‘‘अन्त्योदय’’ के विशेष सन्दर्भ में
मध्य प्रदेश की जनजातियों के विकास के लिये इनकी प्रत्येक समस्या को राष्ट्रीय समस्या के रूप में आँका जाना आवश्यक है। साथ ही नीतियाँ निर्धारित करते समय प्रदेश के विभिन्न भागों में निवास कर रही आदिवासी जनजातियों की स्थानीय परिस्थितियों को ही ध्यान में रखना चाहिए। लेखक के विचार में अभी तक सरकार द्वारा चलाए जा रहे कार्यक्रमों का लाभ वर्ग विशेष तक सीमित रहा है। विभिन्न विकास कार्यक्रमों का लाभ निचले वर्ग तक पहुँचाने के लिये इन योजनाओं का सही एवं ईमानदारी से क्रियान्वयन बेहद जरूरी है तभी आदिवासियों के विकास का सपना साकार हो सकता है। भारतीय संविधान में सदियों से पीड़ित, शोषित व पिछड़े हुए लोगों, विशेष रूप से आदिवासी जनजातियों के विकास व उत्थान की समुचित व्यवस्था की गई है। स्वतन्त्रता प्राप्ति के पश्चात इस वर्ग को विकास की मुख्य धारा से जोड़ने व वर्गहीन, शोषण-रहित व भयमुक्त समाज की स्थापना के उद्देश्य से देश में अनेकानेक योजनाएँ चलाई गई हैं। मध्य प्रदेश सरकार ने भी इस वर्ग के सर्वांगीण विकास हेतु प्रदेश में शैक्षिक, आर्थिक व सामाजिक कार्यक्रमों को उच्च प्राथमिकता के आधार पर संचलित किया है। वर्तमान में मध्य प्रदेश सरकार द्वारा ग्रामीण क्षेत्रों के आर्थिक रूप से पिछड़े वर्ग के व्यक्तियों के आर्थिक तथा सामाजिक उत्थान एवं चहुंमुखी विकास के लिये अन्त्योदय योजना चलाई जा रही है।
अन्त्योदय योजना का प्रमुख उद्देश्य अनुसूचित जाति एवं जनजाति के गरीब सदस्यों का आर्थिक विकास एवं जीवन-स्तर सुधारने के लिये विभिन्न प्रकार की योजनाएँ तैयार करना तथा उनके क्रियान्वयन हेतु वित्तीय, प्रबन्धकीय एवं विपणन सहायता प्रदान करना है। इस योजना की शुरुआत नवम्बर, 1990 में की गई थी। इस दिशा में किये गए महत्त्वपूर्ण कार्य व उपलब्धियाँ निम्नानुसार हैं-
1. अन्त्योदय स्वरोजगार योजना
शहरी एवं ग्रामीण क्षेत्रों में गरीबी रेखा से नीचे जीवनयापन करने वाले अनुसूचित जनजाति के बेरोजगार लोगों को स्वयं का रोजगार स्थापित करने हेतु अधिकतम 35 हजार रुपए बैंक ऋण के रूप में उपलब्ध कराने का प्रावधान है। इसमें से इकाई लागत का 50 प्रतिशत अथवा अधिकतम 5,000 रुपए अनुदान रूप में योजना द्वारा देय होगा एवं शेष राशि बैंक ऋण के रूप में प्रदान की जाएँगी
वर्ष 1991-92 में इस योजना के अन्तर्गत 14,738 हितग्राहियों को एवं 1992-93 में नवम्बर, 1992 तक 4186 हितग्राहियों को स्वरोजगार स्थापना हेतु क्रमशः 351.65 लाख रुपए एवं 417.06 लाख रुपए का ऋण एवं अनुदान प्राप्त हो सका।
2. नवजीवन आवास योजना
