विश्व पर्यावरण दिवस, 05 जून, 2018 पर विशेष
यह ‘विश्व पर्यावरण दिवस’ हमारे लिये खास है क्योंकि इसकी मेजबानी इस बार भारत के कन्धों पर है। इस वर्ष का थीम ‘बीट प्लास्टिक पॉल्यूशन’ (Beat Plastic Pollution) पर आधारित है। इस थीम का मूल उद्देश्य सिंगल यूज्ड (Single Used) प्लास्टिक के इस्तेमाल को कम करना है जो समुद्री सतह पर प्लास्टिक कचरे के जमाव का मूल कारण है। संयुक्त राष्ट्र द्वारा सौंपी गई इस मेजबानी के कई मायने हैं जैसे पर्यावरण सम्बन्धी मसलों पर विश्व में भारत की बढ़ती पहुँच, देश में बढ़ता प्लास्टिक का इस्तेमाल और सिंगल यूज्ड प्लास्टिक के पुनर्चक्रण (recycling) में विश्व स्तर पर भारत का बढ़ता कद आदि।
इस वर्ष के थीम पर आने से पहले भारत द्वारा विश्व स्तर पर पर्यावरण को सम्पोषित करने की पहल की चर्चा न करना बेमानी होगी। संयुक्त राष्ट्र द्वारा 5 जून, 1972 को स्विटजरलैंड में आयोजित पहले पर्यावरणीय सम्मेलन में मेजबान राष्ट्र के प्रधानमंत्री ‘ओलफ पाल्मे’ को छोड़कर वहाँ पहुँचने वाली एक मात्र राष्ट्राध्यक्ष इंदिरा गाँधी थीं और यही सम्मेलन विश्व पर्यावरण दिवस की नींव बना। सम्मेलन में इंदिरा गाँधी का जाना पर्यावरणीय मसलों पर भारत की सजगता को दर्शाता है।
अब हम बात करते हैं ‘बीट प्लास्टिक पॉल्यूशन’ थीम की। क्या आपको मालूम है कि हर वर्ष 13 मिलियन टन प्लास्टिक समुद्र की सतह पर जमा हो रहा है। यह आँकड़ा इतना बड़ा है कि अगर इसी गति से समुद्र में प्लास्टिक कचरे का फैलाव होता रहा तो कुछ ही सालों में यह ‘बीच’ तक भी अपनी पहुँच बना लेगा। संयुक्त राष्ट्र द्वारा जारी आँकड़े के अनुसार प्रति मिनट एक ट्रक प्लास्टिक कचरा समुद्र में डम्प किया जाता है जिसका 50 प्रतिशत हिस्सा सिंगल यूज्ड प्लास्टिक होता है।
समुद्री सतह में जमा होने वाले इन कचरों का प्रभाव समुद्र के पारिस्थितिकी पर पड़ रहा है। प्लास्टिक बायोडिग्रेडेबल नहीं होता इसीलिये यह हजारों वर्ष अपनी अवस्था में परिवर्तन किये बिना मौजूद रहता है। समुद्री जल की लवणीयता के कारण यह छोटे-छोटे टुकड़ों में बँट जाता है जिसे मछलियाँ या अन्य समुद्री जीव उन्हें आसानी से निगल लेते हैं। शोध बताते हैं कि समुद्री जीवों द्वारा निगला गया यह प्लास्टिक उनके प्रजनन क्षमता को प्रभावित करने के साथ ही उनकी जीवन प्रत्याशा को भी घटाता है।
प्लास्टिक कचरा समुद्र की सतह पर उगने वाले विभिन्न प्रकार के शैवालों के लिये भी घातक है। यह सूर्य की किरणों को बाधित करता है जो शैवालों के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। चूँकि, मनुष्य के आहार का एक अभिन्न हिस्सा समुद्री जीवों और अन्य प्रकार के समुद्री उत्पाद से मिलता है इसीलिये प्लास्टिक के हानिकारक प्रभाव से वह भी बच नहीं सकता है। इससे साफ है कि प्लास्टिक कचरे को समुद्र के सतह पर जमा होने से रोकना कितना महत्वपूर्ण है। यूनाइटेड नेशंस एनवायरनमेंट प्रोग्राम (UNEP) के अनुसार समुद्री प्रदूषण से प्रतिवर्ष 13 बिलियन अमेरिकी डॉलर का नुकसान हो रहा है।
