मछली पालन कर सुनील कमा रहे लाखों रुपए


पढ़ाई करने के बाद जब कहीं रोजगार नहीं मिला तो मछलीपालन में लग गए। शुरू में काफी परेशानी हुई। अब तो लगभग 9 एकड़ में हैचरी बनवा दिया है। मत्स्य निदेशालय ने भी सुनील को मछलीपालन में सहयोग किया। समिति में भी वह महत्त्वपूर्ण पद पर रहते हुए दूसरे मछुआरों की बेहतरी के लिये काम कर रहे हैं। रेहू, कतला, सिल्वर कार्प, ग्रास कॉर्प आदि मछली के बीज तैयार करते हैं। बिहार के हाजीपुर जिला के सुनील सहनी की कुछ ऐसी ही हालत थी। लेकिन, सकारात्मक तरीके से समाज में कुछ बेहतर मछली पालकों के लिये प्रेरणा स्रोत बनने का ऐसा संकल्प लिया कि आज लोग कहते हैं मछलीपालन और हैचरी संचालन करो तो सुनील जैसा। 10 से 15 लाख रुपए की होती है सालाना कमाओ।

पहले तो जीवनयापन कठिन मालूम पड़ता था, अब मछली व मछली बीज उत्पादन से इन्हें सालाना 10 से 15 लाख रुपए की आय होती है। आज से पाँच साल पहले सुनील ने मत्स्यजीवी सहयोग समिति के माध्यम से सरकारी तालाब मछलीपालन के लिये लीज पर लिया। खूब मेहनत की और मछली से आय भी हुई। मछली ने अब सुनील की जिन्दगी इस तरह बदल दी कि हैचरी संचालित करने लगे। आसपास के मछलीपालकों को वह सस्ती दर पर मछली का बीज उपलब्ध कराते हैं।

इंटरमीडिएट तक की है पढ़ाई


पढ़ाई करने के बाद जब कहीं रोजगार नहीं मिला तो मछलीपालन में लग गए। शुरू में काफी परेशानी हुई। अब तो लगभग 9 एकड़ में हैचरी बनवा दिया है। मत्स्य निदेशालय ने भी सुनील को मछलीपालन में सहयोग किया। समिति में भी वह महत्त्वपूर्ण पद पर रहते हुए दूसरे मछुआरों की बेहतरी के लिये काम कर रहे हैं। रेहू, कतला, सिल्वर कार्प, ग्रास कॉर्प आदि मछली के बीज तैयार करते हैं।

लोगों को 200 से 250 रुपए की दर से मछली बीज उपलब्ध कराते हैं। बीज की गुणवत्ता का ध्यान रखते हैं। जीरा से लेकर अंगुलिका मछली बीज लोगों को उपलब्ध कराते हैं। पटना व मुजफ्फरपुर, मोतिहारी व दरभंगा सहित उत्तर बिहार के कई जिलों को मछली बीज के साथ ही ताजी मछली भी उपलब्ध कराते हैं।

दूसरे को भी दे रहे प्रशिक्षण


मछलीपालन के लिये इच्छुक लोगों को वह अपने तालाब पर प्रशिक्षण भी देते हैं। कैसे बेहतर तरीके से हैचरी संचालित करें, इसकी भी जानकारी देते हैं। खुद आन्ध्र प्रदेश में मछलीपालन के लिये प्रशिक्षण लिया है। प्रशिक्षण लेने से वैज्ञानिक तकनीकी से मछलीपालन की जानकारी मिली। इससे कम लागत में मछलीपालन कर अधिक लाभ कमाने में सफल हैं।

सुनील का लक्ष्य है कि सहकारी मछुआ समितियों के सदस्यों को मछलीपालन से अधिक-से-अधिक लाभ दिलाया जाये। सुनील का कहना है कि तालाब में मछली के प्राकृतिक भोजन का उत्पादन, जैविक (कार्बनिक) एवं रासायनिक (अर्काबनिक) खाद का उपयोग कर बढ़ाया जा सकता है उसमें उचित मात्रा में समय-समय पर फास्फोरस नाइट्रोजन और पोटाश खाद डाला जाता है।

तालाब में खाद डालने के बाद पोषक तत्व जल में घुलकर मिल जाते हैं तथा कुछ तालाब की तली की मिट्टी द्वारा बाँध लिये जाते हैं और धीरे-धीरे जल और सूर्य की प्रक्रिया से मछली को पोषक तत्व के रूप में जल में उपलब्ध होते रहते हैं।

इन उपलब्ध पोषक तत्वों एवं सूर्य की किरण प्रक्रिया से वनस्पति प्लवकों एवं जन्तु प्लवकों की उत्पत्ति होती है, जो मछलियों के लिये प्राकृतिक खाद्य पदार्थ है जिन्हें खाकर मछलियाँ तेजी से बढ़ती हैं। तालाब में खाद के अच्छे उपयोग के लिये लगभग एक सप्ताह के पहले 250 से 300 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर बिना बुझा चूना (भूरा चूना) डालने की सलाह दी जाती है।

