भारतीय अर्थव्यवस्था में मछली पालन एक महत्वपूर्ण व्यवसाय है जिसमें रोजगार की अपार संभावनाएं हैं। ग्रामीण विकास एवं अर्थव्यवस्था में मछली पालन की महत्वपूर्ण भूमिका है। मछली पालन के द्वारा रोजगार सृजन तथा आय में वृद्धि की अपार संभावनाएं हैं, ग्रामीण पृष्ठभूमि से जुड़े हुए लोगों में आमतौर पर आर्थिक एवं सामाजिक रूप से पिछड़े, अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति व अन्य कमजोर तबके के हैं जिनका जीवन-स्तर इस व्यवसाय को बढ़ावा देने से उठ सकता है। मत्स्योद्योग एक महत्वपूर्ण उद्योग के अंतर्गत आता है तथा इस उद्योग को शुरू करने के लिए कम पूंजी की आवश्यकता होती है। इस कारण इस उद्योग को आसानी से शुरू किया जा सकता है। मत्स्योद्योग के विकास से जहां एक ओर खाद्य समस्या सुधरेगी वहीं दूसरी ओर विदेशी मुद्रा अर्जित होगी जिससे अर्थव्यवस्था में भी सुधार होगा। स्वतंत्रता के पश्चात् देश में मछली पालन में भारी वृद्धि हुई है। वर्ष 1950-51 में देश में मछली का कुल उत्पादन 7.5 लाख टन था, जबकि 2004-05 में यह उत्पादन 63.04 लाख टन हो गया। भारत विश्व में मछली का तीसरा सबसे बड़ा उत्पादक और अंतर्देशीय मत्स्य पालन का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक देश है। मत्स्य क्षेत्र देश में 11 लाख से अधिक लोगों को रोजगार प्रदान करता है।
चूंकि कृषि भूमि में कोई वृद्धि नहीं हो रही है तथा ज्यादातर कृषि कार्य मशीनरी से होने लगे हैं, इसलिए राज्य की निर्धनता की स्थिति और भी भयावह होती जा रही है, इस कारण ग्रामीण क्षेत्रों में मत्स्य पालन जैसे लघु उद्योगों को प्रोत्साहन देना होगा तभी ग्रामीण क्षेत्र के निर्धनों का आर्थिक एवं सामाजिक स्तर सुधारा जा सकेगा। सामाजिक विकास के लिए निर्धन, बेरोजगार, अशिक्षित लोगों की आर्थिक स्थिति सुदृढ़ करने पर विशेष ध्यान देना होगा। इसके लिए एक सुलभ, सस्ते एवं कम समय में अधिक आय देने वाले मत्स्य पालन उद्योग व्यवसाय को अपनाने हेतु प्रेरित करने की आवश्यकता होगी।
भारत वर्ष का अधिकांश जन समुदाय ग्रामीण क्षेत्रों में निवास करता है, समाज की उपेक्षा और व्यवस्था के अमानवीय व्यवहार के कारण खासतौर पर अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति एवं निर्धन समुदाय के लोग संकट के दौर से गुजरते रहे हैं। ग्रामीण क्षेत्र में रहने वाले संपन्न समाज के व्यक्ति अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति के लोगों को समाज से ऊपर नहीं उठने देते थे और उनका बंधुआ मजदूर के रूप में पूर्ण शोषण करते रहे हैं। ग्रामीण क्षेत्र में इस वर्ग के लोगों में काफी सामाजिक कुरीतियां हैं, जिसका प्रमुख कारण इनका अशिक्षित होना और इनमें अंधविश्वास होना है। भारत सरकार ने इनके सामाजिक उत्थान के लिए तथा इनकी आर्थिक स्थिति में सुधार लाने के लिए इन्हें स्वस्थ रखने तथा स्वरोजगार उपलब्ध कराने के लिए विभिन्न योजनाएं संचालित की जिसमें से मछली पालन को महत्वपूर्ण व्यवसाय के रूप में अपनाने हेतु प्रेरित किया। ग्रामीण क्षेत्र में मत्स्यपालकों को मत्स्य पालन उद्योग में लगाने के लिए उन्हें तालाब पट्टे पर दिलाना, उन्नत किस्म का मत्स्य बीज प्रदान करवाना, उन्हें मत्स्य पालन संबंधी तकनीकी प्रशिक्षण देना प्रारंभ किया।
मत्स्य उद्योग एक ऐसा व्यवसाय है जिसे निर्धन से निर्धन व्यक्ति अपना सकता है एवं अच्छी आय प्राप्त कर सकता है तथा समाज में क्रान्तिकारी परिवर्तन लाया जा सकता है। विभिन्न माध्यमों से मत्स्य पालन व्यवसाय में लगकर अपना आर्थिक स्तर सुधारा है तथा सामाजिक स्तर में भी काफी सुधार हुआ है। आज मत्स्य व्यापार में लगी महिलाएं पुरुषों के साथ बराबर का साथ देकर स्वयं मछली बेचने बाजार जाती हैं जिससे उनकी इस व्यवसाय से संलग्न रहने की स्पष्ट रूचि झलकती दिखाई देती है।
महिलाएं स्वयंसहायता समूहों का गठन कर मिलकर आर्थिक स्तर सुधारने का कार्य कर रही हैं वहीं दूसरी ओर समाज को एकसूत्र में बांधकर आगे बढ़ाने का सराहनीय कार्य कर रही हैं। आज के परिवेश में समाज में उत्कृष्ट स्थान बनाने के लिए बच्चों की शिक्षा पर उचित ध्यान देकर उनके भविष्य को संवारने एवं समाज में उचित स्थान दिलाने के लिए यह एक सराहनीय कदम है। शिक्षा को समाज का मुख्य अंग माना गया है क्योंकि शिक्षित समाज ही एक उन्नत समाज की रचना कर सकता है तथा समाज के साथ-साथ अपने घर, ग्राम, देश के विकास में अपना पूर्ण योगदान दे सकता है।
हमारे देश में भू-क्षेत्रफल का एक बड़ा हिस्सा ऐसा है जो नदियों, समुद्र व अन्य जल स्रोतों से ढका हुआ है और फसलोत्पादन के लिए उपलब्ध नहीं है, वहां मत्स्य पालन को बढ़ावा देकर अच्छी आय प्राप्त की जा सकती है। इस उद्योग के माध्यम से अन्य सहायक उद्योग को विकसित करके लाभ प्राप्त किया जा सकता है। यह उद्योग विदेशी मुद्रा अर्जित करने का प्रमुख साधन है।आज आवश्यकता इस बात की है कि इन्हें मत्स्य पालन से प्राप्त होने वाली आर्थिकी से अवगत कराया जाएं, इनकी मानसिकता में बदलाव लाने, इनमें विश्वास जगाने, घर एवं समाज के बंधनों से बाहर निकल कर व्यवसाय में लगाने हेतु उन्हें पूर्ण सहयोग देने की जरूरत है। तभी ये बाहरी परिवेश में आकर अपना आर्थिक स्तर सुधार सकेंगे तथा एक अच्छे समाज का निर्माण कर क्रान्तिकारी सामाजिक परिवर्तन लाने में सक्षम हो सकेंगे एवं निर्भीक बन सकेंगे।
