मनमानी खुदाई पहाड़ बना खाई

उत्तर प्रदेश के एक-तिहाई खनन क्षेत्र वाले बुंदेलखंड में जहां भी पहाड़ हैं, वहां बेधड़क धमाके किए जा रहे हैं। इससे खनन क्षेत्र के आस-पास बसे लोगों की जान का खतरा बना हुआ है। पहाड़ों से घिरे महोबा जिले में तो हालात अत्यंत चिंताजनक हो चुके हैं। महोबा जिले का विकट नजारा है। यहां सर्वाधिक 327 पट्टे स्वीकृत किए गए हैं। बेहिसाब बारूद ठूंसकर उड़ाई जा रही चट्टानों से दूर तक गिरते पत्थर लोगों के लिए जानलेवा सिद्ध हो रहे हैं।

इलाहाबाद उच्च न्यायालय के आदेश पर सीबीआई सुमेरपुर के लक्ष्मीकांत शिवहरे उर्फ नीरज की मौत से जुड़ी वास्तविकता की परतें तेजी से उघेड़ने में जुटी है। सीबीआई जांच से साफ होगा कि स्टोन क्रशर व्यवसायी नीरज की मौत कैसे हुई? उसके कथित हत्याभियुक्तों को बचाने में हमीरपुर जिले की सुमेरपुर थाना पुलिस के साथ ही उत्तर प्रदेश के प्रभावशाली मंत्री नसीमुद्दीन सिद्दीकी को लपेटे में लेने वाले मृतक के पिता रविकांत शिवहरे के आरोप में कितनी सच्चाई है? लेकिन सीबीआई जांच से क्या राजनीतिक गलियारों तक पहुंच रखने वाले पट्टाधारकों के संरक्षण में पहाड़ों में किए जा रहे मनमाने धमाकों की उस समस्या का कोई समाधान हो पाएगा, जिसके कारण न केवल नीरज को जान से हाथ धोना पड़ा बल्कि बुंदेलखंड में पहाड़ों के इर्द-गिर्द बसे हजारों लोगों की जान हमेशा सांसत में रहती है। मामले की जड़ पर गौर फरमाने पर सीबीआई अधिकारियों को यह भी सुनने को मिल सकता है कि कबरई-महोबा इलाके में मजदूरों की मौत बहुत सस्ती है। पहाड़ों में विस्फोट के दौरान मरने वाले मजदूरों की जान का सौदा 10-50 हजार रुपए में आसानी से पट जाता है। उत्तर प्रदेश के एक- तिहाई खनन क्षेत्र वाले बुंदेलखंड में जहां भी पहाड़ हैं, वहां बेधड़क ब्लास्टिंग होने से आस-पास बसे लोगों को खासा परेशान होना पड़ रहा है। पहाड़ों की बहुलता वाले महोबा जिले में तो हालात चिंताजनक हो चुके हैं। पहाड़ों में बेहिसाब बारूद ठूंसकर किए जा रहे विस्फोटों से आस-पास की बस्तियों तक पत्थरों की बौछार होने से आए दिन लोगों के लहूलुहान होने के साथ ही उनकी घर-गृहस्थी भी तबाह होती है। पहाड़ पट्टाधारकों की पुलिस से कथित मिलीभगत और सदैव सत्ता के निकट रहने का उनका हुनर लोगों को चुप्पी साधने को मजबूर करता है। साधन संपन्न नीरज की मौत के बाद तो आम लोगों का विरोध करने का रहा-सहा साहस भी जवाब दे गया है।

