मैं कौन सी सूचनाएँ हासिल कर सकती/सकता हूँ (Which Kind of Informations I can get)


 

सूचना का अधिकार अधिनियम सूचनाओं को अधिकतम रूप से सार्वजनिक किए जाने को बढ़ावा देता है। व्यवहार में इसका अर्थ है कि आप लोक प्राधिकरणों के पास मौजूद अधिकांश सूचनाओं को हासिल कर सकते हैं। इसमें कुछ अपवाद भी हैं जो ऐसी संवेदनशील सूचना की रक्षा करने के लिये बनाए गए हैं जिनके सार्वजनिक किए जाने पर सार्वजनिक कल्याण से कहीं ज्यादा नुकसान होगा।

 

कौन सी सूचनाएँ सुलभ हैं?

 

सूचना का अधिकार अधिनियम आपको लोक प्राधिकरणों के पास विभिन्न रूपों में मौजूद व्यापक किस्म की सूचनाओं तक पहुँच की इजाजत देता है। उदाहरण के लिये, आप इस अधिनियम का इस्तेमाल अभिलेखों, पांडुलिपियों, फाइलों, फाइलों पर लिखी गई टिप्पणियों, माइक्रोफिल्मों, माइक्रोफीश, दस्तावेजों, मीमो, ईमेल, मतों, परामर्शों, प्रेस विज्ञप्तियों, सर्कुलरों, आदेशों, लॉगबुकों, अनुबंधों, प्रतिवेदनों, पेपरों, नमूनों, मॉडलों, इलेक्ट्रॉनिक डाटा, कम्प्यूटर या किसी अन्य यंत्र से तैयार की गई सामग्री को हासिल करने के लिये इस्तेमाल कर सकते हैं। किसी अन्य मौजूदा कानून के तहत एक लोक प्राधिकरण किसी निजी संस्थान से जो सूचनाएँ ले सकता है, उन्हें आप भी उस लोक प्राधिकरण द्वारा हासिल कर सकते हैं।13

 

सूचना का अधिकार अधिनियम के तहत आपकोः

 

अभिलेखों या कार्यों का निरीक्षण करने का अधिकार है

 

आप निजी तौर पर किसी कार्य, दस्तावेज या अभिलेख का निरीक्षण करने की माँग कर सकते हैं। उदाहरण के लिये, आप निजी तौर पर किसी पुल के निर्माण या किसी हैण्डपम्प के लगाए जाने का निरीक्षण कर सकते हैं और सुनिश्चित कर सकते हैं कि काम उचित सेवा मानदण्डों के अनुसार किया जा रहा है। या आप सरकारी फाइलों का निरीक्षण कर सकते हैं और फिर फैसला कर सकते हैं कि आपको उनमें से कौन से कागजों की प्रतियाँ चाहिए;14

 

प्रमाणित प्रतियाँ हासिल करने का अधिकार है

 

आप दस्तावेजों और अभिलेखों या उनके अंशों की प्रमाणित प्रतियाँ हासिल कर सकते हैं और किन्हीं दस्तावेजों या अभिलेखों से नोट भी ले सकते हैं;

 

नमूने या मॉडल हासिल करने का अधिकार है

 

आप सामग्री के प्रमाणित नमूनों या मॉडलों की माँग कर सकते हैं। उदाहरण के लिये, आप अपने घर के सामने बनाई जा रही सड़क के रेत, टार या सीमेंट के नमूने की माँग कर सकते हैं ताकि आप जाँच सकें कि अनुबंध के अनुसार सही सामग्रियों का इस्तेमाल किया जा रहा है;16

 

इलेक्ट्रॉनिक रूप में सूचना हासिल करने का अधिकार है

 

आपको डिस्केट्स, फ्लॉपी, टेप, वीडियो कैसेट या किसी अन्य इलेक्ट्रॉनिक रूप में या प्रिंट आउट के जरिए सूचनाएँ हासिल करने का अधिकार है। अधिनियम को इतने व्यापक रूप में तैयार किया गया है कि प्रौद्योगिकी के नए रूपों में भण्डारित सूचनाएँ भी इसके दायरे में आ जाएँगी।

 

 

आप लोक प्राधिकरणों से निजी कम्पनियों के बारे में सूचनाएँ हासिल कर सकते हैं

 