जिस समाज का आर्थिक स्तर बहुत अच्छा होगा, निश्चित ही उस समाज का सामाजिक स्तर उच्च रहेगा। उनका रहन-सहन, खानपान, वातावरण अच्छा होगा, उनका आचरण शीलवान होगा।
अतः ग्रामीण क्षेत्र में निर्धन वर्ग के लोगों को खासतौर पर अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति वर्ग के लोगों को मत्स्य पालन व्यवसाय में लगाकर उनका आर्थिक स्तर सुधारना होगा, तभी उनका सामाजिक स्तर सुधरेगा। इस प्रकार मछली पालन देश की अर्थव्यस्था में बहुत महत्वपूर्ण योगदान कर सकता है।
इस उद्योग पर आधारित अन्य सहायक उद्योग भी हैं जैसे जाल निर्माण उद्योग, नाव निर्माण उद्योग, नायलोन निर्माण, तार का रस्सा उद्योग, बर्फ के कारखाने आदि उद्योग भी मत्स्य उद्योग से लाभान्वित हो रहे हैं। यह उद्योग बेरोजगारी दूर करने में सहायक है। रोजगारमूलक होने के कारण इस उद्योग के माध्यम से देश की पिछड़ी अवस्था में सुधार किया जा सकता है। चूंकि कृषि भूमि में कोई वृद्धि नहीं हो रही है तथा ज्यादातर कृषि कार्य मशीनरी से होने लगे हैं इसलिये देश की निर्धनता की स्थिति और भी भयावह होती जा रही है। ग्रामीण क्षेत्र में मत्स्य पालन जैसे महत्वपूर्ण उद्योगों को प्रोत्साहन देना होगा तभी ग्रामीण सामाजिक स्तर सुधारा जा सकेगा। सामाजिक विकास के लिए निर्धन, बेरोजगार अशिक्षित लोगों की आर्थिक स्थिति सुदृढ़ करने पर विशेष ध्यान देना होगा। इसके लिए मत्स्य पालन उद्योग जोकि एक सुलभ, सस्ता एवं कम समय में अधिक आय देने वाला है, व्यवसाय को अपनाने हेतु प्रेरित करने की आवश्यकता होगी। मत्स्य पालन व्यवस्था शुरू करने के पहले मत्स्यपालकों को उन्नत तकनीकी की जानकारी देनी तथा प्रशिक्षण देना होगा। अगर मत्स्य पालन उन्नत तकनीकी से किया जाएगा तो निश्चित रूप से मत्स्य उत्पादकता बढ़ेगी और जब मत्स्य उत्पादकता बढ़ेगी तो आय में वृद्धि होगी और आय में वृद्धि होगी तो निश्चित रूप से सामाजिक स्तर सुधरेगा क्योंकि आर्थिक अभाव में जहां निर्धन व्यक्तियों का जीवन-स्तर गिरा हुआ था उसमें सुधार होगा परिवार के बच्चों को; शिक्षित कर सकेंगे और जब बच्चे शिक्षित हो जाएंगे तो समाज मे उनका स्तर ऊंचा होगा तथा हीन भावना की कुंठा से मुक्ति मिलेगी और यही शिक्षित बच्चे समाज के अन्य सदस्यों को अपना सामाजिक स्तर सुधारने में विशेष योगदान दे सकेंगे। अतः इनको स्वरोजगार में लगाना आवश्यक है।
मछली पालन सह आय के अन्य स्रोत- इस उद्योग के साथ-साथ अन्य सहायक उद्योग भी कर सकते हैं जिनमें लागत दर कम आती है तथा लाभ अधिक प्राप्त होता है। मछली पालन के साथ-साथ अन्य उत्पादक जीवों का पालन किया जा सकता है जिससे मत्स्य उत्पादन में होने वाले व्यय की पूर्ति की जा सके तथा अन्य जीवों से उत्सर्जित व्यर्थ पदार्थों का उपयोग मत्स्य पालन के लिए हो सके तथा अन्य जीवों के उत्पादन से अतिरिक्त आय प्राप्त हो सके। वर्तमान में मत्स्य पालन के साथ सुअर, बत्तख एवं मुर्गीपालन करना काफी लाभप्रद साबित हुआ है। इन प्रयोगों से प्राप्त परिणाम आशाजनक तथा उत्साहपूर्वक हैं।
मत्स्य पालन सह धान उत्पादन- इस खेती में धान की दो फसल (लम्बी पौधों की फसल खरीफ में एवं अधिक अन्न देने वाली धान की फसल रबी में) एवं साल में मछली की एक फसल धान की दोनों फसल के साथ ली जा सकती हैं। धान सह मछली पालन का चुनाव करते समय इसका ध्यान रखना चाहिए कि भूमि में अधिक से अधिक पानी रोकने की क्षमता होनी चाहिए जो इस क्षेत्र में कन्हार मढ़ासी एवं डोरसा मिट्टी में पाई जाती है। खेत में पानी के आवागमन की उचित व्यवस्था मछली पालन हेतु अति आवश्यक है। सिंचाई के साधन मौजूद होने चाहिए व औसत वर्षा 800 किलोमीटर से अधिक होनी चाहिए।
मछली पालन सह बत्तख पालन- मत्स्य सह-बत्तख पालन के लिए एक अच्छे तालाब का चुनाव और अनचाही मछलियों और वनस्पति का उन्मूलन मत्स्य पालन के पूर्व करना अनिवार्य है। जैसा पूर्व में बताया गया है मत्स्य बीच संचय की दर से इसमें कम रहती है। 6000 मत्स्य अंगुलिकाएं/हेक्टेयर की दर से कम से कम 100 किलोमीटर आकार की संचय करना अनिवार्य है क्योंकि बत्तखें छोटी मछलियों को अपना भोजन बना लेती हैं। बत्तखों को पालने के लिए बत्तखों के प्रकार पर ध्यान देना अति आवश्यक है। भारतीय सुधरी हुई नस्ल की बत्तखें उपयुक्त पाई गई हैं। खाकी केम्पवेल की बत्तखें भी अब पाली जाने लगी हैं। एक हेक्टेयर जल क्षेत्र में मत्स्य पालन हेतु जो खाद की आवश्यकता पड़ती है उनकी पूर्ति 200-300 बत्तखें/हेक्टेयर मिलकर पूरी की जा सकती है।
