मणिकंदन अपने घर में टीवी देख रहे थे इसी दौरान टीवी स्क्रीन में एक न्यूज़ फ्लैश हुई कि साल 2019 का सर्वश्रेष्ठ जल योद्धा पुरस्कार के लिए दक्षिणी क्षेत्र से उन्हें चुना गया है
मणिकंदन के नाम की घोषणा जल शक्ति मंत्रालय ने की। 38 वर्ष के मणिकंदन बताते है की "मुझे इस बारे में जनवरी में बता दिया गया था लेकिन ये भी हिदायत दी गई थी जब तक आधिकारिक घोषणा नहीं हो जाती है तब तक वह इस बारे ने किसी से जिक्र नही करेंगे। यहाँ तक की मेरे परिवार वालों को भी न्यूज़ चैनल से ही पता लगा है।मणिकंदन कोवई कुलंगल पादुकापु अमईप्पु एनजीओ के संस्थापक हैं जो जिले में जल निकायों की रक्षा करने के लिए काम करता हैं। मणिकंदन अब तीन साल से तालाबों और झीलों के पुनरुद्धार की दिशा में काम कर रहे है। “इन वर्षों में, हमारी टीम ने छह झीलों, दो नहरों और चार चेक-डेमों की सफाई की है। मैंने वेल्लोरोर टैंक के बांध पर 7,500 देशी किस्मों के पेड़ों के साथ मियावाकी वन भी बनाया है।"
उनके एनजीओ में करीब 200 सक्रिय सदस्य हैं जिनमें से कई पेशावर लोग और छात्र शामिल है जो सप्ताह की छुट्टी में वालंटियर के रुप में काम करते है "लॉकडाउन के दौरान, हमने कुप्पनुर के पास वेल्लाची कुट्टई, देवरायपुरम में चन्नानुर के पास मकन अम्मन कोविल कुट्टई और कदीकरन कुट्टई को साफ किया। तीनों तालाब न्योयाल नदी के जलग्रहण क्षेत्रों में हैं।” इस प्रक्रिया में झाड़ियों को साफ करना तालाब को गहरा करना और पुश्तों को मजबूत करना शामिल था। वो कहते है की ये इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि यह भूजल को रिचार्ज करता है,और कई क्षेत्रों में वनस्पति की मदद करता, जो बदले में वर्षा की सुविधा प्रदान करेगा। जो एक तरह से अन्योन्याश्रित है।
मणिकंदन इस सम्मान से खुश है,उन्हें ये समझ भी हो रही है ये उनके लिए एक बड़े बोझ की तरह है। मणिकंदन कहते है की "मैं यह काम तब तक करता रहूंगा जब तक सभी जल निकाय साफ नहीं हो जाते है।" अब तक उनकी टीम ने जिला ग्रामीण विकास एजेंसियों की मदद से कोयम्बटूर के 900 तालाबों को साफ कराया है। "हम हर एक जल निकायों को देख रहे है, जिन्हें उपेक्षित किया गया है उन्हें पुनर्जीवित भी कर रहे है।
हम एक ऐसे मिशन में हैं जहां शहर के विभिन्न जल निकायों की जानकारियाँ हासिल कर सके अगर एक बार यह हो गया तो सारा डाटा हम वेबसाइट पर अप लोड कर देंगे ताकि हर किसी को इसके बारे में जानकारी रहे।मणिकदंन का कहना है कि जल निकायों को नुकसान पहुंचाने की सबसे आम समस्या कचड़े की डंपिंग है।" कोयंबटूर का उदाहरण ले जहाँ नोयला बहती है जो कि सीवेज और ठोस कचरे से भर गई है। और इसी वजह से हमारे पीने का पानी भावानी से आता है. इसे अब हमें बदलना होगा और प्राकृतिक संसाधनों की देखभाल कराना सीखना होगा।"
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