मोदी काका किसानों को बचा लो


उदारीकरण की राह पर चलने वाली मोदी सरकार से किसान आत्महत्या रोकने की विनती कर रहे हैं, लेकिन शिवराज सरकार उनके लिये कुछ खास नहीं कर पा रही है। विकास का मौजूदा पैटर्न किसानों के लिये छलावा साबित हो रहा है।

मध्य प्रदेश के बालाघाट के एक किसान जियालालराहंगडाले ने प्रधानमंत्री को एक पत्र लिखा है। पत्र रोंगटे खड़ा कर देने वाला है। उसमें किसानों की आत्महत्या के संदर्भ में उसमें कहा गया है, ‘मोदी काका, किसानों को बचा लो।’ इस मसले पर प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को कांग्रेस हर मोड़ पर आलोचना का विषय बना रही है। कांग्रेस का कहना है कि शिवराज अपने मुँह मियाँ मिट्ठू बनते रहें, लेकिन फसलों की बर्बादी के चलते किसानों का धैर्य जवाब दे रहा है। यहाँ आए दिन किसान आत्महत्या कर रहे हैं।

प्रदेश के किसानों की फसलों की बर्बादी की वजह अकेले मौसम ही हो, ऐसा नहीं है। घटिया कीटनाशकों और नकली खाद-बीज का इस्तेमाल भी इसकी बड़ी वजह है। हाल ही में आयोजित कृषि कैबिनेट में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह ने इस बात पर चिंता जताई और खाद व कीटनाशक बेचने वालों को चेताया भी कि उनके खिलाफ सख्त कार्रवाई होगी। फिक्की और टीएसएमजी की 2015 की रिपोर्ट के मुताबिक मध्य प्रदेश में नकली कीटनाशकों के इस्तेमाल से दस लाख टन फसल का नुकसान हुआ है। हाल के वर्षों में प्रदेश में जल संकट भी बढ़ गया है। भूजल स्तर जिस तेजी से गिर रहा है, उसे देखते हुए यह कहा जा रहा है कि अगर आगे ऐसे ही हालात रहे तो जल्द ही प्रदेश की धरती खासकर मालवांचल को बंजर होते देर नहीं लगेगी। खरीब की फसल चौपट होने के बाद किसानों ने रबी की फसल न बोने का ऐलान कर दिया है। वैसे मालवांचल की राजनीति का आधार ही पानी रहा है। मालवांचल में देवास प्रमुख औद्योगिक शहर रहा है, लेकिन यहाँ की अधिकांश फैक्ट्रियाँ मसलन कपड़ा मिलें जल संकट की भेंट चढ़ चुकी हैं। यहाँ के उद्योगपतियों ने इंदौर के पीथमपुर का रुख किया है, लेकिन वहाँ भी हालात बहुत अच्छे नहीं हैं।

इसमें संदेह नहीं कि फसलों की बर्बादी और किसानों की मौत की बढ़ती घटनाओं ने मध्य प्रदेश सरकार को बैकफुट पर ला दिया है। यही वजह है कि मुख्यमंत्री शिवराज सिंह दस साल पूरे होने का जश्न भी नहीं मना पाए। कांग्रेस के दिग्गजों की मानें तो उनकी पार्टी ने विकास उत्सव के दौरान शिवराज सिंह चौहान की विफलताओं को जनता के समक्ष ले जाने की पूरी तैयारी कर रखी थी और इसकी भनक मुख्यमंत्री को लग गई थी। जानकारों की मानें तो शिवराज सिंह चौहान को जश्न न मनाने की नसीहत प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दी थी और कहा था कि जश्न मनाने के लिये यह उचित समय नहीं है, क्योंकि किसान निराश और हताश हैं।

गौरतलब है कि 2004 से 2011 के बीच मध्य प्रदेश में 10 हजार 861 किसान आत्महत्या कर चुके हैं। इधर के दिनों में अखबारों में निरन्तर किसी न किसी किसान के मरने की खबर आ रही है। शायद यही वजह है कि मुख्यमंत्री को छह माह में दूसरी बार किसानों के मुद्दे पर कैबिनेट बुलानी पड़ी है और उच्चाधिकारियों को गाँव जाकर वास्तविक स्थिति का बारीकी से अध्ययन करने और किसानों के साथ रात्रि प्रवास के निर्देश देने पड़े हैं। इसके लिये सभी अफसरों की छुट्टी रोक दी गई है। सरकार के उक्त आदेश का अधिकारी कितनी गम्भीरता से पालन करेंगे, यह तो भविष्य ही तय करेगा, लेकिन विपक्ष ने सरकार की इस पहल को नौटंकी करार दिया है। किसानों के आक्रोश को देखते हुए कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष अरुण यादव ने 16 अक्टूबर को अमरकंठ से पद यात्रा शुरू कर दी है, जो 2018 तक किश्तों में चलती रहेगी।

