एक अच्छा विचार केवल एक इंसान के ही जिंदगी की दशा और दिशा ही नहीं बदलता वरन् समूह में एक साथ कई लोगों की सामाजिक, आर्थिक, शैक्षणिक, धार्मिक, वैचारिक दशा सुधारने एवं जीवन में गतिमयता, प्रवाहमयता लाने में सकारात्मक भूमिका निभा सकता है। इस बात का जीता-जागता सबूत है महाराष्ट्र के औरंगाबाद जिले की श्रीमती निर्मला गिरीश कान्दड़गांवकर देशपांडे। इन्होंने विवाह पश्चात लगभग दो दशकों तक घर-परिवार की ज़िम्मेदारी बखूबी निभायी। लेकिन एक विचार उनके मन में हमेशा आलोड़ित होता रहा कि जीवन में कुछ अलग हट कर करना है, ऐसा जिससे व्यक्तिगत ही नहीं दूसरों का भी भला हो, विशेषकर गृहणियों (महिलाओं) का। इस एक विचार का ही सार्थक रूप है, निर्मला जी का करोड़ों का प्रोजेक्ट ‘डोन्ट वेस्ट वेस्ट’। प्रस्तुत है गृहिणी से सफल उद्यमी का सफर तय कर चुकी निर्मला गिरीश देशपांडे से डॉ. मनोज चतुर्वेदी और डॉ. प्रेरणा चतुर्वेदी द्वारा लिये गए साक्षात्कार का संपादित अंश :-
डॉ. प्रेरणा चतुर्वेदी..निर्मला जी आप अपने पारंपरिक जीवन के बारे में बतायें।
निर्मला..मेरा जन्म महाराष्ट्र में मराठवाड़ा क्षेत्र के नांदेड़ जिला के हट्टा गांव में 1 जनवरी, 1952 को हुआ। मेरे माता-पिता प्राइमरी स्कूल के अध्यापक थे।
डॉ. प्रेरणा चतुर्वेदी.. आपकी शिक्षा कहां तक हुई है?
निर्मला..मैंने सन् 1972 में बॉयोलॉजी से बी.एस.सी. परीक्षा उत्तीर्ण की।
डॉ. प्रेरणा चतुर्वेदी.. सुना है कि आप शुरू से ही समाज सेवा से जुड़ी रहीं।
निर्मला.. जी हां, मैं समाज सेवा से जुड़ी थी।
डॉ. प्रेरणा चतुर्वेदी.. सुना है आप कुछ दिनों तक राष्ट्र सेविका समिति से भी जुड़ी थीं।
निर्मला..जी हां, मैं शुरू से ही राष्ट्र सेविका समिति से जुड़ी हूँ और दरअसल देश के बारे में, समाज के बारे में कुछ अलग सोचने की प्रेरणा भी मुझे राष्ट्र सेविका समिति से ही मिली।
डॉ. प्रेरणा चतुर्वेदी.. आपने राष्ट्र सेविका समिति का कोई औपचारिक प्रशिक्षण भी लिया था?
निर्मला ..हां, मैं शुरू से ही राष्ट्र सेविका समिति से जुड़ी हूँ। फिर समिति का तीन वर्ष का मैंने प्रशिक्षण भी लिया। मेरे पति गिरिश भी संघ में तृतीय वर्ष प्रशिक्षित हैं।
डॉ. प्रेरणा चतुर्वेदी.. अच्छा आपके दिमाग में इस प्रोजेक्ट की प्रेरणा कब और कैसे आयी?
