रायपुर / छत्तीसगढ़ स्थित जशपुर का सारूडीह गाँव चाय की खेती के कारण चर्चा में है। गाँव के 20 एकड़ कृषि क्षेत्र को चाय बागान के रूप में विकसित करने का श्रेय वहाँ की महिलाओं को जाता है। महत्त्वपूर्ण यह है कि महिलाओं द्वारा बनाए गए स्वयं सहायता समूह के कारण अस्तित्व में आये इस बागान से पैदा होने वाली पत्तियों की ब्रांडिग राज्य सरकार करेगी।
इसकी ब्रांडिंग सारूडीह चाय के नाम से की जाएगी। वह दिन दूर नहीं जब आप भी इस चाय की चुस्की ले रहे होंगे। विशेषज्ञों के अनुसार सारूडीह और उसके आस-पास का वातावरण चाय की खेती के लिये उपयुक्त है।
चाय के इस बागान के लिये महिलाओं को प्रोत्साहन देने का श्रेय राज्य के वन विभाग को जाता है। इसके लिये विभाग ने करीब 1.50 करोड़ रुपए खर्च किया है। आज इस बागान से प्रति सप्ताह करीब 200 किलो चाय की पत्तियाँ निकली जा रही हैं। इसी वर्ष अप्रैल से पत्तियों को तोड़ने का काम शुरू हुआ है। मधु तिर्की, विमला इक्का, कांती बरूआ, इल्ला अल्फोंस व ज्योति बरूआ आदि इसी समूह की सदस्य हैं।
‘ यह चाय बागान 100 सालों तक इन महिलाओं व उनकी पीढ़ियों को रोजगार देगा। वन विभाग सारूडीह चाय की बड़े स्तर पर ब्रांडिंग करने की तैयारी कर रहा है। विभाग की योजना इसे हर बड़े टी-आउटलेट पर उपलब्ध करवाने की है। इसके लिये बड़े स्टाल संचालकों से बातचीत की जा रही है। अगर सब कुछ योजना के अनुसार चलता रहा तो अगले साल पूरा देश इस ब्रांड के नाम से परिचित होगा।
मौसम है अनुकूल
वन विभाग के विशेषज्ञों के मुताबिक जशपुर के आसपास 10 से 12 वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल में वातावरण चाय की खेती के लिये अनुकूल है। यहाँ उतनी ही बारिश होती है, जितनी चाय के पौधों के लिये जरूरी है। सारूडीह ऐसा क्षेत्र है जहाँ बारिश से जलजमाव नहीं होता और तापमान भी लगभग 30 डिग्री सेल्सियस के आस-पास होता है।
होती है अच्छी आय
एक एकड़ चाय की खेती से प्रतिवर्ष डेढ़ लाख रुपए तक की आमदनी होती है जबकि इतनी ही जमीन पर धान की पैदावार से मात्र 10 से 15 हजार रुपए की आय होती है। इससे भी अच्छी बात यह है कि पौधों का पूर्ण विकास हो जाने के बाद इन पर कोई विशेष खर्च नहीं आता। इन पौधों की उम्र लगभग 100 वर्ष होती है। अतः इनसे अच्छी आमदनी होती है।
वन विभाग अगले साल जून तक सारूडीह में 50 लाख रुपए की लागत से चाय की प्रोसेसिंग के लिये एक प्लांट स्थापित करने की योजना बना रहा है। सारूडीह में चाय बागान विकसित करने की योजना में मिली सफलता से उत्साहित होकर वन विभाग, क्षेत्र के अन्य किसानों को भी इसके लिये प्रेरित कर रहा है। इसके लिये विभाग सारूडीह में ही चाय के पौधों की नर्सरी तैयार करने की योजना पर काम कर रहा है। इस योजना का मुख्य उद्देश्य किसानों को किफायती दर पर पौधे उपलब्ध कराना है। इसके लिये तैयार किया गया प्रस्ताव शासन को भेजा जा रहा है।
“सारूडीह चाय की बिक्री अभी स्थानीय स्तर पर हो रही है। प्रति सप्ताह यहाँ 150 से 200 किलोग्राम पत्तियों का उत्पादन हो रहा है। हमें पूरी उम्मीद है कि आने वाले डेढ़ साल में इसका उत्पादन 20 से 25 गुना तक बढ़ जाएगा। इसे एक स्थापित ब्रांड बनाने के लिये हम पूरी तरह प्रतिबद्ध हैं”... -पंकज राजपूत, प्रोजेक्ट प्रभारी सारूडीह चाय व डीएफओ, जशपुर
