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प्रकृति की तबाही को रोकने के लिये बुनियादी बदलाव जरूरी है। यदि नहीं चेते तो आने वाले दिनों में पृथ्वी के विभिन्न जीवन रूपों में एक तिहाई लुप्त हो जाएँगे। इसके मूल में वायुमंडल, समुद्र, मिट्टी, वन और जीवन के सभी रूपों पर तबाह हो रहे पर्यावरण का बहुत दवाब पड़ रहा है। यह बात मुंगेर के विधायक विजय कुमार विजय ने जबल-ए तारिक फाउंडेशन के तत्वावधान में 'ग्लोबल क्लाइमेट चेंज' विषय पर आयोजित संगोष्ठी में कही। इस संगोष्ठी में समाज के विभिन्न तबके के लोगों ने हिस्सा लिया और इस बात पर बल दिया कि इसके लिये अनेक रूपों में पहल करने की आवश्यकता है।
विकास के मॉडल पर सवाल उठाते हुए कहा कि इससे तरह-तरह की समस्याएँ हो रही हैं। आज एक ऐसे विकास के मॉडल की आवश्यकता है जो पर्यावरण हितैषी हो, उसका मानवीय चेहरा हो तथा सभी को साथ लेकर चलें। साथ ही प्रकृति के नवीनीकरण स्रोतों एवं श्रमप्रधान तकनीक पर आधारित हो।
संगोष्ठी की अध्यक्षता करते हुए लामा श्री नारायण सिंह ने कहा कि विकसित देशों के शोषण का शिकार आधी दुनिया से हो रही है और इसके दुष्परिणाम को अनेक रूपों में हम भुगत रहे हैं। इसके लिये अब चेतना होगा।
संगोष्ठी के विशिष्ट अतिथि मुंगेर के पुलिस अधीक्षक वरुण कुमार सिन्हा ने कहा कि समृद्धि की होड़ में प्राकृतिक संसाधनों का बेतहाशा दोहन किया जा रहा है। उपभोग की ऐसी प्रवृत्ति विकसित हो रही है जो अपशिष्ट संस्कृति को बढ़ावा दे रही है। इस संस्कृति के कारण पूरा वातावरण गंदा हो रहा है। इसका परिणाम हम अनेक रूपों में भुगत रहे हैं। उन्होंने कहा कि संगोष्ठी के साथ-साथ एक कार्ययोजना तय करनी होगी। इसके तहत ज्यादा पेड़ लगाने होंगे। नदियों और जलस्रोतों को दूषित करने की जगह उसे स्वच्छ रखने का संकल्प लेना होगा। उन्होंने इस बात पर प्रसन्नता का इजहार किया कि गंगा के सवाल पर लोगों में जागरूकता बढ़ी है।
संगोष्ठी को सम्बोधित करते हुए जानेमाने चिकित्सक वारिस वरण बोस ने कहा कि यह विषय समय की मांग है। आज पूरे पृथ्वी पर खतरा मंडरा रहा है। ग्रीन हाउस पर हमले हो रहे हैं। इनके कारण तापमान बढ़ रहा है। पेरिस में दुनिया के देशों ने इस पर मंथन किया। आज यह होड़ मची हुई है कि कौन कितना पर्यावरण को नुकसान पहुँचा सकता है। आज तापमान में 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित रखना होगा। पर्यावरण के सवाल पर स्टॉकहोम, रियो-डी-जेनेरियो, क्योटो और अब पेरिस में दुनिया के देशों ने गहन मंथन किया। पर्यावरण असंतुलन का नतीजा भूमि, पानी, हवा, ताप खनिज तथा वनस्पति हर क्षेत्रों में देखा जा रहा है।