मछली सह-मुर्गी पालन- मछली सह-मुर्गी पालन के अंतर्गत मुर्गी कीलिटर का उपयोग सीधे तालाब में किया जाता है, जो मछलियों द्वारा आहार के रूप में उपयोग किया जाता है एवं शेष बचा हुआ कीलिटर तालाब में खाद के काम आ जाता है। मुर्गी के घर को आरामदायक तथा गर्मियों में ठंडा और सर्दियों में गरम रखने की व्यवस्था होना अनिवार्य है। साथ ही उसमें प्रत्येक पक्षी के लिए पर्याप्त जगह, हवा, रोशनी एवं धूप आनी चाहिए तथा उसे सूखा रखना चाहिए। मुर्गियों के अण्डे, मुर्गियों की प्रजाति एवं नस्ल तथा उनके रहने की उचित व्यवस्था सन्तुलित आहार और उनकी स्वास्थ्य रक्षा संबंधी व्यवस्था आदि पर निर्भर करती है।
मछली पालन सह-झींगा पालन- मछली सह झींगा पालन में हमें तालाब की तैयारी एवं प्रबंधन पूर्व की भांति ही करना है। तालाब की पूर्ण तैयारी हो जाने के बाद मीठे पानी में झींगा संचय करते हैं। पालने वाली प्रजाति जिसे हम ‘‘महा झींगा’’ भी कहते हैं, एवं जो सबसे तेज बढ़ने वाला होता है ‘‘मेक्रोबेकियम रोजनवर्गीय’’ है। इसका पालन मछली के साथ एवं केवल झींगा पालन दोनों पद्धति से कर सकते हैं। यह तालाब के तल में रहता है एवं मछलियों द्वारा न खाए गए भोजन, जलीय कीड़े एवं कीट-पतंगों के लार्वा आदि को खाता है। जब इसका मछली के साथ पालन करते हैं तो तालाब की संचय की जा रही मिग्रल मत्स्य बीज की संख्या कम कर दी जाती है। मछली सह-झींगा पालन में लगभग 15,000 झींगे के बीज प्रति हेक्टेयर की दर से संचय किये जाते हैं। इसके लिए किसी अतिरिक्त खाद या भोजन आदि तालाब में डालने की आवश्यकता नहीं रहती है। सामान्यतः झींगे के बीज छः माह में 70-80 ग्राम के एवं आकार में 120-130 सेंटीमीटर के हो जाते हैं। इन्हें बाजार में बेचने पर अच्छी कीमत प्राप्त की जा सकती है।
मछली सह सुअर पालन- प्रक्षेत्र के अनुपयोगी पदार्थ का उपयोग कृषि एवं मवेशियों के पालन में किया जाता है। इसी के तारतम्य में मत्स्य एवं सुअर पालन साथ करने की विधि विकसित की गई है। सुअर पालन तालाब के किनारे या उसके बंड पर छोटा घर बनाकर किया जाता है जिससे सुअर पालन में परित्याग अनुपयोगी पदार्थ मलमूत्र सीधे जलाशय में बहाकर डाले जाते हैं जोकि मत्स्य का आहार बन जाता है। साथ ही जलाशय में खाद का काम भी करता है और तालाब की उत्पादकता को बढ़ाता है, जिससे मत्स्य उत्पादन बढ़ता है। इस प्रकार मत्स्य पालन से हमें मछलियों को अतिरिक्त आहार नहीं देना होता। साथ ही खाद का व्यय भी बच जाता है। सुअर पालन में जो व्यय आता है उसकी पूर्ति सुअर के मांस के बेचने से हो जाती है। मछली सह-सुअर पालन पद्धति बहुत सरल है और कृषक इसे सरलता से कर सकते हैं।
मछली पालन सह सिंघाड़ा उत्पादन- छोटे तालाब जिनकी गहराई 1-2 मीटर रहती है, जिनमें मत्स्य पालन किया जाता है, उनमें सिंघाड़ा की उपज भी ली जा सकती है। सिंघाड़ा एक उत्तम खाद्य पदार्थ है। तालाब में सिंघाड़ा बरसात में लगाया जाता है एवं उपज अक्टूबर माह से जनवरी तक ली जा सकती है। सिंघाड़ा और मछली पालन से जहां मछलियों को भोजन प्राप्त होता है वही खाद्य का उपयोग सिंघाड़ा की वृद्धि में सहायक होता है। सिंघाड़ा की पत्तियां एवं शाखाएं जो समय-समय पर टूटती हैं, मछलियों के भोजन का काम करती हैं। ऐसे तालाबों में कालबसू और मिग्रल की बाढ़ अच्छी रहती है। पौधों के वह भाग जिन्हें मछलियां नहीं खाती हैं, तालाब में खाद का काम करते हैं जिससे तालाब में प्लवक की बाढ़ अधिक होती है जो मछलियों का भोजन है।
विदेशी मुद्रा अर्जन का साधन- मत्स्य निर्यात आज कई देशों में विदेशी मुद्रा अर्जन करने का एक मुख्य साधन बन गया है। भारत जैसे अन्य कई देश जहां मत्स्य की खपत कम है परन्तु उत्पादन अधिक है, वहां मत्स्य का निर्यात करके भारी मात्रा में विदेशी मुद्रा इससे प्राप्त की जाती है। आज जापान में विश्व का सर्वाधिक मत्स्य उत्पादन होता है जबकि अमेरिका, ब्रिटेन, कनाडा आदि देशों में वहां की खपत के अनुरूप उत्पादन नहीं है। जिन देशों में मत्स्य खपत से अधिक उत्पादन होता है, वे देश ऐसे देशों को जहां खपत से कम उत्पादन हो, को भारी मात्रा में मत्स्य का निर्यात करते हैं। कई देशों में अंतर्राष्ट्रीय बाजार से धन प्राप्त करने का एकमात्र जरिया मत्स्य उत्पादन और मत्स्य निर्यात पर टिका है। मत्स्य पालन व्यवसाय का महत्व मत्स्य अंतर्राष्ट्रीय बाजार में उपयोगिता, आवश्यकता और कम उत्पादन तथा पूर्ति की वजह से अधिक से अधिक होता जा रहा है। मत्स्किीय क्षेत्र निर्यात के जरिए विदेशी मुद्रा अर्जित करने वाला एक प्रमुख स्रोत है।
मछुआ प्रशिक्षण- मस्त्य कृषकों को राज्य शासन की नीति द्वारा 30 दिवसीय मत्स्य पालन का प्रशिक्षण दिया जाता है। प्रशिक्षण के दौरान प्रत्येक प्रशिक्षणार्थियों को रु. 750/- प्रशिक्षण भत्ता, 2 कि. नायलोन धागा मुफ्त दिया जाता है तथा प्रशिक्षण स्थल पर आने-जाने का वास्तविक किराया भी दिया जाता है। प्रशिक्षणार्थियों को ठहरने की व्यवस्था भी शासन द्वारा की जाती है।
