मनुष्य को नकारती नई विश्व व्यवस्था

वातावरण में कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा बहुत बढ़ रही है और जलवायु परिवर्तन हो रहा है। यह अवधारणा है कि इसके कारण वैश्विक तापमान बढ़ रहा है, जिससे मानव का अस्तित्व ही खतरे में आ गया है। तापमान को बढ़ने से रोकने के लिए वातावरण में कार्बन डाइआक्साइड कम करना होगा। यह आबादी को घटाकर ही सम्भव है। नई विश्व व्यवस्था के लिए एशिया, अफ्रीका, मध्यपूर्व के देशों की निर्धन आबादी को खत्म करना आवश्यक माना गया है। ‘‘आबादी घटाना’’ और ‘‘नस्ल विशेष के हाथ में राजसत्ता’’ के सिद्धान्त का प्रतिपादन करने वाले विख्यात फेबियन सोशलिस्ट और दार्शनिक ‘‘बट्रेंड रसेल’’ हैं, जिन्हें नई विश्व व्यवस्था का मसीहा माना जाता है।

शीत युद्ध की समाप्ति और दो ध्रुवीय विश्व की प्रतीक - ‘‘बर्लिन की दीवार’’ के नवम्बर 1989 में ढह जाने के साथ ही एक नई विश्व व्यवस्था का अधिकृत रूप से आगाज हुआ था। भूमण्डलीकरण, उदारीकरण और निजीकरण की नीतियाँ अपनाकर भारत भी इस नई व्यवस्था में सहयात्री बना। 25 वर्ष तक संसद में गठबन्धन सरकारों के चलते इस दिशा में उल्लेखनीय प्रगति नहीं हुई। लोकसभा में पूर्ण बहुमत वाली सरकार के गठन के बाद विश्व के धनकुबेरों को उम्मीद है कि उनके सपनों का ‘‘न्यू वर्ल्ड आर्डर’’ कायम करने में भारत अब महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वहन करेगा।

नई विश्व व्यवस्था एक ‘‘विश्व सरकार’’ की कल्पना है, जिसे साकार करने के लिए इल्युमिनाटी, बिल्डरबर्ग ग्रुप, कौंसिल फॉर फारेन रिलेशन्स, त्रिपक्षीय आयोग (ट्रायलेट्रल कमीशन), फ्रीमेसन्स जैसे शक्तिशाली अन्तरराष्ट्रीय और गुप्त संगठन वर्षों से प्रयासरत है। अमेरिका, ब्रिटेन सहित अनेक शक्तिशाली देशों के शासनाध्यक्ष इनके प्रतिनिधि के रूप में कार्य करते हैं।

इन संगठनों के मुखिया रॉथशील्ड, रॉकफेलर, मोरगन परिवार जैसे धनकुबेरों के साथ-साथ बिल्डरबर्ग ग्रुप से जुड़े लगभग 150 खरबपति हैं, जो दुनिया के अधिकांश बैंकों और विशालकाय कम्पनियों के मालिक हैं।

अमेरिका, जापान, जर्मनी, ब्रिटेन, इजरायल, बेल्जियम, फ्रांस आदि देशों के ये धन्नासेठ ऐसा विश्व बनाना चाहते हैं, जिसमें मात्र 50 करोड़ नागरिकों के लिए रोटी, कपड़ा, मकान, स्वास्थ्य, शिक्षा, रोजगार की गारण्टी होगी। लोकतान्त्रिक अधिकारों से वंचित ये विश्व नागरिक स्वयं केन्द्रित होंगे।

नई विश्व व्यवस्था में सभी राष्ट्र राज्यों का अन्त हो जाएगा, निजी सम्पत्ति नहीं होगी, उत्तराधिकार का अधिकार नहीं होगा, देश भक्ति के लिए कोई स्थान नहीं होगा, परिवार नहीं होगा और धर्म भी नहीं होगा। कार्ल मार्क्स ने जिस ‘कम्यून’ की कल्पना की थी, उससे मिलती इस व्यवस्था में उत्पादन के सभी साधन समाज के हाथ में नहीं, बल्कि बिल्डरबर्ग ग्रुप से जुड़े धनकुबेरों के स्थायी नियन्त्रण में होंगे तथा उनका हित संवर्धन करना ही विश्व नागरिकों का परम् कर्त्तव्य होगा। इस तरह समाज दो भागों में बँटा होगा - शासक और सेवक। मध्य वर्ग के सभी कार्य तकनीकी के माध्यम से सम्पन्न होंगे। इस व्यवस्था मेें सभी नागरिकों पर माइक्रोचिप के जरिए नियन्त्रण रखा जाएगा।

