मध्य प्रदेश में खेती के संकट

छत्तीसगढ़ अलग राज्य के होने के बाद क्षेत्रफल की दृष्टि से मध्यप्रदेश भारत का तीसरा और जनसंख्या की दृष्टि से सातवा बड़ा राज्य है। मध्यप्रदेश एक कृषि प्रधान प्रदेश है। मसलन यहां मुख्य जीविकोपार्जन का आधार खेती है। खेती और उससे संबंधित सेवाओं का प्रदेश की अर्थव्यवस्था में 31 प्रतिशत योगदान होता है। प्रदेश की 74 प्रतिशत आबादी गांवों में निवास करती है। नेशनल सैम्पल सर्वे आर्गेनाइजेशन के 55 राउण्ड के सर्वे 1999-2000 के अनुसार 84 प्रतिशत ग्रामीण पुरुष और 92 महिलाएं खेती पर निर्भर हैं। इतनी ज्यादा संख्या में खेती से जुड़े लोगों के बावजूद खेती की हालत खस्ता है और इस संकट का मतलब है कि प्रदेश की बहुतायत जनसंख्या के सामने खतरा है। 2001 में जारी हुए राष्ट्रीय मानव विकास प्रतिवेदन के अनुसार मध्यप्रदेश के करीब 22 मिलियन (दो करोड़ बीस लाख) ग्रामीण लोग गरीबी रेखा के नीचे गुजारा करते हैं। खेती से संबंधित विभिन्न अध्ययन बताते हैं कि कई तरह की समस्याएँ इस क्षेत्र में हैं:

जोतो की संख्या में बदलाव:-यदि यहां दी गई तालिकाओं को देखें तो स्पष्ट रूप से समझ सकते हैं कि किसानों की संख्या में लगातार तबदीली हो रही है। इनके कारणों को तलाश कर उनका विश्लेषण करके इस उभारा जा सकता है।
घाटे की खेती:-आंकड़े बता रहे हैं कि खेती घाटे का सौदा होते जा रही है। उत्पादन लागत का बढ़ना और उत्पादन में ठहराव के कारण ऐसी स्थिति बन रही है। ठीक ठाक ढंग से विभिन्न आंकड़ों का विश्लेषण करके इसे तलाशा जा सकता है।
समर्थन मूल्य:-एक मोटी जानकारी के अनुसार गेहूं की उत्पादन लागत से भी कम समर्थन मूल्य सरकार द्वारा तय किया जा रहा है। इस बात की पड़ताल करने की जरूरत है। पिछले कुछ सालों में समर्थन मूल्य में हुए बदलाव और अन्य वस्तुओं के मूल्यों में हुए बदलाव के तुलनात्मक अध्ययन से इस बात को समझना आसान होगा।
खेती का कंपनीकरण:-संविदा खेती के जरिए खेती को कंपनियों के हाथों में देने की तैयारी की जा रही है। इससे खेती में व्यापक बदलाव होगा। इस मुद्दे को फील्ड के अनुभवों के आधार पर देखा जाना चाहिए।
• चौपाल का जंजाल:-आईटीसी के सोया चौपाल के अलावा भी बहुत सी कंपनियों ने चौपाल बनाए हैं। इन चौपालों का अध्ययन किया जाना चाहिए इसके प्रभाव किसानों पर क्या हो रहे हैं? भविष्य में क्या खतरे हैं? इस सबको देखा जाना चाहिए। यहां आईटीसी के बारे में काफी जानकारी दी गई है शेष कंपनियों के बारे में जानकारी प्राप्त की जानी चाहिए।
हरित क्रांति का प्रभाव:- दूसरी हरित क्रांति की प्रक्रिया सरकार चला रही है। पहली हरित क्रांति के क्या प्रभाव हुए इसे देखने की जरूरत है। दूसरी हरित क्रांति का भी विश्लेषण किया जाना चाहिए।
कृषि नीति का विश्लेषण: संसार कृषि राज्य का विषय है लेद भी विधान के अनुचित इस सबके बावजूद राज्य में कोई कृषि नीति अब तक नहीं बनाई गई है। इस बात को जानने और विश्लेषण करने की जरूरत है। राष्ट्रीय कृषि नीति भी सन् 2000 में बनाई गई थी वर्तमान में इसकी स्थिति क्या है इसे देखना चाहिए।
किसान आयोग:- सरकार ने दो साल पहले राष्ट्रीय किसान आयोग एवं राज्य किसान आयोग का गठन की रपट का विश्लेषण किया है। इन आयोजन किया जाना चाहिए। उन पर कितना अमल किया जा रहा है? उनकी अनुशंसाएं क्या हैं? आदि।
फसल बीमा योजना: फसल बीमा योजना का शिगूफा एक अध्ययन का मुद्दा है। इसके बारे में लोगो के अनुभवों को जानने समझने की जरूरत है।
उद्यानिकी मिशन: ग्यारहवीं पंचवर्षीय योजना में केन्द्र सरकार ने उद्यानिकी मिशन नामक एक योजना रखी है। मध्यप्रदेश के 18 जिले इस योजना में शामिल किए गए हैं। इसके तहत क्या होगा? उसके असर क्या होंगे? समझने की जरूरत है।
एग्री एक्सपोर्ट जोन:- मध्यप्रदेश में विभिन्न फसलों को लेकर पांच एग्री एक्सपोर्ट जोन बनाए गए हैं। इन जोनों का विश्लेषणात्मक अध्ययन किया जाना चाहिए। इसका खेती पर क्या असर हो रहा है, इसकी पड़ताल की जानी चाहिए।
एग्री बिजनेस मीट:-खजुराहों मीट और फिर भोपाल की एग्री बिजनेस मीट दोनों में तमाम कंपनियों ने कई-कई वायदे किए थे उन वायदों या उनके काम का लोगों पर क्या असर हो रहा है इसे देखने की जरूरत है।
संविदा खेती:- मध्यप्रदेश में संविदा खेती के लिए विभिन्न कंपनियां रुचि ले रही हैं लेकिन संविदा खेती के किसानों पर क्या असर होंगे, इसे देखने की जरूरत है।
फसल चक्र में बदलाव:- खेती के व्यवसायीकरण के चलते फसल चक्र में बदलाव आ रहा है। स्वाभाविक है इसका लोगों के जीवन स्तर पर प्रभाव होगा, मसलन खाद्यान्न सुरक्षा की दृष्टि से इस विषय को परखा जाना चाहिए।
मजदूरी के दिन:- खेती एक रोजगार का जरिया हुआ करती थी लेकिन वर्तमान में इससे रोजगार के कितने अवसर मिल पा रहे हैं इस बात को भी समझा जा सकता है।

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