मिशन रिस्पना से मिशन इलेक्शन तक

रिस्पना नदी
रिस्पना नदी

रिस्पना नदीमिशन रिस्पना से ऋषिपर्णा या मिशन इलेक्शन, एक साधारण राजनीतिक समझ के अनुसार इनमें से किसे प्राथमिकता दी जायेगी। जाहिर है मिशन इलेक्शन को। जुलाई 24 को मलिन बस्तियों के पक्ष में “उत्तराखण्ड अर्बन लोकल बॉडीज एंड ऑथोरिटीज स्पेशल प्रोविजन-2018” लाकर उत्तराखण्ड सरकार ने इस पर मुहर लगा दी है। यह इस अधिनियम का नाम है जो रिस्पना नदी के दोनों किनारों पर बने कच्चे-पक्के मकानों को जमींदोज होने से बचाने के लिए लाया गया है। यह तीन साल के लिए प्रभावी रहेगा। मुद्दा यह है कि क्या सरकार तीन सालों में इस समस्या का हल ढूंढ़ पायेगी? क्या नदी को अतिक्रमण से मुक्त किया जा सकेगा?

क्यों पड़ी जरूरत

दरअसल 1910 में तत्कालीन आईसीएस एच जी वॉलटन द्वारा इस शहर पर लिखे गए प्रथम गजेटियर में देहरादून का विवरण गंगा और जमुना नदीतंत्र के क्षेत्र में स्थित एक पठार के रूप में किया गया है जिसके पूर्वी किनारे पर रिस्पना राव नदी और पश्चिमी किनारे पर बिन्दाल नदी बहती थी। उस समय ये दोनों ही नदियां सदानीरा थीं। इसी गजेटियर के उद्धरण को पेश करते हुए 18 जून को उत्तराखण्ड उच्च न्यायलय ने रिस्पना नदी के दोनों ही किनारों पर बसी, बसावटों को खाली कराने का आदेश जारी किया था। इसके लिए न्यायालय ने सरकार को तीन महीने का समय दिया था। उच्च न्यायालय का यह आदेश राजधानी की सड़कों को अतिक्रमण मुक्त करने के आदेश का ही एक हिस्सा था।

पूर्व में चले अतिक्रमण अभियान

उच्च न्यायालय के इस आदेश की पृष्ठभूमि पेशे से पत्रकार मनमोहन लखेड़ा द्वारा 2013 में न्यायालय को भेजे गए पत्र से जुड़ी है। लखेड़ा का यह पत्र में देहरादून शहर की सड़कों पर अतिक्रमण के कारण पैदल यात्रियों को होने वाली परेशानियों पर केन्द्रित था।पत्र में उठाये गये मुद्दों को आमजनों से जुड़ा मानते हुए उच्च न्यायालय ने इसे जनहित याचिका में तब्दील कर दिया था। इसके बाद न्यायालय ने 2013 और 2014 में शहर को अतिक्रमण मुक्त करने सम्बन्धी आदेश जारी किये। प्रशासन द्वारा इस सम्बन्ध में किये गए प्रयास से असंतुष्ट न्यायालय ने 2014 देहरादून जिला न्यायालय के बार एसोसिएशन के तत्कालीन अध्यक्ष राजीव शर्मा को कमिश्नर नियुक्त करते हुए शहर के अतिक्रमण के सम्बन्ध में एक विस्तृत रिपोर्ट तलब की। राजीव शर्मा की रिपोर्ट को आधार बनाते हुए उच्च न्यायालय ने देहरादून को अतिक्रमण मुक्त कराने सम्बन्धी कड़े आदेश जारी किये।

बस्तियों को रेग्युलराइज करने की थी तैयारी

सरकार ने कोर्ट के आदेश का पालन करते हुये शहर में बड़े पैमाने पर अतिक्रमण अभियान चलाया लेकिन बारी जब रिस्पना के किनारों पर बने मकानों की आयी तो सहसा उसे अध्यादेश का ख्याल आ गया। इस अध्यादेश के माध्यम से सरकार ने तीन सालों के लिए राज्य के सभी मलिन बस्तियों को राहत दे दी है। यानि सरकार तीन सालों के भीतर मलिन बस्तियों का पुनर्विस्थापन करेगी। पर सवाल यह है कि क्या सरकार ऐसा कर पायेगी? यह सन्देह का विषय है क्योंकि यही वह सरकार है जो उच्च न्यायालय के आदेश के पहले तक पिछली सरकार द्वारा लाए गये ‘लैंड ओनरशिप एक्ट 2016” के उपबंधों के अनुसार काम कर रही थी। इस एक्ट के अनुसार राज्य के सभी मलिन बस्तियों के वाशिंदों को उनके मकानों पर मालिकाना हक़ दिया जाना था। इस एक्ट की पृष्ठभूमि पिछली राज्य सरकार द्वारा “स्लम एरियाज डेवलपमेंट कमीशन” का गठन कर तैयार की गयी थी। इसका गठन 2015 में किया गया था। वर्त्तमान सरकार ने इसमें केवल एक बदलाव किया था जिसके तहत बस्तियों को रेग्युलराइज करने में आने वाली परेशानियों के आधार पर उन्हें तीन भागों में बांटा था। पहला, वैसी बस्तियां जिन्हें आसानी से रेग्युलराइज किया जा सके। दूसरा, जिन्हें रेग्युलराइज करने में थोड़ी परेशानी हो। तीसरा, जिन्हें रेग्युलराइज किया जाना काफी मुश्किल हो। इतना ही नहीं नदियों के किनारों पर बड़ी- बड़ी इमारतें भी बना दी गयी हैं जिन्हें “मसूरी देहरादून विकास प्राधिकरण” द्वारा लागू “कंपाउंड” की व्यवस्था की तहत संरक्षण भी प्रदान किया गया है। कंपाउंड की इस व्यवस्था के अंतर्गत मसूरी देहरादून विकास प्राधिकरण कुछ पैसों के एवज में निर्माणकर्ता को उसके द्वारा बनाये गए भवन के इस्तेमाल का अधिकार दे सकता था। हालाँकि इस व्यवस्था पर वर्तमान में प्रतिबंध लगा दिया गया है और इससे सम्बंधित केस फिलहाल सर्वोच्च न्यायालय में विचाराधीन है।