आज विकास का पूरा स्वरूप औद्योगीकरण पर आधारित है। यह पैमाना बन गया है कि जो देश औद्योगिक रूप से जितना समृद्ध है, वह उतना ही विकसित माना जाता है। वह उन्नत उद्योगों द्वारा अधिक से अधिक भौतिक सम्पदा पैदा करता है तथा उसका उपभोग करता है। जो देश ऐसा नहीं कर पाता है वह विकासशील कहलाता है। इन भौतिक सम्पदाओं के उत्पादन में जल, जंगल, जमीन तथा उर्जा आदि प्राकृतिक संसाधनों का उपयोग होता है और उसके उत्पादन में रासायनिक कचरा, जहरीला गैस, गंदा जल तथा हानिकारक धुआँ आदि अत्यधिक परिणाम में पैदा हो रहे हैं। इसके फलस्वरूप जहाँ एक ओर हम तरह-तरह की प्राकृतिक आपदा झेल रहे हैं। वहीं दूसरी ओर वायरल बीमारियों में बढ़ोतरी हो रही है। उन्होंने कहा कि छोटे स्तर पर धरती, पानी और हवा को स्वच्छ रखने का प्रयास होना चाहिए।
संगोष्ठी को सम्बोधित करती हुई लायंस क्लब की अध्यक्षा मंजू सिन्हा ने कहा कि जलवायु परिवर्तन क्यों लोगों को चिन्तित कर रहा है? इस सवाल पर गम्भीरता से चिन्तन करना होगा। ग्लोबल वार्मिंग से अनेक समस्याएँ हो रही है। पृथ्वी के चारों ओर वायुमंडल का आवरण है। मानवीय गतिविधियों के कारण ग्लोबल वार्मिंग की समस्याएँ उत्पन्न हो रही है। औद्योगिक प्रगति ने प्राकृतिक संसाधनों का अंधाधुंध शोषण किया। इससे वायुमंडल का संतुलन बिगड़ता जा रहा है। आज के आधुनिक आरामपरक जीवन शैली के कारण ओजोन परत के अस्तित्व पर खतरा हो गया है। अभी भी नहीं चेते तो धरती के साथ-साथ मानव का अस्तित्व खत्म हो जाएगा। मानवीय गतिविधि के कारण तेजी से उसका प्रभाव पर्यावरण पर दिख रहा है।
यह वैश्विक समस्या है इससे निपटने के लिये सभी को प्रयास करना होगा। वहीं सौरभ निधि ने कहा कि पेरिस में दुनिया के देशों ने कार्बन के उत्सर्जन को 1.5 डिग्री सेल्सियस से ज्यादा नहीं बढ़ने पर बल दिया। मानव सभ्यता को बचाने के लिये सार्थक पहल करने की आवश्यकता है। भौतिकता की अंधी दौड़ में विज्ञान ने विनाश को भयावह बनाने का काम किया है। इसके बाजार के लिये प्रचार तंत्र का रास्ता अख्तियार किया है। हथियारों के जखीरे से लेकर शोषण और विनाश के आधुनिकतम यंत्र तक इसी की उपज है। इसके उत्पादन में प्रकृति का विनाश तो कर ही रहे हैं साथ ही वातावरण प्रदूषित हो रहा है।
आरम्भ में विषय प्रवेश कराते हुए किशोर जायसवाल ने जलवायु परिवर्तन के विभिन्न अवयवों को विस्तार से रेखांकित करते हुए कहा कि कार्बन-डायऑक्साइड गैस के कारण वायुमंडल के तापमान में उतरोत्तर वृद्धि हो रही है। कई जगहों पर अम्लीय वर्षा हो रही है। कई तरह के रासायनिक खाद, शीत-ताप नियंत्रक यंत्र तथा विशेष रंगों के छिड़काव आदि के अनवरत उपयोग से निकलने वाले सीएफसी गैस से पृथ्वी की सुरक्षा परत ओजोन में छेद हो गया है, जिससे वह आकस्मिक विकिरण के खतरे से घिर गयी है।
संगोष्ठी को आरडीएंड डीजे कॉलेज के प्राध्यापक प्रो शब्बीर हसन, हरजोत सिंह, पियूष ठाकुर ने भी अपने विचार व्यक्त किए। फ़ाउंडेशन के अध्यक्ष तारिक अनवर ने आगत अतिथियों का स्वागत किया। इस अवसर पर स्कूली बच्चों द्वारा ग्लोबल वार्मिंग के उत्पन्न खतरों से आगाह कराती हुई चित्रों की प्रदर्शनी भी लगायी गयी थी।
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