ज्ञात हो कि अब बाजार में उत्तराखण्ड के पहाड़ी क्षेत्र का मण्डुवा उतर चुका है। भले यह रफ्तार नहीं पकड़ रहा हो पर जो लोग इस स्वरोजगार के कार्य से पुनः जुड़े हैं उनके पैर शहर में आने के लिये एक बारगी मोटे हो रहे हैं। यहाँ हम पौड़ी जनपद में हुए मण्डुवे की खेती को लेकर सरकारी प्रयास को रेखांकित कर रहे हैं। जिससे सीधा काश्तकारों को ही फायदा हुआ है। कोई राजनीतिक मुनाफाबाजी का मामला ही नहीं है। इसलिये तो वे पौड़ीवासी जो इस दौरान मण्डुवे की खेती से जुड़े हैं उनके हिस्से का पलायन रुक सा गया है।
उल्लेखनीय यह है कि पौड़ी जनपद के थलीसैण ब्लॉक में कृषि विभाग ने 21546 हेक्टेयर क्षेत्रफल में स्थानीय किसानों को नैतिक व आर्थिक सहयोग देकर मण्डुवा की खेती करवाई। किसानों को यह कार्य इसलिये सहज हो गया था कि उनकी मण्डुवे की खेती करने की पुरानी आदत थी। सो वर्ष 2016-17 में लक्ष्य के अनुसार 29750 क्विंटल उत्पादन भी हो गया।
कृषि विभाग ने भी यह कार्य थोड़ा सा तकनीक कायदे-कानून से सम्पादित किये। इस हेतु सबसे पहले 430 क्लस्टर बनाए गए और लगभग 22 हजार के कुल जोत में मण्डुवे की खेती करवाई गई। कारवाँ बढ़ता गया और बताया जाता है कि इस तरह के पहले ही प्रयास से 20 हजार किसानों को मण्डुवे की खेती का लाभांश पहुँचा। यही नहीं प्रति क्विंटल पर तीन सौ रुपए का बोनस भी किसानों को मिला।
बीज बचाओ आन्दोलन से जुड़े विजय जड़धारी का कहना है कि जब गन्ना के किसानों का बोनस मिलता है तो पहाड़ पर खेती करने वाले किसानों को क्यों नहीं। उनका सुझाव है कि पहाड़ी किसानों को पहाड़ी उत्पादों पर समर्थन मूल्य भी मिलना चाहिए ताकि लोगों की चाहत फिर से पहाड़ी उत्पादों को पैदा करने में जागृत हो उठे।
काबिले गौर हो कि कृषि विभाग की पहल और किसानों की मेहनत रंग लाएगी तो आने वाले दिनों में पहाड़ों में मण्डुवा की फसल न केवल आर्थिकी का जरिया बनेगी बल्कि किसानों को प्रति क्विंटल के हिसाब से बोनस भी मिलेगा। वर्ष 2016-17 में मण्डुवे पर बोनस की शुरुआत हो गई है। किसानों को तीन सौ रुपए के हिसाब से बोनस मिला है। अगले फसल चक्र के लिये बोनस दिये जाने को लेकर शासन स्तर पर मंथन चल रहा है।
यदि सब कुछ ठीक-ठाक रहा तो पहाड़ में रौनक लौटने में देरी नहीं लगेगी। स्थानीय किसानों का कहना है कि सरकार की ओर से पहाड़ी क्षेत्रों में शुरू की गई मण्डुवा उगाने की मुहिम आने वाले समय में कारगर साबित हो सकती है। खासकर उन क्षेत्रों में जहाँ लोगों ने जंगली जानवरों से परेशान होकर या फिर रोजगार की तलाश में गाँवों से निकलकर खेतों को बंजर छोड़ दिया है। वहाँ अब मण्डुवा की फसल वरदान साबित हो सकती है।
इधर कृषि विभाग की वर्ष 2016-17 की कार्ययोजना पर गौर करें तो पिछले वर्ष तीन सौ रुपए प्रति क्विंटल के हिसाब से किसानों को बोनस देकर इसका लाभ भी मिला। इस बार हालांकि मण्डुवे की फसल पर कितना बोनस मिलना है, यह शासन स्तर पर तय होना बाकि है।
चूँकि वर्ष 2017-18 हेतु पौड़ी जनपद में कृषि विभाग ने मण्डुवा का अत्यधिक उत्पादन हो के लिये कमर कस दी है। अधिक-से-अधिक किसान मण्डुवा उगाने के लिये आगे आये, इसके लिये जनपद के सभी पन्द्रह ब्लॉक, न्याय पंचायतों में अपने सहायक कृषि अधिकारियों के माध्यम से गोष्ठी, जागरुकता बैठकें आयोजित करने के निर्देश जिलाधिकारी द्वारा दिये गए हैं। पिछले वर्ष की अपेक्षा अगले वर्ष सर्वाधिक क्लस्टरों का गठन होना है ताकि किसानों को दिये जाने वाली सरकारी मदद सरलता से पहुँच सके।