विचारणीय है कि सूखे के चलते मध्य प्रदेश के किसानों की लगभग 22 हजार करोड़ रुपये की फसल बर्बाद हो गई है। कृषि वैज्ञानिकों की मानें तो इस साल सोयाबीन, उड़द, अरहर, धान आदि खरीफ की फसलों के उत्पादन में 58 लाख टन की कमी आ सकती है। सरकार ने फैसला किया है कि जिन इलाकों में सामान्य से कम बरसात हुई है, वहाँ भी किसानों को राहत दी जाएगी। खरीफ की फसल बर्बाद होने के बाद किसान रबी की फसल की बुआई करने में हिचकिचा रहे हैं। जनवरी-फरवरी माह में 3000 करोड़ रुपये से अधिक का बीमा भुगतान 18 लाख किसानों में किया जाना है। मुख्यमंत्री ने सभी विभागों के बजट में 15 प्रतिशत कटौती करके किसानों को राहत पहुँचाने का भी निर्णय लिया है। हालाँकि फौरी राहत देना समस्या का समाधान नहीं है और किसानों को जितनी राहत मिलती है, वह ऊँट के मुँह में जीरा जैसी है। बेहतर होता कि सरकार गिरते भूजल स्तर को नियंत्रित करने, सूखे, बाढ़ या अन्य प्राकृतिक आपदाओं से बचने के लिये मुकम्मल तरीके अपनाती। कांग्रेस अगर सरकार पर किसानों को मुआवजा देने में अपने पराये का आरोप लगा रही है, तो यह बेहद गम्भीर बात है। किसान क्रेडिट कार्ड और बीमा कंपनियों में इतनी पेंचदगियाँ हैं कि किसानों को समय पर अपना पैसा भी नहीं मिल पा रहा है।

आत्महत्या करते किसान


मध्य प्रदेश में किसानों द्वारा आत्महत्या कोई नई बात नहीं है, लेकिन इस साल इसकी रफ्तार कुछ ज्यादा है। आत्महत्या के लिये कुख्यात हो चुके महाराष्ट्र, कर्नाटक जैसे राज्यों की श्रेणी में मध्य प्रदेश शुमार हो चुका है। इस साल केवल अक्टूबर माह में घटित कुछ मामले इस प्रकार हैं-

1. 5 अक्टूबर : सागर जिले में किसान राजकुमार ने आत्महत्या कर ली।
2. अक्टूबर : बैतूल जिले के एक किसान और सत्तारुढ़ दल के सक्रिय सदस्य मूरत वटके पेड़ से लटक गए।
3. 14 अक्टूबर : रायसेन जिले के सुलतानगंज के ग्राम डिलवार में 50 वर्षीय किसान राम प्रसाद ने फाँसी लगा ली।
4. 14 अक्टूबर : खंडवा जिले में एक दिन के भीतर दो किसानों ने आत्महत्या की कोशिश की, जिसमें एक किसान की मौत हो गई। 5. 14 अक्टूबर : गुना जिले के मधुसूदनगढ़ के गरखेड़ा के 30 वर्षीय किसान नेपाल लोधी ने जहरीला पदार्थ पीकर अपनी इहलीला खत्म कर ली।
6. 18 अक्टूबर : रीवा के अटरिया गाँव में 65 वर्षीय यज्ञ नारायण दुबे ने जहर खाकर जान दे दी।
7. 21 अक्टूबर : इटारसी के केसला के अमाडा गाँव में किसान सरवन सिंह ने फाँसी लगा ली।
8. 23 अक्टूबर : सतना में 34 वर्षीय किसान जय नारायण और उसकी पत्नी ने आत्महत्या कर ली।
9. 24 अक्टूबर : दमोह जिले के पथरिया की महिला किसान द्रौपदी ने कीटनाशक पी लिया, उसकी हालत नाजुक है। एक दिन पहले ही इसी क्षेत्र के एक अन्य किसान ने आत्महत्या की थी।

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