वायु प्रदूषण के उपायों के मामलों में हमें यूरोपीय देशों से सीखने की जरूरत है। आखिर अधिकांश समय ठंड के मौसम में डूबे ये देश कैसे वायु प्रदूषण और स्मॉग पर नियंत्रण करते हैं?
स्वच्छ हवा प्राणवायु है। अगर यह मिलावटी है तो निःसंदेह स्वास्थ्य और प्राण, दोनों खतरे में है। कुछ दशकों से वायु प्रदूषण पूरे विश्व में अलार्मिंग स्थिति की आहट दे रहा है।सर्वोच्च न्यायालय द्वारा एनसीआर क्षेत्र में 1 नवम्बर तक पटाखों पर बैन के आदेश ने कई नई अटकलों को जन्म दे दिया है। कुछ लोग इसे हिन्दू धर्म की आस्थाओं और पर्वों पर कुठाराघात की तरह भी देख रहे हैं। कई लोगों का मानना है कि यह निर्णय स्वागत योग्य तो है परन्तु इसे 1 जनवरी तक बैन करना चाहिए। क्रिसमस और नये साल के समय भी खूब पटाखे फोड़े जाते हैं। मगर इस आदेश के बहाने ही हमें संयमित और शान्त दिमाग से सोचना होगा कि इस आदेश की नौबत आई क्यों और क्या सिर्फ दिवाली पर बैन से हम इस विकराल समस्या से निजात पा लेंगे?
सच्चाई यही है कि प्रदूषण की समस्या विश्व स्तरीय समस्याओं में से एक है। यह भी दुर्भाग्यपूर्ण है कि दिल्ली विश्व के सबसे प्रदूषित शहरों में 11वें नम्बर पर है। यह भी उतना ही भयानक सच है कि दिवाली पर पटाखों का बैन दिल्ली को राहत की साँस नहीं दे सकता। मगर इस निर्णय से हम दिवाली के बाद अचानक बढ़े वायु प्रदूषण के स्तर पर लगाम लगने की अपेक्षा जरूर कर सकते हैं। गत वर्ष दिल्ली प्रदूषण नियंत्रण विभाग की ओर से जारी आँकड़े के मुताबिक दिवाली की रात दिल्ली में प्रदूषण सामान्य की अपेक्षा 23 गुना बढ़ गया था।
वायु प्रदूषण के उपायों के मामलों में हमें यूरोपीय देशों से सीखने की जरूरत है। अधिकांश समय ठंड के मौसम में डूबे ये देश कैसे अचानक बढ़े वायु प्रदूषण और स्मॉग की स्थिति पर नियंत्रण करते हैं। दरअसल वहाँ ‘सिटी ट्री’ नाम से मॉस की दीवारें बनाई जाती हैं। मॉस से ढकी ये दीवारें कार्बन डाइऑक्साइड, नाइट्रोजन ऑक्साइड और हवा से कण पदार्थ को हटाते ही हैं, साथ में ऑक्सीजन भी देते हैं। ऐसा एक वृक्ष एक दिन में 250 ग्राम कणों को अवशोषित करने में सक्षम होता है और प्रत्येक वर्ष 240 मीट्रिक टन कार्बन डाइऑक्साइड को हटाता है, जो लगभग 275 पेड़ों के वायु शुद्धिकरण प्रभाव के बराबर स्तर का है। यह कमाल मात्र 13 फीट लम्बी मॉस की दीवार का है जो सार्वजनिक स्थानों पर बड़े आराम से स्टील के बेस के साथ लगाई जाती है। एक मॉस दीवार की कीमत लगभग 25,000 डॉलर है जो ऐसे किसी भी आपातकाल से निपटने के लिये बहुत महँगी नहीं है। जब दिवाली या अन्य किसी समय जानलेवा प्रदूषण की जकड़ में दिल्ली या बाकी शहर हों तो यह उपाय पहले से की गयी तैयारियों में शामिल किया जा सकता है।
इसके अलावा इन देशों में बड़े-बड़े एयर फिल्टर्स सावर्जनिक जगहों पर लगाये जाते हैं। इन्हें ‘स्मॉग फ्री टॉवर’ कहते हैं। यह एक विशाल वैक्यूम क्लीनर के रूप में काम करता है। भारत में भी इन मामलों में बहुतेरे उपाय व्यक्तिगत स्तर से लेकर सरकारी स्तर पर करने की जरूरत है।
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