इस योजना के अन्तर्गत सर्वाधिक गरीब वर्ग यथा आवासहीन असंगठित मजदूर वर्ग, हम्माल एवं लघुतम व्यापारी, आदिवासी जनजाति को आवास एवं पर्यावरण के सहयोग से विकसित आवासीय भूखण्ड आवंटित करने की महत्त्वाकांक्षी योजना हाथ में लेने का निर्णय लिया गया है।
इस योजना के तहत वर्ष 1991-92 में आदिवासी जनजाति के 330 हितग्राहियों को लाभान्वित करने के लिये निर्धारित राशि 25.35 लाख रुपए में से 9.17 लाख रुपए व्यय किये गए, जिसमें 8.18 लाख रुपए के ऋण एवं 0.98 लाख रुपए का ब्याज अनुदान के रूप में सम्मिलित है।
3. वसुन्धरा-कृषि भूमि क्रय योजना एवं बंजर भूमि पुनरुद्धार योजना
ग्रामीण क्षेत्रों में कृषि भूमि ही प्राथमिक एवं बुनियादी सम्पत्ति है, आर्थिक सुरक्षा एवं सामाजिक प्रतिष्ठा दोनों का यह मूल स्रोत है। इसको दृष्टिगत रखते हुए भूमिहीन आदिवासी को कृषि उपलब्ध कराया जाना एक अनिवार्यता है।
इस योजना के तहत् वर्ष 1991-92 में अनुसूचित जनजाति के 320 भूमिहीन कृषकों को 40.04 लाख रुपए का 10 वर्षों का ब्याज मुक्त ऋण प्रदान किया गया एवं वर्ष 1992-93 में भी 146 हितग्राहियों को 19.75 लाख रुपए के ऋण प्रदान किये गए।
4. जलजीवन-सामूहिक सिंचाई योजनाएँ
अनुसूचित जनजाति के निर्धन कृषकों, जिनके पास जमीन का छोटा सा टुकड़ा भी हो, को सिंचाई सुनिश्चित सुविधा उपलब्ध कराने के उद्देश्य से अन्त्योदय योजना के तहत सम्पूर्ण प्रदेश में सामूहिक सिंचाई योजनाओं का व्यापक स्तर पर निर्माण कराने हेतु 2,620 अनुसूचित जनजाति के कृषकों को 51.78 लाख रुपए ऋण तथा ब्याज अनुदान के रूप में वर्ष 1991-92 में एवं वर्ष 1992-93 में नवम्बर, 1992 तक 567 हितग्राहियों को 54.34 लाख रुपए के ऋण तथा ब्याज अनुदान उपलब्ध कराए गए ताकि नदी-नालों पर सामूहिक उद्वहन, मोटर-पम्प एवं पाइप लाइन योजनाएँ क्रियान्वित की जा सकें।
5. स्वावलम्बन-दुकान योजना
राष्ट्रीय अनुसूचित जाति एवं जनजाति वित्त विकास निगम से प्राप्त ऋण से दुकान शैड्स तथा गुमटियाँ निर्माण करने की योजना के तहत वर्ष 1991-92 में 2,500 हितग्राहियों को लाभान्वित किये जाने की योजना थी लेकिन 374 हितग्राहियों को ही लाभान्वित किया जा सका। योजना हेतु 700 लाख रुपए वित्तीय प्रावधान के बावजूद केवल 35.92 लाख रुपए ही व्यय किये गए।
6. पवन-पुत्र आटो रिक्शा एवं टैम्पो प्रदाय योजना
नगरीय यातायात लाइसैंस नियमों को उदार बनाने से इस योजना के माध्यम से अनुसूचित जनजाति के गरीब युवकों को स्वरोजगार के श्रेष्ठ अवसर प्राप्त हो सकेंगे। वर्ष 1991-92 में आदिवासी जनजाति के करीब 500 गरीब युवकों को स्वरोजगार के अवसर उपलब्ध कराने के रूप में उन्हें 278.05 लाख रुपए के ऋण आटो रिक्शा एवं टैम्पो क्रय करने हेतु राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति विकास एवं वित्त निगम से उपलब्ध कराए गए।
