मरुस्थल को नन्दन कानन में बदलने की योजनाएँ

सदियों से राजस्थान के लिए रेगिस्तान अभिशाप और चुनौती बना हुआ है और इसके रहते इस कृषि प्रधान प्रदेश की अर्थव्यवस्था में सुधार नहीं लाया जा सकता। यद्यपि रेगिस्तान को कृषियोग्य क्षेत्र बनाने के प्रयास किए जा रहे हैं और इसके प्रसार को रोकने की दिशा में कारगर प्रयास किए गए हैं तथापि अभी तक कोई ऐसा प्रयास वृहद स्तर पर नहीं किया गया जिससे मरुस्थल को नन्दन में बदला जा सके।देश के रेगिस्तान का 70 प्रतिशत क्षेत्रफल राजस्थान में है, जहाँ सूखा और अकाल अनचाहे मेहमान की तरह घर बनाए हुए हैं। काफी व्यय के बावजूद रेगिस्तान को राज्य का विकसित क्षेत्र नहीं बनाया जा सका है। यहाँ सुदूर तक झुग्गी-झोपड़ियाँ हैं, किन्तु विरल आबादी का यह क्षेत्र बेरोजगारी का कुरुक्षेत्र बना हुआ है। भौगोलिक असंगतियों को देखते हुए रेगिस्तान में जल संरक्षण की आवश्यकता वर्षों से अनुभव की जा रही है।

विश्व में इजराइल एवं चीन ऐसे देश हैं जिन्होंने मरू प्रसार रोकने और मरुस्थल को बाँधने तथा उस भूमि को उपजाऊ बनाने की दिशा में पहल की है, ऐसे अनुसन्धान और परीक्षण किए हैं जो दूसरे देशों के लिए अनुकरणीय हैं। थार के लिए उनका सहयोग प्राप्त करना भी दूरदर्शिता है।

मरुस्थल को नन्दन कानन में बदलने की योजनाएँ

फैलता रेगिस्तान


वक्त के थपेड़े खाते हुए पश्चिम से खिसका समुद्र पश्चिमी राजस्थान में अपने पीछे अथाह रेतीला समुद्र छोड़ गया है। वैज्ञानिक थार को बाँधने में लगे हैं, लेकिन रेगिस्तान अपने पाँव फैलाता जा रहा है।

वैज्ञानिकों का मानना है कि कालान्तर में हिमालय से निकलने वाली नदियों के साथ बहकर आने वाली मिट्टी और महाद्वीपों की अदला-बदली के कारण समुद्र पश्चिम से खिसक गया था और पश्चिम से खिसकता समुद्र जाते-जाते पीछे अथाह रेगिस्तानी इलाका छोड़ गया है।

पश्चिम राजस्थान के मरूस्थली इलाके को वैज्ञानिक समुद्र की सूखी हुई शक्ल के रूप में मानते हैं। आज भी इस क्षेत्र में रेतीले टीलों तथा पहाड़ियों की पठारी भूमि अपने इतिहास को समेटे खड़ी है।

पश्चिम राजस्थान की अन्तरराष्ट्रीय सीमा के उस पार भी रेगिस्तानी इलाका अपने इतिहास का परिचय देते हुए हवाओं के साथ बढ़ता जा रहा है। सर्दी में ठण्डा और गर्मी में गर्म रहने वाले थार को आगे बढ़ने से रोकने के अनेक जतन किए जा रहे हैं लेकिन थार अपने पाँव आगे बढ़ाता जा रहा है।

वैज्ञानिकों ने भी अपने शोध के जरिए थार में हरियाली पैदा करने के जतन किए हैं परन्तु कई मीलों तक फैला रेगिस्तान का अधिकांश हिस्सा आज भी बिना पेड़-पौधों के फैला हुआ है।

