मैला ढोने वाली मालगाड़ी बन कर रह गई हैं नदियाँ: राजेंद्र सिंह

देश में पानी को लेकर राजेंद्र सिंह ने राह दिखाई है। राजस्थान के कई इलाके जो एकदम बंजर और सूखे हुए थे, वहां आम जनता के श्रमदान से उन्होंने तस्वीर ही बदल दी। आज ऐसे इलाकों में हर तरफ पानी है और हरियाली भी। राजेंद्र सिंह को पानी पर उनके कार्य के लिए प्रतिष्ठित मैगसेसे पुरस्कार से नवाजा गया था। देश में पानी की स्थिति पर उनसे हुई बातचीत।

नदियों का संरक्षण करने के लिए आम आदमी और सरकार की भूमिका कैसी होनी चाहिए?
हम सब जानते हैं कि मानव सभ्यता नदियों के किनारे पली-बढ़ी है। नदियों और प्रकृति की गोद में रहकर ही हमने तरक्की की बातें कीं और फिर तरक्की हासिल की। लेकिन यह सारा का सारा विकास हुआ प्रकृति के साथ रहकर, उसका सम्मान करके और उससे सामंजस्य बिठाकर, लेकिन आज नदी-पानी और प्रकृति से हमारा नाता टूट गया है। हमने प्रकृति का अपमानजनक तरीके से दोहन किया। नदियों को प्रदूषित तो किया ही अब देशभर में नदियों को बेचने का जो षड्यंत्र चल रहा है उस पर मौन होकर पाप भी कर रहे हैं। नदियों के प्रदूषित होने और उन्हें सूखने से बचाने के लिए हमें अपनी जिम्मेदारी को समझना होगा और सरकार को इन्हें बचाने और संरक्षित करने के लिए जवाबदेह बनाना होगा।

यमुना में प्रदूषण दिन-ब-दिन बढ़ता जा रहा है। इसे प्रदूषण मुक्त रखने के लिए किस तरह के उपाय अपनाने की जरूरत है?
जहां तक यमुना और इसे प्रदूषण मुक्त करके बचाने की बात है तो सबसे पहले हमें सरकार को जगाना होगा कि वह नदियों की कीमत पर बाजार को बढ़ावा न दे। दिल्ली के पर्यटन, सभ्यता और संस्कृति के मूल में यमुना ही है, लेकिन इसके साथ हमारा रिश्ता धीरे-धीरे खत्म हो गया है। यमुना से हमारा संबंध केवल इतना रह गया है कि इसके ऊपर बने भारी भरकम पुलों से गुजरते हुए एक बार हम खिड़की से झांककर गंदे पानी को देखते हैं और पुनः अपनी दुनिया में लौट आते हैं। इसके साथ ही कुछ कदम ऐसे हैं जिन्हें उठाकर हम अपनी नदी को बचा सकते हैं। हम बिंदुवार ये काम करें तो यमुना को शुद्ध-सदानीरा बना सकते हैं।

1. यमुना के दोनों किनारे के 10 हजार हेक्टेयर में कंक्रीट के जंगल के बजाय प्राकृतिक जंगल लगाया जाए। इसको पंचवटी के रूप में विकसित किया जाए और ऐसे वृक्ष लगाए जाएं जिनमें जल का वाष्पीकरण ज्यादा न हो और वह अपनी जड़ों में पानी को समेटकर रख सकें। जैसे- पीपल, गूलर, बरगद, कदम, आंवला आदि। वर्षा के बाद जड़ों से निकलकर यमुना को शुद्ध जल मिले।
2. यमुना के दोनों तरफ से आने वाली प्राकृतिक जल धाराओं को पुनर्जीवित किया जाए। इसमें पश्चिम दिशा से ज्यादा जल धाराएं आती थीं। इनमें से एक धारा राजस्थान के गुढ़ा-झांकडी गांव से चलकर हरियाणा होते हुए नारायणा, नजफगढ़ होती हुई वजीराबाद के पास आकर यमुना में मिलती थी। इस नदी का नाम है साबी। यह साबी नदी यमुना को साल भर जल पिलाती थी, लेकिन दुर्भाग्य से आज यह एक नाले में बदल गई है। बाढ़ के समय यह यमुना के बाढ़ के पानी से नारायणा झील को भरती थी और बाद में बाढ़ उतर जाने पर यह उसी पानी को यमुना में पुनः उड़ेल देती थी। इसके कारण यमुना का अविरल प्रवाह बना रहता था। इसलिए साबी और अन्य छोटी-बड़ी जल धाराओं को पुनर्जीवित किया जाए।
3. दिल्ली क्षेत्र में सामुदायिक वर्षाजल को संरक्षित करने हेतु पुराने तालाबों, बावड़ियों, झालरों और जोहड़ों को पुनर्जीवित किया जाए और दिल्ली रिज के जंगल में जहां भी संभव हो, वहां नई जल संरक्षण संरचनाओं को निर्माण किया जाए तथा यमुना खादर (फ्लॅड प्लेन) में किसी तरह का सीमेन्ट कंकरीट का निर्माण नहीं होवे।
4. दिल्ली के अरावली के भूजल को संरक्षित, सुरक्षित क्षेत्र घोषित किया जाए। ऐसी संरचनाओं से अलवर की मशहूर अरवरी नदी की तरह यमुना भी पुनर्जीवित हो जाएगी और इसे अविरल बहाव के लिए अन्य जल स्रोतों पर निर्भर नहीं रहना पड़ेगा।
5. यमुना के किनारों पर पहले से स्थित घाटों को पुनर्जीवित किया जाए। जल और जंगल को केन्द्र में रखकर ही पर्यटन की संभावनाएं विकसित की जाएं।
6. यमुना के अविरल प्रवाह को बनाए रखने के लिए यमुना से संबंधित पांच राज्यों ने मिलकर यमुना प्रवाह की सहमति बनाई थी। उसे सभी राज्य मानें।
7. अपने पानी पर जीने का गौरव दिल्ली को मिल सकता है। दिल्ली की सीमाओं में आने वाले वर्षाजल को सहेजकर दिल्ली के नीचे वाले बड़े भूजल भंडारों को भरें और कुछ वर्षा जल को धरती के ऊपर इकट्ठा करें। यमुना के भराव क्षेत्र में हो रहे नए नियंत्रण और निर्माण को तुरंत रोकें और हटावें।