महोबा में जहां कभी पहाड़ होते थे वहां अब खुदाई ने खाई बना दी हैमहोबा में जहां कभी पहाड़ होते थे वहां अब खुदाई ने खाई बना दी हैहालांकि नीरज की मौत के मामले में सामने आई सीबीआई जांच से अचानक उम्मीदों की रोशनी फूटी है। सीबीआई के पुलिस अधीक्षक एस. के. खरे के नेतृत्व में जांच दल ने पिछले महीने हमीरपुर में नीरज की मौत का घटनास्थल जांचने के बाद जिस तरह से घटना की वजह बने महोबा जिले के पहरा गांव स्थित पहाड़ का मौका मुआयना किया उससे इन उम्मीदों को और बल मिला है। क्या है नीरज की मौत का मामला? इसके तार कबरई-महोबा के साथ ही समूचे बुंदेलखंड के पहाड़ों में मनमानी ब्लास्टिंग की समस्या से कैसे जुड़ते हैं? मनमानी पर आमादा पहाड़ पट्टाधारक क्या इतने प्रभावशाली हैं कि सत्ता शिखर पर बैठे लोग उनके गैरकानूनी कृत्यों पर पर्दा डालने के लिए कसरत करते नहीं अघाते? यह सब समझने के लिए मृतक नीरज के पिता रविकांत शिवहरे की उच्च न्यायालय इलाहाबाद से की गई उस फरियाद पर गौर करना जरूरी है जिसकी सच्चाई जांचने में इन दिनों सीबीआई जुटी है। प्रभावशाली कैबिनेट मंत्री नसीमुद्दीन की ओर भी उंगली उठने से प्रदेश के सत्ता प्रतिष्ठान के भीतर भी खासी हलचल महसूस हो रही है। हालांकि इस बाबत खुद मंत्री की ओर से ही नहीं, पुलिस ने भी जोरदार खंडन करके यह जता दिया है कि मंत्री का नाम नाहक घसीटा जा रहा है।

दोहन से विकृत हुई धरादोहन से विकृत हुई धराहमीरपुर जिले के सुमेरपुर कस्बा निवासी नीरज ने पिछले साल महोबा जिले के पहरा गांव में द्वारकाधीश ग्रेनाइट नाम से स्टोर क्रशर लगाया था। क्रशर से लगे पहाड़ का मौदहा के वसीम खान ने पट्टा करा रखा है। मनमानी ब्लास्टिंग के चलन से यह पहाड़ भी अछूता नहीं है। ब्लास्टिंग से आस-पास होने वाली पत्थरों की बौछार से क्रशर प्लांट में भी आए दिन अफरा-तफरी मचने लगी। इसे लेकर स्टोन क्रशर मालिक नीरज और पट्टाधारक वसीम खान के बीच विवाद हो गया। बात बढ़ती रही और माहौल में गर्मी महसूस होती रही। माना जाता है कि इस दौरान 11 अगस्त, 2010 को नीरज ने पहाड़ में ब्लास्टिंग से क्रशर में पत्थर गिरने को लेकर पट्टाधारक वसीम समेत चार लोगों के खिलाफ महोबा पुलिस व प्रशासन के समक्ष शिकायत दर्ज कराई थी। इसके तीन दिन बाद 14 अगस्त को पहरा से लौटते समय नीरज का शव कानपुर-सागर नेशनल हाईवे पर उसकी सफारी गाड़ी में पाया गया। मौत गोली लगने से हुई थी। मृतक के पिता रविकांत ने सुमेरपुर थाने में तहरीर देकर नीरज की हत्या का आरोप लगाते हुए पहाड़ पट्टाधारक वसीम खान समेत भरुआ निवासी मौलाना खान, महेश भदौरिया और वीरेंद्र भदौरिया को हत्याभियुक्त नामित कराना चाहा लेकिन थाना पुलिस ने मामले को आत्महत्या बताकर फाइल बंद कर दी।