'काजरी' वैज्ञानिक भी अपने शोध के जरिए थार को थामने की कोशिश में जुटे हैं। अनिश्चित और अनियमित बरसात तथा विषम भौगोलिक परिस्थितियाँ वैज्ञानिकों के लिए गम्भीर चुनौती लिए मरुस्थल विकास कार्यक्रम की सफलता के मार्ग में खड़ी हैं।

शोधकर्ताओं का यह भी मानना है कि इतिहास में सरस्वती नदी पश्चिमी राजस्थान से बहती थी। पुरातत्वविद सरस्वती नदी के मार्ग को खोजने का भी काम कर रहे हैं। फलौदी और पोखरण के पास जल विभाग के नलकूपों से निकलने वाला पानी सरस्वती नदी के अस्तित्व का संकेत देता है।

थार उद्धार


मरुस्थल को नन्दन कानन में बदलने की दिशा में राजस्थान के पश्चिमांचल के उस पार ऐसे विकट, विशाल थार रेगिस्तान के प्रसार को रोकने एवं वर्षाकालीन जल के संरक्षण और उपयोग के लिए एक बड़ी परियोजना तैयार किए जाने का निर्णय राज्य सरकार द्वारा लिया गया है। यह परियोजना सेण्ट्रल एरिड जोन रिसर्च इंस्टीट्यूट (काजरी) जोधपुर द्वारा तैयार की जाएगी जो भारत सरकार के माध्यम से इजराइल का सहयोग प्राप्त करके पूर्ण होगी। पहले परियोजना की पृष्ठभूमि तैयार की गई है जिसे राज्य के विशिष्ट योजना संगठन द्वारा ग्रामीण विकास मन्त्रालय को भिजवाया गया है।

इस परियोजना से राज्य के बीकानेर, बाड़मेर, जैसलमेर, जोधपुर, चूरू, नागौर, सीकर, पाली, जालौर, झुन्झुनूं एवं गंगानगर जैसे ग्यारह जिलों के मरूस्थलीय क्षेत्र प्रभावित होंगे। राज्य का करीब 62 प्रतिशत क्षेत्र परियोजना के अन्तर्गत आएगा और मरूस्थलीय जिलों के सीमावर्ती जयपुर, अजमेर, सिरोही एवं उदयपुर जिलों का करीब 4 हजार वर्ग किलोमीटर क्षेत्र भी परियोजना का भाग होगा।

परियोजना की क्रियान्विति के पूर्व बीकानेर, नागौर, बाड़मेर, जोधपुर एवं जैसलमेर पाँच जिलों के 1 से 5 चयनित गाँवों में ‘काजरी’ द्वारा मरू प्रसार रोकने एवं जल संरक्षण सम्बन्धी विकसित तकनीक को उपयोग में लाकर देखा जाएगा ताकि उसके प्रभाव का पूर्ण आकलन हो सके।

सम्भावना व्यक्त की गई है कि इस परियोजना से थार रेगिस्तान के करीब एक लाख 96 हजार 150 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में जल संरक्षण हो सकेगा। इससे कृषि उत्पादन के साथ मरूस्थलीय जिलों की अनेक समस्याओं के समाधान हो सकेंगे।

सदियों से रेगिस्तान राजस्थान राज्य के लिए अभिशाप और चुनौती बना हुआ है और इसके रहते इस कृषि योग्य क्षेत्र बनाने के प्रयास किए जा रहे हैं और इसके प्रसार को रोकने की दिशा में कारगर प्रयास किए गए हैं तथापि अभी तक कोई ऐसा प्रयास वृहद स्तर पर नहीं किया गया जिससे मरुस्थल को नन्दन कानन में बदला जा सके। इस दिशा में राज्य के विशिष्ट योजना संगठन की पहल का नाम है ‘थार की जल संरक्षण परियोजना'।