क्या पानी को लेकर सरकार को स्पष्ट कानून बनाने चाहिए?
मेरा मानना है, कि जल बचाने की जिम्मेदारी तभी बनेगी जब समाज को हकदारी मिलेगी। सरकार ने समाज से जल की हकदारी छीन ली है। समाज को पानी की हकदारी वापस लौटाना सरकार की जिम्मेदारी है। ऐसा होने पर ही हम जल जुटाने, सहेजने व उसके अनुशासित उपयोग की समाज से अपेक्षा कर सकते हैं। सरकार को इस पर पूरी प्रतिबद्धता से निश्चय व निर्णय करने की जरूरत है। दूसरे, सामुदायिक जल प्रबंधन को बढ़ावा देने वाले कायदे-कानून बनें व उनका पालन सुनिश्चित कराने की व्यवस्था भी विकसित की जाए। पानी के लिए नीति बनाए जाने की जरूरत है। बारिश के पानी के लिए कोई नीति नहीं है। इस वक्त भारत को एक-एक जलनीति बनाने की जरूरत है। जो लोग पानी बचाते हैं उन्हें प्रोत्साहित किया जाना चाहिए। जो लोग पानी का फिजूल खर्च करते हैं उन्हें दंड मिलना चाहिए। वहीं पानी को प्रदूषित करने वाले लोगों को जेल में डाल देना चाहिए।

क्या नदियों पर बांध बनाना उचित है, बड़े बांधों की अब खासी आलोचना हो रही है?
कुछ जगह जहां नदियों का पानी तेजी से दौड़कर आता है और अगर वह सामाजिक तौर पर सही है तो वहां बांध बनाया जाना चाहिए। एक बात ध्यान रखने की जरूरत है इससे किसी तरह की हानि न होने पावें।

कहा जा रहा है कि अगर भारत ने ध्यान नहीं दिया तो अगले दो दशक में पानी का भयंकर संकट आ सकता है?
भारत में जो आज पानी का संकट है उसकी बड़ी वजह कुप्रबंधन है। सरकार ने समाज के हाथ से सारा काम निकालकर अपने हाथ में ले लिया। पहले भारत में विकेंद्रीकृत वॉटर सिस्टम था वह हमारी जरूरतों को पूरा करता था। उस वक्त लाइफ सिस्टम भी बेहतर था। केंद्रीकृत वाटर सिस्टम की वजह से समाज गैर जिम्मेदार हो गया और वहीं सरकार की जिम्मेदारी सिर्फ कागज में ही सिमट कर रह गई। मेरा मानना है कि कम्युनिटी द्वारा संचालित विकेंद्रीकृत वॉटर सिस्टम को बढ़ावा देने की आवश्यकता है। इससे भारत में पानी की समस्या, बाढ़ और अकाल जैसी समस्याओं पर विराम लगाने में मदद मिल सकती है।

विश्व बैंक ने कुछ दिनों पहले पानी के संबंध में अपनी एक रिपोर्ट भारत सरकार को सौंपी है। उसमें तमाम सुझाव दिए गए हैं, उस बारे में क्या कहेंगे?
देखिए, विश्व बैंक कभी भी भारत के भले के सुझाव नहीं देगा। विश्व बैंक हमें खूब पैसा देता है लेकिन दुःख की बात ये है कि इस पैसे ने भ्रष्टाचार ही बढ़ाया है, समस्या को कम नहीं किया है। वैसे विश्व बैंक की चिंता इस मसले में सही है हमें इसे गंभीरता से लेने की जरूरत है। वहीं जहां तक विश्व बैंक के उपायों की बात है तो वह समाज और सृष्टि के हित में नहीं है।