पहाड़ों को रात-दिन चबाने में जुटे स्टोन क्रशरपहाड़ों को रात-दिन चबाने में जुटे स्टोन क्रशररविकांत ने मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट, हमीरपुर के न्यायालय में प्रार्थना पत्र देकर कहा कि एक कैबिनेट मंत्री की हनक के चलते पुलिस नामजद अभियुक्तों के खिलाफ हत्या का मुकदमा नहीं दर्ज कर रही। मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट ने पीड़ित की एफआईआर दर्ज करने का आदेश दिया। न्यायालय के आदेश पर सुमेरपुर थाना पुलिस ने वसीम चारों लोगों के खिलाफ एफआईआर तो दर्ज कर ली लेकिन थाने के तत्कालीन एसओ ने घटना की तफ्तीश में मृतक के पिता को बेटे की आत्महत्या का आरोपी ठहरा दिया। इससे हैरान-परेशान रविकांत ने उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया। हाईकोर्ट ने सीबीआई जांच के आदेश कर दिए। बीते 14 जून को लखनऊ लौटने से पहले सीबीआई टीम ने वादी रविकांत समेत चारों आरोपियों के अलग-अलग बयान दर्ज किए। सीबीआई ने जरूरी दस्तावेज सुमेरपुर के थानाध्यक्ष शरीफ खां तथा अन्य जगहों से अपने कब्जे में ले लिए। सीबीआई मामले की जड़ में गौर करने के साथ बड़ी तादाद में लोगों की परेशानी का सबब बनी पहाड़ों में मनमानी ब्लास्टिंग की समस्या का कितना संज्ञान लेती है? बुंदेलखंड की खनिज संपदा हर वर्ष प्रदेश सरकार के खजाने में अरबों रुपए पहुंचा रही है। पत्थर, मोरंग आदि के 1,311 खनन क्षेत्रों में 1,025 पट्टे स्वीकृत कर रॉयल्टी के रूप में सरकार को हर वर्ष लगभग 450 करोड़ रुपए का राजस्व प्राप्त हो रहा है लेकिन बदले में बुंदेलखंड को बदहाली मिल रही है। ओवरलोड ट्रकों से सड़कें ध्वस्त हो रही हैं। पर्यावरण प्रदूषण से जान और जमीन, दोनों पर खतरा मंडरा रहा है। महोबा जिले का विकट नजारा है। यहां सर्वाधिक 327 पट्टे स्वीकृत किए गए हैं। बेहिसाब बारूद ठूंसकर उड़ाई जा रही चट्टानों से दूर तक गिरते पत्थर लोगों के लिए जानलेवा सिद्ध हो रहे हैं।

पत्थरों के डर से दुबके बच्चे और चिंतित परिवारपत्थरों के डर से दुबके बच्चे और चिंतित परिवारकबरई-महोबा इलाके में मासूम उत्तम की मौत को लोग अभी तक नहीं भूले हैं। पचपहरा पहाड़ के पास मोचीपुरा बस्ती में तो दहशत का आलम है। बीते सितंबर में पहाड़ में धमाके के साथ पत्थरों की बौछार ने छोटेलाल प्रजापति के घर का चिराग बुझा दिया। पत्थरों से लहूलुहान हुए उसके मासूम बेटे उत्तम ने सभी के सामने तड़पते हुए दम तोड़ दिया था। उत्तम के चाचा बिहारीलाल का कहना है, 'जौन बच्चन का पेट भरैं खातिर पथरा त्वारत (तोड़ते) जिंदगी खपी जात ही, वोई पत्थर उनके लाल के काल बन गे। कौनो ऐसन इंतजाम कीन जाए कि पथरन के बौछार गांव-घरन तक न पहुंचै। नहीं ता यही तान अकाल मौतें होत रइहैं।' मोचीपुरा के ही गणेश और पप्पू अनुरागी कहते हैं, 'पहाड़ों में ब्लास्टिंग का कोई समय निर्धारित नहीं है। अचानक घरों तक पत्थर बरसने लगते हैं। जान बचानी मुश्किल होती है। बच्चों समेत सभी का गुजारा भगवान भरोसे हो रहा है।' पहाड़ पर विस्फोटक धमाकों से घरों से लेकर प्राथमिक विद्यालय के भवन तक में दरारें पड़ गई हैं। अरबाज खान, दीपक कुमार, पुष्पेंद्र और कपिल आदि छात्र कहते हैं, 'धमाकों से डर लगता है। स्कूल का भवन ढह सकता है। हर कोई वहां पढ़ने-पढ़ाने से कतराता है।' दिलचस्प बात यह है कि किसी की मौत होने पर प्रशासन खनन बंद कराने की कार्रवाई करता है लेकिन यह महज दिखावा है। उत्तम की मौत के बाद भी यही तथ्य सामने आया।