निर्मला.. दरअसल, राष्ट्र सेविका समिति में मुझ पर विभाग कार्यवाहिका का दायित्व था। इसलिए अक्सर ग्रामीण इलाकों में महिलाओं के लिए शाखा वगैरह के काम होते रहते थे। उसमें महिलाओं के बीच जाकर पता लगता था कि वे 10-20 रुपए में प्रतिदिन 10-12 घंटे कार्य करती हैं। लेकिन परिवार खर्च के आगे आमदनी बिल्कुल ना के बराबर है। इसलिये इन महिलाओं को रोज़गार उत्पन्न कराने के लिये ही मैने कुछ सोचना शुरू किया।
डॉ. प्रेरणा चतुर्वेदी.. ये प्रोजेक्ट कहां है और इसका रजिस्ट्रेशन कब हुआ
निर्मला.. हां, ये प्रोजेक्ट महाराष्ट्र के औरंगाबाद जिले में है और इसका रजिस्ट्रेशन वर्ष 2001 में ही हुआ था।
डॉ. मनोज चतुर्वेदी.. आपने अपने काम के लिए कचरे को ही क्यों चुना?
निर्मला..दरअसल, किसी भी व्यापार को कच्चे माल की आवश्यकता होती है। माल सस्ता और नज़दीक ही उपलब्ध होने वाला हो। साथ ही उस कच्चे माल की अच्छी खपत भी बाजार में हो जानी चाहिए। मैने सोचा कि एकमात्र कचरा ही है। जो घर, होटल, अस्पताल, ढाबे पर हर जगह उपलब्ध भी है और इस कच्चे माल से कोई व्यय नहीं लगता है।
डॉ. मनोज चतुर्वेदी.. फिर आपने कचरे से क्या तैयार किया और उसका उपयोग कहाँ किया?
निर्मला.. मैने सबसे पहले अपने घर से कचरा जमा करके वर्मी कम्पोस्ट खाद बनाई और इसे 10-12 रुपए प्रति किलो की दर से घरों के पेड़-पौधों और बाग-बगीचों में बेच दिया। कुछ ही समय में आसपास के खेतों में भी खाद का उपयोग होने लगा। लोगों को इससे फायदा नजर आने लगा।
डॉ. मनोज चतुर्वेदी.. आपने कचरे से खाद ही बनाई या और कुछ भी बनाया?
निर्मला.. मैने सबसे पहले खाद बनायी। फिर प्लास्टिक एकत्र कर उसको फिर से उपयोग लायक बनाया। बायोगैस प्लांट की सफल योजना की। पका अन्न जो घरों,होटलों,ढाबों से जो कचरा फेंक दिया जाता है उसे एकत्र किया। पत्तियां, सब्जियों के छिलके आदि डाला जाता है और पाइप के सहारे घरों में गैस सप्लाई होती है। फिर 1 टन बेकार पदार्थों से बिजली भी बनाई।
डॉ. मनोज चतुर्वेदी.. कचरे से बिजली कैसे और कितने वॉट की बनाई?
निर्मला.. कम से कम एक टन कचरे जिसमें प्लास्टिक और मैटल न हो। उससे 5 किलोवॉट बिजली बनाई जाती है। इस काम के लिए पूना से मैंने बकायदा प्रशिक्षण भी लिया है। कचरे से पैदा हुई बिजली से 100 ट्यूबलाइटें 24 घंटे तक जल सकती है।
डॉ. मनोज चतुर्वेदी.. अब तक कितने गाँवों में आपका काम हो चुका है।
निर्मला.. अब तक 5000 गांवों में काम हुआ। 15 प्लांट चल रहे हैं इसमें से 1 प्लांट का उद्घाटन सुप्रसिद्ध वैज्ञानिक डॉ. अनिल काकोडकर जी ने किया।
डॉ. मनोज चतुर्वेदी.. क्या आपके प्रोजेक्ट के लिये कोई ट्रेनिंग भी होती है?
निर्मला.. हाँ, मैं और मेरी टीम के लोग स्कूल, कॉलेज, गाँव, कस्बों और किसानों को जाकर प्लांट और प्रोजेक्ट के बारे में बताते हैं, फिर लोगों की रूचि और आवश्यकतानुसार उन्हें ट्रेनिंग भी देते हैं ताकि वे भी इसका लाभ उठा सकें।
डॉ. मनोज चतुर्वेदी.. महिलाओं को भी आपने रोज़गार उपलब्ध कराए हैं?
