मिशन फॉर क्लीन गंगा-2020 ब्यूरोक्रेट्सों की चोंचलेबाजी और चालबाजी है : आचार्य जितेंद्र

गंगा महासभा के राष्ट्रीय महामंत्री और लड़ाकू तेवर के धनी आचार्य जितेंद्र गंगा के विभिन्न सवालों पर लगातार सक्रिय और संघर्षरत रही है। गंगा एक्शन प्लान में खर्च होने वाले 15 हजार करोड़ रुपए के बंदरबांट को लेकर ब्यूरोक्रेट्स और एनजीओ के खेल से वे काफी चिंतित हैं। प्रस्तुत है आचार्य जितेंद्र से निराला की बातचीत।

गंगा की अविरलता और निर्मलता में कौन अहम मसला है?
अविरलता, इसे छोड़ निर्मल गंगा की कामना नहीं की जा सकती। सिर्फ निर्मलता के नाम का जाप वे लोग ज्यादा करते रहते हैं,जिनकी रुचि इसके नाम पर बजट बढ़ाने-बढ़वाने का खेल करना होता है।

तो सीवर, औद्योगिक कचरों आदि को लेकर ज्यादा चिंतित होने की जरूरत नहीं!
ऐसा मैं नहीं कह रहा। लेकिन आप देखिए कि निर्मल गंगा के लिए जो जरूरी है, वह तो होता नहीं अलबत्ता सीवर ट्रीटमेंट और गंगा सफाई आदि के नाम पर घोषणाओं-योजनाओं का रेला लग जाता है। अब आप देखिए कि कानपुर में 402 चमड़ा फैक्ट्रियों को बंद करने का आदेश इलाहाबाद हाईकोर्ट ने दे रखा है लेकिन कहां एक भी बंद करवाया जा सका। निर्मल गंगा के लिए ही तो गंगा एक्शन प्लान भी चला, उसका हश्र देखा जा चुका है।

निर्मल गंगा के लिए ही क्लीन गंगा मिशन 2020 भी शुरू होनेवाला है!
यह तो सरासर कुछ आईएएस अधिकारियों का चोंचलेबाजी और चालबाजी है। इस मिशन के लिए विश्व बैंक से सात हजार करोड़ रुपये मिलने हैं और भारत सरकार की ओर से आठ हजार करोड़ रुपये मिलने हैं। अब यह पैसे एनजीओ के माध्यम से खर्च होने हैं तो आईएएस अधिकारियों ने इसके लिए अपना एक एनजीओ बना रखा है, उसी से पैसे खर्च होंगे। अब इसमें भी गंगा एक्शन प्लान की तरह का खेला होगा। गंगा एक्शन प्लान को लेकर 1985 में राजीव गांधी ने भाषण दिया था कि गंगा की सफाई जरूरी है ताकि उसके पानी को पीने लायक बनाया जा सके। 1986 में जब ड्राफ्ट तैयार हुआ तो अधिकारियों ने बहुत ही चालाकी से पीने लायक पानी नहाने लायक लिख दिया और फिर करोड़ों का वारा न्यारा होता रहा। उसी तरह क्लीन गंगा प्रोजेक्ट में यह स्पष्ट ही नहीं किया गया है कि किस लायक गंगाजल को क्लीन किया जाएगा, उसका पैमाना क्या होगा लेकिन यह तय किये बिना ही पैसे भी निर्गत होने लगे।

गंगा के नाम पर निर्मलता-अविरलता के पापुलर फ्रंट पर ही सभी फंसे हुए हैं जबकि गंगा के दूसरे संकटों की भी फेहरिश्त लंबी है।
आप ऐसा नहीं कह सकते। हम तो दूसरे मसले पर ही ज्यादा ध्यान दे रहे हैं। इलाहाबाद में नवप्रयागपुरम और ओमेक्स सिटी का निर्माण इलाहाबाद डेवलपमेंट अथॉरिटी द्वारा कुंभ स्थल के पास नदी इलाके में हो रहा था, वह रूका। कोर्ट ने कहा कि नदी के बाढ़ इलाके के 500 मीटर के दायरे में कोई निर्माण नहीं हो सकता। गंगा की जमीन क्या है, यह अब तक तय नहीं हो सका है, जिस वजह से अतिक्रमण होते रहता है, इसे लेकर भी आंदोलन होगा।

सिर्फ ब्यूरोक्रेट्सों और सरकारी तंत्रों को कब तक दोष देते रहेंगे। आंदोलनकारी भी अपनी-अपनी गंगा बहाने के फेरे में बदलते रहते हैं।
सच है यह। अपनी-अपनी गंगा बहाने में बहुत सारे लोग लगे हुए हैं। आंदोलनकारियों की बात यदि कर रहे हैं तो सबसे पहले तो विश्व हिंदू परिषद के अशोक सिंघल जी को जवाब देना चाहिए, जिन्होंने कहा था कि टिहरी के माध्यम से यदि अन्याय हुआ तो वे 60 हजार संतो के साथ जल समाधि ले लेंगे। टिहरी से तो चार इंच व्यास वाले पाईप से ही गंगा को निकाला गया, कहां किसी ने कुछ किया। स्व.कवि प्रदीप रौशन एक कविता के माध्यम से पूछा करते थे-

चार इंच में बहा रहे हो, अविरल धारा।
भरी सभा में बोलो कौन गंगा हत्यारा।।।


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