पत्थर तोड़ने वाली एक इकाई से उठती धूल मीलों दूर से दिख जाती हैपत्थर तोड़ने वाली एक इकाई से उठती धूल मीलों दूर से दिख जाती हैमोचीपुरा की तरह दर्जनों अन्य बस्तियों की भी ऐसी ही दास्तान है। इन्हें देखते हुए कुछ समय पहले खदानें बंद कराने के उच्च न्यायालय के आदेश पर अमल को लेकर भी महोबा प्रशासन की भूमिका पर भी सवालिया निशान लगे हैं। पीड़ितों को समस्या से राहत दिलाने के लिए संघर्ष कर रहे 'बरगद' (बुंदेलखंड रिसर्च ग्रुप फॉर डेवलपमेंट) के संयोजक अवधेश गौतम ने 'नईदुनिया' को बताया, 'महोबा के मंगल सिंह द्वारा दायर जनहित याचिका पर खदानें बंद कराने के उच्च न्यायालय के स्पष्ट निर्देशों के बावजूद महोबा जिला प्रशासन और उत्तर प्रदेश का खनन विभाग कान में तेल डाले बैठा रहा।' सामाजिक कार्यकर्ता एवं प्रवास संगठन के कर्ताधर्ता आशीष सागर ने 'नईदुनिया' से कहा, 'पहाड़ पट्टाधारकों में ज्यादातर स्टोन क्रशर उद्योग का हिस्सा हैं। इनकी पहल पर कबरई की स्टोन क्रशर एसोसिएशन पत्थर खदानें बंद होते ही कच्चे माल के अभाव का रोना शुरू कर देती है। मजदूरों के काम छिन जाने का हल्ला मचाया जाता है।' पत्थर खनन और क्रशर उद्योग से जुड़े लोग बताते हैं कि प्रधानमंत्री स्वर्ण चतुर्भुज सड़क योजना के तहत उत्तर प्रदेश समेत देश के विभिन्न राज्यों में सैकड़ों किलोमीटर लंबी सड़कें बनाने का ठेका पाई सोमदत्त बिल्डर्स, आइकॉन लिमिटेड और डीपीसीएल जैसी कंपनियों ने अत्याधुनिक एवं भारी-भरकम क्रशर प्लांट लगाकर जहां बड़ी तादाद में श्रमिकों को बेरोजगार कर दिया है, वहीं कच्चा माल जुटाने के लिए पट्टाधारकों से किराए पर लिए गए पहाड़ों को सैकड़ों फिट गहरे तालाबों में तब्दील करने में जुटे हैं। लाखों रुपए माहवारी में किराए पर लिए गए पहाड़ों में छह से आठ इंच व्यास वाले 20-20 फुट गहराई तक होल करके ब्लास्टिंग की जा रही है। विस्फोट की भाषा में इसे 'हैवी ड्यूटी डबल जेड ब्लास्टिंग' कहा जाता है। इनकी देखा-देखी अन्य ने भी यही तरीका अख्तियार कर लिया है। इस ब्लास्टिंग से एक ही बार में पहाड़ों से उखड़ने वाले सैकड़ों ट्रक पत्थर आस-पास की बस्तियों में कहर बरपा रहे हैं। ब्लास्टिंग की व्यापकता का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि पहाड़ों में जितना खनन कई माह में हजारों श्रमिक मिलकर करते थे, उतना अब केवल दो-तीन दिनों में सिमट जाता है। इसके चलते पहाड़ों का तेजी से सफाया हो रहा है।

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