प्रभात कुमार, हिन्दुस्तान, 10 जनवरी, 2020
यमुना को प्रदूषणमुक्त करने के लिए राजधानी में 13 एकीकृत जलशोधन सयंत्र (सीईटीपी) लगाए गए ताकि उद्योगों से निकलने वाला केमिकल युक्त दूषित पानी व कचरा नदी में न जाने पाए। लेकिन इनमें से अधिकांश सीईटीपी तय मानकों पर काम नहीं रहा है। इससे न सिर्फ यमुना बल्कि भूजल भी प्रदूषित हो रहा है।
दिल्ली प्रदूषण नियंत्रण समिति (डीपीसीसी) ने हाल ही में यमुना निगरानी समिति के समक्ष पेश रिपोर्ट में यह जानकारी दी है। डीपीसीसी के अनुसार, 17 औद्योगिक क्षेत्रों के लिए लगे 13 सीईटीपी की गत अक्टूबर में जाँच की गई। महज दो सीईटीपी तय मानकों के हिसाब से मिले।
प्रयोगशाला तक नहीं
दिल्ली प्रदूषण नियंत्रण समिति ने रिपोर्ट में कहा है कि सीईटीपी की हर माह नियमित जाँच के लिए दिल्ली राज्य औद्योगिक और बुनियादी ढाँचा विकसित विकास निगम (डीएसआईआईडीसी) के पास प्रयोगशाला तक नहीं है। जब कभी डीएसआईआईडीसी को जाँच कराना होता है तो वह डीपीसीसी की प्रयोगशाला में नमूने भेजता है।
धन की व्यवस्था हो
यमुना निगरानी समिति ने डीएसआईआईडीसी के प्रबंध निदेशक को धन की व्यवस्था करने को कहा है ताकि नीरी की रिपोर्ट आने पर सीईटीपी के अपग्रेशन का काम तेजी से हो।
नीरी करेगा समीक्षा
डीएसआईआईडीसी के प्रबंधन निदेशक ने बताया कि सभी 13 सीईटीपी की कार्य प्रणाली की समीक्षा और अध्ययन का जिम्मा राष्ट्रीय पर्यावरण इंजीनियरिंग अनुसंधान संस्थान (नीरी) को दिया गया है। नीरी सीईटीपी के समुचित परिचालन, इसके अपग्रेडेशन, कीचड़ प्रबंधन और रेट्रोपिटिंग करने को लेकर योजना भी बनाएगी। इसमें दो साल का वक्त लगेगा। हालांकि डीएसआईआईडीसी के प्रबंधन निदेशक ने समिति को भरोसा दिया कि वहप्रयाग करेंगे कि इसमें समय कम किया जा सके।
क्षमता से काफी कम काम कम रहे
डीपीसीसी ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि सभी 13 सीईटीपी की 212 मिलियन गैलन प्रतिदिन औद्योगिक (एमएलडी) कचरा शोधित करने की क्षमता है लेकिन सीईटीपी में शोधन के लिए महज 79 एमएलडी कचरा ही आ रहा है। रिपोर्ट के अनुसार सभी सीईटीपी अपनी क्षमता से काफी कम काम कर रहे हैं। सीईटीपी के पास शोध के बाद औद्योगिक कचरा के निस्तारण के लिए किसी तरह का प्रबंध नहीं है। शोधन के बाद एक से 2 एमएलडी को छोड़कर बाकी को ऐसे ही नाले में बहा दिया जाता है।
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