निर्मला.. हाँ, दरअसल इस पूरे प्रोजेक्ट की कल्पना के मूल में ही महिलाओं के रोज़गार और उन्हें स्वावलंबी बनाने की बात थी। आज केवल 4 घंटे ही काम करके महिलाएं 6-7 हजार रुपए महीना कमा रही हैं। जिससे उनकी आर्थिक स्थिति पहले से काफी हद तक सुधर गई है।
डॉ. प्रेरणा चतुर्वेदी.. आपका काम क्या महाराष्ट्र में ही है?
निर्मला ..नहीं, नहीं! यह छ: राज्यों - महाराष्ट्र, गुजरात, कर्नाटक, राजस्थान, आन्ध्र प्रदेश और मध्य प्रदेश तक फैल चुका है। अब पंजाब और हरियाणा से भी लोग मुझे इस प्रोजेक्ट के बारे में जानने के लिए बुला रहें हैं।
डॉ. प्रेरणा चतुर्वेदी.. आपको सब्सिडी भी मिली है?
निर्मला.. Vivam Agrotec company को महाराष्ट्र राज्य सरकार की ओर से तीन वर्ष की सब्सिडी लागू हो चुकी है। और यह सब्सिडी मेरे ही नाम से मिली है। 2003 में ही सब्सिडी मिली और इसका उपयोग किसानों के हित के लिए किया गया।
डॉ. प्रेरणा चतुर्वेदी.. क्या आपके कार्य को पुरस्कृत भी किया गया है।
निर्मला.. हां, मुझे वर्ष 2010 में दिल्ली में, 2009 में मुंबई में ‘टाटा स्त्री शक्ति’ राष्ट्रीय पुरस्कार मिला जिसकी राशि 1 लाख रुपए थी। साथ ही समय-समय पर अनेक क्षेत्रीय तथा स्थानीय पुरस्कार भी मिले हैं।
डॉ. प्रेरणा चतुर्वेदी.. -आप महाराष्ट्र सरकार की परामर्शदात्री टीम में भी है?
निर्मला.. मैं अगले 25 वर्षों तक के लिए महाराष्ट्र सरकार के 125 नगरपरिषद् की ‘वेस्ट डिस्पोजल एरिया’ की परामर्शदात्री हूँ।
डॉ. मनोज चतुर्वेदी.. भविष्य की क्या योजना है?
निर्मला ..मैं चाहती हूँ कि हर गांव में 1 बायोगैस हो, जिससे कुकिंग गैस की बढ़ती मांग नियंत्रित हो सके। तथा हर घर को बिजली मिल सके। इसी पर काम भी चल रहा है जिससे हर किसी को फायदा होगा।
डॉ. प्रेरणा चतुर्वेदी.. आप अपने काम की सफलता का श्रेय किसे देंगी?
निर्मला.. संघ परिवार और अपने परिवार के सदस्यों के साथ ही अपने साथ काम करने वालों को भी मैं अपनी सफलता का श्रेय दूँगी।
डॉ. मनोज चतुर्वेदी.. एक सफल महिला उद्यमी होने के क्या-क्या सूत्र हो सकते हैं?
निर्मला.. भूमंडलीकरण और उदारीकरण के युग में लघु और मध्यम उद्योगों की समस्या भारत ही नहीं संपूर्ण विश्व में है जिन लघु उद्यमियों ने संघर्ष द्वारा अपने आप को स्थापित किया था उनको उदारीकृत अर्थव्यवस्था ने अपने महाजाल में जकड़ लिया है। वे करीब-करीब समाप्त होने की कगार पर हैं। ऐसे समय में स्वदेशी तकनीक तथा विकेन्द्रीकृत अर्थव्यवस्था द्वारा ही समस्याओं का समाधान निकाला जा सकता है।
डॉ. मनोज चतुर्वेदी.. महिला उद्यमियों के लिये दो शब्द?
