, हमसें मिली नहीं, यदि मिलती तो गांव घुमकर उन्हें तबाही दिखाते।
नंदा हरीराम, पाहनवर्री
5 एकड़ खेत में धान बोयी थी, अब यहां रेत ही रेत हो गई है। खेत में सवा लाख रुपए से ट्यूबवेल लगाया था व 60 हजार से कुंआ भी खुदाया था। अब वे सभी खत्म हो गए हैं। हमें शासन प्रशासन से आस है कि वे कुछ हमारे लिए करेंगे। रेत को खेत से कैसे हटाएँगे इसका इंतज़ाम भी प्रशासन ही करें।
सकुन बाई, पाहनवर्री
1. 500 एकड़ खेत में तवा नदी की रेत
2. 3 से 5 फीट तक खेतों में बिछी रेत की चादर
3. तवा नदी का पाट 200 मीटर तक बढ़ा
4. 100 एकड़ कृषि भूमि तवा नदी में हुई समाहित
5. 100 से अधिक घर हुए क्षतिग्रस्त
6. तवा डैम बनने के बाद पहली बार आई विभीषिका
7. सैकड़ों फलदार वृक्ष बहा ले गई बाढ़
8. ग्रामीण कर रहे विस्थापन की मांग
9. करीब डेढ़ करोड़ रुपए का हुआ नुकसान
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