![सौखर गांव में हवेली मॉडल के तहत बनाई गई बंधी](/sites/default/files/styles/node_lead_image/public/2023-03/%E0%A4%B8%E0%A5%8C%E0%A4%96%E0%A4%B0%20.png?itok=mc0z3I6z)
शासन जल संरक्षण कर भूजल स्तर सुधारने के प्रयास में करोड़ों रुपये प्रतिवर्ष खर्च कर रहा है। फिर भी मंशानुरूप सुधार नहीं हो रहा है। स्थिति सुधरनें के बजाय बिगड़ती जा रही है। इसके विपरीत तीन संस्थाओं ने हवेली मॉडल से जिले के तीन गांवों में सिंचाई की समस्या खत्म कर दी। वहीं अपनी धुन के पक्के साधु कृष्णानंद ने बिना किसी लाभ व लालच जल संरक्षण के लिए एक हेक्टेयर का तालाब खोद डाला। उन्होंने परेशानियों को दर किनार कर मिसाल पेश की है।
इस तकनीक से खेत का पानी खेत में ही
जिले में जल संरक्षण के द्वारा किसानों की आय दोगुनी करने का अभियान एक्रीसेट (द इंटरनेशनल काँप रिसर्च इंस्टीटयूट फार सेमी एरिड ट्रापिक्स ) हैदराबाद व भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद झांसी के साथ समर्थ फाउंडेशन हवेली मॉडल के माध्यम से चलाया। इसमें नई तकनीक का स्ट्रक्चर तैयार कर जिले के सौखर, नजरपुर व कारीमाटो गांवों में बारिश के दौरान खेतों का पानी एकत्र कर सिंचाई के प्रयोग में लाया जा रहा है। इससे वर्षा आधारित फसलें लेने वाले किसान अब सब्जी की पैदावार कर रहे है। 250 एकड़ जमीन को कवर करने के लिए दो बंधियां बनवाईं गईं। जमीन के नीचे से ऊपर तक 2 फिट बोल्डरों की पक्की दीवार तैयार कर ऊपर से मिट्टी डालकर तीन मीटर ऊंची दो बंधियां बनाई गई। इसके बाद कवर क्षेत्र में छोटी बंधियां बनाई गईं। इससे बर्षा जल एकत्र होकर नीचे तक पहुंचता है।
![अकेले खोद डाला 18 फीट का गहरा तालाब](/sites/default/files/inline-images/%E0%A4%85%E0%A4%95%E0%A5%87%E0%A4%B2%E0%A5%87%20%E0%A4%96%E0%A5%8B%E0%A4%A6%20%E0%A4%A1%E0%A4%BE%E0%A4%B2%E0%A4%BE%2018%20%E0%A4%AB%E0%A5%80%E0%A4%9F%20%E0%A4%95%E0%A4%BE%20%E0%A4%97%E0%A4%B9%E0%A4%B0%E0%A4%BE%20%E0%A4%A4%E0%A4%BE%E0%A4%B2%E0%A4%BE%E0%A4%AC%20.png)
अकेले खोद डाला 18 फीट का गहरा तालाब
सुमेरपुर क्षेत्र के पचखुरा गांव निवासी बाबा कृष्णानंद महाराज को लोग मांझी के नाम से जानते हैं। यह नाम उन्हें गांव में तालाब खोदने पर मिला। इस तरह दशरथ मांझी ने अपने दम पर पहाड़ को तोड़कर सड़क बना दी थी। उसी तरह कृष्णानंद ने भी अकेले ही जल संचय के लिए 18 फीट गहरा तालाब खोद डाला। इनके इस काम की चर्चा दिल्ली तक पहुंची और यूनीसेफ की टीम द्वारा तालाब का निरीक्षण करने के बाद उनके प्रयास की सराहना की।
किसानों को समझाने में करनी पड़ी मशक्कत _
समर्थ फाउंडेशन के देवेंद्र गांधी ने बताया कि वर्ष 2007 में काम शुरू करने के दौरान काफी परेशानियां हुईं। किसानों को दोपहर में समझाकर आते और शाम को वह काम बंद करा देते। किसान बंधी बनने से खेती का रकबा कम होने की बात कह मानने को तैयार नहीं थे। जब उन्हें इससे होने वाले लाभ के बारें में कई बार समझाया गया तब वह तैयार हुए। मौजूदा समय में सभी किसान खुश है।
ग्रामीणों ने किया अनसुना तो शुरू किया काम
इंटर पास वर्ष 1 980 में संन्यास लेने के बाद किशनपाल से साधु कृष्णानंद बने। वर्ष 2014 में भ्रमण करते हुए वह गांव आए। वहां मंदिर और तालाब की हालत दयनीय देख उनके मन में इसके जीर्णोद्धार की बात आई। उन्होंने इस बात को ग्रामीणों के समक्ष रखा लेकिन सबने अनसुना कर दिया। तब अकेले ही उन्होंने इस काम को करने की ठान ली। आठ वर्ष की अथक मेहनत के बाद उसे जल संचयन योग्य बना दिया।
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