महापर्व में भी गंगा तट से वंचित हैं बिहार के गंगावासी

Chhath puja
Chhath puja
बिहार का सबसे बड़ा पर्व छठ आरम्भ हो गया है। पटना के गंगाघाट जगमग कर रहे हैं। सफाई,रोशनी और सुरक्षा के इन्तजामों में नगर निगम, पुलिस और प्रशासन मुस्तैद है। परन्तु इन छठ घाटों पर गंगा का पानी नहीं, शहर की मोरियों का गन्दा पानी है। गंगा को शहर के पास लाने के लिये हाईकोर्ट के निर्देश पर नहर खोदी गई थी।

करीब सौ फीट चौड़ी (30.48 मीटर) करीब सात किलोमीटर नहर का निर्माण नमामि गंगे कार्यक्रम में शामिल था। करीब तीन माह के अथक प्रयास के बाद 17 जुलाई को गंगा की धारा इस नहर से होकर प्रवाहित भी हुई थी। अगले दिन गंगा की अविरल धारा को देखने के लिये कई घाटों पर लोगों की भीड़ उमड़ी थी। पर बरसात के बाद नहर के मुहाने जाम हो गए और उसमें गंगा का पानी आना बन्द हो गया।

अब नहर का तल ऊँचा है, गंगा की धारा नीचे हो गई है। इसलिये कूर्जी नाला के नहर में गिरने के बाद पानी की दिशा उलटी-दीघा की ओर हो गई है। राजापुर पुल और बाँसघाट के पास आये नालों से नहर का जलस्तर बढ़ गया है। लेकिन कलेक्टरेट घाट पर भी नाले का पानी ही दिखता है। बरसात के बाद नहर की ड्रेजिंग नहीं कराई गई। ड्रेजिंग की जिम्मेवारी इंनलैंड वाटरवेज अथॉरिटी ऑफ इण्डिया को दी गई थी।

जल संसाधन विभाग का कहना है कि गंगा में पानी का स्तर घटने के बाद नहर में पानी आना बन्द हो गया है। अभियन्ता लक्ष्मण झा का कहना है कि पिछले साल दीघा में गंगा का जलस्तर 45.35 मीटर था। पर आज के दिन वह 44.14 मीटर है। यानी पानी स्तर करीब सवा मीटर कम है।

हाईकोर्ट के आदेश की रक्षा नहीं की जा सकी। हाईकोर्ट ने नहर में गगा की धारा अविरल रखने का निर्देश दिया था। इसके लिये ड्रेजिंग और नाला के गन्दे पानी का नियमित परिशुद्धीकरण का आदेश दिया था। मगर ड्रेजिंग और ट्रीटमेंट दोनों में कोई नहीं हो सका। नहर की खुदाई 18 अप्रैल को आरम्भ हुई थी। तीन महीने में इस काम पर 8.8 करोड़ रुपए खर्च हुई। नहर नीचे 30 मीटर चौड़ी और ऊपर सतह पर 50 मीटर चौड़ी है।

उल्लेखनीय है कि पटना में गंगा ने बांई करवट ले ली है। यह 1983-84 की घटना है। पहले गंगा की मुख्य धारा अधिकतम 0.54 किलोमीटर दूर थी। पर अब दीघाघाट के पास मुड़कर तीन चार किलोमीटर दूर चली गई और कलेक्टेट घाट के पास फिर मूड़कर शहर के करीब आई। यह प्राकृतिक घटना थी। इसके कुछ मानवीय कारण भी थे।

जिनकी जाँच-पड़ताल किये बिना 2003 में गंगा को शहर के करीब लाने की कवायद आरम्भ कर दी गई। उस बहाने केन्द्र की तत्कालीन भाजपा सरकार और राज्य की लालू-राबड़ी सरकार के बीच खूब बयानबाजी हुई। पर गंगा के प्रवाह पर कोई सकारात्मक असर नहीं पड़ा। सबकी फ़ज़ीहत हुई।

योजना के अनुसार दीघाघाट से कलेक्टेट घाट के बीच 100 फीट चौड़ी और 10 फीट गहरी खुदाई होनी थी। राज्य सरकार ने 80 लाख देकर 22 जून को जिला परिषद अध्यक्ष संजय कुमार के हाथों काम आरम्भ करा दिया। बाद में सरकार ने 2.96 करोड़ रुपए उपलब्ध कराए। 13 जुलाई को बाढ़ आ गई। बाढ़ का पानी शहर के करीब आ गया।