अधिनियम के तहत लोक प्राधिकरणों से सूचनाएँ हासिल करने के अलावा, आप किसी लोक प्राधिकरण से ऐसी भी सूचनाएँ मांग सकते हैं जो किसी निजी संस्थान से सम्बन्धित हों, बशर्ते वह लोक प्राधिकरण किसी भी अन्य मौजूदा कानून के अन्तर्गत उस जानकारी को प्राप्त करने के लिये सक्षम है। उदाहरण के लिये, पर्यावरण व वन मंत्रालय की शर्त के अनुसार उद्योगों को राज्य प्रदूषण नियंत्रण निगमों को “पर्यावरणीय विवरण” देने होते हैं। इन विवरणों को उद्योगों द्वारा प्रदूषण को न्यूनतम करने और संसाधनों का संरक्षण करने के प्रयासों को निर्धारित करने के लिये इस्तेमाल किया जाता है। आप सूचना अधिकार अधिनियम का उपयोग करते हुए इन विवरणों तक अपनी पहुँच बना सकते हैं। इस प्रावधान के पीछे का प्रयोजन यह है कि लोक प्राधिकरणों को मात्र इसलिये आपके आवेदनों को रद्द नहीं कर देना चाहिए कि उन्होंने कानून के तहत जानकारी एकत्रित करने के अपने कर्तव्य का पालन नहीं किया है। अगर उन्हें कानून के अनुसार सूचनाएं एकत्रित करनी चाहिए थीं तो सूचना अधिकार अधिनियम के तहत अब आपके आवेदन पर उन्हें उन सूचनाओं को प्राप्त कर आपको उपलब्ध कराना होगा। आदर्श रूप में, वे जो सूचनाएँ एकत्रित करते हैं, उन्हें उन पर कार्रवाई भी करनी चाहिए।


 

 

क्या ऐसी भी सूचनाएँ हैं जो आम तौर पर नहीं मिलेंगी?

 

हालाँकि सूचना का अधिकार अधिनियम आपको व्यापक किस्म की सूचनाओं को माँगने/पाने का अधिकार देता है, लेकिन इसके बावजूद ऐसी भी स्थितियाँ होती हैं जिनमें आप कुछ सूचना नहीं माँग/पा सकते हैं क्योंकि वे बहुत संवेदनशील हैं। ऐसी सूचनाओं को सरकार द्वारा आपकी पहुँच से बाहर रखा जाता है। इसका आधार यह होता है कि इन सूचनाओं को सार्वजनिक करने से सार्वजनिक कल्याण की जगह नुकसान होगा। सूचना का अधिकार अधिनियम उन विशिष्ट मामलों का उल्लेख करता है जिनमें वैध रूप से आपको सूचनाएँ देने से इंकार किया जा सकता है। वे स्थितियाँ हैः

 

(क) जहाँ सूचना का खुलासा भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा, इसके वैज्ञानिक या आर्थिक हितों या किसी विदेशी राज्य से इसके सम्बन्धों को नुकसान पहुँचाए या किसी अपराध के लिये उकसाए;

 

(ख) जहाँ किसी अदालत या न्यायाधिकरण ने किसी सूचना को प्रकाशित करने पर रोक लगाई हो या सूचना को सार्वजनिक करने से अदालत की अवमानना होती हो;

 

(ग) सूचना के खुलासे से संसद या राज्य विधायिका के विशेषाधिकार का उल्लंघन होता हो;

 

(घ) सूचना गोपनीय व्यावसायिक सूचना, व्यापारिक भेद या बौद्धिक सम्पदा हो या उसे देने से किसी तीसरे पक्ष (जैसे वह कम्पनी जिसने सूचना को लोक प्राधिकरण को उपलब्ध कराया हो) की प्रतियोगी स्थिति को नुकसान पहुँचता हो;

 

(च) सूचना किसी व्यक्ति को इसलिये उपलब्ध हो कि उसका किसी अन्य व्यक्ति से विश्वास का सम्बन्ध हो (जैसे चिकित्सक/रोगी, वकील/क्लाइंट सम्बन्ध);

 

(छ) सूचना विश्वास में किसी विदेशी सरकार द्वारा दी गई हो;

 

(ज) सूचना का खुलासा करने से किसी व्यक्ति का जीवन या शारीरिक सुरक्षा खतरे में पड़ती हो;

 

(झ) सूचना के खुलासे से अपराध की जाँच में बाधा आए या बाधा उत्पन्न होने की आशंका हो या अपराधियों के अभियोजन में रुकावट आती हो;

 

(ट) मंत्रिमण्डल, सचिवों और अन्य अधिकारियों की अंदरूनी चर्चा सम्बन्धी अभिलेखों सहित मंत्रिमंडल के कागजात, हालांकि निर्णय हो जाने के बाद सूचनाओं को सार्वजनिक कर दिया जाना चाहिए;

