मानसून ने मध्यप्रदेश में दस्तक दे दी है। इस साल संभवतः सामान्य रहने वाले मानसून के कारण प्रदेश के अधिकांश जिलों में जून माह में ही औसत से अधिक पानी बरस गया है। इस बरसात के कारण प्रदेश की छोटी-बड़ी नदियों में धीरे-धीरे प्रवाह लौटने लगा है। प्रवाह के लौटने के कारण सिंचाई जलाशयों का भरना प्रारंभ हो गया है। दिनांक 22 जून 2020 की स्थिति में प्रदेश के 251 मुख्य सिंचाई जलाशयों का जल भराव (स्रोत - मध्यप्रदेश के जल संसाधन विभाग की बेव-साइट) निम्नानुसार है-
- दस प्रतिशत से कम जल भराव - 98 जलाशय
- दस प्रतिशत से पच्चीस प्रतिशत जलभराव - 53 जलाशय
- पच्चीस प्रतिशत से पचास प्रतिशत जल भराव - 60 जलाशय
- पचास प्रतिशत से पचहत्तर प्रतिशत जल भराव - 32 जलाशय
- पचहत्तर प्रतिशत से नब्बे प्रतिशत जल भराव - 08 जलाशय
- नब्बे प्रतिशत से अधिक जल भराव - शून्य
इन जलाशयों में से केवल सत्ताइस जलाशयों में ही पानी का मौजूदा स्तर डेड-स्टोरेज के नीचे है। ये जलाशय चम्बल-बेतवा बेसिन, धसान-केन बेसिन, नर्मदा बेसिन, यमुना बेसिन और होशंगाबाद जिले में स्थित हैं। गंगा बेसिन, राजघाट, वैनगंगा और राजगढ़ जिले के जलाशयों सहित बाकी सभी जलाशयों का न्यूनतम जल भराव स्तर डेड-स्टोरेज के ऊपर है। आने वाले सीजन में सिंचाई के नज़रिए से यह अच्छी स्थिति है। अर्थात आने वाले दिनों में बेहतर उत्पादन की उम्मीद की जा सकती है।
हालिया बरसात के कारण 17 जून 2020 की स्थिति में भोपाल और उसके आसपास के तालाबों में पानी भरना शुरू हो गया है। भोपाल को पानी देने वाला बड़ा तालाब मात्र 5 फीट खाली है। उम्मीद है कि यदि सही तरीके से पानी बरसा तो वह इस साल 15 जुलाई तक लबालब भर जावेगा। अन्य जलाशयों में कोलार बांध मात्र ग्यारह मीटर, कलियासोत बांध तीन मीटर, केरवा बांध चार मीटर, और हथाईखेडा बांध केवल चार मीटर खाली है। यह स्थिति उस समय की है जब भोपाल में औसत सालाना बरसात 1126.7 मिलीमीटर के विरुद्ध मात्र 75.5 मिलीमीटर (लगभग छः प्रतिशत) ही पानी बरसा है।
उल्लेखनीय है कि पिछले मानसून सीजन में साल प्रदेश के अधिकांश जिलों में सामान्य से अधिक बरसात हुई थी। बरसात के बाद, नान-मानसून सीजन में भी काफी जगह पानी बरसा था। पिछले साल अगस्त माह की अच्छी बरसात के कारण भोपाल के सभी जलाशय, कई बार ओव्हर-फ्लो हुए थे। कलियासोत डैम के 40 बार, केरवा डैम के गेट 28 बार खोले गए थे। इस मामले में भोपाल का बड़ा तालाब भी पीछे नहीं था। उसके गेट भी खोले गए थे। इसी क्रम में उल्लेख है कि सन 2018 की वर्षा ऋतु में नर्मदा कछार में लगभग 30 प्रतिशत कम पानी बरसा था। उस साल कोलार डैम और भोपाल का बड़ा तालाब भी पूरी तरह नहीं भरा था। ग़ौरतलब है कि जलाशयों का भरना बरसात के चरित्र, उसकी मात्रा, जलाशयों की जल भराव क्षमता, पानी देने वाली नदी के सकल योगदान एवं कैचमेंट में भूजल के दोहन पर निर्भर होता है। उसके बारे में सटीक भविष्यवाणी संभव नहीं होती।
