मिट्टी में मिली मिट्टी पानी में मिला पानी

जल ही जीवन हैआंखों में पड़े छाले, छालों से बहा पानी।
इस दौर के सहरा में ढूंढ़े न मिला पानी।

दुनिया ने कसौटी पर दिन-रात कसा पानी।
बनवास से लौटा तो शोलों पे चला पानी।

शोलों से गुजर कर भी सूली पे टंगा पानी।
बनवास से आकर फिर बनवास गया पानी।

गुजरे हुए पुरखों को जिसने भी दिया पानी।
उस शख्स के हाथों का मश्कूर हुआ पानी।

पर्वत की जुबां फूटी, इक शोर उठा पानी।
मंजर पे बना मंजर, पानी पे गिरा पानी।

इस तरह फटे बादल, धरती ने भरा पानी।
बरखा ने हदें तोड़ीं, पानी पे चढ़ा पानी।

सागर से बगावत की जब जिद पे अड़ा पानी।
उस वक्त सुनामी के पैकर में ढला पानी।

लोगों ने कभी ऐसा देखा न सुना पानी।
पानी में बही बस्ती, बस्ती में बहा पानी।

सागर की जगह घेरी पत्थर के मकानों ने,
बारिश में नहीं अपने आपे में रहा पानी।

सैलाब ने बस्ती की सूरत ही बदल डाली,
रुकने को किसी घर में पल भर न रुका पानी।

दरिया से जुदा होकर बाजार में आ पहुंचा,
बादल जो न बन पाया, बोतल में बिका पानी।

मंदिर हो कि मस्जिद हो, गिरजा हो कि गुरुद्वारा,
हर रंग में रहे जब तक लगता है भला पानी।

बंदे से खुदा बनते देखा है उन्हें हमने,
वे लोग जो करते हैं पानी से जुदा पानी।

लेने लगी फूलों से अब काम बमों का भी,
इस दर्जा सियासत की आंखों का मरा पानी।

तहजीब की आंखों से दिन-रात लहू छलका,
पत्थर की हवेली में जख्मी जो हुआ पानी।

देखा है जिन आंखों ने जलते हुए जंगल को,
रहता है उन आंखों में हर वक्त हरा पानी।

ऐ दश्ते-जुनू तेरे सूखे हुए कांटों पर,
हमन तो लहू छिड़का, दुनिया ने कहा पानी।

बेआब न थे इतने हम दौरे-गुलामी में,
बतलाए कोई जोषी किस देश गया पानी।

संसार में पानी से महरूम रहें प्यासे,
कमजर्फों के कब्जे में हर युग में रहा पानी।

हर सिम्त मुकाबिल थीं बस धूप की तलवारें,
पर आखिरी कतरे तक सहरा में लड़ा पानी।

हर युग में खामोशी से सुली पे चढ़े हंसकर
अल्लाह के बंदों का देता है पता पानी।

देखा न कोई प्यासा फिर इब्ने-अली जैसा,
प्यास उसको मिली ऐसी कुर्बान गया पानी।

जब प्यास अंधेरों के घर बैठ गयी जाकर,
जलते हैं दिये जैसे सहरा में जला पानी।

आ जाए है पानी पे चलने का हुनर जिसको,
मूसा की तरह उसको देता है जगा पानी।

दुनिया में नहीं मुमकिन पानी के बिना जीना,
दुनिया के लिए जैसे हो मां की दुआ पानी।

पानी न मिला जिस दिन, रोयेगी लहू दुनिया,
हर सिम्त से उठेगी बस, एक सदा पानी।

अब जंग अगर होगी, पानी के लिए होगी,
हर शख्स से मांगेगा अब खूनबहा पानी।

उस पार हर इस युग में महीवाल का डेरा था,
कच्चा था घड़ा जिसका काटे न कटा पानी।

हर लफ्ज का मानी से रिश्ता है बहुत गहरा,
हमने तो लिखा बादल और उसने पढ़ा पानी।

दस्तक दी दरे-दिल पर बरसात के मौसम ने,
दो शख्स मिले ऐसे जैसे कि हवा-पानी।

अंगनाई से तन-मन तक, कुछ भी न बचा कोरा,
इस बार के सावन में यूं जमके गिरा पानी।

हम जब भी मिले उससे हर बार हुए ताजा,
बहते हुए दरिया में हर पल है नया पानी।

वीरान हम इतने थे, जंगल न कोई होगा,
इक शाम पहनने को यादों ने बुना पानी।

घर छोड़के निकलें तो संसार के काम आयें,
कब धूप को पहने बिन बनता है घटा पानी।

लोगों को महाभारत देता है यही इब्रत,
जो हक पे चला उसका दुनिया में रहा पानी।

कद्रों के लिए जीना, कद्रों के लिए मरना,
रखता है वकार अपना सहरा में सदा पानी।

इक मोम के चोले में धागे का सफर दुनिया,
अपने ही गले लगकर रोने की सजा पानी।

जन्नत थी मगर हमको झुककर न उठानी थी,
कांधों पे रहा चेहरा, चेहरे पे रहा पानी।

इक हूक-सी उट्ठे है धरती के कलेजे से,
बेटे-सा हुआ जब भी धरती से जुदा पानी।

जिस दिन मैं गुजर जाऊं दरिया में बहा देना,
मिट्टी की पसंदीदा पोशाक सदा पानी।

हर एक सिकंदर का अंजाम यही देखा,
मिट्टी में मिली मिट्टी, पानी में मिला पानी।

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