मैक्रोफाइट्स के माध्यम से जल गुणवत्ता उन्नयन एक अध्ययन

मैक्रोफाइट्स के माध्यम से जल गुणवत्ता उन्नयन एक अध्ययन, Pc- webnode
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सारांश: भोपाल शहर मध्य प्रदेश में लोकप्रिय झीलों के शहर के रूप में जाना जाता है भोपाल शहर में अठारह से अधिक छोटे-बड़े तालाब जल स्रोत के रूप में विद्यमान हैं। कुछ प्रारंभिक उपचार के बाद पीने के पानी के स्रोत हैं। वर्तमान अध्ययन भोपाल शहर की दो यूट्रोफिक झीलों, शाहपुरा झील एवं लोअर लेक हैं जोकि केंद्रित सिंचाई मत्स्य पालन एवं मनोरंजक गतिविधियों के केंद्र हैं, पर किया गया है। शाहपुरा झील नए भोपाल में स्थित है तथा छोटा तालाब पुराने शहर में स्थित है। दोनों ओर सीवेज झील हैं। अध्ययन में दो झीलों के पानी के गुणात्मक विश्लेषण से जल में पर्यावरण प्रदूषण की मात्रा ज्ञात करने का एक प्रयास है। मैक्रोफाइट्स झील पारिस्थितिको तंत्र के संतुलन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। उनमें अपने प्रभावी जड़ प्रणाली के साथ, पोषक तत्वों को अवशोषित कर पानी की गुणवत्ता में सुधार करने की क्षमता है। मैक्रोफाइट्स से क्षय पोषक तत्व सांद्रता बढ़ जाती है इसे यूट्रोफिकेशन कहते हैं जो जलीय पारिस्थितिकी तंत्र के पानी की गुणवत्ता बनाए रखने के लिए आवश्यक है। इस अध्ययन का उद्देश्य पानी के प्रदूषण के स्तर को कम करने में अलग-अलग मैक्रोफाइट्स प्रजातियों (जैव फिल्टर) की उपयोगिता का मूल्यांकन करना है। वर्तमान अध्ययन शाहपुरा झील, भोपाल से एकत्र नमूनों पर किए गए पूर्व के प्रयोगों का नतीजा है। दो मेलोफाइट्स प्रजातियों जलकुम्भी (इकोर्निया क्रेस्सिपुस) और हाइडिला बर्टिसिलेटा को अध्ययन के लिए चुना गया था। 
दोनों प्रजातियों के पौधे माइक्रोफाइट्स पोषक तत्व सान्द्रता को कम कर पानी की गुणवत्ता में सुधार लाने में सक्षम हैं। मेकोफाइट्स के माध्यम से पानी का शुद्धिकरण प्राकृतिक साधन के साथ पानी के शुद्धिकरण का एक अच्छा उदाहरण है। कई जलीय खरपतवार धातु आयानों को अवशोषित करने में सक्षम हैं और अपशिष्ट जल के उपचार के लिए सबसे सस्ते स्रोतों में से एक के रूप में उपयोग किया जा सकता है। हमारे अध्ययन से मेक्रोफाइट्स हाइडिला वर्टिसिलेटा के साथ क्रोमियम, सीसा, जस्ता और लोहे के लिए इस अवशोषित प्रक्रिया को विशेषताओं के साथ संबंधित हैं डेटा गणितीय सांख्यिकीय विश्लेषण के साथ मॉडलिंग से वैलिडेसन किया गया है। हाइडिला वैटिसिलेटा पानी के नमूने से धातु आयनों को दूर करने में बहुत अच्छी दक्षता पाई गई है। प्रक्रिया पर्यावरण हितैषी है और एक कुशल तरीके से लागू किया जाये तो जल निकायों, तालाबों एवं झीलों में पर्यावरण की समस्या जो बढ़ रही है उसे दूर करने के लिए सबसे अच्छा तरीका साबित होगा।

Water quality improvement through Macrophytes: A case study

Savita Dixit & Charu Parashar

Maulana Azad National Institute of Technology, Link Road No 3, Near Kali Mandir, Bhopal 462003 (M.P.)

