मध्य प्रदेश में परमाणु बिजली परियोजनाओं का विरोध

जल, जंगल और जमीन संबंधी अधिकारों के प्रति जागरूक करने के लिए इस क्षेत्र में आदिवासी संगठनों के साथ कुछ वामपंथी संगठन भी सक्रिय हैं। ये लोग नुक्कड़ नाटकों, आजादी के तरानों व चित्रों की प्रदर्शनी लगाकर जनजागरण की मुहिम में लगे हैं। लोगों को अगाह किया जा रहा है कि चुटका परमाणु संयंत्र से निकला विकिरण पूरी नर्मदा नदी को तबाह कर देगा। इससे नर्मदा किनारे बसे शहर, कस्बों और गाँवों को भी भारी नुकसान झेलना होगा, क्योंकि मछली पालन से लेकर पीने के पानी तक के लिए लोग इसी नदी पर आश्रित हैं।भोपाल, 23 फरवरी। मध्य प्रदेश में मंडला और शिवपुरी जिलों में परमाणु बिजलीघर प्रस्तावित हैं। शिवपुरी में अभी भूमि अधिग्रहण शुरू नहीं हुआ है, लेकिन मंडला जिले में लगने वाली चुटका परमाणु परियोजना को भारी विरोध के बावजूद प्रदेश सरकार आगे बढ़ाने में लगी है।

कुछ लोग नए भूमि अधिग्रहण अधिनियम के तहत ज्यादा गुना मुआवजा मिलने के कारण परियोजना का समर्थन भी कर रहे हैं। इनमें ज्यादातर वे लोग हैं, जो कृषि के साथ-साथ सरकारी सेवा व अन्य काम-धंधों से जुड़े हैं। लेकिन बहुसंख्यक गौड़ जनजाति के आदिवासी इस परियोजना के खिलाफ हैं।

चुटका परमाणु बिजली परियोजना का विरोध कर रहे एक स्थानीय गैर सरकारी संगठन के बाबूलाल मरावी ने कहा कि परमाणु संयंत्र लगते हैं, तो मंडला जिले के 54 गाँवों की करीब सवा लाख आबादी विस्थापित होगी। कुल 165 गाँवों के लोग प्रभावित होंगे। इनमें से ज्यादातर वे लोग हैं, जो बरगी बांध निर्माण के समय उजाड़े जा चुके हैं। इस संयंत्र के नर्मदा नदी के किनारे लगाए जाने से उसका जल प्रदूषित होने का खतरा भी बढ़ जाएगा।

केंद्र सरकार ने 2009 में मंडला जिले के चुटका में परमाणु बिजलीघर लगाने की मंजूरी दी थी। 20 हजार करोड़ रुपए लागत की इस परियोजना के तहत सात-सात सौ मेगावाट की दो इकाईयां लगनी हैं। इसके लिए चुटका, टाटीघाट, कुंडा और मानेगांव की 497 हेक्टेयर जमीन का अधिग्रहण किया जाना है। इसमें 288 हेक्टेयर जमीन निजी खातेदारों की और 209 हेक्टेयर जमीन राज्य सरकार के वन विभाग और नर्मदा घाटी विकास प्राधिकरण की है।

चुटका परियोजना का विरोध कर रहे आदिवासियों की समिति के अध्यक्ष रामकुंवर ने कहा कि राज्य सरकार ने जन सुनवाई के जरिए भूमि अधिग्रहण की प्रक्रिया शुरू कर दी है। इससे पहले दो बार भारी विरोध के कारण सुनवाई टाली जा चुकी है। लेकिन 17 फरवरी को जिस अलोकतांत्रिक ढंग से सरकार के नुमाइंदों ने सुनवाई को अंजाम दिया, उससे लगता है कि सरकार आंदोलनकारियों का दमन कर जन सुनवाई की खानापूर्ति कर लेना चाहती है ताकि आंदोलनकारी अदालत गए तो वाजिब जवाब दिया जा सके।

उन्होंने कहा कि प्रशासन ने पुलिस लगाकर 10 घंटे तक राष्ट्रीय राजमार्ग 12 को रोके रखकर ज्यादातर विरोधियों को सुनवाई स्थल तक पहुंचने ही नहीं दिया। उन्होंने कहा कि पिछले साल 31 जुलाई को भी जन सुनवाई के दिन आला अधिकारियों ने चालाकी से जगह बदल दी थी। इससे गरीब आदिवासी सुनवाई स्थल तक पहुंच ही नहीं पाए।

रामकुंवर ने बताया कि इसके बावजूद 165 ग्रामों के लोगों ने सामाजिक कार्यकर्ता गुलजार सिंह मरकाम की अगुआई में भारी विरोध किया। नतीजतन सरकार को कार्रवाई स्थगित करनी पड़ी थी। प्रशासन जनता को धोखे में रखकर काम को आगे बढ़ाता है तो इस क्षेत्र के कई ग्रामों के हालात विस्फोटक हो जाएंगे। ये गांव पश्चिम बंगाल की तरह सिंगूर और नंदीग्राम में भी बदल सकते हैं।

मरावी ने बताया कि स्थानीय लोगों को जल, जंगल और जमीन संबंधी अधिकारों के प्रति जागरूक करने के लिए इस क्षेत्र में आदिवासी संगठनों के साथ कुछ वामपंथी संगठन भी सक्रिय हैं। ये लोग नुक्कड़ नाटकों, आजादी के तरानों व चित्रों की प्रदर्शनी लगाकर जनजागरण की मुहिम में लगे हैं।

लोगों को अगाह किया जा रहा है कि चुटका परमाणु संयंत्र से निकला विकिरण पूरी नर्मदा नदी को तबाह कर देगा। इससे नर्मदा किनारे बसे शहर, कस्बों और गाँवों को भी भारी नुकसान झेलना होगा, क्योंकि मछली पालन से लेकर पीने के पानी तक के लिए लोग इसी नदी पर आश्रित हैं।

एक अन्य एनजीओ ‘प्रयत्न’ के अब्दुल जब्बार के मुताबिक राज्य सरकार को पता होना चाहिए कि वह ग्रामसभा की इजाजत के बिना संंयंत्र नहीं लगा सकती है। पंचायती राज अनुसूचित क्षेत्र विस्तार अधिनियम और आदिवासी व अन्य वनवासी भूमि अधिकार अधिनियम (वनाधिकार कानून) को आधार बनाकर ही सुप्रीम कोर्ट ने ओड़िशा की नियमगिरी पहाड़ियों से बॉक्साइट के उत्खनन पर रोक रोक लगाई थी। जब्बार ने कहा कि इस परमाणु संयंत्र के परिप्रेक्ष्य में मध्य प्रदेश सरकार को इस फैसले को देखते हुए ही भूमि अधिग्रहण की कार्रवाई को आगे बढ़ाना चाहिए वरना उसे झटका लग सकता है।

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