सर्वोच्च न्यायालय का आदेश

जसपाल सिंह बनाम पंजाब से जुड़े मुद्दे में 28 जनवरी 2011 को सर्वोच्च न्यायालय की दो सदस्यीय पीठ जिसमें न्यायमूर्ति मार्कण्डेय काटजू और न्यायमूर्ति ज्ञान सुधा मिश्रा शामिल थे, पीठ ने निर्णय दिया था कि किसी भी पब्लिक प्रॉपर्टी को सरकार को किसी को भी लीज पर देने का अधिकार नहीं है। कोर्ट ने सभी राज्यों के मुख्य सचिवों को स्टेटस रिपोर्ट फाइल करने का भी आदेश दिया था। इतना ही नहीं कोर्ट ने यह भी उद्धृत किया था कि राज्य सरकारों ने पूर्व में सरकारी जमीनों का खूब दुरुपयोग किया है। कोर्ट ने यह भी कहा था कि सरकार भूमिहीनों, अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लोगों को केवल विशेष परिस्थितियों में जमीन दे सकती है।

जल संकट है गंभीर मुद्दा

कभी शहर को अपने जल से पोषित करने वाली रिस्पना और बिंदाल नदियां अब नालों में तब्दील हो चुकी हैं। इन नदियों का किनारा ही शहर की अधिकांश मलिन बस्तियों (जिनकी संख्या 129 है) की शरणस्थली हैं। इन बस्तियों से निकलने वाला मल-जल बिना किसी रोक-टोक इन नदियों में बहाया जाता है। इतना ही नहीं बरसात के दिनों में नदियों के किनारे जलमग्न हो जाते हैं। नदियों में पानी का बहाव इतना तेज होता है कि भविष्य में बड़ी तबाही की संभावना को भी नहीं नकारा जा सकता है। क्या सरकार की यह जिम्मेवारी नहीं बनती कि लोगों को स्वच्छ जल मुहैय्या कराये? देहरादून शहर की अधिकांश जनता के लिए पानी का मुख्य स्रोत सरकार द्वारा पाइप के माध्यम से वितरित किया जाने वाला जल है। लेकिन आलम यह है कि शहर में ऐसे काफी इलाके हैं जिनमें कई दिनों तक पानी नहीं आता। लोगों को पानी के लिए दर-बदर की ठोकरें खानी पड़ती हैं। साफ है कि शहर की बढ़ती आबादी के लिए पानी का आवश्यकता के अनुसार उपलब्ध न होना एक बड़ी समस्या है। इस समस्या को शहर के गिरते भूजल के स्तर ने और भी विकराल बना दिया है। इन दोनों नदियों का पुनर्जीवन लोगों के साथ सरकार को भी इस समस्या से उबार सकता है लेकिन यह तभी संभव होगा जब सरकार इसके लिए सार्थक प्रयास करे।

क्या होगा मिशन रिस्पना का

सरकार द्वारा मलिन बस्तियों के लिए लाया गया यह अध्यादेश उसी के द्वारा नदियों को पुनर्जीवित किये जाने के प्रयास में बड़ा रोड़ा साबित होगा। राज्य के मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने रिस्पना नदी क्षेत्र में 22 जुलाई को वृक्षारोपण अभियान की शुरुआत करते हुए इस नदी को टेम्स जैसा बनाने का संकल्प लिया था। उन्होंने लोगों द्वारा अपनी तुलना भगीरथ से की जाने की बात की चर्चा करते हुए अभियान से जुड़े लोगों के भागीरथ प्रयास को भी सराहा था। लेकिन क्या ऐसा तब तक किया जाना संभव है जब तक नदी क्षेत्र को पूरी तरह से प्रदूषण मुक्त नहीं किया जाये? नदी क्षेत्र के अतिक्रमण को समाप्त न किया जाये? साफ है कि रिस्पना को सरकारी स्तर पर पुनर्जीवित किया जाने वाला प्रयास महज एक दिखावा लगता है।

 

 

 

TAGS

uttarakhand urban local bodies and authorities special provision act-2018,ordinance, rispana to rishiparna, uttarakhand high court order, Manmohan lakhera, rajiv sharma,rampant encroachment,compound, mdda, land ownership act-2016, slum areas development commission.

 

 

 

Path Alias

/articles/maisana-raisapanaa-sae-maisana-ilaekasana-taka

Post By: editorial
×