महासागरों में जहर घोल रहा कचरा

नदियों में जल प्रदूषण को पीछे छोड़कर अब महासागर में भी गन्दगी का खतरा बढ़ता जा रहा है। ब्रिटेन के प्लाईमाउथ विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं ने दुनिया भर से जुटाए गए तथ्यों पर आधारित एक शोध के जरिये यह साबित किया है कि समुद्र के भीतर मानव निर्मित कचरे में उलझ कर अथवा उसे निगल कर 44 हजार से ज्यादा जानवर और दूसरे जीव जान गंवा रहे हैं। साथ ही समुद्री वनस्पतियों के भी नष्ट होने की आशंका बढ़ रही है। मरीन पॉल्यूशन बुलेटिन में छपी प्रोफेसर रिचर्ड थॉमसन और सारा गाल का यह शोध पत्र कहता है कि महासागरों में जीवों की करीब 700 प्रजातियों के तो बहुत तेजी से खत्म होने की आशंका बढ़ रही है।

प्रश्न है कि इतने बड़े पैमाने पर समुद्र में कचरा आखिर आता कहाँ से है। शोध बताते हैं कि इस कचरे में नदियों का प्रदूषण, डूबे समुद्री जहाजों और कन्टेनरों का सामान वायुयानों का मलबा, जहाजों में लाद कर ले जाए जा रहे पेट्रोलियम पदार्थों दूसरे सामानों का बह जाना, समुद्री यात्रियों की ओर से इस्तेमाल किए जाने वाले सामानों के फेंके गए पैकेट और तटों के किनारे बसे शहरों की गन्दगी, सभी कुछ है। विशाल समुद्र के गर्भ से इस गन्दगी को बाहर निकाल कर जल की सफाई करना एक असम्भव सी चुनौती है। कुछ देशों ने समुद्र की गहराई में छिपे अपशिष्ट का पता लगाने की तकनीक तो विकसित कर ली है, पर अफ़सोस यह है कि एक ओर उसमें कचरे का मात्रा बढ़ने से रोकने में सफलता नहीं मिल रही है, दूसरी ओर कचरे को बाहर निकाल कर पुरानी स्वच्छता को बहाल करने में सफल होने की तकनीक और तरीके दोनों अभी खोजे जाने हैं।

दुखद यह है कि सारी दुनिया कचरे को गिरते और फैलते हुए लाचार होकर देखने को मजबूर है। ये संकट अचानक नहीं आया है, बल्कि मानव की ओर से लम्बे समय से की जा रही गलतियों का सहज परिणाम है। ध्यान देने की बात यह है कि इससे निपटने की दिशा में वैश्विक स्तर पर अभी तक कोई कारगर कार्ययोजना तक नहीं बनाई जा सकी है। आखिर उस बेतहाशा फैलते कचरे से बचाव कैसे हो, इसका फिलहाल सही जवाब मलबे को महासागरों में गिरने से रोकना ही दिख रहा है।

लेकिन अभी हाल यह है कि इन्सान अपने स्वार्थों के लिए पंचतत्वों में से किसी को शुद्ध छोड़ने के लिए तैयार नहीं है। नदी, नाले, पहाड़, जंगल, मैदान, समुद्र, अन्तरिक्ष सभी जगहों पर अपने कदमों के निशान के रुप में कचरा छोड़ आ रहा है। ऐसे में हम रोजाना कितनी अमूल्य वनस्पतियों और जीव-प्रजातियों को नष्ट कर रहे हैं, इसका अनुमान लगाना भी असम्भव है। हिमालय के पहाड़ो पर ग्लेशियरों के पिघलने और बरसात के पानी के साथ सदियों पुरानी जड़ी-बूटियों और दूसरे तत्वों से संयोग गंगा के जल को चमत्कारिक बना देता है। उसी तरह समुद्र के भीतर समाई असंख्य वनस्पतियों और दूसरे तत्वों के संयोग के बल पर ही उसकी भी गरिमा टिकी है। उनके बारे में दुनिया भर के वैज्ञानिक अभी शोध कर रहे हैं। लेकिन वेदों और दूसरे धार्मिक ग्रन्थों में उनके बारे में जानकारी बहुत पहले से मिलती है।