लघु प्रशिक्षण- मत्स्य कृषक विकास अभिकरण योजना अंतर्गत तालाबधारी मत्स्य कृषकों को 10 दिवसीय लघु प्रशिक्षण भी दिया जाता है। प्रशिक्षण के दौरान प्रत्येक प्रशिक्षणार्थियों को रु. 500 प्रशिक्षण भत्ता देय है, जिसे अब वर्ष 2004-05 से रु. 1000 कर दिया गया है।
मछुआ दुर्घटना बीमा- केन्द्र प्रवर्तित योजना अंतर्गत मछुओं का दुर्घटना बीमा कराया जाता है जिसकी प्रीमियम राशि शासन द्वारा जमा की जाती है। इस योजना के तहत मत्स्य कृषक की मृत्यु होने पर उसके उत्तराधिकारी को रु. 50,000 की राशि प्रदान की जाती है तथा स्थाई विकलांगता होने पर रु. 25,000 की राशि दी जाती है।
सहकारी समितियों को ऋण/अनुदान- सहकारी समितियों को मत्स्य बीज, क्रय, पट्टाराशि नाव जाल क्रय एवं अन्य सामग्री क्रय करने हेतु राज्य शासन द्वारा ऋण तथा अनुदान दिया जाता है। सामान्य वर्ग की समितियों को 20 प्रतिशत तथा अनु. जाति की समितियों को 25 प्रतिशत अनुदान दिया जाता है।
निजी मत्स्य पालकों को अनुदान- अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति के ऐसे मत्स्य कृषकों को जिन्होंने मत्स्य पालन करने हेतु तालाब पट्टे पर लिए हैं, उन्हें रु. 5,000 तक की सहायता अनुदान शासन की ओर से देय है, जो तालाब सुधार पर, तालाब की पट्टा राशि पर, मत्स्य बीज क्रय पर, नाव जाल क्रय पर तथा अन्य इनपुट्स पर दिया जाता है।
वित्तीय सहायता- ग्रामीण क्षेत्र के गरीबी रेखा के नीचे जीवनयापन करने वाले लोगों को स्वरोजगार योजना हेतु प्रशिक्षण, आर्थिक सहायता एवं मत्स्य पालन हेतु 10 वर्षीय पट्टे पर तालाब उपलब्ध कराया जाता है एवं इनके लिए ऋण एवं अनुदान दिलाया जाता है जोकि तालिका में दर्शाया गया है।
1. मत्स्य आर्थिकी से मत्स्य उद्योग समाज में क्रांतिकारी परिवर्तन की असीम संभावनाएं हैं।
2. मत्स्य आर्थिकी से जहां मत्स्य व्यापार में लगे लोगों का आर्थिक स्तर सुधरा है वहीं इस वर्ग के लोगों को समाज में प्रतिष्ठित स्थान बनाने का सुअवसर भी प्राप्त हुआ है।
3. ग्रामीण क्षेत्र के मत्स्य कृषकों ने विभिन्न माध्यमों से मत्स्य उद्योग में संलग्न होकर जहां अपना आर्थिक स्तर सुधारा है वहीं दूसरी ओर बाहरी परिवेश में रहकर समाज में फैली कुरीतियों को नष्ट कर अपने सामाजिक स्तर में काफी सुधार किया है।
4. वर्तमान परिवेश में महिलाओं की भागीदारी ने समाज में कुंठित जीवन जीने से बाहर निकलकर उच्च सामाजिक जीवन जीने में काफी सराहनीय प्रगति की है।
5. महिलाओं द्वारा स्वसहायता समूहों का गठन कर विभिन्न रोजगार अपनाकर एक-दूसरे के सहयोग से कार्य कर अपना आर्थिक स्तर तो सुधारा ही है तथा समाज को एक सूत्र में बांधने में काफी सफलता हासिल की है।
6. पूर्व के दशकों में इन परिवारों की आर्थिक दशा अच्छी नहीं थी तथा समाज के बंधनों के कारण घर की चारदीवारी से निकलना नामुमकिन था। परन्तु वर्तमान परिवेश में सामाजिक बंधनों को अनदेखा करते हुए अपने आर्थिक एवं सामाजिक स्तर को सुधारने के लिए सराहनीय कदम उठाए हैं।
7. आज उद्यमी पुरुष/महिलाओं का समाज में उत्कृष्ट स्थान है। इनके द्वारा अपने बच्चों को उच्च शिक्षा के क्षेत्र में लाकर उनके भविष्य को संवारने एवं उच्च स्थान दिलाने के लिए एक सराहनीय कदम है। शिक्षा को समाज का एक मुख्य अंग बनाया गया है क्योंकि शिक्षित समाज ही एक उन्नत समाज बना सकता है तथा शिक्षित व्यक्ति ही अपने घर तथा समाज के विकास में अपना महत्वपूर्ण योगदान दे सकता है।
यह उद्योग रोजगार तथा खाद्य समस्या के समाधान में सहायक है। श्रम प्रधान उद्योग होने के कारण बड़ी संख्या में समाज के गरीब वर्गों को लाभदायक रोजगार प्रदान होता है जिससे इनकी आर्थिक स्थिति सुदृढ़ होती है। मत्स्य उद्योग के साथ-साथ कृषि व्यवसाय एवं अन्य व्यवसाय में जुड़े होने के कारण मछुआरों की प्रति व्यक्ति आय एवं कुल आय में भी वृद्धि होती है। मत्स्य उद्योग का सबसे बड़ा लाभ औषधियों के महत्व के रूप में है। इसका उपयोग अनेक दवाईयों के बनाने में किया जाता है। साथ ही मत्स्य में निहित प्रोटीन स्वास्थ्य के लिए अत्यंत लाभदायक होता है। मत्स्य जल शुद्धिकरण जल आपूर्ति में वृद्धि के लिए सहायक है। हमारे देश में भू-क्षेत्रफल का एक बड़ा हिस्सा ऐसा है जो नदियों, समुद्र व अन्य जल स्रोतों से ढका हुआ है और फसलोत्पादन के लिए उपलब्ध नहीं है, वहां मत्स्य पालन को बढ़ावा देकर अच्छी आय प्राप्त की जा सकती है। इस उद्योग के माध्यम से अन्य सहायक उद्योग को विकसित करके लाभ प्राप्त किया जा सकता है। यह उद्योग विदेशी मुद्रा अर्जित करने का प्रमुख साधन है।
(लेखक शासकीय महाविद्यालय ढाना, जिला सागर, म.प्र., के अर्थशास्त्र विभाग में अतिथि विद्वान हैं)
ई-मेल: neeraj_gautam76@yahoo.co.in
चूंकि कृषि भूमि में कोई वृद्धि नहीं हो रही है तथा ज्यादातर कृषि कार्य मशीनरी से होने लगे हैं, इसलिए राज्य की निर्धनता की स्थिति और भी भयावह होती जा रही है, इस कारण ग्रामीण क्षेत्रों में मत्स्य पालन जैसे लघु उद्योगों को प्रोत्साहन देना होगा तभी ग्रामीण क्षेत्र के निर्धनों का आर्थिक एवं सामाजिक स्तर सुधारा जा सकेगा। सामाजिक विकास के लिए निर्धन, बेरोजगार, अशिक्षित लोगों की आर्थिक स्थिति सुदृढ़ करने पर विशेष ध्यान देना होगा। इसके लिए एक सुलभ, सस्ते एवं कम समय में अधिक आय देने वाले मत्स्य पालन उद्योग व्यवसाय को अपनाने हेतु प्रेरित करने की आवश्यकता होगी।