Abstract

Bhopal, Madhya Pradesh city is popular and known as the city of lakes having more than eighteen smaller and the big pond as water sources and also after some initial treatment a source of drinking water. The present experimental study was focus on two eutrophic lakes famous for irrigation, fishing and recreational activities center named Shahpura Lake and lower Lake compare and identify their potential to improve water quality by removing the heavy metals. Macrophytes play an important roles in balancing lake ecosystem. They have capacity to improve the water quality by absorbing nutrients with their effective root system. The objective of the study is to evaluate the usefulness of different macrophytic species (Biofilters) in reducing the nutrient content of the water i.e. to reduce the pollution level of water. The paper is the outcome of experiments conducted on samples collected from Lower Lake and Shahpura Lake, Bhopal. Two macrophyteic Species Eicchornia crassipes and Hydrilla verticillata. Results indicates that both the macrophytes are capable in improving water quality by reducing nutrient concentration and uptake heavy metals too. Purification of water through macrophytes is a good example of natural means.


प्रस्तावना

भोपाल शहर 'झीलों की नगरी के नाम से विख्यात है। मध्य प्रदेश की राजधानी है। इसमें 18 से अधिक छोटे-बड़े प्राकृतिक तथा मानव द्वारा निर्मित तालाब हैं तथा यह भारत के प्रमुख हरित शहरों में से एक है। सम्पूर्ण विश्व में भोपाल गैस त्रासदी प्रसिद्ध है। यह त्रासदी 2-3 दिसम्बर 1982 की मध्य रात्रि में यूनियन कार्बाइड कीटनाशक बनाने वाली कंपनी के प्लांट में मिथाइल आइसो साइनेट गैस के रिसने से हुई थी। जिससे हजारों लोगों के मरने के साथ-साथ शारीरिक तथा मानसिक, अंधत्व, त्वचा श्वास सम्बन्धी तथा अनेक बच्चों में अपूर्ण विकास जैसी भयावह घटनाएँ हुई।

अठारह तालाबों में से कुछ ही तालाब पीने के पानी का स्रोत हैं। प्राथमिक उपचार के बाद बाकी जलनिकाय द्वितीयक उपयोगों जैसे मत्स्य पालन तथा पुनर्निर्मित क्रियाओं के काम आते हैं।

इस शोध पत्र में मुख्य रूप से शाहपुरा तालाब में जो कि भोपाल में स्थित है, में उपस्थित जल कुम्भी तथा हाइडिला के द्वारा धातु तत्व एवं न्यूट्रिएंट्स के अवशोषण पर केन्द्रित किया गया है। उपरोक्त अध्ययन से यह सिद्ध हो गया है कि ये पौधे जैविक शोधन का कार्य करते हैं तथा पानी को साफ रखने में मदद करते हैं। यह प्रायोगिक कार्य दो युट्रोपिक तालाब जो कि सिंचाई, मत्स्यपालन तथा दूसरी पुनर्निर्मित क्रियाओं के लिए प्रसिद्ध शाहपुरा से झील तथा छोटा तालाब में पानी की गुणवत्ता जलीय पौधों के द्वारा धातु तत्व के अवशोषण द्वारा कैसे प्रभावित होती है, पर आधारित है।

सामग्री एवं विधि

मैक्रोफाइट्स, जैव तंत्र को संतुलित करने में महत्वपूर्ण भूमिका प्रदान करते हैं। उनमें जड़ों के माध्यम से धातु तत्व को अवशोषित करने की क्षमता होती है। इस शोध का उद्देश्य मैक्रोफाइट्स की उपयोगिता बता कर प्रदूषण कम करना है। इस शोध पत्र के परिणाम स्वरूप हमने दोनों तालाबों से नमूने लेकर उनमें पानी में प्रदूषण की स्थिति देखी तथा अच्छे परिणाम मिले।