सीमा क्षेत्र विकास


'सीमा क्षेत्र विकास' योजना के अन्तर्गत भी राज्य के सीमावर्ती बाड़मेर, जैसलमेर, बीकानेर एवं गंगानगर जिलों के लिए डेढ़ सौ करोड़ रुपए के प्रस्ताव केन्द्र सरकार को भिजवाए जाएँगे। यह योजना वर्ष 1987-88 में बन्द कर दी गई थी जिसे आठवीं योजना में पुनः प्रारम्भ किए जाने के संकेत केन्द्र सरकार से मिले।

इस योजना में राजस्थान के सीमावर्ती जिलों में 50 किलोमीटर दूरस्थ निवासियों के लाभार्थ योजनाएँ तैयार की जाएँगी। इस सम्बन्ध में ऐसी परियोजनाएँ तैयार किए जाने का निर्णय लिया गया है जो केन्द्र तथा राज्य योजना में सामान्यतः सम्मिलित नहीं है। इन प्रस्तावों में मुख्यतः प्राथमिक विद्यालय खोलने, पेयजल सुविधा उपलब्ध कराने, सड़क निर्माण, वैकल्पिक ऊर्जा के साधन और आर्थिक क्रियाएँ जैसे कार्य सम्मिलित हैं। इस योजना में इन्दिरा गाँधी नहर परियोजना क्षेत्र का भी विकास जारी रहेगा।

लूनी बेसिन परियोजना


राज्य में लूनी बेसिन समन्वित विकास की एक वृहद परियोजना तैयार की जाएगी जिससे नदी के बेसिन में पड़ने वाले जोधपुर, बाड़मेर एवं जालौर जिलों के 32 लाख हेक्टेयर मरू क्षेत्र का विकास होगा। यों तो लूनी क्षेत्र से सम्बन्धित योजनाएँ विभिन्न कार्यक्रमों यथा-मरू विकास कार्यक्रम एवं अन्य विभागों की वार्षिक योजनाओं के माध्यम से चलाई जा रही है, किन्तु इस परियोजना से क्षेत्र के विकास को और गति मिल सकेगी। मरू क्षेत्र में लूनी बेसिन का विशेष महत्त्व है। क्षेत्र के 32 लाख हेक्टेयर में से 13 लाख हेक्टेयर से सम्बन्धित लूनी बेसिन का सर्वेक्षण वर्ष 1981-82 में काजरी जोधपुर द्वारा करवाया जा चुका है और शेष 18 लाख हेक्टेयर का सर्वेक्षण भी दो वर्षों में पूर्ण कर लिया जाएगा।

इस परियोजना के लिए तीन चरणों का प्रोफाइल भू-संरक्षण विभाग द्वारा तैयार करवाया जा रहा है। परियोजना से इस क्षेत्र के पर्यावरण तथा परिस्थितिकीय सुधार तो होगा ही, भूमि एंव जल-संसाधनों की पूर्ण व्यवस्था भी हो सकेगी और मरू प्रसार रोका जा सकेगा। परियोजना के लिए केन्द्रीय और विदेशी सहायता लिए जाने के प्रयास किए जाएँगे।

ज्ञातव्य रहे लूनी मरूस्थलीय क्षेत्र की एकमात्र बड़ी बरसाती नदी है जो अरावली पर्वतमाला के पश्चिमी क्षेत्र में अजमेर नगर की नाग पहाड़ी से निकलकर जोधपुर, बाड़मेर और जालौर जिलों से गुजरती हुई कच्छ के रन में अरब सागर में जाकर मिलती है। बांड़ी, सुकड़ी, मीठडी, जवाई एवं मांसी आदि बरसाती नदियाँ जो पाली, जालौर एवं सिरोही जिलों में बहती हैं, सब लूनी नदी में मिलती हैं। लूनी नदी की लम्बाई 500 कि.मी. है और औसत गहराई करीब 2.4 मीटर है। इसका कैचमेण्ट एरिया 32 लाख हेक्टेयर है। वर्षाकाल में जल-भराव से इसमें बाढ़ आ जाती है।

(स्वतंत्र लेखक)

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