भारत वर्ष का अधिकांश जन समुदाय ग्रामीण क्षेत्रों में निवास करता है, समाज की उपेक्षा और व्यवस्था के अमानवीय व्यवहार के कारण खासतौर पर अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति एवं निर्धन समुदाय के लोग संकट के दौर से गुजरते रहे हैं। ग्रामीण क्षेत्र में रहने वाले संपन्न समाज के व्यक्ति अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति के लोगों को समाज से ऊपर नहीं उठने देते थे और उनका बंधुआ मजदूर के रूप में पूर्ण शोषण करते रहे हैं। ग्रामीण क्षेत्र में इस वर्ग के लोगों में काफी सामाजिक कुरीतियां हैं, जिसका प्रमुख कारण इनका अशिक्षित होना और इनमें अंधविश्वास होना है। भारत सरकार ने इनके सामाजिक उत्थान के लिए तथा इनकी आर्थिक स्थिति में सुधार लाने के लिए इन्हें स्वस्थ रखने तथा स्वरोजगार उपलब्ध कराने के लिए विभिन्न योजनाएं संचालित की जिसमें से मछली पालन को महत्वपूर्ण व्यवसाय के रूप में अपनाने हेतु प्रेरित किया। ग्रामीण क्षेत्र में मत्स्यपालकों को मत्स्य पालन उद्योग में लगाने के लिए उन्हें तालाब पट्टे पर दिलाना, उन्नत किस्म का मत्स्य बीज प्रदान करवाना, उन्हें मत्स्य पालन संबंधी तकनीकी प्रशिक्षण देना प्रारंभ किया।
मत्स्य उद्योग एक ऐसा व्यवसाय है जिसे निर्धन से निर्धन व्यक्ति अपना सकता है एवं अच्छी आय प्राप्त कर सकता है तथा समाज में क्रान्तिकारी परिवर्तन लाया जा सकता है। विभिन्न माध्यमों से मत्स्य पालन व्यवसाय में लगकर अपना आर्थिक स्तर सुधारा है तथा सामाजिक स्तर में भी काफी सुधार हुआ है। आज मत्स्य व्यापार में लगी महिलाएं पुरुषों के साथ बराबर का साथ देकर स्वयं मछली बेचने बाजार जाती हैं जिससे उनकी इस व्यवसाय से संलग्न रहने की स्पष्ट रूचि झलकती दिखाई देती है।
महिलाएं स्वयंसहायता समूहों का गठन कर मिलकर आर्थिक स्तर सुधारने का कार्य कर रही हैं वहीं दूसरी ओर समाज को एकसूत्र में बांधकर आगे बढ़ाने का सराहनीय कार्य कर रही हैं। आज के परिवेश में समाज में उत्कृष्ट स्थान बनाने के लिए बच्चों की शिक्षा पर उचित ध्यान देकर उनके भविष्य को संवारने एवं समाज में उचित स्थान दिलाने के लिए यह एक सराहनीय कदम है। शिक्षा को समाज का मुख्य अंग माना गया है क्योंकि शिक्षित समाज ही एक उन्नत समाज की रचना कर सकता है तथा समाज के साथ-साथ अपने घर, ग्राम, देश के विकास में अपना पूर्ण योगदान दे सकता है।
हमारे देश में भू-क्षेत्रफल का एक बड़ा हिस्सा ऐसा है जो नदियों, समुद्र व अन्य जल स्रोतों से ढका हुआ है और फसलोत्पादन के लिए उपलब्ध नहीं है, वहां मत्स्य पालन को बढ़ावा देकर अच्छी आय प्राप्त की जा सकती है। इस उद्योग के माध्यम से अन्य सहायक उद्योग को विकसित करके लाभ प्राप्त किया जा सकता है। यह उद्योग विदेशी मुद्रा अर्जित करने का प्रमुख साधन है।आज आवश्यकता इस बात की है कि इन्हें मत्स्य पालन से प्राप्त होने वाली आर्थिकी से अवगत कराया जाएं, इनकी मानसिकता में बदलाव लाने, इनमें विश्वास जगाने, घर एवं समाज के बंधनों से बाहर निकल कर व्यवसाय में लगाने हेतु उन्हें पूर्ण सहयोग देने की जरूरत है। तभी ये बाहरी परिवेश में आकर अपना आर्थिक स्तर सुधार सकेंगे तथा एक अच्छे समाज का निर्माण कर क्रान्तिकारी सामाजिक परिवर्तन लाने में सक्षम हो सकेंगे एवं निर्भीक बन सकेंगे।
जिस समाज का आर्थिक स्तर बहुत अच्छा होगा, निश्चित ही उस समाज का सामाजिक स्तर उच्च रहेगा। उनका रहन-सहन, खानपान, वातावरण अच्छा होगा, उनका आचरण शीलवान होगा।
अतः ग्रामीण क्षेत्र में निर्धन वर्ग के लोगों को खासतौर पर अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति वर्ग के लोगों को मत्स्य पालन व्यवसाय में लगाकर उनका आर्थिक स्तर सुधारना होगा, तभी उनका सामाजिक स्तर सुधरेगा। इस प्रकार मछली पालन देश की अर्थव्यस्था में बहुत महत्वपूर्ण योगदान कर सकता है।
इस उद्योग पर आधारित अन्य सहायक उद्योग भी हैं जैसे जाल निर्माण उद्योग, नाव निर्माण उद्योग, नायलोन निर्माण, तार का रस्सा उद्योग, बर्फ के कारखाने आदि उद्योग भी मत्स्य उद्योग से लाभान्वित हो रहे हैं। यह उद्योग बेरोजगारी दूर करने में सहायक है। रोजगारमूलक होने के कारण इस उद्योग के माध्यम से देश की पिछड़ी अवस्था में सुधार किया जा सकता है। चूंकि कृषि भूमि में कोई वृद्धि नहीं हो रही है तथा ज्यादातर कृषि कार्य मशीनरी से होने लगे हैं इसलिये देश की निर्धनता की स्थिति और भी भयावह होती जा रही है। ग्रामीण क्षेत्र में मत्स्य पालन जैसे महत्वपूर्ण उद्योगों को प्रोत्साहन देना होगा तभी ग्रामीण सामाजिक स्तर सुधारा जा सकेगा। सामाजिक विकास के लिए निर्धन, बेरोजगार अशिक्षित लोगों की आर्थिक स्थिति सुदृढ़ करने पर विशेष ध्यान देना होगा। इसके