मण्डुवे पर मिला 300 रुपए का बोनस
पौड़ी जिले के कृषि विभाग के अनुसार वर्ष 2016-17 में बेहतर मण्डुवा उगाने पर थलीसैंण ब्लॉक के सुनार गाँव की दर्शनी देवी को बोनस के रूप में 364 रुपए, इसी गाँव की अषाड़ी देवी को भी 364 रुपए, खिर्सू ब्लॉक के बुडेसू गाँव के रविंद्र सिंह को 280 रुपए, द्वारीखाल ब्लॉक के जवाड गाँव की पुष्पा देवी को 560 रुपए तथा यमकेश्वर ब्लॉक के पटना मल्ला गाँव की अनिता देवी को 112 रुपए मण्डुवा उगाने के एवज में बोनस दिया गया है।
मुख्य कृषि अधिकारी पौड़ी गढ़वाल डीएस राणा का कहना है कि गत वर्ष मण्डुवा उगाने पर प्रति क्विंटल तीन सौ रुपए का बोनस किसानों को दिया गया है। इस बार अभी शासन स्तर पर इस सम्बन्ध में दिशा-निर्देश प्राप्त होने बाकी हैं। जैसे ही शासन से आदेश मिलेंगे, सहायक कृषि अधिकारियों के अलावा ब्लॉक स्तर पर भी बैठकें आयोजित कर किसानों को इसकी जानकारी मुहैया करा दी जाएगी।
वर्ष 2017-18 में मण्डुवे की खेती को लेकर एक विशेष कार्य योजना शासन को भेजी गई है जैसे ही शासन से आदेश मिलेंगे, किसानों को इसकी जानकारी उपलब्ध करवाई जाएगी। उन्होंने बताया कि वर्ष 2017-18 के लिये मण्डुवा उत्पादन का लक्ष्य 20 हजार से बढ़ाकर 22 हजार हेक्टेयर क्षेत्रफल रखा गया है। इसी तरह 430 क्लस्टरों में बढ़ोत्तरी करके इनकी संख्या भी 450 करने का लक्ष्य है। ऐसा सोचा जा रहा है कि जनपद में कृषि की कुल 84 हजार जोत को मण्डुवे की खेती के साथ जोड़ा जाये।
अहम सवाल भी है
उत्तराखण्ड राज्य में इन दिनों पलायन को लेकर हो हल्ला हो रहा है। सरकार के माथे पर लगातार सवाल खड़े किये जा रहे हैं कि पलायन कब रुकेगा वगैरह। पलायन एक स्वाभाविक समस्या है। जवाब है कि पलायन को रोकने के लिये पहाड़ों में लोगों को रोकना पड़ेगा। स्पष्ट है कि पहाड़ में एक तरफ रोजगार के साधन उपलब्ध करवाने पड़ेंगे और दूसरी तरफ शिक्षा स्वास्थ को लेकर विशेष कार्य करने होंगे। यह सब होगा। कब? मगर एक काम निर्वतमान हरीश रावत की सरकार करके गई। भले इसके राजनीतिक उत्तर ढूँढे जा रहे हों। पर जनाब पहाड़ में पहाड़ी उत्पादों को ही बाजार में उतारना होगा। कृषि कार्य से जुड़े जानकारों का मानना है कि पहाड़ में लोग रुक गए तो एक तरफ पहाड़ों की हरियाली बची रहेगी।
लोग अपनी आदत अनुसार जल, जंगल, जमीन के संरक्षण में फिर से दिखाई देंगे। वरना प्राकृतिक संसाधनों के दोहन से ही विकास की इबारत लिखी जाएगी। जैसे की अधिकांश शहरवासी सोचते हैं। ऐसा पहाड़ के लोगों का कहना है।
प्रतिशील किसान व उद्यान पण्डित कुन्दन सिंह पंवार का कहना है कि मौजूदा समय में उत्तराखण्ड के पौड़ी जनपद ने वह करके दिखाया जो पलायन को रोक सकता है। यदि पौड़ी में ऐसा होता हैं जहाँ पलायन की भयंकर बीमारी चल रही है, वहीं इस पलायन नाम की बीमारी के इलाज का तोड़ निकाला गया है। तोड़ भी ऐसा जो पहाड़ में ही सम्भव है। फिर देर किस बात की। पौड़ीवासियों ने बना डाला मण्डुवे को रोजगार का जरिया। वह भी स्थानीय प्रशासन के सहयोग से। उन्होंने कहा कि उत्तराखण्ड में बड़ी-बड़ी परियोजनाएँ विकास को हर आदमी तक नहीं पहुँचा सकती बनिस्पत स्थानीय उत्पादों के।
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Post By: RuralWater