इसकी ब्रांडिंग सारूडीह चाय के नाम से की जाएगी। वह दिन दूर नहीं जब आप भी इस चाय की चुस्की ले रहे होंगे। विशेषज्ञों के अनुसार सारूडीह और उसके आस-पास का वातावरण चाय की खेती के लिये उपयुक्त है।
चाय के इस बागान के लिये महिलाओं को प्रोत्साहन देने का श्रेय राज्य के वन विभाग को जाता है। इसके लिये विभाग ने करीब 1.50 करोड़ रुपए खर्च किया है। आज इस बागान से प्रति सप्ताह करीब 200 किलो चाय की पत्तियाँ निकली जा रही हैं। इसी वर्ष अप्रैल से पत्तियों को तोड़ने का काम शुरू हुआ है। मधु तिर्की, विमला इक्का, कांती बरूआ, इल्ला अल्फोंस व ज्योति बरूआ आदि इसी समूह की सदस्य हैं।
‘ यह चाय बागान 100 सालों तक इन महिलाओं व उनकी पीढ़ियों को रोजगार देगा। वन विभाग सारूडीह चाय की बड़े स्तर पर ब्रांडिंग करने की तैयारी कर रहा है। विभाग की योजना इसे हर बड़े टी-आउटलेट पर उपलब्ध करवाने की है। इसके लिये बड़े स्टाल संचालकों से बातचीत की जा रही है। अगर सब कुछ योजना के अनुसार चलता रहा तो अगले साल पूरा देश इस ब्रांड के नाम से परिचित होगा।
मौसम है अनुकूल
वन विभाग के विशेषज्ञों के मुताबिक जशपुर के आसपास 10 से 12 वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल में वातावरण चाय की खेती के लिये अनुकूल है। यहाँ उतनी ही बारिश होती है, जितनी चाय के पौधों के लिये जरूरी है। सारूडीह ऐसा क्षेत्र है जहाँ बारिश से जलजमाव नहीं होता और तापमान भी लगभग 30 डिग्री सेल्सियस के आस-पास होता है।
होती है अच्छी आय
एक एकड़ चाय की खेती से प्रतिवर्ष डेढ़ लाख रुपए तक की आमदनी होती है जबकि इतनी ही जमीन पर धान की पैदावार से मात्र 10 से 15 हजार रुपए की आय होती है। इससे भी अच्छी बात यह है कि पौधों का पूर्ण विकास हो जाने के बाद इन पर कोई विशेष खर्च नहीं आता। इन पौधों की उम्र लगभग 100 वर्ष होती है। अतः इनसे अच्छी आमदनी होती है।
वन विभाग अगले साल जून तक सारूडीह में 50 लाख रुपए की लागत से चाय की प्रोसेसिंग के लिये एक प्लांट स्थापित करने की योजना बना रहा है। सारूडीह में चाय बागान विकसित करने की योजना में मिली सफलता से उत्साहित होकर वन विभाग, क्षेत्र के अन्य किसानों को भी इसके लिये प्रेरित कर रहा है। इसके लिये विभाग सारूडीह में ही चाय के पौधों की नर्सरी तैयार करने की योजना पर काम कर रहा है। इस योजना का मुख्य उद्देश्य किसानों को किफायती दर पर पौधे उपलब्ध कराना है। इसके लिये तैयार किया गया प्रस्ताव शासन को भेजा जा रहा है।
“सारूडीह चाय की बिक्री अभी स्थानीय स्तर पर हो रही है। प्रति सप्ताह यहाँ 150 से 200 किलोग्राम पत्तियों का उत्पादन हो रहा है। हमें पूरी उम्मीद है कि आने वाले डेढ़ साल में इसका उत्पादन 20 से 25 गुना तक बढ़ जाएगा। इसे एक स्थापित ब्रांड बनाने के लिये हम पूरी तरह प्रतिबद्ध हैं”... -पंकज राजपूत, प्रोजेक्ट प्रभारी सारूडीह चाय व डीएफओ, जशपुर
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