लिए मत्स्य पालन उद्योग जोकि एक सुलभ, सस्ता एवं कम समय में अधिक आय देने वाला है, व्यवसाय को अपनाने हेतु प्रेरित करने की आवश्यकता होगी। मत्स्य पालन व्यवस्था शुरू करने के पहले मत्स्यपालकों को उन्नत तकनीकी की जानकारी देनी तथा प्रशिक्षण देना होगा। अगर मत्स्य पालन उन्नत तकनीकी से किया जाएगा तो निश्चित रूप से मत्स्य उत्पादकता बढ़ेगी और जब मत्स्य उत्पादकता बढ़ेगी तो आय में वृद्धि होगी और आय में वृद्धि होगी तो निश्चित रूप से सामाजिक स्तर सुधरेगा क्योंकि आर्थिक अभाव में जहां निर्धन व्यक्तियों का जीवन-स्तर गिरा हुआ था उसमें सुधार होगा परिवार के बच्चों को; शिक्षित कर सकेंगे और जब बच्चे शिक्षित हो जाएंगे तो समाज मे उनका स्तर ऊंचा होगा तथा हीन भावना की कुंठा से मुक्ति मिलेगी और यही शिक्षित बच्चे समाज के अन्य सदस्यों को अपना सामाजिक स्तर सुधारने में विशेष योगदान दे सकेंगे। अतः इनको स्वरोजगार में लगाना आवश्यक है।
मछली पालन सह आय के अन्य स्रोत- इस उद्योग के साथ-साथ अन्य सहायक उद्योग भी कर सकते हैं जिनमें लागत दर कम आती है तथा लाभ अधिक प्राप्त होता है। मछली पालन के साथ-साथ अन्य उत्पादक जीवों का पालन किया जा सकता है जिससे मत्स्य उत्पादन में होने वाले व्यय की पूर्ति की जा सके तथा अन्य जीवों से उत्सर्जित व्यर्थ पदार्थों का उपयोग मत्स्य पालन के लिए हो सके तथा अन्य जीवों के उत्पादन से अतिरिक्त आय प्राप्त हो सके। वर्तमान में मत्स्य पालन के साथ सुअर, बत्तख एवं मुर्गीपालन करना काफी लाभप्रद साबित हुआ है। इन प्रयोगों से प्राप्त परिणाम आशाजनक तथा उत्साहपूर्वक हैं।
मत्स्य पालन सह धान उत्पादन- इस खेती में धान की दो फसल (लम्बी पौधों की फसल खरीफ में एवं अधिक अन्न देने वाली धान की फसल रबी में) एवं साल में मछली की एक फसल धान की दोनों फसल के साथ ली जा सकती हैं। धान सह मछली पालन का चुनाव करते समय इसका ध्यान रखना चाहिए कि भूमि में अधिक से अधिक पानी रोकने की क्षमता होनी चाहिए जो इस क्षेत्र में कन्हार मढ़ासी एवं डोरसा मिट्टी में पाई जाती है। खेत में पानी के आवागमन की उचित व्यवस्था मछली पालन हेतु अति आवश्यक है। सिंचाई के साधन मौजूद होने चाहिए व औसत वर्षा 800 किलोमीटर से अधिक होनी चाहिए।
मछली पालन सह बत्तख पालन- मत्स्य सह-बत्तख पालन के लिए एक अच्छे तालाब का चुनाव और अनचाही मछलियों और वनस्पति का उन्मूलन मत्स्य पालन के पूर्व करना अनिवार्य है। जैसा पूर्व में बताया गया है मत्स्य बीच संचय की दर से इसमें कम रहती है। 6000 मत्स्य अंगुलिकाएं/हेक्टेयर की दर से कम से कम 100 किलोमीटर आकार की संचय करना अनिवार्य है क्योंकि बत्तखें छोटी मछलियों को अपना भोजन बना लेती हैं। बत्तखों को पालने के लिए बत्तखों के प्रकार पर ध्यान देना अति आवश्यक है। भारतीय सुधरी हुई नस्ल की बत्तखें उपयुक्त पाई गई हैं। खाकी केम्पवेल की बत्तखें भी अब पाली जाने लगी हैं। एक हेक्टेयर जल क्षेत्र में मत्स्य पालन हेतु जो खाद की आवश्यकता पड़ती है उनकी पूर्ति 200-300 बत्तखें/हेक्टेयर मिलकर पूरी की जा सकती है।
मछली सह-मुर्गी पालन- मछली सह-मुर्गी पालन के अंतर्गत मुर्गी कीलिटर का उपयोग सीधे तालाब में किया जाता है, जो मछलियों द्वारा आहार के रूप में उपयोग किया जाता है एवं शेष बचा हुआ कीलिटर तालाब में खाद के काम आ जाता है। मुर्गी के घर को आरामदायक तथा गर्मियों में ठंडा और सर्दियों में गरम रखने की व्यवस्था होना अनिवार्य है। साथ ही उसमें प्रत्येक पक्षी के लिए पर्याप्त जगह, हवा, रोशनी एवं धूप आनी चाहिए तथा उसे सूखा रखना चाहिए। मुर्गियों के अण्डे, मुर्गियों की प्रजाति एवं नस्ल तथा उनके रहने की उचित व्यवस्था सन्तुलित आहार और उनकी स्वास्थ्य रक्षा संबंधी व्यवस्था आदि पर निर्भर करती है।
मछली पालन सह-झींगा पालन- मछली सह झींगा पालन में हमें तालाब की तैयारी एवं प्रबंधन पूर्व की भांति ही करना है। तालाब की पूर्ण तैयारी हो जाने के बाद मीठे पानी में झींगा संचय करते हैं। पालने वाली प्रजाति जिसे हम ‘‘महा झींगा’’ भी कहते हैं, एवं जो सबसे तेज बढ़ने वाला होता है ‘‘मेक्रोबेकियम रोजनवर्गीय’’ है। इसका पालन मछली के साथ एवं केवल झींगा पालन दोनों पद्धति से कर सकते हैं। यह तालाब के तल में रहता है एवं मछलियों द्वारा न खाए गए भोजन, जलीय कीड़े एवं कीट-पतंगों के लार्वा आदि को खाता है। जब इसका मछली के साथ पालन करते हैं तो तालाब की संचय की जा रही मिग्रल मत्स्य बीज की संख्या कम कर दी जाती है। मछली सह-झींगा पालन में लगभग 15,000 झींगे के बीज प्रति हेक्टेयर की दर से संचय किये जाते हैं। इसके लिए किसी अतिरिक्त खाद या भोजन आदि तालाब में डालने की आवश्यकता नहीं रहती है। सामान्यतः झींगे के बीज छः माह में 70-80 ग्राम के एवं आकार में 120-130 सेंटीमीटर के हो जाते हैं। इन्हें बाजार में बेचने पर अच्छी कीमत प्राप्त की जा सकती है।
