
ओडिशा सरकार ने आईआईटी रुड़की से महानदी के सूखे को दूर करने के लिये सहयोग मांगा है। खास तरह की ‘प्यानो की वे’ तकनीकी से नदियों की स्टोरेज क्षमता बढ़ाने के विशेषज्ञ माने जाने वाले पूर्व वैज्ञानिक की ओर से इसके लिये प्रस्ताव भेजा गया है।
वैज्ञानिक प्रो. नयन शर्मा के अनुसार, महानदी में साल भर में तीन महीने ही पर्याप्त पानी रहता है। इसका करीब 58 फीसदी पानी समुद्र में समा जाता है। ऐसे में तकनीक के जरिए इसके सूखे को दूर किया जा सकता है। ओडिशा और छत्तीसगढ़ की सबसे बड़ी नदी के तौर पर महानदी का नाम आता है। आईआईटी के पूर्व वैज्ञानिक प्रो. नयन शर्मा ने बताया कि इस नदी में गर्मी के मौसम में पानी कम हो जाने से पीने के पानी की कमी हो जाती है। हाल ही में ओडिशा सरकार की ओर से आईआईटी रुड़की से महानदी की स्टोरेज क्षमता बढ़ाए जाने के लिये सहयोग मांगा गया है।
पूर्व वैज्ञानिक प्रो. नयन शर्मा ने बताया कि महानदी पर बनाया गया एक बांध और दो बैराज करीब 35 से 40 साल पुराने हो चुके हैं। जिन्हें मॉडिफाई कर इनकी जल संचय क्षमता बढ़ाए जाने की जरूरत है। उन्होंने बताया कि फ्रांस सहित विभिन्न देशों में ‘प्यानो की वे’ तकनीक से स्टोरेज बढ़ाने में मदद मिली है। ओडिशा में भी ऐसे प्रयोग सफल हो सकते हैं।
क्या है प्यानो की वे तकनीक
पूर्व वैज्ञानिक प्रो.नयन शर्मा ने बताया कि ‘प्यानो की वे’ तकनीक बांध के डिजाइन आधारित तकनीक है। इस बांध की खासियत यह होती है कि इसमें नीचे की तरफ गेट नहीं लगाए जाते। जरूरत के मुताबिक बांध पर जल संचय भी होता है, साथ ही ज्यादा पानी आने की स्थिति में इसके टूटने खा खतरा नहीं रहता और बांध के ऊपर से पानी ओवर फ्लो हो जाता है। फ्रांस, स्विट्जरलैंड और जर्मनी में इस तकनीक के आधार पर बांध और बैराज बनाए गए हैं। करीब 40 साल तक विदेशों में इस तकनीक पर काम कर चुके पूर्व वैज्ञानिक प्रो. नयन शर्मा ने हिमाचल प्रदेश के स्वारा कुद्दू में भी ‘प्यानो की वे’ तकनीक से बांध बनाया है।सामान्य से 40 फीसदी कम आती है लागत
पूर्व वैज्ञानिक प्रो. नयन शर्मा ने बताया कि ‘प्यानो की वे’ तकनीक से बने बांध की लागत सामान्य से 30 से 50 फीसदी तक कम आती है। यह ईको फ्रेंडली तरीके से जल संचय में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है। इसमें गेट लगाने और उन्हें नियंत्रित करने के उपायों की जरूरत नहीं होगी।
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