माँग के अनुरूप पानी मुहैया कराना सरकार के लिए बनी चुनौती

बिजली से अधिक पानी का इन्तजाम करना कठिन होता जा रहा है। नई सरकार के लिए बड़ी चुनौती पानी के इन्तजाम का है। पहले पूरा पानी तो मिले तब तो मुफ्त पानी देने की घोषणा पर कारगर तरीके से अमल किया जा सकता है। इस बार गर्मी देरी से शुरू हो रही है इसलिए पानी के लिए अभी कोहराम मचता दिख नहीं रहा है। आने वाले दिनों में इस सरकार को पानी की समस्या बढ़ती ही जाएगी।

नई दिल्ली, 13 मार्च। पिछली बार की तरह इस बार भी आम आदमी की सरकार ने 400 यूनिट तक बिजली का हर महीने उपयोग करने वालों को आधे दाम पर बिजली देने की घोषणा करने के साथ सात सौ लीटर तक हर रोज खपत करने वालों को पानी मुफ्त देने की घोषणा की है। बिजली और पानी दोनों पर ही सालों से दिल्ली आत्मनिर्भर नहीं हो पाई है। बिजली तो पैसे से बाहर से भी खरीदने से मिल जा रही है और राष्ट्रमण्डल खेलों के आयोजन के दौरान दिल्ली को अतिरिक्त बिजली का इन्तजाम झज्जर (हरियाणा), दादरी (उत्तर प्रदेश) और दूसरे जगह प्लाण्ट लगवाकर किया गया क्योंकि दिल्ली में कोयले से बिजली बनाने पर सुप्रीम कोर्ट की पाबन्दी है और गैस उपलब्ध हो ही नहीं पा रही है। पानी तो खरीदने से भी नहीं मिल पा रहा है। हर राज्य पानी का रोना रो रहा है।

अदालती आदेश के बाद हरियाणा ने मुनक नहर में अतिरिक्त पानी छोड़ा और फिर यह कह कर बन्द कर दिया कि जब तक पंजाब, राजस्थान और उत्तर प्रदेश से उसे पूरा पानी नहीं मिलेगा वह दिल्ली को पानी कैसे दे सकता है। दिल्ली की नई सरकार के मुखिया अरविन्द केजरीवाल ने हरियाणा के मुख्यमन्त्री जगदीश खट्टर को पत्र लिख कर पानी पर बातचीत करने के लिए समय माँगा है। हालात ऐसे दिख रहे हैं कि यह मुद्दा पहले की तरह ही फिर टलता जा रहा है।

मौसम में बदलाव होने से थोड़ी राहत है अन्यथा पानी पर हाहाकार मचना शुरू हो गया रहता। पानी मुफ्त देने की कौन कहे, दिल्ली के ज्यादातर इलाके में पानी पैसे से भी गर्मी के दिनों में नहीं मिल पाता है। पिछली बार पानी के संकट होने पर टैंकर माफिया के खिलाफ कार्रवाई करवाकर मुख्यमन्त्री केजरीवाल ने एक सन्देश देने की कोशिश की थी। वह व्यवस्था भी फौरी ही है। मूल संकट तो पानी की कमी का ही है। दिल्ली के 70 से 75 फीसद इलाकों में ही पानी की पाइप लाइन डली है। केवल उन इलाकों की माँग एक हजार एमजीडी (मिलियन गैलन रोज) से ज्यादा जबकि दिल्ली जल बोर्ड अधिकतम 835 एमजीडी पानी की आपूर्ति कर पाता है। उसमें भी 15 फीसद के मानक से दो गुने से अधिक करीब 35 फीसद पानी लीकेज और चोरी में चला जाता है। इस पानी में से केवल 105 एमजीडी पानी दिल्ली अपने संसाधन से जुटा पाता है। ज्यादातर पानी गंगा, यमुना से ही आता है। जिन राज्यों से पानी पाइप के माध्यम से दिल्ली लाया जाता है उन राज्यों में भी पानी संकट का हर रोज रोना रोया जा रहा है।