निर्मला.. कठिन परिश्रम, दृढ़ इच्छाशक्ति तथा कुशल शिक्षा के द्वारा नारी शक्ति को स्वावलंबी बनाया जा सकता है।
लेखक हिन्दुस्थान समाचार में कार्यकारी फीचर संपादक तथा स्वतंत्रता संग्राम और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ पर डी.लिट् कर रहें हैं।
लेखिका, कहानीकार, कवयित्री, मनोवैज्ञानिक सलाहकार तथा संपादन से जुड़ी हैं।
डॉ. प्रेरणा चतुर्वेदी..निर्मला जी आप अपने पारंपरिक जीवन के बारे में बतायें।
निर्मला..मेरा जन्म महाराष्ट्र में मराठवाड़ा क्षेत्र के नांदेड़ जिला के हट्टा गांव में 1 जनवरी, 1952 को हुआ। मेरे माता-पिता प्राइमरी स्कूल के अध्यापक थे।
डॉ. प्रेरणा चतुर्वेदी.. आपकी शिक्षा कहां तक हुई है?
निर्मला..मैंने सन् 1972 में बॉयोलॉजी से बी.एस.सी. परीक्षा उत्तीर्ण की।
डॉ. प्रेरणा चतुर्वेदी.. सुना है कि आप शुरू से ही समाज सेवा से जुड़ी रहीं।
निर्मला.. जी हां, मैं समाज सेवा से जुड़ी थी।
डॉ. प्रेरणा चतुर्वेदी.. सुना है आप कुछ दिनों तक राष्ट्र सेविका समिति से भी जुड़ी थीं।
निर्मला..जी हां, मैं शुरू से ही राष्ट्र सेविका समिति से जुड़ी हूँ और दरअसल देश के बारे में, समाज के बारे में कुछ अलग सोचने की प्रेरणा भी मुझे राष्ट्र सेविका समिति से ही मिली।
डॉ. प्रेरणा चतुर्वेदी.. आपने राष्ट्र सेविका समिति का कोई औपचारिक प्रशिक्षण भी लिया था?
निर्मला ..हां, मैं शुरू से ही राष्ट्र सेविका समिति से जुड़ी हूँ। फिर समिति का तीन वर्ष का मैंने प्रशिक्षण भी लिया। मेरे पति गिरिश भी संघ में तृतीय वर्ष प्रशिक्षित हैं।
डॉ. प्रेरणा चतुर्वेदी.. अच्छा आपके दिमाग में इस प्रोजेक्ट की प्रेरणा कब और कैसे आयी?
निर्मला.. दरअसल, राष्ट्र सेविका समिति में मुझ पर विभाग कार्यवाहिका का दायित्व था। इसलिए अक्सर ग्रामीण इलाकों में महिलाओं के लिए शाखा वगैरह के काम होते रहते थे। उसमें महिलाओं के बीच जाकर पता लगता था कि वे 10-20 रुपए में प्रतिदिन 10-12 घंटे कार्य करती हैं। लेकिन परिवार खर्च के आगे आमदनी बिल्कुल ना के बराबर है। इसलिये इन महिलाओं को रोज़गार उत्पन्न कराने के लिये ही मैने कुछ सोचना शुरू किया।
डॉ. प्रेरणा चतुर्वेदी.. ये प्रोजेक्ट कहां है और इसका रजिस्ट्रेशन कब हुआ
निर्मला.. हां, ये प्रोजेक्ट महाराष्ट्र के औरंगाबाद जिले में है और इसका रजिस्ट्रेशन वर्ष 2001 में ही हुआ था।
डॉ. मनोज चतुर्वेदी.. आपने अपने काम के लिए कचरे को ही क्यों चुना?