7. मधुवन:
मध्य प्रदेश पशु विकास निगम के सहयोग से क्रियान्वित होने वाली इस योजना में 50 से 100 अनुसूचित जनजाति के भूमिहीन सदस्य प्रत्येक डेयरी फार्म एवं सामुदायिक पशु विकास फार्म में कार्य करेंगे तथा उसके मालिक भी वे ही रहेंगे।
8. निर्मित-श्रम ठेका समिति
अनुसूचित जनजाति वर्ग के श्रमिकों को सीधे लाभ दिलाने के उद्देश्य से उन्हें भवन निर्माण की विभिन्न कुशलताओं में प्रशिक्षित कर प्रशिक्षित स्नातक अथवा डिप्लोमा इंजीनियर की अध्यक्षता में उनकी श्रम ठेका सहकारी समितियाँ गठित की गई हैं। इन समितियों को विभिन्न शासकीय एवं निजी निर्माण में ठेका उपलब्ध कराना भी योजना का दायित्त्व होगा। वर्ष 1991-92 में ऋण एवं अनुदान स्वरूप 0.98 लाख रुपए 106 हितग्राहियों को प्रदान किये गए एवं वर्ष 1991-93 में 273 हितग्राहियों को निर्धारित लक्ष्य में से नवम्बर, 1992 तक 7.8 हितग्राहियों को 0.48 लाख रुपए के ऋण अनुदान प्राप्त हुए।
9. रफ्तार
जनजातियों के प्रशिक्षित वाहन चालकों, कंडक्टरों एवं श्रमिकों इत्यादि हेतु गठित यातायात समितियों को बस एवं ट्रक क्रय करने हेतु वर्ष 1991-92 में 174.23 लाख रुपए एवं वर्ष 1992-93 में नवम्बर, 1992 तक 44.56 लाख रुपए के स्वीकृत ऋण व अनुदान से क्रमशः 234 एवं 148 हितग्राही लाभान्वित हो सके।
10. वनजा
वन में बसने वाली आदिवासी जनजाति को उनके घर के निकट लघु वनोपज पर आधारित लघु उद्योगों में रोजगार सुलभ कराया जाये तो उन्हें आर्थिक विकास के लिये एक महत्त्वपूर्ण स्रोत प्राप्त हो सकता है।
11. धनवन्तरी
अनुसूचित जनजाति के एलोपैथिक या आयुर्वेदिक चिकित्सकों को बेरोजगार न रहना पड़े, इसलिये उनके मूल निवास स्थान अथवा विकासखण्ड मुख्यालय में ही निजी प्रैक्टिस आरम्भ करने के लिये शासन द्वारा सहायता दी जाएगी। वर्ष 1991-92 में 7 चिकित्सकों को 1.82 लाख रुपए के ऋण प्रदान किये गए।
12. न्याय निकेतन
अनुसूचित जनजाति के अभिभावकों को अपनी प्रैक्टिस स्थापित करने के लिये विभिन्न व्यापारिक तथा राजस्व-न्यायालयों के पास अभिभाषकों के कक्ष बनाकर किराए पर आबंटित किये जाएँगे। इस योजना के तहत वर्ष 1991-92 में एवं 1992-93 में नवम्बर, 1992 तक क्रमशः 7 व 5 अभिभाषकों को 1.05 तथा 0.98 लाख रुपए के ऋण दिये गए।
13. सहारा
अनुसूचित जनजाति के कुष्ठरोगी, विकलांगों, निराश्रित वृद्ध, विधवा एवं परित्यक्ता महिलाओं को सामूहिक उद्योगों एवं पशुपालन योजना के लिये योजना द्वारा विशेष सहायता के रूप में पृथक से उपलब्ध अनुदान के साथ-साथ 25 प्रतिशत अतिरिक्त अनुदान देने की योजना है। वर्ष 1991-92 में 176 हितग्राहियों को एवं वर्ष 1992-93 में नवम्बर, 1992 तक 9 हितग्राहियों को क्रमशः 1.13 लाख एवं 0.78 लाख रुपए ऋण व अनुदान स्वरूप प्राप्त हुए।