वर्तमान में दुनिया की आबादी लगभग 700 करोड़ है। इस आबादी को घटाकर 50 करोड़ तक लाने के लिए विभिन्न उपायों की खोज में शीर्षस्थ वैज्ञानिकों को लगाया गया है। वेक्सीनेशन और जेनेटिक इंजीनियरिंग से निर्मित खाद्यान्न के जरिए नई पीढ़ी की प्रजनन क्षमता को खत्म करने का विश्वव्यापी अभियान गोपनीय रूप से चलाया जा रहा है। बिल और मिलिण्डा गेट्स फाउण्डेशन इसमें पूरा सहयोग कर रहा है। मीडिया सम्राट वारेन बफेट ने भी इस अभियान में लगभग 30 बिलियन डॉलर का योगदान किया है ताकि धरती को मानव के अत्यधिक बोझ से छुटकारा मिले।

कहा जा रहा है वातावरण में कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा बहुत बढ़ रही है और जलवायु परिवर्तन हो रहा है। यह अवधारणा है कि इसके कारण वैश्विक तापमान बढ़ रहा है, जिससे मानव का अस्तित्व ही खतरे में आ गया है। तापमान को बढ़ने से रोकने के लिए वातावरण में कार्बन डाइआक्साइड कम करना होगा। यह आबादी को घटाकर ही सम्भव है।

नई विश्व व्यवस्था के लिए एशिया, अफ्रीका, मध्यपूर्व के देशों की निर्धन आबादी को खत्म करना आवश्यक माना गया है। ‘‘आबादी घटाना’’ और ‘‘नस्ल विशेष के हाथ में राजसत्ता’’ के सिद्धान्त का प्रतिपादन करने वाले विख्यात फेबियन सोशलिस्ट और दार्शनिक ‘‘बट्रेंड रसेल’’ हैं, जिन्हें नई विश्व व्यवस्था का मसीहा माना जाता है।

विश्व की 80 से 90 फीसदी आबादी को खत्म करने के अपने महत्वाकांक्षी लक्ष्य की प्राप्ति के लिए ‘नई विश्व व्यवस्था’ के हिमायती चन्द धन कुबेरों द्वारा तीसरे विश्व युद्ध की सम्भावना, जलधारा (नदी, जलाशय) को विषाक्त बनाने, जैविक या रासायनिक हथियारों का उपयोग करने, प्राकृतिक आपदा पैदा करने जैसे अनेक उपायों पर शोध कराया जा रहा है।

भारत सहित दुनिया के कृषि प्रधान देशों में किसानों से खेती की जमीन मुक्त कराने के लिए खेती को घाटे का सौदा बनाकर किसानों को आत्महत्या के लिए विवश करना ‘नई विश्व व्यवस्था’ को साकार करने की दिशा में एक सफल प्रयोग है। भारत सरकार इसमें पूरा सहयोग कर रही है।

इस महत्वपूर्ण परिघटना के सम्बन्ध में जागरूक समुदाय सोशल मीडिया के माध्यम से सूचनाओं का प्रचार-प्रसार कर रहा है। असंख्य रिपोर्टें और फिल्में यू-ट्यूब में उपलब्ध भी हैं। मुख्यधारा के प्रिण्ट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया चूँकि ‘न्यू वर्ल्ड आर्डर’ के हिमायती कार्पोरेट के नियन्त्रण में हैं इसलिए उनमें इससे सम्बन्धित गतिविधियों का प्रसारण नहीं होता। कार्पोरेट मीडिया द्वारा सामाजिक सरोकारों की इस उपेक्षा के चलते दुनिया की अधिकांश आबादी अपने सिर पर मंडराते खतरे के प्रति बेखबर है। भारत के राजनीतिक दलों के सोच के दायरे से यह बहुत दूर की बात है क्योंकि अन्तरराष्ट्रीय घटनाओं पर नजर रखकर रणनीति बनाने की प्रवृत्ति उन्होंने विकसित ही नहीं की है।

फिल्म और टेलीविजन के माध्यम से युवा पीढ़ी की मानसिकता ‘नई विश्व व्यवस्था’ के अनुकूल बनाने के लिए बहुत तेजी से काम चल रहा है। शिक्षा, बैंकिंग, राजनीति, सैन्य शक्ति और इलेक्ट्रॉनिक्स के जरिए इस अभियान को द्रुत गति से आगे बढ़ाया जा रहा है। रूसी राष्ट्रपति ब्लादिमिर पुतिन नई विश्व व्यवस्था के एकमात्र विरोधी राजनेता हैं।

महाशक्तियों से खतरे के चलते वे पूरी सैनिक शक्ति के साथ चलते हैं। पिछले दिनों आस्ट्रेलिया में सम्पन्न जी-20 सम्मेलन के दौरान उनके इर्द-गिर्द रूसी सेना का कड़ा पहरा था। भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने नई विश्व व्यवस्था के सम्बन्ध में कोई बयान नहीं दिया है। देखना है कि संघ परिवार के प्रतिनिधि के रूप में ‘‘नई विश्व व्यवस्था’’ के प्रति उनकी सरकार क्या नीति अपनाती है।

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Post By: Shivendra
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