सामान्यतः यह देखा गया है कि जलीय तंत्र में जलीय पौधे पाए जाते हैं जो कि जैव तंत्र को संतुलित करते हैं। जल में न्यूट्रीएन्ट्स की अधिक मात्रा होना यूट्रीफिकेशन कहलाता है। जिससे पानी में नाइट्रेट तथा फॉस्फेट की सांद्रता बढ़ जाती है तथा जीव जंतुओं को नुकसान होता है। यूट्रीफिकेशन  का मुख्य कारण है, बढ़ती हुई आबादी, घरेलू कचड़ा, सीवेज तथा मूर्ति विसर्जन मैक्रोफाइट्स मुख्य रूप से तीन प्रकार के होते हैं जलीय मिट्टी में धंसे हुए, सामान्य तैरते हुए तथा आधे घंसे हुए जलकुम्भी मुक्त रूप से तैरने वाले मैक्रोफाइट्स हैं, जिसकी जड़ मुख्य रूप से धातु तत्वों तथा न्यूट्रीएंट्स को अवशोषित करती है तथा प्रदूषण कम करती है तथा यह बहुत अधिक उपयोगी होती है। BOD. COD, नाइट्रोजन, ऑर्गेनिक कार्बन, न्यूट्रीएंट्स तथा धातु तत्वों को दूर करने में हाइड्रिला वर्टिसिलेटा (आधे घंसे हुए पौधे) सहायक हैं। जैसा कि हम जानते हैं। कि दूषित पानी को शुद्ध करने हेतु जो विधियां प्रयोग में लाई जाती हैं वो काफी महंगी होती हैं तथा पानी स्वच्छ रसायनों के होते हैं जिससे दुष्प्रभाव द्वारा स्वच्छ अतएव प्राकृतिक तथा इको फ्रेंडली तरीके से पानी को स्वच्छ करने हेतु यह अत्यंत उपयोगी है।

उपरोक्त अध्ययन की आवश्यकता तब महसूस हुई जब देखा गया कि नए शहर के मध्य स्थित तालाब सुन्दरता तथा टूरिस्टों के लिए आकर्षण का केंद्र है। उसमें घरेलू अपशिष्ट और रसायन आदि के कारण जलकुम्भी हाइड्रिला के कारण भर गया है तथा मछलियां मरने लगी हैं। इसलिए जलकुम्भी तथा हाइड्रिला जैव शोधक की तरह उपयोग में लाकर तालाब का प्रदूषण दूर किया।

परिणाम एवं विवेचना

इस शोध हेतु शाहपुरा तालाब तथा छोटा तालाब  जो पुराने भोपाल में स्थित है, का पानी लिया गया है। शाहपुरा तालाब में सीवेज का पानी एकत्रित रहता है । अध्ययन भी दो मैक्रोफाइट्स जलकुम्भी तथा हाइड्रिला के द्वारा पूर्ण किया गया तथा न्यूट्रीएंट्स अवशोषण की दर तथा धातु तत्व का अवलोकन किया गया। अनुमानित पाँच लीटर पानी लिया, उसमें दो लीटर सामान्य पानी मिलाया तथा 100 ग्राम जलकुम्भी प्रयोग के माध्यम से एक सप्ताह तक विभिन्न अंतराल में एकत्रित कर सांद्रता देखी गयी समान प्रयोग हाइड्रिला वर्टिसिलेटा के साथ किया गया।

न्यूट्रीएंट्स से भरा हुआ पानी जिसमें फॉस्फोरस, नाइट्रेट, सोडियम, पोटेशियम आयन अत्यधिक मात्रा में थे। जलीय पौधे द्वारा अधिकतम नाइट्रोजन फॉस्फेट अवशोषित किये गए। नाइट्रेट, BOD तथा COD, दूसरे पैरामीटर pH, TDS भी कम पाये गए।