सुनील का कहना है कि पूरक आहार के रूप में आमतौर पर मूँगफली, सरसों या तिल की खली एवं चावल का कना अथवा गेहूँ के चोकर को बराबर मात्रा में मिश्रण स्वरूप मछलियों के भार का 1-2 प्रतिशत की दर से प्रतिदिन दिया जाता है। ग्रास कार्प मछली के लिये पानी की वनस्पतियों जैसे लेमाना, हाइिड्रला, नाजाज, सिरेटोफाइलम आदि तथा स्थलीय वनस्पतियों जैसे नैपियर, बरसीम व मक्का के पत्ते को खाने के रूप में देते हैं।

प्रत्येक माह तालाब में जाल चलवा कर मछलियों की वृद्धि व स्वास्थ्य का निरीक्षण भी करते रहते हैं। यदि मछलियाँ परजीवियों से प्रभावित होती है तो एक पीपीएम पोटेशियम परमैंगनेट या एक प्रतिशत नमक के घोल में उन्हें डुबाकर फिर से तालाब में छोड़ दिया जाता है। यदि मछलियों पर लाल चकत्ते व घाव दिखाई पड़ती है तो मत्स्य विभाग के कार्यालय में तुरन्त सम्पर्क कर जानकारी प्राप्त कर दूर कर लेते हैं।

सुनील सहनी प्रगतिशील मछलीपालक हैं। इनकी लगन और मेहनत के कारण ही विभाग ने भी दूसरे राज्यों में हैचरी का प्रशिक्षण दिलाया। ऐसे लोगों की मेहनत से ही बिहार मछली उत्पादन में आत्मनिर्भर बनेगा। सुनील के काम से दूसरे लोग सीख ले सकते हैं। मत्स्य निदेशालय का लक्ष्य है कि समग्र मत्स्य योजना का अधिक-से-अधिक मछलीपालकों को लाभ मिले।

जल्द ही बिहार में 250 से अधिक हैचरी तैयार हो जाएगी। इससे राज्य में मछली उत्पादन बढ़ेगा और लोगों को रोजगार मिलेगा। सुनील का कहना है कि मछलियों से तेज ग्रोथ लेने के लिये आजकल किसान स्टंट ग्रोथ की सहायता ले रहे हैं। माने मछलियों को पहले साल कुछ ऐसी परिस्थितियों में रखें कि उसका ग्रोथ रुका रहे। फिर अगले साल उसे पालें और लाभ को सर्वाधिक ग्रोथ दें।

मछलियों के रख-रखाव और अन्य मसलों पर आपसे बात करना मत्स्यपालन को नई रोशनी में देखना है। आपसे बात करने के बाद मैं समझ पाया कि मछुआरे और मत्स्यपालक दो अलग लोग होते हैं। एक में मछली मारने-पकड़ने की दक्षता का पुट है तो दूसरे में उसके पालन-पोषण की दक्षता हो तो अवश्य सफलता मिलेगी।

बिहार में 46 मछलियाँ विलुप्ति की कगार पर


वैज्ञानिक वैसे मछलियों पर रिसर्च करने जा रहे हैं, जो विलुप्ति के कगार पर और बिहार की पहचान रही है। नेशनल ब्यूरो ऑफ फिश जेनेटिक रिसोर्सेज लखनऊ ने राज्य में मछलियों के 46 प्रजाति पर शोध के दौरान पाया कि इन प्रजातियों की मछलियाँ विलुप्ति के कगार पर पहुँच चुकी हैं। इसमें देसी मांगूर, देसी सिंघी ,तेंघड़ा, पलवा, खेसरा, चेचड़ा, इचना, बुल्ला, भल्ला, कवई, डेरवा, भुन्ना और बाघी मछली शामिल है।

मछली उत्पादन में प्रगति


मछली उत्पादन के मामले में भी प्रगति हुई है। 2005 में राज्य में 2.68 लाख टन मछली उत्पादन हुआ था। बिहार अपनी खपत के लिये भी आन्ध्र प्रदेश से मछली मँगाते हैं। उत्पादन बढ़ाने पर कोई जोर नहीं होता था, लेकिन इस बारे में काफी काम किया है। हमने मछुआरों को राज्य सरकार के खर्चे पर राष्ट्रीय शोध केन्द्रों में प्रशिक्षण के लिये भेजा गया।

तालाबों का जीर्णोद्धार और मत्स्य बीजों पर एक साथ ध्यान दिया गया है। अगले साल के अन्त तक बिहार मछली उत्पादन के मामले में आत्मनिर्भर हो जाएगा। बिहार में अब मछली उत्पादन 5.7 लाख टन हो चुका है। अब बिहार मीठे पानी के मछली के उत्पादन के मामले में देश में चौथे पायदान पर पहुँच चूका है।

अगले साल के अन्त तक 8 लाख टन मछली उत्पादन का लक्ष्य रखा गया है। इसके लिये मछुआरों को बेहतर प्रशिक्षण भी दिया जा रहा है। साथ ही, उन्हें उन्नत नस्ल के बेहतर बीज भी मुहैया कराए जा रहे हैं। इससे राज्य में मछली उत्पादन में इजाफा होगा। कोशिश सिर्फ आत्मनिर्भर होने की नहीं बल्कि दूसरे राज्यों तक अपनी मछली भेजने की भी है। अगर राज्य सरकार मत्स्य उत्पादन का लक्ष्य हासिल करने में कामयाब हो जाती है तो बिहार मीठे पानी के मछली के उत्पादन के मामले में शीर्ष तीन राज्यों में शीघ्र शामिल हो जाएगा।

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Post By: RuralWater
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