वर्षा का पानी हमारी वर्ष भर की जरूरतों को पूरा कर सकता है, बशर्ते उसे यूँ ही न बह जाने दिया जाय। खेतों की मेड़बन्दी से लेकर पोखरों, तालाबों, कुँए आदि का निर्माण इसीलिए किया जाता है कि वर्षा का जल उनमें इकट्ठा होकर धरती की और प्राणियों की प्यास बुझाता रहे। जल संचयन भूमि की सतह (छत, पार्किंग, भूमि आदि) पर जल अपवाह को रोककर इकट्ठा करने की प्रक्रिया है, इस रोके गये जल को स्थान विशेष पर रोकने की प्रक्रिया को स्वैस्थानिक (ऑनसाइट) वर्षाजल संरक्षण कहते हैं, स्वैस्थानिक (ऑनसाइट) वर्षाजल संरक्षण का एक तरीका है मेड़बन्दी।
मेडबन्दी हल्के ढ़लान वाली भूमि पर अपनाए जाती हैं। यह ढ़लानों की लम्बाई कम कर अपवाह वेग को निंयत्रित करती है तथा अपवाह प्रवाह को ढलानों की ओर बहने से रोकती है। परिणामस्वरूप मृदाक्षरण नियत्रण (Soil erosion control) के साथ-साथ भूमि में नमी का भी संरक्षण होता है। मेड़बन्दी निम्नलिखित प्रकार से की जाती है।
समोच्च मेड़बंदी (Contour Bunding)
एक सुव्यवस्थित समोच्च मेड़बंदी
सारणी-1 भूमि के ढाल के अनुसार समोच्च वंधों का अन्तराल
भूमि ढ़ाल (प्रतिशत) |
उर्घ्व अन्तराल (मी.) |
क्षैतिज दूरी (मी.) |
1 |
1.05 |
105 |
1 - 1.5 |
1.20 |
98 |
1.5 - 2.0 |
1.35 |
75 |
2 – 3 |
1.50 |
60 |
3 – 4 |
1.65 |
52 |
ढ़ालदार मेड़बंदी (Graded Bunding)
इस प्रकार के बंधों की ऐसी परिस्थितियों में सिफारिश की जाती है जहां वर्षा अधिक होती हो अथवा वर्षाजल मिट्टी द्वारा एकदम अवशोषित न होता हो । यह विशेष रूप से चिकनी मिट्टी के लिये उपयुक्त है। इन बंधों के साथ साथ एक नाली भी बनाई जाती है जो वर्षाजल अपवाह को बंध के साथ साथ नियंत्रित वेग से ले जाने में प्रयुक्त होती है। ढ़ालदार बंध में सामान्यतया 0.2 से 0.4 प्रतिशत ढ़ाल दिया जाता है।
सुव्यवस्थित ढालदार बंध
ढालदार बंध बनाने की योजना
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