जलकुम्भी सामान्य रूप से पूरे विश्व में पाए जाने वाला मैक्रोफाइट है एवं अच्छा जलीय छनन है इसकी चालकता 8.38% दूर हुई। ग्राफ के माध्यम से धातु अवशोषण एवं न्यूट्रीएंट्स अवशोषण स्पष्ट  दिखाई दे रहा है (चित्र, ग्राफ तथा सारणी 6.1 ) उपरोक्त प्रयोगों के बाद दोनों जलीय पौधों के द्वारा जलकुम्भी एवं हाइडिला वर्टिसिलेटा द्वारा BOD (90.12.40.12%) COD (46.47.00.24%); नाइट्रेट (26.67%, 08.36% ); फॉस्फेट ( 38.79%, 73.51% ); धातु तत्वः क्रोमियम (40.47%, 08-21%); जिंक (26.67%, 08.36% ) में कमी देखी गयी।

निष्कर्ष

हम सभी जानते हैं कि जलकुंभी को पूरे विश्व में बेकार पौधों के रूप में जाना जाता है तथा इसको नष्ट करने की अभी तक कोई क्रिया विधि नहीं है। इसमें BOD, COD, नाइट्रेट्स, फॉस्फेट को अवशोषित करने की क्षमता होती है। हाइड्रिला वर्टिसिलेटा भी एक अच्छा जैव छनन है। विशेषतया BOD ( 40.12%) और COD ( 00.24%), नाइट्रेट ( 08.36%), फॉस्फेट (51.73%), दूर होते हैं। यहाँ यह ध्यान रखना अत्यावश्यक है कि हाइड्रिला ऑक्सीजन वाले पानी में फलता-फूलता है इसलिए अधिक BOD वाले दूषित पानी को दूर करने में कम उपयोगी है।

जल कुम्भी तथा हाइड्रिला वर्टिसिलेटा के द्वारा हमारे अध्ययन से माक्रोफाइट्स हाइड्रिला वर्टिसिलेटा साथ क्रोमियम, सीसा, विश्लेषण के साथ मॉडलिंग से बेलिडेशन किया है। हाइड्रिला वर्टिसिलेटा पानी के नमूने से धातु आयनों को दूर करने में बहुत अच्छी दक्षता पाई गई है। प्रक्रिया पर्यावरण हितैषी है और एक कुशल तरीके से लागू किया जाये तो जल निकायों, तालाबों एवं झीलों में पर्यावरण की समस्या जो बढ़ रही है उसे दूर करने के लिए सबसे अच्छा तरीका साबित होगा ।

मौलाना आजाद राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान, लिंक रोड नं. 3, काली माता मंदिर के पास, भोपाल 462003 (म.प्र.)

संदर्भ

1. अव्वासी निपाने, व वर्स्ट वीड कण्ट्रोल एंड उतिलिज़तिऊन" इंटरनेशनल बुक डिस्ट्रीब्यूटर, देहरादून 226. अफा अव्या स्टेण्डर्ड मैवइस फॉर एनालिसिस ऑफ वाटर एंड वेस्टवाटर 19वां एडिशन (1999).

2. ओकी य, इफ़ेक्ट ऑफ एक्वेटिक वीड्स आफ न्यूट्रीएंट्स रिमूवल फ्रॉम डोमेस्टिक सीवेज, प्रोक. ऑफ़ द ज इंटरनेशनल वीड कंट्रोल कांग्रेस 2 (1992) 365-371.

3. तिवारी सूचि, न्यूट्रिएन्ट्स ओवरलोडिंग ऑफ अ फ्रेशवाटर लेक इन

भोपाल, इंडिया, इलेक्ट्रॉनिक ग्रीन जर्नल इ. स. स.न. (2005) 1076-7975.

4. वेस्टर्न कंसोर्टियम फॉर पब्लिक हेल्थ (व.क.प.ह.) इ.ओ.या., इंक. टोटल रिसोर्सेज रिकवरी प्रोजेक्ट फाइनल रिपोर्ट वाटर यूटिलिटीज डिपार्टमेंट, सिटी ऑफ सन डिएगो.


 

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Post By: Shivendra
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