समुद्र को कचरे से पाटने में विकसित और विकासशील, अमीर और गरीब, सभी तरह के देशो ने योगदान दिया है। लेकिन इस ओर किसी का भी ध्यान नहीं जा रहा है कि उस कचरे से समुद्र की बाहरी परत पर भीतर जरूरी रासायनिक संयोग के बड़े अवरोध पैदा हो रहे हैं। इससे समुद्र में भारी तबाही मचने की आशंका बढ़ती जा रही है। लेकिन कचरे को निकालने के लिए कोई भी ईमानदार और सार्थक प्रयास होता नहीं दिख रहा है। इन्सान के कदम चाँद के बाद अब अन्तरिक्ष के दूसरे ग्रहों की ओर बढ़ रहे हैं। इन्सान चहुंओर कचरा फैलाने के लिए तो तैयार है, लेकिन उसे बटोरने के लिए वह हमेशा एक-दूसरे को मुँह देखता है। तो क्या अब नगर पालिकाओं और नगर निगमों की तरह हजारों नाटिकल मील क्षेत्रफल वाले समुद्र के लिए भी ‘वैश्विक महासागरीय सफाई निगम’ की जरुरत है?

समुद्र में गन्दगी फैलने से रोकने की अपेक्षा उसकी सफाई का काम ज्यादा कठिन है। ऐसे में उचित है कि महासागरों में गन्दगी जाने पर रोक लगाई जाए। लेकिन इसके लिए अभी तक वैश्विक स्तर का कोई भी कानून व्यवहारिक स्तर पर काम नहीं कर पा रहा है। असल में उस असीमित जल में किसी भी कानून को लागू करना और उसके तहत कार्रवाई करना, दोनों ही काम बहुत कठिन है। समुद्र प्रदूषण अन्तरराष्ट्रीय जल सीमाओं को छूने वाला एक बहुत बड़ा संकट है। समुद्री सीमाओं को लेकर हमेशा होते रहने वाले विवादों की परिणति कई देशों के बीच सैन्य संघर्ष के रुप में होती रहती है। उन क्षेत्रों से सम्बन्धित देशों के बीच पहले से बने दुर्घटना, अतिक्रमण और आक्रमण की घटनाओं से सम्बन्धित कानूनों का पालन कराना और अदालत में मामला चलाना बहुत बड़ी चुनौती होता है।

वैसे कानून के बनने के बाद भी यह पता लगाना बहुत कठिन होगा कि गन्दगी किसने फैलाई है? इतने बड़े जल क्षेत्र की उपग्रहों के जरिए भी नियमित निगरानी करना सम्भव नहीं है। समुद्र के भीतर की गन्दगी के जिम्मेदार लोगों की रोजाना टोह लेना तो असम्भव काम है। अफसोस यह है कि जल सीमा क्षेत्र के अतिक्रमण, समुद्री लूटमार, दुर्घटनाओं वगैरह को लेकर अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर कानून बने हैं, लेकिन अभी तक कोई ऐसी संस्था अथवा अदालत नहीं बनी है जिसके जरिए विशाल समुद्र में प्रदूषण फैलाने के लिए जिम्मेदार लोगों के खिलाफ कार्यवाई करने का काम किया जा सके। यही कारण है कि उनमें से ज्यादातर स्थितियों में सभी देशों के निजी कानून भी प्रभावी हो जाते हैं।

यह भी गौर करने की बात है कि तनाव की स्थिति आने पर कुछ देशों के बीच उनकी जल सीमाओं में आपसी युद्धकालीन गठबंधन बन जाते हैं। इसी तरह किसी भी देश के वायुयान, समुद्री जहाज मछुआरों की नौकाओं के लापता होने की स्थिति में उन्हें ढूँढने के लिए सभी देशों के बीच सहमति और सहयोग बन जाता है। उसमें सभी देश अपनी सीमाओं के अन्तर्गत तलाशी अभियान में अपने धन और संसाधन दोनों का इस्तेमाल करते हैं। कुछ मामलों में तो कई देशों की ओर से अपने संसाधन दूसरे देश की जल सीमा में भी मुहैया कराने की पेशकश की जाती है। ऐसे अभियानों का दुनिया भर में बड़ा सकारात्मक सन्देश जाता है। लेकिन प्रदूषण को खत्म करने के मुद्दे पर अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर सहमति बनना तो बड़ी बात रही, किसी एक देश की ओर से भी बड़े पैमाने पर अनुकरणीय प्रयासों की कार्य योजना बनती नहीं दिखाई देती है। ऐसे हालात में समुद्री जल क्षेत्र कानूनों में बदलाव किए जाने के साथ ही अंतरराष्ट्रीय गठबंधन बना कर समुद्र की सफाई के लिए भी बड़े पैमाने पर प्रयास किए जाने की जरूरत है।

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