भारतीय मौसम विज्ञान विभाग ने कुछ महीनों पहले भविष्यवाणी की थी कि इस वर्ष इंद्रदेव मेहरबान रहेंगे। 2017 में सामान्य वर्षा होगी। गत सप्ताह विभाग ने नया पूर्वानुमान जारी किया कि इस वर्ष 98 फीसद बारिश होगी। पूर्व में 96 फीसद वर्षा की बात कही गई थी। ध्यान रहे जून से सितम्बर के दौरान 96 फीसद बारिश होने पर उसे सामान्य मानसून माना जाता है। यदि मौसम विभाग की बात सही निकली तो कृषि उत्पादकता में उछाल के साथ ही देश की अर्थव्यवस्था और गति पकड़ लेगी। विकास दर में भी इजाफा होगा। मानसून यानी बारिश का हमारे देश के लिये क्या महत्त्व है। इसका तरक्की से क्या सम्बंध है। आइये इसे जानें और समझें।
कृषि प्रधान देश भारत के लिये मानसून शरीर के लिये रक्त जैसा है। 2 ट्रिलियन (खरब) डॉलर की अर्थव्यवस्था में खेती एक प्रमुख स्तंभ है। देश की करीब आधी कृषि योग्य भूमि की सिंचाई की जरूरत मानसून यानी बारिश से पूरी होती है। देश में साल भर में होने वाली बारिश में से करीब 70 फीसद जून से सितंबर के दौरान होती है, जोकि देश के 263 मिलियन (एक मिलियन यानी दस लाख) किसानों को सीधे प्रभावित करती है। भारत में तकरीबन 800 मिलियन लोग गाँवों में रहते हैं और खेती पर निर्भर हैं। मौजूदा समय में भारत के कुल सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में खेती की हिस्सेदारी 15 फीसद है। ऐसे में बारिश कम या बहुत कम होती है तो खेती पर उसका बुरा असर पड़ता है। इसी के चलते देश के विकास में बाधा आती है और अर्थव्यवस्था को झटका लगता है।
मानसून सामान्य या बहुत बेहतर रहा और देश के सभी हिस्सों में पर्याप्त बारिश हुई तो किसानों को नई जान मिल जाती है। कृषि उत्पादकता में इजाफे के साथ बाजार में मांग बढ़ती है। उपज का अच्छा दाम मिलने से खेतिहरों की आय बढ़ती है, जिससे शहरी ही नहीं ग्रामीण क्षेत्र के बाजार भी गुलजार होेने लगते हैं। अच्छे मानसून ने हाइड्रोपावर प्रोजेक्ट पर भी सकारात्मक प्रभाव पड़ता है।
लगातार दूसरे साल भी अच्छा रहेगा मानसून
भारत में पिछले साल यानी वर्ष 2016 में मानसून सामान्य रहा। उससे पहले के दो वर्षों यानी 2014 और 2015 में बारिश अच्छी नहीं हुई जिससे देश की समूची अर्थव्यवस्था पर बहुत बुरा प्रभाव पड़ा। हालाँकि 2017 में सामान्य मानसून के आमद की उम्मीद है और विश्लेषकों को आशा है कि विकास की गाड़ी की रफ्तार बरकरार रहेगी। इंडियन रेटिंग्स और रिसर्च के मुताबिक, लगातार दूसरे साल सामान्य बारिश होने से मांग-आपूर्ति का संतुलन बनेगा, जोकि नोटबंदी के फैसले से लड़खड़ाया गया था।
भारतीय मौसम विज्ञान विभाग की भविष्यवाणी 2017 में होगी सामान्य बारिश
मानसून कमजोर रहने पर क्या-क्या पड़ता है असर
मानसून का सीधा असर देश की कृषि उत्पादकता और सकल घरेलू उत्पाद पर पड़ता है। जून में बारिश शुरू होने के साथ ही किसान धान, गन्ना, दालों और तिलहन की फसलों की बुआई प्रारम्भ कर देते हैं। गर्मियों में होने वाली फसलें देश के कुल खाद्यान आवश्यकता में से आधे को पूरा करती हैं। मानसून कमजोर रहा तो माँग के सापेक्ष आपूर्ति नहीं हो पाएगी। बाजार में खाद्यान की कमी होगी, चीजें महँगी होने लगेंगी। खेती खराब होने पर केंद्रीय बैंक यानी रिजर्व बैंक अॉफ इंडिया ब्याज दरों का नया निर्धारण करेगी जिससे आम और खास सभी को दिक्कत झेलनी पड़ती है।
कमजोर वर्षा से कम होती है ग्रामीणों की क्रय शक्ति
कमजोर मानसून से सूखे जैसे हालात पैदा होने का खतरा रहता है। इसके चलते ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाले लोगों की क्रय शक्ति कम हो जाती है। आपूर्ति के सापेक्ष माँग घट जाती है, आर्थिक विकास दर गिरने लगती है। खराब मानसून से सिर्फ उपभोक्ता वस्तुओं की खरीद-बिक्री ही प्रभावित नहीं होती। यह उद्योग जगत को भी हिला देता है। दोपहिया वाहनों के साथ ही ट्रैक्टरों की बिक्री दर गिर जाती है। हाउसिंग सैक्टर भी मंदी की मार से बैठने लगता है।
जुलाई और अगस्त का महीना बेहद अहम
जुलाई और अगस्त का महीना किसानों के लिये बेहद अहम होता है। सिंचाई के लिये आसमान से गिरने वाला पानी फसलों को ही नहीं किसानों के लिये अमृत तुल्य हो जाता है।
सरकार पर बढ़ जाता है वित्तीय दबाव
सरकार को माँग पूरी करने के लिये खाद्यान का विदेश से आयात शुरू करना पड़ता है। कृषि ऋण देना शुरू करना पड़ता है। साथ ही कई अन्य कदम उठाने पड़ते हैं, जिससे वित्तीय व्यवस्था पर दबाव पड़ता है।
2017 में किस क्षेत्र में कितनी होगी बारिश
केरल में एक जून को दस्तक देने के साथ ही मानसून का भारत में प्रवेश हो गया है। अनुमान के मुताबिक, जुलाई के मध्य तक यह देश के ज्यादातर हिस्सों में पहुँच जायेगा और सितंबर के अंत तक मानसून देश से विदा ले लेगा। भारतीय मौसम विज्ञान विभाग के मुताबिक, इस वर्ष देश के उत्तर-पश्चिम क्षेत्र में 96 फीसद बारिश होगी जबकि मध्य भारत में 100 फीसद वर्षा होगी। देश के दक्षिणी इलाकों में मानूसन के चार महीनों के दौरान बारिश का आंकड़ा 99 फीसद तक रहेगा और उत्तर-पूर्व के क्षेत्रों में इसी समयावधि में तकरीबन 96 फीसद वर्षा होगी। इन सब पूर्वानुमानों में चार से आठ फीसद तक का उतार चढ़ाव होता है।
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