निर्मला..दरअसल, किसी भी व्यापार को कच्चे माल की आवश्यकता होती है। माल सस्ता और नज़दीक ही उपलब्ध होने वाला हो। साथ ही उस कच्चे माल की अच्छी खपत भी बाजार में हो जानी चाहिए। मैने सोचा कि एकमात्र कचरा ही है। जो घर, होटल, अस्पताल, ढाबे पर हर जगह उपलब्ध भी है और इस कच्चे माल से कोई व्यय नहीं लगता है।
डॉ. मनोज चतुर्वेदी.. फिर आपने कचरे से क्या तैयार किया और उसका उपयोग कहाँ किया?
निर्मला.. मैने सबसे पहले अपने घर से कचरा जमा करके वर्मी कम्पोस्ट खाद बनाई और इसे 10-12 रुपए प्रति किलो की दर से घरों के पेड़-पौधों और बाग-बगीचों में बेच दिया। कुछ ही समय में आसपास के खेतों में भी खाद का उपयोग होने लगा। लोगों को इससे फायदा नजर आने लगा।
डॉ. मनोज चतुर्वेदी.. आपने कचरे से खाद ही बनाई या और कुछ भी बनाया?
निर्मला.. मैने सबसे पहले खाद बनायी। फिर प्लास्टिक एकत्र कर उसको फिर से उपयोग लायक बनाया। बायोगैस प्लांट की सफल योजना की। पका अन्न जो घरों,होटलों,ढाबों से जो कचरा फेंक दिया जाता है उसे एकत्र किया। पत्तियां, सब्जियों के छिलके आदि डाला जाता है और पाइप के सहारे घरों में गैस सप्लाई होती है। फिर 1 टन बेकार पदार्थों से बिजली भी बनाई।
डॉ. मनोज चतुर्वेदी.. कचरे से बिजली कैसे और कितने वॉट की बनाई?
निर्मला.. कम से कम एक टन कचरे जिसमें प्लास्टिक और मैटल न हो। उससे 5 किलोवॉट बिजली बनाई जाती है। इस काम के लिए पूना से मैंने बकायदा प्रशिक्षण भी लिया है। कचरे से पैदा हुई बिजली से 100 ट्यूबलाइटें 24 घंटे तक जल सकती है।
डॉ. मनोज चतुर्वेदी.. अब तक कितने गाँवों में आपका काम हो चुका है।
निर्मला.. अब तक 5000 गांवों में काम हुआ। 15 प्लांट चल रहे हैं इसमें से 1 प्लांट का उद्घाटन सुप्रसिद्ध वैज्ञानिक डॉ. अनिल काकोडकर जी ने किया।
डॉ. मनोज चतुर्वेदी.. क्या आपके प्रोजेक्ट के लिये कोई ट्रेनिंग भी होती है?
निर्मला.. हाँ, मैं और मेरी टीम के लोग स्कूल, कॉलेज, गाँव, कस्बों और किसानों को जाकर प्लांट और प्रोजेक्ट के बारे में बताते हैं, फिर लोगों की रूचि और आवश्यकतानुसार उन्हें ट्रेनिंग भी देते हैं ताकि वे भी इसका लाभ उठा सकें।
डॉ. मनोज चतुर्वेदी.. महिलाओं को भी आपने रोज़गार उपलब्ध कराए हैं?
निर्मला.. हाँ, दरअसल इस पूरे प्रोजेक्ट की कल्पना के मूल में ही महिलाओं के रोज़गार और उन्हें स्वावलंबी बनाने की बात थी। आज केवल 4 घंटे ही काम करके महिलाएं 6-7 हजार रुपए महीना कमा रही हैं। जिससे उनकी आर्थिक स्थिति पहले से काफी हद तक सुधर गई है।
डॉ. प्रेरणा चतुर्वेदी.. आपका काम क्या महाराष्ट्र में ही है?