विश्व स्तर पर जारी किये गये आँकड़े बताते हैं कि वर्ष 2002 से 2016 के बीच दुनिया में प्लास्टिक के उत्पादन में 135 मिलियन मीट्रिक टन की बढ़ोत्तरी हुई है। वर्ष 2002 में प्लास्टिक का उत्पादन 200 मिलियन मीट्रिक टन था वह 2016 में बढ़कर 335 मिलियन मीट्रिक टन हो गया। विश्व के कुल प्लास्टिक उत्पादन का 23 प्रतिशत से अधिक हिस्सा चीन अकेले ही उत्पादित करता है। इस तरह चीन विश्व का सबसे बड़ा प्लास्टिक उत्पादक है।
प्लास्टिक उत्पादन में भारत का स्थान चीन की तुलना में अभी काफी पीछे है। लेकिन फिक्की द्वारा जारी आंकड़े बताते हैं की पिछले कुछ वर्षों से प्लास्टिक उत्पादन में भारत प्रतिवर्ष 16 प्रतिशत की दर से वृद्धि कर रहा है। या यूँ कहें कि भारत विश्व में प्लास्टिक उत्पादन करने वाले अग्रणी राष्ट्रों की श्रेणी में शामिल होने की ओर अग्रसर है। इतना ही नहीं देश में प्लास्टिक के सामान की बढ़ती माँग को पूरा करने के लिये भारत को प्रतिवर्ष चीन से बड़ी मात्रा में इसका आयात भी करना पड़ता है।
देश में प्लास्टिक की खपत के वर्तमान ट्रेंड से यह मालूम होता है कि यहाँ कुल प्लास्टिक उपभोग का 24 प्रतिशत हिस्सा पैकेजिंग के लिये इस्तेमाल होता है। वहीं 23 प्रतिशत हिस्सा कृषि क्षेत्र के जरूरी सामान या उपकरणों के निर्माण में, इलेक्ट्रॉनिक सामान के निर्माण में 16 प्रतिशत, घरेलू सामान के निर्माण में 10 प्रतिशत, निर्माण क्षेत्र में 8 प्रतिशत, ट्रांसपोर्ट में 4 प्रतिशत, फर्नीचर में एक प्रतिशत और अन्य जरूरी चीजों के निर्माण में 14 प्रतिशत हिस्से का इस्तेमाल होता है। ऊपर दिये गये आँकड़ों से साफ है कि प्लास्टिक की सबसे ज्यादा खपत पैकेजिंग क्षेत्र में है। पानी, अन्य पेय पदार्थ, खाद्य समाग्री, कॉस्मेटिक आदि की पैकेजिंग पूरी तरह ‘पेट’ (Polyethylene Terephthalate) जो सिंगल यूज्ड प्लास्टिक है पर निर्भर है। पेट प्लास्टिक का इस्तेमाल भारत ही नहीं बल्कि पूरे विश्व में तेजी से बढ़ रहा है जिसके कारण समुद्र तल में इसका जमाव तेजी से बढ़ता जा रहा है।
वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम के अनुसार अगर प्लास्टिक के इस्तेमाल में कमी नहीं की गई तो 2050 तक समुद्र में मछलियों से ज्यादा प्लास्टिक भर जाएगा। हालांकि, विश्व की तुलना में भारत में प्रतिवर्ष प्रति व्यक्ति प्लास्टिक का इस्तेमाल काफी कम है। भारत में यह आँकड़ा महज 11 किलोग्राम है वहीं विश्व में 28 किलोग्राम है। लेकिन भारत की जनसंख्या के बड़े आकार को देखते हुए यह आँकड़ा काफी बड़ा हो जाता है। इतना ही नहीं समुद्र तटीय क्षेत्रों में बसने वाली जनसंख्या के मामले में भी भारत का चीन के बाद दूसरा नम्बर है।