मछली सह सुअर पालन- प्रक्षेत्र के अनुपयोगी पदार्थ का उपयोग कृषि एवं मवेशियों के पालन में किया जाता है। इसी के तारतम्य में मत्स्य एवं सुअर पालन साथ करने की विधि विकसित की गई है। सुअर पालन तालाब के किनारे या उसके बंड पर छोटा घर बनाकर किया जाता है जिससे सुअर पालन में परित्याग अनुपयोगी पदार्थ मलमूत्र सीधे जलाशय में बहाकर डाले जाते हैं जोकि मत्स्य का आहार बन जाता है। साथ ही जलाशय में खाद का काम भी करता है और तालाब की उत्पादकता को बढ़ाता है, जिससे मत्स्य उत्पादन बढ़ता है। इस प्रकार मत्स्य पालन से हमें मछलियों को अतिरिक्त आहार नहीं देना होता। साथ ही खाद का व्यय भी बच जाता है। सुअर पालन में जो व्यय आता है उसकी पूर्ति सुअर के मांस के बेचने से हो जाती है। मछली सह-सुअर पालन पद्धति बहुत सरल है और कृषक इसे सरलता से कर सकते हैं।
मछली पालन सह सिंघाड़ा उत्पादन- छोटे तालाब जिनकी गहराई 1-2 मीटर रहती है, जिनमें मत्स्य पालन किया जाता है, उनमें सिंघाड़ा की उपज भी ली जा सकती है। सिंघाड़ा एक उत्तम खाद्य पदार्थ है। तालाब में सिंघाड़ा बरसात में लगाया जाता है एवं उपज अक्टूबर माह से जनवरी तक ली जा सकती है। सिंघाड़ा और मछली पालन से जहां मछलियों को भोजन प्राप्त होता है वही खाद्य का उपयोग सिंघाड़ा की वृद्धि में सहायक होता है। सिंघाड़ा की पत्तियां एवं शाखाएं जो समय-समय पर टूटती हैं, मछलियों के भोजन का काम करती हैं। ऐसे तालाबों में कालबसू और मिग्रल की बाढ़ अच्छी रहती है। पौधों के वह भाग जिन्हें मछलियां नहीं खाती हैं, तालाब में खाद का काम करते हैं जिससे तालाब में प्लवक की बाढ़ अधिक होती है जो मछलियों का भोजन है।
विदेशी मुद्रा अर्जन का साधन- मत्स्य निर्यात आज कई देशों में विदेशी मुद्रा अर्जन करने का एक मुख्य साधन बन गया है। भारत जैसे अन्य कई देश जहां मत्स्य की खपत कम है परन्तु उत्पादन अधिक है, वहां मत्स्य का निर्यात करके भारी मात्रा में विदेशी मुद्रा इससे प्राप्त की जाती है। आज जापान में विश्व का सर्वाधिक मत्स्य उत्पादन होता है जबकि अमेरिका, ब्रिटेन, कनाडा आदि देशों में वहां की खपत के अनुरूप उत्पादन नहीं है। जिन देशों में मत्स्य खपत से अधिक उत्पादन होता है, वे देश ऐसे देशों को जहां खपत से कम उत्पादन हो, को भारी मात्रा में मत्स्य का निर्यात करते हैं। कई देशों में अंतर्राष्ट्रीय बाजार से धन प्राप्त करने का एकमात्र जरिया मत्स्य उत्पादन और मत्स्य निर्यात पर टिका है। मत्स्य पालन व्यवसाय का महत्व मत्स्य अंतर्राष्ट्रीय बाजार में उपयोगिता, आवश्यकता और कम उत्पादन तथा पूर्ति की वजह से अधिक से अधिक होता जा रहा है। मत्स्किीय क्षेत्र निर्यात के जरिए विदेशी मुद्रा अर्जित करने वाला एक प्रमुख स्रोत है।
मत्स्य पालन हेतु शासन की विभिन्न योजनाएं
मछुआ प्रशिक्षण- मस्त्य कृषकों को राज्य शासन की नीति द्वारा 30 दिवसीय मत्स्य पालन का प्रशिक्षण दिया जाता है। प्रशिक्षण के दौरान प्रत्येक प्रशिक्षणार्थियों को रु. 750/- प्रशिक्षण भत्ता, 2 कि. नायलोन धागा मुफ्त दिया जाता है तथा प्रशिक्षण स्थल पर आने-जाने का वास्तविक किराया भी दिया जाता है। प्रशिक्षणार्थियों को ठहरने की व्यवस्था भी शासन द्वारा की जाती है।
लघु प्रशिक्षण- मत्स्य कृषक विकास अभिकरण योजना अंतर्गत तालाबधारी मत्स्य कृषकों को 10 दिवसीय लघु प्रशिक्षण भी दिया जाता है। प्रशिक्षण के दौरान प्रत्येक प्रशिक्षणार्थियों को रु. 500 प्रशिक्षण भत्ता देय है, जिसे अब वर्ष 2004-05 से रु. 1000 कर दिया गया है।
मछुआ दुर्घटना बीमा- केन्द्र प्रवर्तित योजना अंतर्गत मछुओं का दुर्घटना बीमा कराया जाता है जिसकी प्रीमियम राशि शासन द्वारा जमा की जाती है। इस योजना के तहत मत्स्य कृषक की मृत्यु होने पर उसके उत्तराधिकारी को रु. 50,000 की राशि प्रदान की जाती है तथा स्थाई विकलांगता होने पर रु. 25,000 की राशि दी जाती है।
सहकारी समितियों को ऋण/अनुदान- सहकारी समितियों को मत्स्य बीज, क्रय, पट्टाराशि नाव जाल क्रय एवं अन्य सामग्री क्रय करने हेतु राज्य शासन द्वारा ऋण तथा अनुदान दिया जाता है। सामान्य वर्ग की समितियों को 20 प्रतिशत तथा अनु. जाति की समितियों को 25 प्रतिशत अनुदान दिया जाता है।
निजी मत्स्य पालकों को अनुदान- अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति के ऐसे मत्स्य कृषकों को जिन्होंने मत्स्य पालन करने हेतु तालाब पट्टे पर लिए हैं, उन्हें रु. 5,000 तक की सहायता अनुदान शासन की ओर से देय है, जो तालाब सुधार पर, तालाब की पट्टा राशि पर, मत्स्य बीज क्रय पर, नाव जाल क्रय पर तथा अन्य इनपुट्स पर दिया जाता है।
वित्तीय सहायता- ग्रामीण क्षेत्र के गरीबी रेखा के नीचे जीवनयापन करने वाले लोगों को स्वरोजगार योजना हेतु प्रशिक्षण, आर्थिक सहायता एवं मत्स्य पालन हेतु 10 वर्षीय पट्टे पर तालाब उपलब्ध कराया जाता है एवं इनके लिए ऋण एवं अनुदान दिलाया जाता है जोकि तालिका में दर्शाया गया है।
मत्स्य कृषक विकास अभिकरण योजनांतर्गत आर्थिक सहायता | ||||
क्र. | योजना/कार्यक्रम विवरण | ऋण लागत मूल्य (अधिकतम) प्रति हेक्टेयर | वर्गवार अनुदान पात्रता | |