निर्मला ..नहीं, नहीं! यह छ: राज्यों - महाराष्ट्र, गुजरात, कर्नाटक, राजस्थान, आन्ध्र प्रदेश और मध्य प्रदेश तक फैल चुका है। अब पंजाब और हरियाणा से भी लोग मुझे इस प्रोजेक्ट के बारे में जानने के लिए बुला रहें हैं।
डॉ. प्रेरणा चतुर्वेदी.. आपको सब्सिडी भी मिली है?
निर्मला.. Vivam Agrotec company को महाराष्ट्र राज्य सरकार की ओर से तीन वर्ष की सब्सिडी लागू हो चुकी है। और यह सब्सिडी मेरे ही नाम से मिली है। 2003 में ही सब्सिडी मिली और इसका उपयोग किसानों के हित के लिए किया गया।
डॉ. प्रेरणा चतुर्वेदी.. क्या आपके कार्य को पुरस्कृत भी किया गया है।
निर्मला.. हां, मुझे वर्ष 2010 में दिल्ली में, 2009 में मुंबई में ‘टाटा स्त्री शक्ति’ राष्ट्रीय पुरस्कार मिला जिसकी राशि 1 लाख रुपए थी। साथ ही समय-समय पर अनेक क्षेत्रीय तथा स्थानीय पुरस्कार भी मिले हैं।
डॉ. प्रेरणा चतुर्वेदी.. -आप महाराष्ट्र सरकार की परामर्शदात्री टीम में भी है?
निर्मला.. मैं अगले 25 वर्षों तक के लिए महाराष्ट्र सरकार के 125 नगरपरिषद् की ‘वेस्ट डिस्पोजल एरिया’ की परामर्शदात्री हूँ।
डॉ. मनोज चतुर्वेदी.. भविष्य की क्या योजना है?
निर्मला ..मैं चाहती हूँ कि हर गांव में 1 बायोगैस हो, जिससे कुकिंग गैस की बढ़ती मांग नियंत्रित हो सके। तथा हर घर को बिजली मिल सके। इसी पर काम भी चल रहा है जिससे हर किसी को फायदा होगा।
डॉ. प्रेरणा चतुर्वेदी.. आप अपने काम की सफलता का श्रेय किसे देंगी?
निर्मला.. संघ परिवार और अपने परिवार के सदस्यों के साथ ही अपने साथ काम करने वालों को भी मैं अपनी सफलता का श्रेय दूँगी।
डॉ. मनोज चतुर्वेदी.. एक सफल महिला उद्यमी होने के क्या-क्या सूत्र हो सकते हैं?
निर्मला.. भूमंडलीकरण और उदारीकरण के युग में लघु और मध्यम उद्योगों की समस्या भारत ही नहीं संपूर्ण विश्व में है जिन लघु उद्यमियों ने संघर्ष द्वारा अपने आप को स्थापित किया था उनको उदारीकृत अर्थव्यवस्था ने अपने महाजाल में जकड़ लिया है। वे करीब-करीब समाप्त होने की कगार पर हैं। ऐसे समय में स्वदेशी तकनीक तथा विकेन्द्रीकृत अर्थव्यवस्था द्वारा ही समस्याओं का समाधान निकाला जा सकता है।
डॉ. मनोज चतुर्वेदी.. महिला उद्यमियों के लिये दो शब्द?
निर्मला.. कठिन परिश्रम, दृढ़ इच्छाशक्ति तथा कुशल शिक्षा के द्वारा नारी शक्ति को स्वावलंबी बनाया जा सकता है।
लेखक हिन्दुस्थान समाचार में कार्यकारी फीचर संपादक तथा स्वतंत्रता संग्राम और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ पर डी.लिट् कर रहें हैं।
लेखिका, कहानीकार, कवयित्री, मनोवैज्ञानिक सलाहकार तथा संपादन से जुड़ी हैं।
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