राज्य सरकार ने अपनी पीठ ठोकी कि महज 25 लाख के खर्च में गंगा किनारे आ गई। पर बाढ़ का पानी उतरते ही चेहरे का पानी उतर गया। गंगा की धारा दूर चली गई थी, वहाँ एक गन्दा नाला बह रहा था। असल में जो नाले पहले गंगा में मिलते थे, धारा के दूर चले जाने पर बालू-मिट्टी में विलिन होते हुए प्रवाहित होता था। उस गन्दा पानी को यह बनाया रास्ता मिल गया।

इस वर्ष प्रशासन ने विभिन्न मुहल्लों में अस्थाई तालाब बनाने और उनमें टैंकरों के जरिए गंगाजल लाकर छोड़ने की व्यवस्था भी की गई है। कई नेताओं और अफसरों ने लोगों से अपने घरों में टंकियों के आसपास छठ मनाने की अपील भी की है। गंगा व दूसरे जलस्रोतों की बदहाली की वजह से आम लोगों में इस तरह के प्रचलन पहले से आ गए हैं। पर यह न केवल छठ की मूल भावना के विरुद्ध है, बल्कि पर्व की सामाजिक उपयोगिता-जलस्रोतों की सफाई के भी प्रतिकूल है। छठ के समय गंगा की धारा कम-से-कम छह प्रमुख घाटों के पास लाने के इस काम में लालू यादव की खासी दिलचस्पी थी। लालू यादव स्वयं लगातार घाटों पर जाते रहे। परन्तु करीब डेढ़ महीने के काम के बाद नतीजा यह निकला कि बरसात के बाद इन घाटों पर गड्ढा, मिट्टी-कीचड़ और नाले का पानी था। वहाँ छठ होना सम्भव नहीं था।

वे घाट हैं-इन्दिरा घाट, एलसीटी घाट, कुर्जी घाट, गेट नम्बर 93 घाट, मखदूमपुर घाट और बुजुर्ग दीघा घाट। इस बीच केन्द्रीय जहाजरानी मंत्री शत्रुघ्न सिन्हा ने गंगा किनारे बोट चलाने के लिये 28 करोड़ की योजना लेकर आये। इस योजना के अन्तर्गत बालू और गाद को किनारे से हटाना था ताकि बोट चलाने के लिये पर्याप्त गहराई मिल सके।

उल्लेखनीय है कि जब पटना से उत्तर बिहार के लिये स्टीमर सेवा प्रचलन में थी, गंगा पर महात्मा गाँधी सेतु नहीं बना था, तब नौवहन के रास्तों को नियमित देखभाल का इन्तजाम भी होता था। बाद में यह काम उपेक्षित हो गया। गंगा घाटों की बदहाली के खिलाफ कई बार आन्दोलन हुए। सामाजिक कार्यकर्ता गुड्डू बाबा जनवरी 2004 में उपवास पर बैठे।

हाईकोर्ट में जनहित याचिकाएँ दाखिल हुई। इस बीच गंगा की धारा बदलने से निकली ज़मीन के कई दावेदार खड़े हो गए। कहीं उस ज़मीन में खेती होने लगी तो कई जगहों पर पक्के निर्माण भी होने लगे। नहर बनाने के काम में आई इस नई बाधा को को दूर करने के लिये हाईकोर्ट ने पुलिस को आदेश दिया।

बरसात के पहले काम पूरा कर भी लिया गया। परन्तु वांक्षित फल नहीं मिल सका। इसमें तकनीकी कारण और प्रशासनिक लापरवाही भी है। इस वर्ष प्रशासन ने विभिन्न मुहल्लों में अस्थाई तालाब बनाने और उनमें टैंकरों के जरिए गंगाजल लाकर छोड़ने की व्यवस्था भी की गई है। कई नेताओं और अफसरों ने लोगों से अपने घरों में टंकियों के आसपास छठ मनाने की अपील भी की है।

गंगा व दूसरे जलस्रोतों की बदहाली की वजह से आम लोगों में इस तरह के प्रचलन पहले से आ गए हैं। पर यह न केवल छठ की मूल भावना के विरुद्ध है, बल्कि पर्व की सामाजिक उपयोगिता-जलस्रोतों की सफाई के भी प्रतिकूल है। छठ महापर्व के दौरान गंगा में टिहरी और दूसरे बैराजों से अधिक पानी छोड़ने की सूझ किसी को नहीं है।

Path Alias

/articles/mahaaparava-maen-bhai-gangaa-tata-sae-vancaita-haain-baihaara-kae-gangaavaasai

Post By: RuralWater
×