महासागर का मौन

निश्छल होते हैं कुएं
और कज्जल होता है उनका जल
महासागर नहीं हुए इससे क्या
बेईमान नहीं होते हैं कुएं
जिन्हें भी प्यास लगती है
वे उनकी प्यास बुझाते हैं
जहां भी आग लगती है
हमेशा
वहां आग बुझाते हैं

कुएं कभी तटस्थ नहीं होते
काश, कि महानगर में कुएं होते
तो बंबई में
कब की बुझ गई होती आग
और कभी नहीं होते वहां महाविस्फोट

ऐसा नहीं
कि महासागर आग नहीं बुझा सकते
मगर आग तो दूर
उन्हें कभी
किसी की प्यास तक
बुझाते नहीं देखा
बड़ा खोटा होता है उनका दिल
बड़ा खारा होता है उनका जल
बेहद गंदला होता है उनका पानी
महासागर चाहें और आग नहीं बुझे
बड़े-बड़े महाविनाशकारी बमों को
पलक झपकते ही
लील सकते हैं महासागर
फिर भी जल गई बंबई
महाविस्फोटों से
हिल गई बंबई
दहल उठा कलकत्ता
और सब कुछ जानकर भी
चुप रह गया अरब सागर
मौन रह गई बंगाल की खाड़ी
कहीं कोई सिहरन तक नहीं हुई
उनकी लहरों में

मैं कहूंगा सूरज से
कि सुबह-सुबह
मत नहाना बंगाल की खाड़ी में
मत जाना
शाम में अरब सागर के पास
कहूंगा चांद से
मत पसारना
उनके जल पर
पके धान-सी अपनी चांदनी

चिड़ियों से कहूंगा
उनके ऊपर से कभी मत गुजरना
मैं सबको सावधान करूंगा
और महानगरों से कहूंगा
वे खुदवा लें कुएं
क्योंकि महासागर कभी आग नहीं बुझाते
हमेशा गंदला होता है उनका दिल
हमेशा खारा होता है उनका जल

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