विशेषज्ञों ने कहा कि धान की फसलों की देरी से कटाई के चलते गेहूं की बुवाई में विलंब हुआ। उत्तर बिहार के इलाके में मौसम की चाल को देखते हुए पैदावार के बारे में समय आने पर ही पता चल पाएगा। लेकिन जो तत्काल असर दिख रहा है उसके अनुसार, नवंबर के अंत में ठंड शुरू होने की वजह से देर से बोए जानेवाले गेंहूं के लिए अच्छा रहा है। जलवायु परिवर्तन ने अपना असर सालों भर उगाए जानेवाली फसलों पर डाला है। इससे न केवल धान व मक्का की फसलें प्रभावित हुई बल्कि दलहन और रबी फसलों पर भी बुरा असर पड़ा है। उत्तर बिहार में दिसंबर और जनवरी महीने में जरूरत से अधिक ठंड पड़ने के कारण दलहन की फसलों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है। लेकिन दिलचस्प है कि इसका असर गेहूं जैसी रबी फसल पर सकारात्मक रहा है।
केंद्र सरकार के रिकॉर्ड के मुताबिक, बुवाई में रबी फसलों का रकबा बढ़ा है लेकिन उसमें लागत और उपज का हिसाब लगाएं तो असंतुलन ही सामने आता है। देश में किसानों ने दिसंबर के पहले सप्ताह तक 4 करोड़ 82 लाख 10 हजार हेक्टेयर क्षेत्र में गेहूं और दलहन जैसी रबी की फसलों की बुवाई की, जो बीते साल की इसी अवधि के मुकाबले करीब तीन प्रतिशत अधिक रही। कृषि मंत्रालय के मुताबिक, किसानों ने बीते साल की इसी अवधि के दौरान 4 करोड़ 69 लाख 70 हजार हेक्टेयर क्षेत्र में रबी फसलों की बुवाई की थी। रबी फसलों की बुवाई अक्तूबर में शुरू होती है, जबकि फसलों की कटाई अप्रैल में होती है।
कृषि मंत्रालय द्वारा पिछले साल जारी आंकड़ों के मुताबिक, धान को छोड़कर अन्य रबी फसलों का रकबा पिछले साल के मुकाबले बेहतर रहा। गेहूं का बुवाई रकबा उपरोक्त अवधि में 2 करोड़ 27 लाख 40 हजार हेक्टेयर रहा, जबकि बीते साल की इसी अवधि में यह 2 करोड़ 20 लाख 80 हजार हेक्टेयर था। विशेषज्ञों ने कहा कि धान की फसलों की देरी से कटाई के चलते गेहूं की बुवाई में विलंब हुआ।उत्तर बिहार के इलाके में मौसम की चाल को देखते हुए पैदावार के बारे में समय आने पर ही पता चल पाएगा। लेकिन जो तत्काल असर दिख रहा है उसके अनुसार, नवंबर के अंत में ठंड शुरू होने की वजह से देर से बोए जानेवाले गेंहूं के लिए अच्छा रहा है। ज्ञातव्य है कि धान की फसलों में देरी और पानी लगे रहने से पिछले कुछ सालों से बिहार में गेहूं देर से बोया जाने लगा है।
हालांकि सेंट्रल रिसर्च इंस्टीट्यूट ऑफ ड्राइलैंड एग्रीकल्चर के निदेशक बी. वेंकटेश्वरलू का कहना है कि जनवरी में बढ़ी ठंड की वजह से 40 लाख टन तक गेंहूं की पैदावार पूरे देश में कम होने की संभावना है। उन्होंने कहा कि फरवरी में सामान्य से कहीं 1.5 डिग्री तक न्यूनतम गर्मी अधिक हो रही है। इसका असर गेहूं के दाने आने पर पड़ रहा है। फरवरी में ही दाने आने का समय होता है। वहीं राजेन्द्र कृषि विश्वविद्यालय, पूसा के रबी विभाग के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. डी.के. रॉय ने मौसम में आए इस बदलाव को गेहूं के लिए वरदान बताया। रॉय का कहना है कि पिछले कुछ सालों से इस तरह की प्रवृत्ति अच्छे संकेत हैं। हालांकि जहां ज्यादा बारिश हो जाती है वहां कुछ नुकसान जरूर हो रहा है।
केंद्र सरकार के रिकॉर्ड के मुताबिक, बुवाई में रबी फसलों का रकबा बढ़ा है लेकिन उसमें लागत और उपज का हिसाब लगाएं तो असंतुलन ही सामने आता है। देश में किसानों ने दिसंबर के पहले सप्ताह तक 4 करोड़ 82 लाख 10 हजार हेक्टेयर क्षेत्र में गेहूं और दलहन जैसी रबी की फसलों की बुवाई की, जो बीते साल की इसी अवधि के मुकाबले करीब तीन प्रतिशत अधिक रही। कृषि मंत्रालय के मुताबिक, किसानों ने बीते साल की इसी अवधि के दौरान 4 करोड़ 69 लाख 70 हजार हेक्टेयर क्षेत्र में रबी फसलों की बुवाई की थी। रबी फसलों की बुवाई अक्तूबर में शुरू होती है, जबकि फसलों की कटाई अप्रैल में होती है।
कृषि मंत्रालय द्वारा पिछले साल जारी आंकड़ों के मुताबिक, धान को छोड़कर अन्य रबी फसलों का रकबा पिछले साल के मुकाबले बेहतर रहा। गेहूं का बुवाई रकबा उपरोक्त अवधि में 2 करोड़ 27 लाख 40 हजार हेक्टेयर रहा, जबकि बीते साल की इसी अवधि में यह 2 करोड़ 20 लाख 80 हजार हेक्टेयर था। विशेषज्ञों ने कहा कि धान की फसलों की देरी से कटाई के चलते गेहूं की बुवाई में विलंब हुआ।उत्तर बिहार के इलाके में मौसम की चाल को देखते हुए पैदावार के बारे में समय आने पर ही पता चल पाएगा। लेकिन जो तत्काल असर दिख रहा है उसके अनुसार, नवंबर के अंत में ठंड शुरू होने की वजह से देर से बोए जानेवाले गेंहूं के लिए अच्छा रहा है। ज्ञातव्य है कि धान की फसलों में देरी और पानी लगे रहने से पिछले कुछ सालों से बिहार में गेहूं देर से बोया जाने लगा है।
हालांकि सेंट्रल रिसर्च इंस्टीट्यूट ऑफ ड्राइलैंड एग्रीकल्चर के निदेशक बी. वेंकटेश्वरलू का कहना है कि जनवरी में बढ़ी ठंड की वजह से 40 लाख टन तक गेंहूं की पैदावार पूरे देश में कम होने की संभावना है। उन्होंने कहा कि फरवरी में सामान्य से कहीं 1.5 डिग्री तक न्यूनतम गर्मी अधिक हो रही है। इसका असर गेहूं के दाने आने पर पड़ रहा है। फरवरी में ही दाने आने का समय होता है। वहीं राजेन्द्र कृषि विश्वविद्यालय, पूसा के रबी विभाग के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. डी.के. रॉय ने मौसम में आए इस बदलाव को गेहूं के लिए वरदान बताया। रॉय का कहना है कि पिछले कुछ सालों से इस तरह की प्रवृत्ति अच्छे संकेत हैं। हालांकि जहां ज्यादा बारिश हो जाती है वहां कुछ नुकसान जरूर हो रहा है।
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