महिलाएँ बनी भगीरथ : फिर जी उठा ताल

ग्वालियर जिले के विकास खण्ड अन्तर्गत सिरोली पंचायत में बबूल वाला ताल बन जाने से 50 कृषक परिवार अपनी 192.11 बीघा भूमि की सिंचाई कर सकेंगे। यह तालाब नहाने, कपड़े धोने और मवेशियों की प्यास बुझाने से लेकर अन्य कार्यों में भी उपयोगी सिद्ध हो रहा है।ग्वालियर जिले के विकास खण्ड अन्तर्गत सिरोली पंचायत में ग्राम रामनगर पूर्व की दिशा में वेसली नदी के केचमेण्ट में स्थित है। इसकी कुल आबादी 524 है जिसमें 288 पुरुष, महिलाएँ व बच्चे हैं। इस गाँव में शत-प्रतिशत बासिन्दे अनुसूचित जाति के हैं। यह गाँव अन्य जगहों की अपेक्षा सूखे की मार अधिक झेल रहा था। इस वजह से यहाँ के गाँववासी कष्टमय जीवन व्यतीत कर रहे थे। इस गाँव में भी प्राकृतिक तरीके अर्थात बारिश पर निर्भर रहकर खेती करना और अपने परिवार का पालन-पोषण करना ही गाँववासियों के जीवन का उद्देश्य है। ऐसी स्थिति में पिछले कुछ वर्षों तक लगातार पड़े सूखे ने पूरी तरह से गाँववासियों की कमर तोड़ दी व उन्हें पलायन करने के लिए विवश कर दिया।

कई लोगों ने कठोर निर्णय लिया और मजदूरी हेतु शहर की ओर पलायन करना आरम्भ कर दिया। यूँ तो इस गाँव में दो-दो तालाब हैं, लेकिन रख-रखाव न होने के कारण वे जर्जर अवस्था में थे। बढ़ती आबादी के कारण हमने तालाबों के अस्तित्व को नकार दिया है। समय की जरूरत है कि हम अपने सभी परम्परागत जलस्रोतों को पुनः विकसित करें और एक लम्बी रणनीति के तहत काम शुरू करें। इसी के मद्देनजर विगत समय में कुछ गतिविधियाँ शुरू की गईं जिनमें वर्षा जल का संग्रहण और प्रबन्धन, खेत सुधार तथा स्वसहायता समूह अपने पैरों पर खड़े हो सकें, इसके लिए बीज कोष को बढ़ावा दिया गया। पर्यावरण को ध्यान में रखते हुए नर्सरी लगाई गई।

तालाब के महत्त्वपूर्ण काम को अंजाम दिया स्वसहायता समूह की महिलाओं ने। उनकी सहभागिता के परिणामस्वरूप एक तालाब का जीर्णोद्धार गत वर्ष गोपाल किरण संस्था ने समुदाय एवं ग्राम में संस्था द्वारा गठित स्वसहायता समूह की सदस्य महिलाओं ने साथ मिलकर कराया। इस गाँव के तालाबों में पानी नाममात्र के लिए भी नहीं रुकता था। ग्राम में प्रतिवर्ष भूजल स्तर लगातार गिरता चला जा रहा था और ग्रामीणों को सूखे की स्थिति का सामना करना पढ़ रहा था। ग्रामीणों ने इस सन्दर्भ में ग्राम पंचायत में इन तालाबों के जीर्णोद्धार का प्रस्ताव रखा, किन्तु इस प्रस्ताव पर किसी ने कोई गम्भीरता नहीं दिखाई। उन्हीं दिनों गोपाल किरण समाजसेवी संस्था ने इस गाँव में प्रवेश किया और महिलाओं को लक्ष्य मानकर उनके आर्थिक-सामाजिक स्तर को सुदृढ़ बनाने हेतु विभिन्न प्रयास करना प्रारम्भ किया व कम होती हुई सहभागिता की भावना को पुनर्जीवित किया।

लोगों में आत्मनिर्भरता की भावना उत्पन्न हो तथा सामूहिक श्रम के द्वारा ऐसी स्थाई संरचना का निर्माण किया जाए जिसमें अधिक से अधिक पानी का संग्रहण किया जाए जो कि भविष्य में लोगों के काम आ सके। अतः गाँव के पास स्थित बबूल वाला ताल को पुनर्जीवित करने की पहल भी की गई। यह तालाब बंटवाला ताल से ही जुड़ा हुआ था। बबूल वाला ताल के पुनर्निर्माण के समय कुछ नियम व शर्ते तय की गई जिनमें कार्य के दौरान एक निगरानी समिति डॉ. अम्बेडकर के नाम पर गठन कर कार्य के घण्टे तय किए गए व मजदूरों के लिए पेयजल की व्यवस्था आदि बुनियादी आवश्यकताओं को ध्यान में रख कर योजना को अन्तिम रूप दिया गया। प्रत्येक परिवार से नगद राशि एकत्रित की गई और महिलाओं सहित गाँव के लोगों ने इस तालाब पर श्रमदान किया। श्रम कार्य में महिलाओं को जोड़ने के लिए संस्था द्वारा निर्मित स्वसहायता समूहों ने विशेष प्रयास किए।

समूह की सभी सदस्य महिलाओं एवं अन्य महिलाओं ने अपनी आत्मशक्ति के द्वारा तालाब में श्रमदान कर उसका गहरीकरण तथा जीर्णोद्धार कर सिंचाई व जानवरों के पीने के पानी की व्यवस्था की। 1092 मीटर की लम्बाई में बनाए गए इस तालाब से खेतों के सिंचाई की व्यवस्था में महत्त्वपूर्ण सुधार हुआ।

इस तालाब के बन जाने से सभी समुदाय के लोग खुश हैं व महिलाओं के काम की सराहना कर रहे हैं। लेकिन एक आश्चर्य की लकीर उनके चेहरे पर खिंची हुई है कि क्या महिलाएँ भी ये कर सकती हैं?

महिलाओं ने यह साबित कर दिया कि वे जो चाहें कर सकती हैं। गाँव के आसपास की भूमि में गेहूँ व सरसों की फसल लेने के लिए पहला पलेवा इन तालाबों से किया गया। बबूल वाला ताल बन जाने से 50 कृषक परिवार अपनी 192.11 बीघा भूमि की सिंचाई कर सकेंगे। यह तालाब नहाने, कपड़े धोने और मवेशियों की प्यास बुझाने से लेकर अन्य कार्यों में भी उपयोगी सिद्ध हो रहा है। इस तालाब के किनारे ग्राम समुदाय के सहयोग से वृक्षारोपण कर आँवला, नीम, शीशम आदि विभिन्न प्रकार के पौधे लगाए गए हैं।

(लेखक गोपाल किरण समाजसेवी संस्था, ग्वालियर से सम्बद्ध हैं)

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