 

(ठ) निवेदित सूचना निजी सूचना हो जिसका खुलासा करने का किसी सार्वजनिक गतिविधि से कोई सम्बन्ध न हो या जिससे किसी व्यक्ति के एकांत पर अनावश्यक हमला होता हो; और

 

(ड) सूचना का खुलासा करने से राज्य के अलावा किसी संस्था या व्यक्ति के कॉपीराइट का अतिक्रमण होता हो।

 

लेकिन छूटों की ये श्रेणियाँ असीम नहीं हैं। भले ही आपके द्वारा निवेदित सूचना छूट की श्रेणी में आती हो, अगर सूचना को गोपनीय रखने के मुकाबले उसे सार्वजनिक करने से अधिक जन कल्याण होता हो, तो छूट की श्रेणी में आने के बावजूद उसे सार्वजनिक कर दिया जाना चाहिए। इसे “जन हित की सर्वोच्चता” सिद्धान्त कहा जाता है और यह छूट की सभी श्रेणियों पर लागू होती है।19 उदाहरण के लिये अतीत में देश के राष्ट्रीय हितों और सुरक्षा कारणों का हवाला देकर भारत सरकार तथा विदेश कम्पनियों के बीच हुए रक्षा अनुबंधों की प्रतियों तक पहुँच नहीं बनाने दी जाती थी। लेकिन अगर इन अनुबंधों को हासिल करने के लिये दलाली देने या किसी मध्यस्थ द्वारा दबाव डालने के आरोप हों, तो अनुबंधों के विवरण जानने से अधिक जन हित होगा। करदाताओं को जानने का हक है कि क्या खर्च किए गए पैसे के बराबर मूल्य मिला या नहीं, सर्वश्रेष्ठ गुणवत्ता वाले उपकरण चुने गए या नहीं और क्या निर्णय प्रक्रिया में महत्त्वपूर्ण लोगों को रिश्वत दी गई। अधिनियम के सुरक्षा और सामरिक हितों के प्रावधानों का इस्तेमाल कर इन सूचनाओं को देने से इंकार नहीं किया जा सकता क्योंकि इन्हें सार्वजनिक करने में ही जनता का हित अधिक है।

 

जो सूचनाएँ संसद हासिल कर सकती हैं, आप भी कर सकते हैं

 

सूचना अधिकार अधिनियम के तहत सूचनाओं तक पहुँच को निर्धारित करने का मार्गदर्शक सिद्धांत यह है कि कोई भी ऐसी सूचना जिसे संसद या किसी राज्य की विधायिका को देने से इंकार नहीं किया जा सकता, उसे आपको देने से भी इंकार नहीं किया जा सकता।20 इसलिये भले ही कोई सूचना छूट की श्रेणी में आती हो, लेकिन अगर उसे संसद या राज्य विधायिका को देना जरूरी है, तो फिर उसे आपको देना भी जरूरी है।

 

 

किसी भी स्थिति में, जैसे ज्यादातर चीजों के उपयोग करने की एक अवधि होती है, उसी तरह छूट की श्रेणी में रखी गई सूचनाओं को भी सुरक्षित या गोपनीय रखने की एक अवधि होती है, और यह छूट हमेशा नहीं बनी रह सकती। कभी-कभी कुछ समय गुजर जाने के बाद सूचना को सार्वजनिक करने से किसी तरह के नुकसान की आशंका नहीं होती। उदाहरण के लिये, आज जो राष्ट्रीय आर्थिक सूचनाएँ सार्वजनिक किए जाने पर भारत की अन्तरराष्ट्रीय हैसियत को प्रभावित कर सकती हैं, बहुत संभव है कि 10 या 20 साल बाद वे इतनी संवेदनशील न रह जाएँ। सूचना का अधिकार अधिनियम आपको किसी घटना या विषय के बारे में 20 वर्ष बाद सूचनाओं का निवेदन करने की इजाजत देता है, भले ही समय के किसी दौर में वे छूट की एक या अधिक श्रेणियों के दायरे में आई हों। लेकिन ऊपर बताए गए (क), (ग) और (ट) की श्रेणी वाले सूचनाएँ 20 साल बाद भी गोपनीय रखी जाएँगी।


 

13धारा 2(एफ) और 2(1)

14धारा 2(जे)(1)

15धारा 2(जे)(2)

16धारा 2(जे)(3)

17धारा 2(जे)(4)

18धारा 8(1) और 9

19धारा 8(2)

20धारा 8(1)

21धारा 8(3)

 
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