अनधिकृत कालोनियों में तो शुरू से ही जल बोर्ड के टैंकरों से ही पानी दिया जाता था। समस्या यह भी है कि जिन दो हजार कालोनियों को नियमित करने की बात की जा रही है उनमें से करीब हजार कालोनियाँ ऐसी है जहाँ आसानी से पाइप लाइन डल ही नहीं सकता है। लाइन डालने के लिए कालोनियों में तोड़-फोड़ करनी पड़ेगी जो कोई भी राजनीतिक दल वोट बैंक के चलते करने नहीं देगा। जिस तरह से निजीकरण के समय विशेष प्रयास करने बिजली चोरी कम करके बिजली आपूर्ति सुधारी गई उसी तरह पानी के लिए भी प्रयास किए गए। पानी की चोरी रोकने के लिए पानी अदालतें बनी और अवैध कनेक्शन और पानी की चोरी के तमाम मामले पकड़े गए। लाखों का जुर्माना किया गया। लम्बे समय तक दिल्ली जल बोर्ड के मुख्य कार्यकारी अधिकारी (सीईओ) रहे रमेश नेगी ने कहा था कि पानी की लाइनें जमीन के काफी अन्दर है और लीकेज का पता चलने तक काफी पानी बर्बाद हो चुका होता है। उनके समय में ही 12 हजार किलोमीटर मुख्य लाइनें बदलने का काम शुरू हुआ जिससे पानी के लीकेज कम हुए।

दिल्ली को तो रज्य जैसा यमुना में हिस्सा ही नहीं मिल रहा था। 1994 में तब के मुख्यमन्त्री मदन लाल खुराना की भूख हड़ताल करने की धमकी के बाद दिल्ली को 808 क्यूसेक पानी मिलना तय किया गया जो उसे आज तक नहीं दिया गया। दिल्ली भाखड़ा बांध से मुनक नहर के माध्यम से 80 से 85 एमजीडी पानी मिलना था। उसे बनाने के लिए दिल्ली ने हरियाणा को 160 करोड़ रुपए दिए। वह रकम अब बढ़ते-बढ़ते 404 करोड़ तक पहुँच गई। कांग्रेस सरकार में दो बार मन्त्रियों का समूह बना और मामला अदालत तक गया बावजूद इसके यह मुद्दा अभी तक नहीं सुलझा है। पानी आने की प्रतीक्षा में सालों से तीन जल शोधन संयन्त्र इन्तजार कर रहे हैं। बीच में सुलझते-सुलझते फिर उलझ गया। शायद केजरीवाल खट्टर की मुलाकत से कोई रास्ता निकले। क्योंकि विधानसभा चुनाव में दिल्ली को अतिरिक्त पानी दिलवाने का वादा प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी ने की थी। वैसे यह पानी की समस्या का स्थाई हल नहीं है।

दिल्ली में भूजल का अवैध दोहन होने से जल स्तर लगातार नीचे जा रहा है। इसी के चलते 2000 में केन्द्रीय भूजल प्राधिकरण ने दिल्ली के तब के नौ (अब 11) प्रशासनिक जिलों में से सात में जमीन से पानी निकालने पर पाबन्दी लगा दी थी। उसी को कानूनी जामा पहनाने के लिए 2005 में दिल्ली विधानसभा में दिल्ली जल बोर्ड संशोधन विधेयक लाया गया जिसका कांग्रेस के ही सदस्यों ने भारी विरोध किया। उसे प्रवर समिति में भेज दिया गया और फरवरी 2006 में रद्द कर दिया गया। उसमें अवैध भुजल दोहन को संगीन अपराध बनाने का प्रावधान था और जाँच अधिकारी को बिना इजाजत कार्रवाई करने की इजाजत से लेकर कई कठोर प्रावधान किए गए थे। वोट की राजनीति करने वाले इस तरह के विधेयक को आसानी से पास नहीं होने दे सकते हैं। दिल्ली की ज्यादातर गरीब बस्तियों और गाँवों आदि में जल बोर्ड का कनेक्शन ही नहीं है। वे ट्यूबवेल और हैण्ड पम्प से पानी निकालते हैं। उनकी आड़ में बड़े-बड़े फार्म हाउसों और अमीरों की कोठियों में भी अवैध ट्यूबवेल लगाए गए हैं। इतना ही नहीं इसी को आड़ा में टैंकर माफिया का कारोबार चला है।

बिजली से अधिक पानी का इन्तजाम करना कठिन होता जा रहा है। नई सरकार के लिए बड़ी चुनौती पानी के इन्तजाम का है। पहले पूरा पानी तो मिले तब तो मुफ्त पानी देने की घोषणा पर कारगर तरीके से अमल किया जा सकता है। इस बार गर्मी देरी से शुरू हो रही है इसलिए पानी के लिए अभी कोहराम मचता दिख नहीं रहा है। आने वाले दिनों में इस सरकार को पानी की समस्या बढ़ती ही जाएगी।

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