इस साल, मौसम विभाग द्वारा बरसात के सामान्य होने की संभावना व्यक्त की गई है। इस कारण प्रदेश के सभी जलाशयों के लबालब भरने की बहुत अच्छी संभावना है। पचहत्तर प्रतिशत से अधिक भरे आठ बांधों में एक से अधिक बार ओव्हर-फ्लो होने की संभावना है। उनके गेटों को खोले जाने की संभावना जुलाई के अन्तिम सप्ताह या अगस्त माह में भी हो सकती है। इससे निचले इलाकों में बाढ़ और जल भराव की संभावना है। इसे ध्यान में रखकर उनकी सतत मानीटरिंग आवश्यक होगी। निचले इलाकों तथा बांध सुरक्षा पर भी पर्याप्त ध्यान देना होगा। बांधों के निचले इलाकों में बाढ़ के कुप्रभाव से बचने की तैयारी भी करना होगा। सामान्य बरसात की संभावना के कारण मध्यप्रदेश के पचास से पचहत्तर प्रतिशत भरे बांधों की अनदेखी भी संभव नहीं है। उनके मामले में भी उतनी ही सावधानी की आवश्यकता है जितनी पचहत्तर प्रतिशत से अधिक भरे बांधों के बारे में कहा गया है। संक्षेप में, गंगा बेसिन,, राजघाट, वेनगंगा कछार और राजगढ़ इलाके के बांधों के निचले इलाकों में अतिरिक्त तैयारी और सतर्कता वांछनीय है। यह काम जल संसाधन विभाग की ज़िम्मेदारी के अंतर्गत आता है। कोरोना काल के बावजूद, जनहित में, उसे पूरी निष्ठा करना आवश्यक है। समाज को भी सतर्क रहना चाहिए।
मध्यप्रदेश के अनेक सिंचाई जलाशय अपनी आयु का काफी बड़ा हिस्सा पूरा कर चुके हैं। उनमें से अनेक में गाद जमाव की समस्या है। कुछ में यह समस्या गंभीर है तो कुछ जलाशय, कैचमेंट से आने वाले पानी की कमी के कारण परेशान हैं। इस कारण अनेक बार, निर्धारित ज़िम्मेदारी नहीं निभा पाते है। इस साल की बरसात प्रदेश के लगभग सभी बांधों के लिए आशा की किरण लेकर आई है। पर्याप्त बरसात की संभावना के कारण उनका पूरा भरना और लबालब होने के कारण उनके गेट खोलना अनिवार्य होगा। यह वह उपयुक्त अवसर है जब उनमें जमा गंदगी और गाद की कुछ मात्रा अपने आप बाहर निकल सकती है। गाद और गंदगी की निकासी के लिए विभाग को गेट खोलने की प्रक्रिया को बेहद प्रोफेशनल तरीके और इंजीनियरिंग दक्षता से करने की आवश्यकता है। इसमें गेट खोलना और उसके लिए उचित समय का चयन करना बेहद महत्वपूर्ण होगा। यह सही है कि इन जिम्मेदारियों को निभाने में, विभागीय अमले को, लॉक-डाउन के कारण, अनेक व्यावहारिक कठिनाइयों का सामना करना पड़ सकता है। चूँकि आगे भी स्थिति के बहुत मुफीद होने की संभावनाओं के बारे में निर्णायक तरीके से कुछ नहीं कहा जा सकता अतः इस अवसर को जलाशयों की सेहत को सुधारने के लिए काम में लिया जाए।
इस साल पर्याप्त बरसात की संभावना है इसलिए अतिरिक्त पानी के संरक्षण और सम्बर्धन (सदुपयोग) के बारे में सोचा जाना चाहिए। उन तौर-तरीकों के बारे में सोचा जाना चाहिए जो जल संकट के ग्राफ को छोटा कर सकते हैं। जल प्रबंध के उस विकल्प के बारे में सोचा जाना चाहिए जो हर बसाहट में जल स्वराज और हर खेत को इश्टतम पानी सुनिश्चित कर सके। इसके लिए उपयुक्त रोडमेप तथा ढांचे के बारे में सोचा जाना चाहिए। साथ ही, इन जलाशयों की भूमिका के बारे में सोचा जाना चाहिए। उनकी लंबी उम्र के बारे में सोचा जाना चाहिए। उनकी सेवा की गुणवत्ता तथा गाद जमाव के कारण घटती निरन्तरता के बारे में सोचा जाना चाहिए। ग़ौरतलब है कि जल क्षेत्र की अनेक समस्यायें प्रदेश की चिन्ता का विषय हैं इसलिए उनके निदान में जलाशयों की भूमिका को तलाशा जाना चाहिए।
/articles/madhayaparadaesa-kae-paramaukha-saincaai-jalaasaya-kaucha-sanbhaavanaayaen-kaucha