सभी वर्ग के कृषकों के लिए अनुदान | अनुसूचित जाति/जनजाति वर्ग के कृषकों के लिए अनुदान | |||
1 | 2 | 3 | 4 | 5 |
1. | तालाब मरम्मत एवं सुधार पानी के आगम/निर्गम द्वारा जाली लगाने हेतु अनुदान केवल एक बार | रु. 60000 | लागत मूल्य का 20 प्रतिशत अधिकतम रु. 12000 | लागत मूल्य का 20 प्रतिशत अधिकतम रु. 12000 |
2. | प्रथम वर्ग इनपुट्स लागत (मत्स्य बीज, मत्स्य आहार, उर्वरक, खाद व मत्स्य बीमारी के लिए औषधियां) हेतु | रु. 30000 | लागत मूल्य का 20 प्रतिशत अधिकतम रु. 6000 | लागत मूल्य का 20 प्रतिशत अधिकतम रु. 7500 |
3. | मछली पालन हेतु स्वयं की भूमि पर नवीन तालाब निर्माण (तालाब निर्माण, जल आगम/निर्गम द्वारा निर्माण, उथला ट्यूबवेल खनन हेतु) | रु. 20000 | लागत मूल्य का 20 प्रतिशत अधिकतम रु. 40000 | लागत मूल्य का 20 प्रतिशत अधिकतम रु. 50000 |
4. | समन्वित मछली पालन सह मुर्गी बत्तख/सूअर पालन | रु. 80000 | लागत मूल्य का 20 प्रतिशत अधिकतम रु. 16000 | लागत मूल्य का 20 प्रतिशत अधिकतम रु. 120000 |
5. | ऐरियेटर की स्थापना - मत्स्य उत्पादन वृद्धि हेतु 3000 किलो प्रति हेक्टेयर प्रति वर्ष मत्स्य उत्पादन तालाब पर | रु. 50000 1. हा.पा. ऐरियेटर/5 हा.पा. डीजल पम्प | रु. 12500 प्रति इकाई प्रति हेक्टेयर | रु. 12500 प्रति इकाई प्रति हेक्टेयर |
6. | मत्स्य बीज उत्पादन हेतु मीठा फल हेचरी स्थापना (10 मिलियन फ्राय उत्पादन क्षमता की हेचरी हेतु) | रु. 800000 | लागत मूल्य का 10 प्रतिशत अधिकतम रु. 80000 | लागत मूल्य का 10 प्रतिशत अधिकतम रु. 80000 |
7. | मत्स्य आहार उत्पादन इकाई (भवन निर्माण व मशीनरी सहित इकाई निर्माण हेतु) | रु. 2500000 | लागत मूल्य का 20 प्रतिशत अधिकतम रु. 5 लाख | लागत मूल्य का 20 प्रतिशत अधिकतम रु. 5 लाख |
मत्स्य उद्योग का सामाजिक व आर्थिक प्रभाव
1. मत्स्य आर्थिकी से मत्स्य उद्योग समाज में क्रांतिकारी परिवर्तन की असीम संभावनाएं हैं।
2. मत्स्य आर्थिकी से जहां मत्स्य व्यापार में लगे लोगों का आर्थिक स्तर सुधरा है वहीं इस वर्ग के लोगों को समाज में प्रतिष्ठित स्थान बनाने का सुअवसर भी प्राप्त हुआ है।
3. ग्रामीण क्षेत्र के मत्स्य कृषकों ने विभिन्न माध्यमों से मत्स्य उद्योग में संलग्न होकर जहां अपना आर्थिक स्तर सुधारा है वहीं दूसरी ओर बाहरी परिवेश में रहकर समाज में फैली कुरीतियों को नष्ट कर अपने सामाजिक स्तर में काफी सुधार किया है।
4. वर्तमान परिवेश में महिलाओं की भागीदारी ने समाज में कुंठित जीवन जीने से बाहर निकलकर उच्च सामाजिक जीवन जीने में काफी सराहनीय प्रगति की है।
5. महिलाओं द्वारा स्वसहायता समूहों का गठन कर विभिन्न रोजगार अपनाकर एक-दूसरे के सहयोग से कार्य कर अपना आर्थिक स्तर तो सुधारा ही है तथा समाज को एक सूत्र में बांधने में काफी सफलता हासिल की है।
6. पूर्व के दशकों में इन परिवारों की आर्थिक दशा अच्छी नहीं थी तथा समाज के बंधनों के कारण घर की चारदीवारी से निकलना नामुमकिन था। परन्तु वर्तमान परिवेश में सामाजिक बंधनों को अनदेखा करते हुए अपने आर्थिक एवं सामाजिक स्तर को सुधारने के लिए सराहनीय कदम उठाए हैं।
7. आज उद्यमी पुरुष/महिलाओं का समाज में उत्कृष्ट स्थान है। इनके द्वारा अपने बच्चों को उच्च शिक्षा के क्षेत्र में लाकर उनके भविष्य को संवारने एवं उच्च स्थान दिलाने के लिए एक सराहनीय कदम है। शिक्षा को समाज का एक मुख्य अंग बनाया गया है क्योंकि शिक्षित समाज ही एक उन्नत समाज बना सकता है तथा शिक्षित व्यक्ति ही अपने घर तथा समाज के विकास में अपना महत्वपूर्ण योगदान दे सकता है।
यह उद्योग रोजगार तथा खाद्य समस्या के समाधान में सहायक है। श्रम प्रधान उद्योग होने के कारण बड़ी संख्या में समाज के गरीब वर्गों को लाभदायक रोजगार प्रदान होता है जिससे इनकी आर्थिक स्थिति सुदृढ़ होती है। मत्स्य उद्योग के साथ-साथ कृषि व्यवसाय एवं अन्य व्यवसाय में जुड़े होने के कारण मछुआरों की प्रति व्यक्ति आय एवं कुल आय में भी वृद्धि होती है। मत्स्य उद्योग का सबसे बड़ा लाभ औषधियों के महत्व के रूप में है। इसका उपयोग अनेक दवाईयों के बनाने में किया जाता है। साथ ही मत्स्य में निहित प्रोटीन स्वास्थ्य के लिए अत्यंत लाभदायक होता है। मत्स्य जल शुद्धिकरण जल आपूर्ति में वृद्धि के लिए सहायक है। हमारे देश में भू-क्षेत्रफल का एक बड़ा हिस्सा ऐसा है जो नदियों, समुद्र व अन्य जल स्रोतों से ढका हुआ है और फसलोत्पादन के लिए उपलब्ध नहीं है, वहां मत्स्य पालन को बढ़ावा देकर अच्छी आय प्राप्त की जा सकती है। इस उद्योग के माध्यम से अन्य सहायक उद्योग को विकसित करके लाभ प्राप्त किया जा सकता है। यह उद्योग विदेशी मुद्रा अर्जित करने का प्रमुख साधन है।
(लेखक शासकीय महाविद्यालय ढाना, जिला सागर, म.प्र., के अर्थशास्त्र विभाग में अतिथि विद्वान हैं)
ई-मेल: neeraj_gautam76@yahoo.co.in
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Post By: pankajbagwan