भारत में कुल 18.75 करोड़ लोग तटीय क्षेत्र में निवास करते हैं वहीं चीन में यह 26.29 करोड़ है। इससे साफ है कि भारत का समुद्री कचरे में योगदान कम नहीं है। समूचे भारत में प्रतिवर्ष 56 लाख मीट्रिक टन प्लास्टिक कचरे का उत्पादन होता है जिसका एक बड़ा हिस्सा नदी-नालों के माध्यम से समुद्र में जाता है। अतः भारत को भी इस समस्या के प्रति सचेत होने की जरुरत है।
समुद्र में बढ़ रहे प्लास्टिक के जमाव ने पूरे विश्व का ध्यान प्लास्टिक कचरे के प्रबन्धन की तरफ खींचा है। अमेरिका के कई राज्यों सहित विश्व के कई अग्रणी देशों ने सिंगल यूज्ड प्लास्टिक पर क्रमिक रूप से प्रतिबन्धित करना प्रारम्भ कर दिया है। भारत ने भी इस दिशा में प्रयास शुरू तो किया है लेकिन यहाँ कोई ठोस नियम नहीं है। नियम के तौर पर यह 50 माइक्रॉन से कम मोटाई वाले पॉलिथीन के इस्तेमाल पर प्रतिबन्ध लगाया गया है लेकिन यह नाकाफी साबित हो रहा है। विश्व में फ्रांस ऐसा पहला देश है जिसने 2016 में सिंगल यूज्ड प्लास्टिक को प्रतिबन्धित करने के साथ ही 2025 तक इस तरह के सभी इस्तेमाल को पूरी तरह बन्द करने का निर्णय लिया है। युगांडा ने तो 2008 में ही प्लास्टिक बैग्स के इस्तेमाल को पूरी तरह प्रतिबन्धित कर दिया था।
जापान, यूरोप के कई देश, अमेरिका सहित भारत आदि ने इस समस्या से निपटने के लिये पेट प्लास्टिक के रीसाइक्लिंग पर जोर देना शुरू किया है। भारत ने इस दिशा में महत्त्वपूर्ण प्रगति किया है। सेंट्रल पॉल्यूशन बोर्ड द्वारा पिछले वर्ष जारी की गई रिपोर्ट के अनुसार भारत देश में प्रतिवर्ष उत्पादित कुल सिंगल यूज्ड प्लास्टिक के 90 प्रतिशत हिस्से की रीसाइक्लिंग कर लेता है जो विश्व में सर्वाधिक है। सेंट्रल पॉल्यूशन बोर्ड के अनुसार कुल सिंगल यूज्ड प्लास्टिक का 65 प्रतिशत हिस्सा पंजीकृत कम्पनियों द्वारा, 15 प्रतिशत हिस्सा असंगठित क्षेत्र और 10 घरेलू उद्योग से जुड़े फर्म्स द्वारा रीसाइकिल किया जाता है। वहीं जापान में रीसाइक्लिंग का यह प्रतिशत 72, यूरोप में 43 और अमेरिका में 31 प्रतिशत है।
भारत को विश्व पर्यावरण दिवस 2018 के लिये मिली मेजबानी की एक बड़ी वजह इसके पेट प्लास्टिक को रीसाइकिल करने की क्षमता भी है। इस वर्ष फरवरी में मेजबानी की घोषणा करते हुए संयुक्त राष्ट के अंडर सेक्रेटरी सह पर्यावरणीय शाखा के हेड एरिक सोल्हेम ने भारत के सिंगल यूज्ड प्लास्टिक के रीसाइकिल करने की क्षमता की प्रशंसा की थी। अतः यह कहना गलत नहीं होगा कि भारत को इस अवसर का भरपूर इस्तेमाल कर समुद्र की पारिस्थितिकी को अक्षुण्ण बनाये रखने में अग्रणी भूमिका निभानी चाहिए।
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