मध्य प्रदेश में अन्त्योदय योजना का क्रियान्वयन आरम्भ हो चुका है तथा सम्पूर्ण कार्यक्रम का क्रियान्वयन राष्ट्रीय अनुसूचित जाति तथा जनजाति वित्त निगम, राज्य सरकार के कल्याण विभाग, राज्य अन्त्यावसायी विकास निगम तथा व्यावसायिक बैंकों के माध्यम से किया जा रहा है।
कार्यक्रमों का प्रभाव
यद्यपि मध्य प्रदेश सरकार अन्त्योदय कार्यक्रम के माध्यम से जनजातियों के विकास के प्रति पूरी तरह से ईमानदार है और प्रत्येक वर्ष कल्याणकारी उपायों पर बहुत बड़ी राशि भी व्यय होती है, किन्तु फिर भी अपेक्षित परिणाम नहीं मिल पा रहे हैं। इसका मुख्य कारण इन योजनाओं का पूर्णतया लाभ इस वर्ग तक नहीं पहुँच पाना ही है। ये परिवर्तन इस बात के द्योतक हैं कि प्रदेश के आदिवासी जनजाति समाज में गतिशीलता तो आई है, पर अभी उसने कोई नया स्वरूप ग्रहण नहीं किया है। अतः जब तक जनजाति वर्ग गरीबी के नीचे है, तब तक सरकार की कोई भी उपलब्धि अधूरी ही समझी जाएगी।
समस्या का समाधान
मध्य प्रदेश की जनजातियों के विकास के लिये आवश्यक है कि इनकी प्रत्येक समस्या को राष्ट्रीय समस्या के रूप में आँका जाये और स्थानीय परिस्थितियों को ध्यान में रखकर ही नीतियाँ बनाई जाएँ क्योंकि प्रदेश के विभिन्न भागों में निवास कर रही आदिवासी जनजाति की अपनी कुछ व्यक्तिगत समस्याएँ भी होती हैं। अतः कोई भी नीति सभी जनजातियों के लिये तब तक लाभप्रद नहीं हो सकती है जब तक कि उनमें स्थानीय समस्याओं के हल का उद्देश्य न हो। इन वर्गों के उत्थान के लिये किसी भी योजना को क्रियान्वित करने में ऐसे कर्मचारियों एवं अधिकारियों का सहयोग लिया जाना चाहिए जो इस कार्य में रुचि रखते हैं और जिन्हें आदिवासियों की समस्याओं का ज्ञान हो।
सुझाव
व्यावहारिक अनुभवों से यह विदित हुआ है कि सरकार द्वारा चलाए जा रहे कार्यक्रमों से विशेष रूप से वे ही लोग लाभान्वित हुए हैं जो आर्थिक दृष्टि से उन्नत हैं, साथ-ही-साथ परिवार-विशेष के लोग ही अधिकाधिक कार्यक्रमों व योजनाओं से लाभान्वित हुए हैं। अतः प्रशासन को चाहिए कि विभिन्न विकास कार्यक्रमों का लाभ निचले वर्ग तक पहुँचे तथा कार्यक्रमों का कैसे और कहाँ उपयोग किया जा सकता है, उसके सम्बन्ध में भी विस्तारपूर्वक बताया जाये। हम आशा करते हैं कि यदि शासन की इन योजनाओं का सही एवं ईमानदारी से क्रियान्वयन हो तभी सरकार आदिवासियों के विकास का सपना पूरा कर सकती है।
सहायक प्राध्यापक, वाणिज्यिक विभाग शासकीय स्नातकोत्तर कन्या विद्यालय, सागर (म.प्र.)
ब-6 गौरनगर, डा. हरिसिंह गौर विश्वविद्यालय, सागर, (म.प्र.) 470003
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