मौसम परिवर्तन का पानी की स्थिति पर क्या असर पड़ेगा?
मौसम का मिजाज बिगड़ रहा है। इससे तापक्रम और बारिश का क्रम बिगड़ेगा। लाइफ सिस्टम पर इसका प्रतिकूल असर पड़ता है। गर्माती धरती की वजह से ही कहीं पर बाढ़ आ रही है तो कहीं सूखे की समस्या का सामना करना पड़ रहा है। इससे हमारी खेती भी प्रभावित हो रही है।

तमाम नदियों की मौजूदा हालत और उसके गिरते हुए जलस्तर के बारे में क्या कहेंगे?
तकरीबन भारत की 145 नदियों को मैंने देखा है। इस वक्त नदियों को तीन बड़े खतरे है। इकोलॉजिकल फ्लो को रोकने वाले बांध हम नदियों को मां कहते हैं लेकिन अब ये नदियां महज मैला ढोने वाली मालगाड़ी बन कर ही रह गई है। अंडरवॉटर का अधिक दोहन। इसकी वजह से नदियों के बहाव रूक जाते हैं।

आज के दौर में जल की समस्या को सुलझाने के मामले में महात्मा गांधी कितने प्रांसगिक रहते?
गांधी जी कहते थे कि ये सृष्टि सबकी जरूरत पूरा कर देगी लेकिन किसी की लालच को पूरा नहीं कर सकती। ऐसे में मुझे अपना काम गांधी का काम लगता है। गांधी अगर जिंदा होते तो निजीकरण, व्यापारीकरण के खिलाफ आंदोलन करते। गांधी जी साधक थे। यह संभव है कि हमारे साधनों के तरीको में बदलाव हो लेकिन हमारा लक्ष्य एक ही है। आज महात्मा गांधी जिन्दा होते तो दिल्ली में यमुना किनारे रहते और गरीबों को उजाड़कर अमीरों को बसाने के विरुद्ध सत्याग्रह करते। हम सबको मिलकर यमुना को यमुना मां बनाए रखने का आग्रहपूर्वक सत्कर्म करने हेतु जुटना चाहिए। यही यमुना सत्याग्रह यमुना और दिल्ली के गौरव को कायम रख सकता है।

आपको क्या लगता है कि पानी के संरक्षण के लिए क्या किया जा सकता है?
पानी का सबसे ज्यादा संरक्षण पेड़ करता है। पानी का बाप है पेड़ और पानी की मां है धरती। आप नदियों को जोड़ने के विरोध में है, लेकिन क्या ये आवश्यक नहीं है क्योंकि कहीं बाढ़ तो कहीं सूखे की समस्या रहती है। इसको कैसे नियोजित करेंगे?

नदियां जोडने से बाढ़ नहीं रोक सकते। जहां आप बांध बनाएंगे, लोगों का विस्थापन करना पड़ेगा। बड़े बांध बनाकर पानी ला सकते है। नदियां जोड़ना भारत को तोड़ने का काम है। इससे बाढ़ आएगी, सूखा आएगा। फायदा विश्व बैंक का हो जाएगा, उसकी कुछ मशीनें बिक जाएगी। ऊपर का पानी जहां रोकेंगे, वहां लड़ाई होगी। फिर जिनका पानी जाएगा उनको अब पानी नहीं मिलेगा। नदी जोड़ के बजाय भारत को समाज को नदियों से जोड़ना चाहिए तो समस्या हल हो जाएगी।

पानी पर दुनिया भर में जो शोध कार्य हो रहा है। उसके दो पहलू है वैज्ञानिक और तकनीक। इस संदर्भ में आप अपने काम का मूल्यांकन कैसे करते हैं?
जोहड़ बनाकर हमने जिस तरह पानी रोका। वहां सोचने और समझने वाली बात ये है कि उस संरचना में हमने प्रकृति से लिया कितना और दिया कितना। यह जोहड़ लोगों ने बनाए। सैकड़ा नहीं, दस हजार से भी ज्यादा। जहां तक जोहड़ के मूल्यांकन की बात है तो कुछ बिंदुओं के आधार पर आप उसका मूल्यांकन कर सकते हैं।

1. प्रकृति के साथ क्या रिश्ता रहता है। बारिश आती है, पानी वहां रूक जाता है। ट्यूबवेल और बोरवेल रिचार्ज हो जाते हैं।
2. जोहड़ किसी का विनाश नहीं करता।
3. इससे लोगों को रोजगार मिलता है अब प्रश्न उठता है कि यह देता क्या है-अन्न का उत्पादन, पानी की उपलब्धता।
4. एक बड़ा सवाल यह किसी के निजी फायदे के लिए या आम फायदे के लिए- आम फायदे के लिए इसका प्रबंधन समाज ही करता है
 

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