हालही में थार रेगिस्तान में पानी को लेकर एक रिसर्च सामने आई। जिसमें शोधकर्ताओं ने दावा किया है कि बीकानेर के पास 1,72000 साल पहले कभी एक नदी बहती थी जो यह बसे लोगों के लिये जीवनदायिनी का काम करती थी।
क्वॉटरनरी साइंस रिव्यू मे प्रकाशित इस शोध को जर्मन के मैक्स प्लांक इंस्टीट्यूट फॉर द साइंस ऑफ हिस्ट्री तमिलनाडु के अन्ना विश्वविद्यालय और कोलकाता के आइआइएसईआर ने तैयार किया है। इस रिपोर्ट में शोधकर्ताओं द्वारा यही बताया गया है कि पाषाण युग( पाषाण युग का तात्पर्य है कि इंसान पत्थर से बने सामानों का इस्तेमाल करता था) और आज के समय में, लोगों के रहन-सहन खान-पान पर काफी अंतर आ गया है। जो कुछ हद तक घग्गर-हकरा नदी के सूखने के प्रमाण भी देता है पाषाण युग में यह नदी लोगों के लिए जीवनदायिनी के साथ एक जगह से दूसरी जगह जाने का एक महत्वपूर्ण साधन हुआ करती थी। घग्गर-हकरा नदी को भारत और पाकिस्तान की मौसमी नदी के रूप में जाना जाता है । वही प्राचीन काल मे बहने वाली सरस्वती का बचा हुआ भाग भी कहा जाता है जिसमें मतभेद है।
मैक्स प्लांक इंस्टीट्यूट जिमबॉब ब्लिंकहोर्न के अनुसार
"थार मरुस्थल का इतिहास काफी पुराना है। जिससे हमें यह पता लगता है कि अर्ध शुष्क इलाके में लोग सिर्फ रहते ही नहीं थे बल्कि अनेक सुविधाओं से लेस थे। जिससे ये अंदाजा लगाया जा सकता है कि यह रहने के लिए नदी कितनी जरूरी हो सकती है । लेकिन हमारे पास प्रागैतिहास ( इस से तात्पर्य है कि इस समय मानव की उत्पत्ति तो हो गई थी है लेकिन लिपि की उत्पत्ति नहीं होने के कारण लिखित में कोई साक्ष्य मौजूद नहीं है) के शुरुआती समय में नदी की स्थिति किस तरह की हो सकती है उसके बारे में कोई सटीक जानकारी नहीं है।"
शोधकर्ताओं के मुताबिक उपग्रह के तमाम चित्र पर रिसर्च करने के बाद यह बात सामने आती है कि चैनलों का एक विशाल और घना नेटवर्क थार मरुस्थल से होकर गुजरता था। अन्ना विश्वविद्यालय के प्रोफेसर हेमा अच्युतम का कहना है कि थार मरुस्थल में जरूर नदियां बहती थी लेकिन इसके समय के बारे में विस्तृत जानकारी नहीं मिलती है। अतः इसका पता लगाने के लिए रेगिस्तान के मध्य में नदियों की गतिविधियों की जानकारी लेनी पड़ी।
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