मेरठ का जल संकटः एक अध्ययन


प्राचीन काल से ही गंगा-यमुना का दोआब स्वच्छ पानी की प्रचुरता के लिए जाना जाता है. गंगा के किनारे बसा मेरठ जिला सिंचाई के लिए नहरों की पर्याप्त संख्या के कारण जल सम्पन्न माना जाता था. लेकिन जैसे-जैसे आबादी बढती गई, कृषि भूमि पर ज्यादा अन्न पैदा करने की होड तथा ज्यादा पानी की आवश्यक्ता वाली गन्ने की खेती का मोह भी बढता चला गया. इसके लिए नहरों के अलावा भारी संख्या में नलकूपों का सहारा लेना पडा, जिसके परिणामस्वरूप इस समय मेरठ जिले में 45,065 नलकूप मौजूद हैं. इसका सीधा असर यहां के भूजल स्तर पर पडता दिखाई दे रहा है और पानी के अत्यधिक दोहन के कारण जलस्तर निरंतर नीचे गिरता जा रहा है. जलस्तर गिरने से न केवल नलकूपों की गहराई समय-समय पर बढानी पडती है, बल्कि भूमि की नमी और उपजाऊपन में भी कमी आ रही है. नतीजन फसलों को ज्यादा पानी देना पडता है और पानी का अधिक दोहन होता है. इसके लिए जरूरी है कि कम पानी वाली फसलों की ओर झुके.

समस्या सिर्फ गिरते जलस्तर की ही नहीं है, ग्रामीण क्षेत्रों में भूजल का प्रदूषित होना चिंता का विषय बनता जा रहा है. फसलों में कीटनाशकों और रसायनों का बढता उपयोग इसका एक कारण है. इसका दुष्प्रभाव मिट्टी की उत्पादकता में कमी के रूप में दिखाई दे रहा है. इसके कारण भूजल भी प्रदूषित हो रहा है. जनहित फाउंडेशन द्वारा ग्रामीण क्षेत्रों में पेयजल का परीक्षण करने पर यह साफ हो गया है कि लोग अत्यधिक दूषित पानी पीने को मजबूर हैं. पानी में नाइट्रेट और फ्लोराइड जैसे तत्व भारी मात्रा में मौजूद हैं. इसका समाधान ढूंढने के बजाय सरकार ने पानी का दोहन करने के लिए इंडिया मार्का 2 हैंडपंप लगवा दिए. क्या यही समस्या का समाधान है ? लेकिन इस समस्या से कब तक बचा जा सकता है. कभी गांव के लोग कुओं के पानी पर ही निर्भर रहा करते थे, लेकिन आज स्थिति यह है कि मेरठ जिले में 1541 कुएं सूख गए हैं या फिर इन्हें कूडादान बना दिया गया है. प्राकृतिक जलस्रोतों की उपेक्षा के परिणामस्वरूप भूमिगत जलस्तर निरंतर नीचे गिरता चला जा रहा है जिसके कारण इस जिले के लोगों के सामने पानी का भयावह संकट खडा हो गया है. इसके लिए जरूरी है कि कुओं और तालाबों को फिर जीवित किया जाए और तय किया जाए कि गांव का पानी गांव में और खेत का पानी खेत में ही रहे. अब घर का पानी घर में ही संजोना अपरिहार्य दिखाई दे रहा है. मेरठ जिले के खरखौदा, रजपुरा, मेरठ और सरूरपुर ब्लॉक के कुछ क्षेत्रों में तो नलकूपों ने पानी देना ही बंद कर दिया है. क्या यह समस्या मेरठ वालों को चौंकाने के लिए काफी नहीं ? या फिर किसी और विपत्ति का इंतजार है.

घटता पानी

पिछले 10 वर्षों की औसत वर्षा पर नजर डालें तो शुरू के 5 वर्षों की वर्षा का औसत 854.44 मिमी था, जबकि बाद के 5 वर्षों का औसत केवल 628.16 मिमी है अर्थात बारिश में भयंकर कमी आई है. मेरठ जिले में 1118 तालाब विलुप्त हो गए हैं, जबकि बचे 1944 तालाबों में से 1229 में ही पानी है. 2086 कुओं में से मात्र 545 में ही पानी बचा है, वह भी अत्यंत प्रदूषित है. नहरों के पानी में कमी आई है और भूमिगत जलस्तर तेजी से गिर रहा है.

बढता दोहन

जहां एक ओर पानी के विभिन्न स्रोतों में निरंतर गिरावट देखी जा रही है, वहीं दूसरी ओर पानी की अत्यधिक आवश्यकता वाली फसलों और नलकूपों के फैलते जाल के कारण पानी का दोहन अप्रत्याशित दर से बढ रहा है. मेरठ में 45065 नलकूप और 10761 हैंडपंप इसी दोहन की कहानी कह रहे हैं.

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